प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
आजकल माहौल काफी गरम चल रहा है ... देश मे चुनाव है ... ऐसे मे थोड़ा माहौल को हल्का किया जाये तो कैसा रहे ... लीजिये एक लतीफा पेश है |
5 साल का बच्चा: आई लव यू माँ।
माँ: आई लव यू टू बेटा।
16 साल का लड़का: आई लव यू मॉम।
माँ: सॉरी बेटा, पैसे नहीं हैं!
25 साल का लड़का: आई लव यू माँ।
माँ: कौन है वह? कहां रहती है?
35 साल का आदमी: आई लव यू माँ।
माँ: बेटा मैंने पहले ही बोला था, उस लड़की से शादी मत करना!
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और सबसे बढ़िया..
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55 साल का आदमी: आई लव यू माँ।
माँ: बेटा, मैं किसी भी कागज़ पर साइन नहीं करूंगी!
अगर गौर से देखें तो इस लतीफे मे भी कहीं न कहीं एक सबक है ... एक दर्द है ... अब यह आप पर है ... आप उसे खोज पाये या नहीं !!
सादर आपका
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जशोदा बेन का मर्म ना जाने कोए...
(*पोस्ट से पहले आपसे कुछ दिल की बात*- कहते हैं इंसान दो परिस्थितियों में निशब्द हो जाता है। बहुत दुख में और बहुत खुशी में। और जब बहुत दुख में निशब्द हो जाता है तो बहुत समय लगता है उससे बाहर आने में। सितंबर 2011 के बाद मैनें कुछ नहीं लिखा। 2011 और 2012 में मेरी बीजी की लंबी बीमारी। अस्पतालों में दिन रात रहना और फिर 2012 में उनका हमसे सदा के लिए बिछुड़ जाना। सबको पता है हम सबको जाना है। लेकिन फिर भी ना जाने क्यों हमारा मन ऐसा है अपनों को अलविदा कहना नहीं चाहता। और फिर मेरी बीजी के जाने के बाद मेरे पैतृक परिवार में मानो नंबर लग गया। फरवरी 2012 से जून 2012 तक अपने चार प्रियजनों को अंतिम... more »चुनावी रंग में रंगे कुछ फ़ेसबुकिया नोट्स
अजब मंजर है इन दिनों। मोदी विरोध और मोदी समर्थन में ही दुनिया जी रही है। और भी गम हैं जमाने में मोदी के सिवा ! इधर मैं ने कुछ लोगों के अंतर्विरोध नोट किए हैं। जैसे कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो जुबान से तो वामपंथी हैं पर जेहन से भाजपाई! ऐसे ही कुछ दलित हैं जो जुबान से तो अंबेडकरवादी हैं पर जेहन से बसपाई, सपाई या भाजपाई हैं। कांग्रेसी भी। कुछ मुस्लिम हैं जो जुबान से इस्लाम-इस्लाम करते
बहुत दिनों के बाद......
बहुत दिनों के बाद... अपने शब्दों के घर लौटी... बहुत दिनों के बाद ....... फिर से मन मचल गया... बहुत दिनों के बाद... फिर से कुछ लिखना चाहा.... बहुत दिनों के बाद... कुछ ऐसा मन में आया.... फिर इक बार नए सिरे से शुरु करूँ मैं लिखना ... अपने मन की बात !! सोचती हूँ ब्लॉग पर नियमित न हो पाना या जीवन को अनियमित जीना न आदत है और न ही आनंद...वक्त के तेज बहाव में उसी की गति से बहते जाना ही जीना है शायद. जीवन धारा की उठती गिरती लहरों का सुख दुख की चट्टानों से टकरा कर बहते जाने में ही उसकी खूबसूरती है. खैर जो भी हो लिखने के लिए फिर से पलट कर ब्लॉग जगत में आना भी एक अलग ही रोमाँच पैदा करता ह... more »
ऐ-री-सखी (अकेले मन का द्वंद्ध )
*(ऐ-री-सखी कविता संग्रह की ही एक कविता )* ऐ-री-सखी तू ही बता मैं कब तक तन्हा रहूँगी कब! मेरे मन की चौखट पे धूप सी इस जिंदगी में कोई आएगा जिस संग मैं साजन गीत गाऊँगी तब! बसंत के आने पर , मेरी जिंदगी की भौर में तभी तो बहार आएगी जो मल्हार का रूप धर उस संग प्यार के नगमे गाएगी हम दोनों मिल कर खेलेंगे , खेल जीवन-संगीत का बन जाएँगे अफसाने , हम दोनों के जब दो दिल मिल जाएँगे देख कर रूप प्यार का सूने जीवन में भी गुलशन भी खिल जाएँगे जब आँखे कुछ कहेंगी ख़ामोशी और बढ़ जाएगी एक संगीत का सुर मिल जाएगा तब,तन मन गीत सुनाएगा मोहब्बत में है ये मादक मदिरा मद में करे मदहोश जो प्यार में सरस ... more »संवेदनाओं का पतझड़ है.…??
