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बुधवार, 14 मई 2014

फिर हम दोस्त नहीं



हम मिले नहीं 
हम दोस्त हैं 
दर्द को साझा करके हम विशेष हुए 
पर  … 
दर्द साझा होकर भी ना समझा जाए 
तो  - हम दोस्त नहीं, 
हम अजनबी थे 
अजनबी ही रह गए !


इसे समझिए - और पढ़ने की रुचि हो तो जो लिंक पसंद हो उसे पढ़ डालिये, संभव है कोई नई सोच मिल जाए -

10 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत लिंक संयोजन …………आभार

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  2. बहुत सुंदर बुलेटिन । रश्मी प्रभा जी अपने पसंद के सूत्र लाई हो तो सब ही पढ़ेगे कुछ ही क्यों :)

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  3. बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति!
    धन्यवादQ

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  4. शामिल करने के लिये तहे दिल से आभार
    रोचक सूत्रों के लिये बधाई ...:)

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  5. "हम मिले नहीं
    हम दोस्त हैं
    दर्द को साझा करके हम विशेष हुए
    पर …
    दर्द साझा होकर भी ना समझा जाए
    तो - हम दोस्त नहीं,
    हम अजनबी थे
    अजनबी ही रह गए !"

    बड़ा अजीब संयोग है कि आज कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ है ... और जब बुलेटिन पर आया तो यह पढ़ने को मिला ... :)

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  6. दर्द का रिश्ता इसी को तो कहते हैं.. बहुत अच्छी और सम्वेदनशील भावाभिव्यक्ति!! लिंक्स देखता हूँ धीरे धीरे!!

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  7. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति आभार

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  8. ‘अभिव्यक्तियां बोलती हैं’ की पोस्ट पर डॉ.कविता वाचक्नवी की टिप्पणी देखी कि उनकी पंक्तियों का बिना श्रेय दिए इस्तेमाल किया गया है। मेरे ख्याल से ऐसे ब्लॉगरों का बहिष्कार किया जाना चाहिए, जो यहां-वहां से उठाकर अपने ब्लॉग पर डालते हैं।

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  9. दोस्ती दिवस का ये विशेष बुलेचिन बहुत अच्छा लगा।

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!