हम मिले नहीं
हम दोस्त हैं
दर्द को साझा करके हम विशेष हुए
पर …
दर्द साझा होकर भी ना समझा जाए
तो - हम दोस्त नहीं,
हम अजनबी थे
अजनबी ही रह गए !
इसे समझिए - और पढ़ने की रुचि हो तो जो लिंक पसंद हो उसे पढ़ डालिये, संभव है कोई नई सोच मिल जाए -
बढ़िया सूत्रीय बुलेटिन , आ. रश्मि जी व बुलेटिन को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
खूबसूरत लिंक संयोजन …………आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बुलेटिन । रश्मी प्रभा जी अपने पसंद के सूत्र लाई हो तो सब ही पढ़ेगे कुछ ही क्यों :)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंधन्यवादQ
शामिल करने के लिये तहे दिल से आभार
जवाब देंहटाएंरोचक सूत्रों के लिये बधाई ...:)
"हम मिले नहीं
जवाब देंहटाएंहम दोस्त हैं
दर्द को साझा करके हम विशेष हुए
पर …
दर्द साझा होकर भी ना समझा जाए
तो - हम दोस्त नहीं,
हम अजनबी थे
अजनबी ही रह गए !"
बड़ा अजीब संयोग है कि आज कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ है ... और जब बुलेटिन पर आया तो यह पढ़ने को मिला ... :)
दर्द का रिश्ता इसी को तो कहते हैं.. बहुत अच्छी और सम्वेदनशील भावाभिव्यक्ति!! लिंक्स देखता हूँ धीरे धीरे!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति आभार
जवाब देंहटाएं‘अभिव्यक्तियां बोलती हैं’ की पोस्ट पर डॉ.कविता वाचक्नवी की टिप्पणी देखी कि उनकी पंक्तियों का बिना श्रेय दिए इस्तेमाल किया गया है। मेरे ख्याल से ऐसे ब्लॉगरों का बहिष्कार किया जाना चाहिए, जो यहां-वहां से उठाकर अपने ब्लॉग पर डालते हैं।
जवाब देंहटाएंदोस्ती दिवस का ये विशेष बुलेचिन बहुत अच्छा लगा।
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