अडिग अटल विराट घने वटवृक्ष तले स्थिर खड़ी रही एक पैर पर तपस्यारत पतझड़ में भी एक भी शब्द नहीं झरा, प्रेम से घर का कोना कोना भरा , मेरे आहाते में ..... मेरी ज़मीन पर , सारे वृक्ष हरे भरे,लहलहाते चिलचिलाती धूप में भी कोमल छांव , यहीं तो है मेरे मन की ठाँव हरीतिमा छाई , निस्सीम कल्पनातीत वैभव, मन ही तो है- तुम्हारा वास है यहाँ , समृद्ध है ........ कैसे कह दूं मेरे घर में संवेदनाओं का पतझड़ है.…??पृथ्वी दिवस पर लघुकथा / ईश्वर की प्रतीक्षा
धरती अपने पुत्रों की बेरुखी से परेशान थी। जिसे देखो, धरती को कचराघर बनाने पर तुला था। एक दिन धरती गाय के पास पहुँची। गाय भी अपने बेटो से दुखी थी। दोनों गंगा के पास गए. गंगा भी अपनी औलादो से त्रस्त मिली। अब क्या करें। तीनो पर्वत के पास पहुँचे, मगर वह भी अपनी औलादो से दुखी था, फूट-फूट कर रोने लगा, ''अब तो भगवान ही कुछ करेंगे।'' सब ईश्वर के पास पहुंचे। उन्हें देख कर अन्तर्यामी ईश्वर अन्तर्धान हो गए। धरती, गाय, गंगा, और पर्वत अब तक ईश्वर की प्रतीक्षा में हैं ।चुनावी चौराहों .....................
*चुनावी चौराहों और चौपालों पर* *चैतन्य वेग का रेला है* *दूर-दराज सूनसानों में भी* *कैसा जमघट कैसा मेला है* *वादों में लहरा के चलते हैं* *कभी खुद औहदों पर इतराने वाले* *आरोपों और प्रत्यारोपों का* *रोचक खेल दिखाने वाले* *गली-गली और बस्ती-बस्ती* *शहर की सकरी गलियों * *सड़क किनारे झोपड़ पट्टी में * *भी दिख जाते हैं..............* *कभी-कभी कहीं-**कहीं* *ये दिखने वाले....................*
एक कहानी यह भी.......मन्नू भंडारी
*"मेरी प्रिय लेखिका मन्नू भंडारी जी पर लिखा मेरा ये आलेख आधी आबादी पत्रिका के ताज़ा अंक में प्रकाशित" * जन्म- 3 अप्रैल 1931 “एक कहानी यह भी” के पन्ने पलटते-पलटते मैं डूबती जा रही थी हिन्दी की एक बेहद लोकप्रिय कथाकार महेंद्र कुमारी - ”मन्नू भंडारी” की जीवन सरिता में | मन्नू जी की यह आत्मकथा पढ़ते हुए मैंने जाना कि एक मीठे पानी की नदी सा मालूम पड़ने वाला उनका जीवन दरअसल तटबंध किये हुए खारे सागर के जैसा था मगर मन्नू के भीतर अथाह क्षमता थी,डूब कर मोती खोज लाने की | एक बेहद ईमानदार व्यक्तित्व और उतनी ही सच्ची,बेबाक और स्पष्ट लेखन शैली वाली लेखिका,जिनके करीब जाने पर आप एक बेहद आम सी औरत को ... more »
धरा बची तो ही बचेंगे ........
