प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
प्रणाम |
'इंसान' एक दुकान है और 'जुबान' उसका ताला;
जब ताला खुलता है, तभी मालूम पड़ता है;
कि दुकान 'सोने' की है या 'कोयले' की।
जब ताला खुलता है, तभी मालूम पड़ता है;
कि दुकान 'सोने' की है या 'कोयले' की।
सादर आपका
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
इसीलिये हम बोलते नहीं कुछ लिख देते हैं :)
जवाब देंहटाएंसुंदर बुलेटिन शिवम जी ।
बहुत आभार.... सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन व प्रस्तुति , शिवम भाई व बुलेटिन को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बढ़िया सन्देश +बढ़िया लिंक्स = बढ़िया बुलेटिन :)
जवाब देंहटाएंबड़ी पुरानी कहावत है कि चुप रहने से बेवक़ूफ़ भी अक़्लमन्दों की जमात में शामिल हो जाता है. असली पहचान तो ज़ुबान से ही होती है!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत आभार... मुझे शामिल करने का ...
इतने अच्छे लिंक्स के साथ मुझे शामिल करने के लिए आपका आभार।
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को इस प्रतिष्ठित मंच पर शामिल करने के लिए आपका सादर आभार। Thnx a lot , sir :)
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आपका ....मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंachho prastuti,sundar links...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति ...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशिवम् मिश्रा जी, सुंदर प्रस्तुति...बढ़िया लिंक्स...मुझे स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार...!!
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स संयोजन एवं प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार