पूर्ण अवलोकन सम्भव नहीं
हो ही नहीं सकता
पूरी ज़िन्दगी शब्दों से भरी होती है
कुछ पन्नों पर उतर आते हैं
कुछ इंतज़ार में होते हैं
कुछ खुद में विलीन .... इस होने, नहीं होने से कुछ लेना एक प्रयास है,
कुछ जी लेने का
कुछ साँसें देने का …
लक्ष्मण पत्नी उर्मिला की विरह व्यथा --------
शशि पाधा
http://shashipadha.blogspot.in/
हाय यह जग कितना अनजाना
हिय नारी का न पहचाना,
पढ़ न पाए मन की भाषा
मौन को स्वीकृति ही माना।
विदा की वेला आन खड़ी थी
कैसी निर्मम करुण घड़ी थी,
न रोका न अनुनय कोई
झुके नयन दो बूंद झरी थी ।
अन्तर्मन की विरह वेदना
पलकों से बस ढाँप रही थी,
देहरी पर निश्चेष्ट खड़ी सी
देह वल्लरी काँप रही थी ।
हुए नयन से ओझल प्रियतम
पिघली अँखियाँ,सिहरा तन-मन
मौन थी उस पल की भाषा
अंग - अंग में मौन क्रन्दन ।
रोक लिया था रुदन कंठ में
अधरों पे आ रुकी थी सिसकी,
दूर गये प्रियतम के पथ पर
बार बार आ दृष्टि ठिठकी ।
गुमसुम कटते विरह के पल
नयनों में घिर आते घन दल,
बोझिल भीगी पलकें मूँदे
ढूँढ रही प्रिय मूरत चंचल ।
सावन के बादल से पूछे
क्या तूने मेरा प्रियतम देखा,
सूर्य किरण अंजुलि में भर-भर
चित्रित करती प्रियमुख रेखा ।
चौबारे कोई काग जो आये
देख उसे मन को समझाती,
लौट आयेंगे प्रियतम मेरे
जैसे मधुऋतु लौट के आती ।
दर्पण में प्रिय मुख ही देखे
लाल सिंदूरी मांग भरे जब,
माथे की बिंदिया से पूछे
मोरे प्रियतम आवेंगे कब ।
सूर्य किरण नभ के आंगन में
जब-जब खेले सतरंग होली,
धीर बाँध तब बाँध सके न
नयनों से कोई नदिया रो ली ।
गहरे घाव हुए अंगुलि पर
पल-पल घड़ियाँ गिनते गिनते्,
मौन वेदना ताप मिटाने
अम्बर में आ मेघा घिरते।
पंखुड़ियों से लिख-लिख अक्षर
आंगन में प्रिय नाम सजाती,
बार-बार पाँखों को छूती
बीते कल को पास बुलाती ।
तरू से टूटी बेला जैसे
बिन सम्बल मुरझाई सी,
विरह अग्न से तपती काया
झुलसी और कुम्हलाई सी ।
बीते कल की सुरभित सुधियाँ
आँचल में वो बाँध के रखती,
विस्मृत न हो कोई प्रिय क्षण
मन ही मन में बातें करती ।
पुनर्मिलन की साध के दीपक
तुलसी की देहरी पर जलते,
अभिनन्दन की मधुवेला की
बाट जोहते नयन न थकते ।
प्रिय मंगल के गीतों के सुर
श्वासों में रहते सजते ,
लाल हरे गुलाबी कंगन
भावी सुख की आस में बजते ।
दिवस, मास और बरस बिताए
बार-बार अंगुलि पर गिन गिन,
काटे न कटते ते फिर भी
विरह की अवधि के दिन ।
कुल सेवा ही धर्म था उसका
पूजा अर्चन कर्म था उसका,
धीर भाव अँखियों का अंजन
प्रिय सुधियाँ अवलम्बन उसका ।
जन्म-जन्म मैं पाऊँ तुमको
हाथ जोड़ प्रिय वन्दन करती,
पर न झेलूँ विरह वेदना
परम ईश से विनती करती ।
उस देवी की करूण वेदना
बदली बन नित झरी -झरी,
अँखियों की अविरल धारा से
नदियां जग की भरी -भरी ।
हारती संवेदना
साधना वैद
http://sudhinama.blogspot.in/
क्या करोगे विश्व सारा जीत कर
हारती जब जा रही संवेदना !
शब्द सारे खोखले से हो गये ,
गीत मधुरिम मौन होकर सो गये ,
नैन सूखे ही रहे सुन कर व्यथा ,
शुष्क होती जा रही संवेदना !
ह्रदय का मरुथल सुलगता ही रहा ,
अहम् का जंगल पनपता ही रहा ,
दर्प के सागर में मृदुता खो गयी ,
तिक्त होती जा रही संवेदना !
आत्मगौरव की डगर पर चल पड़े ,
आत्मश्लाघा के शिखर पर जा चढ़े ,
आत्मचिन्तन से सदा बचते रहे ,
रिक्त होती जा रही संवेदना !
भाव कोमल कंठ में ही घुट गये ,
मधुर स्वर कड़वे स्वरों से लुट गये ,
है अचंभित सिहरती इंसानियत ,
क्षुब्ध होती जा रही संवेदना !
कौन सत् के रास्ते पर है चला ,
कौन समझे पीर दुखियों की भला ,
हैं सभी बस स्वार्थ सिद्धि में मगन ,
सुन्न होती जा रही संवेदना !
सन्नाटे की आवाज़
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सीमा श्रीवास्तव
syaheesugandh.blogspot.in
रात को सोया हुआ आदमी ,
बार बार जगता है ,
चौंक चौंक कर उठता है ।
रात के सन्नाटे में हैं
ढेर सी आवाज़े ,
आवाज़े ,जिन्हे वो नहीं पहचानता
दिन के शोरगुल में ………
सो नहीं पाता वो सारी रात
उन अनजानी आवाज़ों को थाहने मेँ
सुबह होती है और वो अलसाया सा
पसर जाता है बिस्तर पर
सुबह के शोरगुल मेँ छोटी छोटी
अनजानी आवाज़े खो जाती हैं ……
तब सो जाता है वह
आराम से , दुनिया से बेखबर
अपनी जानी पहचानी
आवाजों की दुनिया मेँ ।
बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
सुंदर अवलोकन सुंदर कविताओं के साथ ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका रश्मिप्रभा जी ! अवलोकन के प्रथम अंक में इतनी उत्कृष्ट रचनाओं के साथ अपनी रचना देख कर अपार हर्ष हुआ ! इस श्रंखला की अगली कड़ियों की प्रतीक्षा रहेगी ! सधन्यवाद !
जवाब देंहटाएंआभार रश्मि जी , मेरी रचना को अपने सुधि पाठकों तह पहुंचाने का | और इस माध्यम से हम अन्य दो संवेदनशील रचनाएं भी पढ़ पाए |
जवाब देंहटाएंआपकी यह शृंखला हमेशा बहुत ही शानदार होती है! बधाई उन सभी ब्लॉग रचनाकारों को जिन्हें आपने चुना!!
जवाब देंहटाएंआभार आपका रश्मि दीदी और बहुत बहुत धन्यवाद...।अवलोकन के प्रथम अंक में उत्कृष्ट रचनाओ के साथ अपनी रचना को देखकर मेरी तो खुशी की सीमा ही नहीं रही...। तहेदिल से शुक्रिया..:)
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएँ साझा करने के लिए बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंरचनाएँ साझा करने के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएँ .......
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