*धरा बची तो ही बचेंगे* *नहीं तो सब ठिकाने लगेंगे ...* *[image: अरुणा सक्सेना's photo.]* *१-जल प्रदूषित , थल प्रदूषित* *चहुँ ओर है हवा प्रदूषितश्वास तोडती धरा हमारीनील गगन का रंग प्रदूषित* *२-पर्यावरण में विष घुला हैप्रकृति में भी घुन लगा हैसात रंग का इंद्र धनुष भीरंगहीन लगने लगा है३-वृक्ष अब कटने लगे हैवन्य जीव बेघर हुए हैंऊँची-ऊँची इमारतों सेकंक्रीट के वन बने हैं४-हम सब मिल करें प्रयास पेड़ लगाएं आस -पास डूब रही नैया को अपनी ले आयें साहिल के पास ५-पेड़ क्यों न हम लगाएं हरियाली को पुनः जगाएं पर्यावरण का संरक्षण कर वसुंधरा का क़र्ज़ चुकाएं |* *[image: अरुणा सक्सेना's photo.... more »
एक ऐसा विवाह जिसने पंजाब का इतिहास बदल दिया
कभी-कभी जाने-अनजाने वैभव प्रदर्शन भी घातक सिद्ध हो जाता है। यही हुआ था वर्ष *1837 *में, महिना था मार्च का। उस समय महाराजा रणजीत सिंह की अथक मेहनत और चातुर्य से पंजाब सुख-समृद्धी से लबरेज था. जमीन सोना उगल रही थी, धन-धान्य की प्रचुरता थी, जन-जीवन खुशहाल था। हालांकि देश में अंग्रेजों का वर्चस्व बढ़ रहा था पर पंजाब में रंणजीत सिंह जी के शौर्य के कारण उन की हिम्मत पस्त थी सो मजबूरन उन्हें वहाँ दोस्ती का नाटक करना पड़ रहा था। नौनिहाल सिंह पर समय को कुछ और ही मंजूर था. उन्हीं दिनों महाराजा ने अपने पुत्र खड़गसिंह के सपुत्र नौनिहाल सिंह का विवाह अपने ही एक जागीरदार शामसिंह अटारीवाला की पुत्र... more »
हमारा .... कहाँ जोर चलता है....?
हमारा .... कहाँ जोर चलता है....? भीतर सुलगते अंगारें.. अपने आस-पास ... किसी के होनें के एहसास-भर से... हवा देनें का काम कर जाता है। तब-तब भीतर के अंगार .. शब्द बन कर फूट पड़ते हैं मानों ...वे फूट पड़ना ही चाहते थे। शायद सोचते होगें... इसके बाद शांती का एहसास होगा। मगर... कुछ देर बाद... अंगार फिर सुलगते से .. महसूस होते हैं। किसी के भी सामनें .. फूट पड़नें की क्रिया की मजबूरी पर तन्हाई में रोते हैं। शायद ... ये मानव स्वाभाव है... या सहानूभूति हासिल करनें का हथकंडा.. कौन बतायेगा... आदमी की गल्ती है... या प्रकृति के नियम की... या जीवन ऐसे ही चलता है ? आदमी अपनें को.. ऐसे ही छलता है ? ह... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
सुंदर बुलेटिन शिवम ।
जवाब देंहटाएंमाँ को दर्द
होता भी है
बहुत कम पता
चल पाता है
माँ बताती ही
कहाँ है कुछ
उसे तो देना
सब कुछ अपना
और लेना
सभी का
दर्द आता है :)
sundar ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन लिंक्स भी बढ़िया शिवम् भाई व बुलेटिन को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
माँ के जितने रूप हैं वो कहाँ कोई अओअनी रचनाओं में समेट पाया है... कौशल्या और यशोदा मैया से लेकर आज तक माता का स्वरूप अवश्य बदला, किंतु माँ तो बस माँ है... आधुनिक काल में जैसे बेटे वैसी माँएँ.. बेटे चालाकी करते समय यह भूल जाते हैं कि उनकी चालाकी को जन्म उन्होंने दिया है, पर उनको उनकी माँ ने पैदा किया है.. वो सब जानती है!! एक मुस्कुराहट के साथ शुरू हुआ दिन!! बहुत ख़ूब!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर बुलेटिन है शिवम्...
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को शामिल करने का शुक्रिया !!
सस्नेह
अनु
देर के लिए क्षमा ....बहुत बढ़िया बुलेटिन है ....मेरी कृति को स्थान दिया हृदय से आभार शिवम ....!!
जवाब देंहटाएंआभार....बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएंदेर आए दुरुस्त आए..आजकल यहाँ नेट बहुत धीमा चल रहा है..दूसरी बार टिप्पणी भेजने की कोशिश शायद सफल हो जाए... ब्लॉग़ बुलेटिन के कारण कई अच्छे लिंक पढ़ने को मिले और लम्बे अरसे के बाद आने पर भी ब्लॉग़ जगत में फिर से शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ..
जवाब देंहटाएंaapke buletin padhne se kitne achhe link padhne ko milta hai.....maa hamesha dard sahti hai,kuch pyare kuch dil jala janewale..
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