सुनो,
मैंने नहीं जन्म लिया जलालत की ज़िन्दगी जीने के लिए
यह संस्कार मुझे मेरी माँ और पिता ने दिया
यह कहते हुए
कि याद रखना
ससुराल से तुम्हारी लाश ही बाहर निकले
इसीमें हमारी इज़्ज़त है !"
कभी भी नहीं सोचा पीढ़ी दर पीढ़ी
कि संस्कारों का निर्वाह अकेला नहीं होता
और जब हर दिशाएँ स्तब्ध हो गईं
तब मैंने आवाज दी
निःसंदेह वह घिघियाहट थी
पर शनैः शनैः हमने अपना अर्थ जाना
जानने की प्रक्रिया में
हम भी कुछ गलत हुए
पर तुम्हारी यातना के आगे
इसके जिम्मेदार भी तुम हो !
शर्म नहीं आती कहते
कि मैंने जन्म लिया है
जलालत भरी ज़िन्दगी के लिए
छिः, तुम भूल रहे
तुम्हारी माँ ने भी जन्म लिया है
क्या उसकी जलालत के आगे ढाल बनना
तुम्हारा कर्तव्य नहीं ?
सूखे आँसुओं के मध्य एक हँसी, एक लोरी के साथ
जिस माँ ने तुम्हें परियों की कहानी सुनाई
एक एक निवाला खिलाया
तुम्हें ज़िन्दगी के मायने सिखाये
क्या उसके आगत को सुन्दर बनाना
तुम्हारा कर्तव्य नहीं ?
राक्षसी हँसी के साथ
किस कुत्सित परम्परा का निर्वाह कर रहे
पत्नी,पराई स्त्री के आगे इस जुमले को दोहराकर
माँ और बेटी का अपमान कर रहे ?
अपनी गिरेबां में देखो
शांत हो जाओ
चिंतन तभी कर पाओगे !!!
चिंतन के साथ एक नज़र इधर भी, संभवतः चिंतन की अग्नि को हवा मिले -
हम भी कुछ गलत हुए
जवाब देंहटाएंपर तुम्हारी यातना के आगे
इसके जिम्मेदार भी तुम हो !
इस तरह हम एक दूसरे को समझ पाए तो अधिक खूबसूरत हो सकती यह सृष्टि !
शायद कुछ कब बदलेगा
जवाब देंहटाएंचिंतन वो नहीं करता जो सब कुछ करता है चिंतन उसे करना है जो भोगता है । बहुत सुंदर बुलेटिन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंThe WorkPlace : नयी सोच और नयी तकनीक के साथ नये युग की शुरुवात
बहुत अच्छे लिंक्स |
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन !
जवाब देंहटाएंये हालात मर्म को भेद देती है पर .. सुन्दर बुलेटिन के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन के साथ पेश की गई इस सार्थक बुलेटिन के लिए आपका आभार दीदी |
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन !बहुत अच्छे लिंक्स |
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा सुंदर कटियां।
जवाब देंहटाएंकृपया कडियाँ पढें।
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