प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
रामचंद्र पाण्डुरग राव यवलकर (तात्या टोपे) १८१८ – १८ अप्रैल १८५९ |
तात्या टोपे भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे। सन
१८५७ के महान विद्रोह में उनकी भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रेरणादायक और
बेजोड़ थी। तात्या का जन्म महाराष्ट्र में नासिक के निकट पटौदा जिले के
येवला नामक गाँव में एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता
पाण्डुरंग राव भट्ट़ (मावलेकर), पेशवा बाजीराव द्वितीय के घरू कर्मचारियों
में से थे। बाजीराव के प्रति स्वामिभक्त होने के कारण वे बाजीराव के साथ
सन् १८१८ में बिठूर चले गये थे। तात्या का वास्तविक नाम रामचंद्र पाण्डुरग
राव था, परंतु लोग स्नेह से उन्हें तात्या के नाम से पुकारते थे। तात्या का
जन्म सन् १८१४ माना जाता है। अपने आठ भाई-बहनों में तात्या सबसे बडे थे।
सन् सत्तावन के विद्रोह की शुरुआत १० मई को मेरठ से हुई। जल्दी ही क्रांति की चिन्गारी समूचे उत्तर भारत में फैल गयी। विदेशी सत्ता का खूनी पंजा मोडने के लिए भारतीय जनता ने जबरदस्त संघर्श किया। उसने अपने खून से त्याग और बलिदान की अमर गाथा लिखी। उस रक्तरंजित और गौरवशाली इतिहास के मंच से झाँसी की रानीलक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, राव साहब, बहादुरशाह जफर आदि के विदा हो जाने के बाद करीब एक साल बाद तक तात्या विद्रोहियों की कमान संभाले रहे।
नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेजों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या ८ अप्रैल, १८५९ को सोते में पकड लिए गये। रणबाँकुरे तात्या को कोई जागते हुए नहीं पकड सका। विद्रोह और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लडने के आरोप में १५ अप्रैल, १८५९ को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया। कोर्ट मार्शल के सब सदस्य अंग्रेज थे। परिणाम जाहिर था, उन्हें मौत की सजा दी गयी। शिवपुरी के किले में उन्हें तीन दिन बंद रखा गया। १८ अप्रैल को शाम पाँच बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया। कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया। इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये। कर्नल मालेसन ने सन् १८५७ के विद्रोह का इतिहास लिखा है। उन्होंने कहा कि तात्या टोपे चम्बल, नर्मदा और पार्वती की घाटियों के निवासियों के ’हीरो‘ बन गये हैं। सच तो ये है कि तात्या सारे भारत के ’हीरो‘ बन गये हैं। पर्सी क्रास नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि ’भारतीय विद्रोह में तात्या सबसे प्रखर मस्तिश्क के नेता थे। उनकी तरह कुछ और लोग होते तो अंग्रेजों के हाथ से भारत छीना जा सकता था।
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सन् सत्तावन के विद्रोह की शुरुआत १० मई को मेरठ से हुई। जल्दी ही क्रांति की चिन्गारी समूचे उत्तर भारत में फैल गयी। विदेशी सत्ता का खूनी पंजा मोडने के लिए भारतीय जनता ने जबरदस्त संघर्श किया। उसने अपने खून से त्याग और बलिदान की अमर गाथा लिखी। उस रक्तरंजित और गौरवशाली इतिहास के मंच से झाँसी की रानीलक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, राव साहब, बहादुरशाह जफर आदि के विदा हो जाने के बाद करीब एक साल बाद तक तात्या विद्रोहियों की कमान संभाले रहे।
नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेजों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या ८ अप्रैल, १८५९ को सोते में पकड लिए गये। रणबाँकुरे तात्या को कोई जागते हुए नहीं पकड सका। विद्रोह और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लडने के आरोप में १५ अप्रैल, १८५९ को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया। कोर्ट मार्शल के सब सदस्य अंग्रेज थे। परिणाम जाहिर था, उन्हें मौत की सजा दी गयी। शिवपुरी के किले में उन्हें तीन दिन बंद रखा गया। १८ अप्रैल को शाम पाँच बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया। कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया। इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये। कर्नल मालेसन ने सन् १८५७ के विद्रोह का इतिहास लिखा है। उन्होंने कहा कि तात्या टोपे चम्बल, नर्मदा और पार्वती की घाटियों के निवासियों के ’हीरो‘ बन गये हैं। सच तो ये है कि तात्या सारे भारत के ’हीरो‘ बन गये हैं। पर्सी क्रास नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि ’भारतीय विद्रोह में तात्या सबसे प्रखर मस्तिश्क के नेता थे। उनकी तरह कुछ और लोग होते तो अंग्रेजों के हाथ से भारत छीना जा सकता था।
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रामचंद्र पाण्डुरग राव यवलकर
शिवम् मिश्रा
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गुड़ फ्राइडे यानी पावन शुक्रवार
सो गया दास्ताँ कहते-कहते
मेरी डायरी
उन्हें मालूम नहीं
चलती का नाम गाड़ी
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आज से
ठीक ८४ साल पहले ... आज़ादी के दीवानों ने अमर क्रांतिकारी सूर्य सेन
'मास्टर दा' के कुशल नेतृत्व मे क्रांति की ज्वाला को प्रज्वलित किया था
जिस इतिहास मे आज "चंटगाव विद्रोह" के नाम से जाना जाता है |
संयोग देखिये कि उस दिन भी १८ अप्रैल, शुक्रवार-
गुडफ्राइडे था और आज जब हम उस क्रांति की ८४ वीं वर्षगांठ माना रहे है तब भी १८ अप्रैल, शुक्रवार-
गुडफ्राइडे का ही दिन है |
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
तात्या टोपे को सादर नमन । सुंदर बुलेटिन शिवम ।
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन बुलेटिन के साथ आज के दिन की महत्वपूर्ण घटनाओं को स्मरण कराने के शुक्रिया शिवम् भईया। सादर ।।
जवाब देंहटाएंआज विश्व विरासत दिवस भी है। हमें देश के जिम्मेदार नागरिक हेतु अपने देश की विरासतों का संरक्षण करना चाहिए।
बहुत अच्छे लिंक्स हैं...चैतन्य को शामिल करने का आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन बेहतर लिंक्स , शिवम् भाई व बुलेटिन को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
very nice presentation .
जवाब देंहटाएंराष्ट्र भक्तों के सिरमौर- स्वतन्त्रता के एक प्रखर और प्रेरक सेनानी!!
जवाब देंहटाएंThanks Shivam ji .
जवाब देंहटाएंthanks nd aabhar shivam jee ....
जवाब देंहटाएंbadhiya lage links....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा बुलेटिन......हम मध्यप्रदेश वासियों को सदा गर्व रहेगा तात्या टोपे पर !!
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को इस सुन्दर बुलेटिन में स्थान देने का शुक्रिया शिवम्
स्नेह
अनु
वीरों के स्मरण का सराहनीय कदम इसी मंच पर सम्भव है!! धन्यवाद!!
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंआपका चयन निःसंदेह अच्छा रहता है पर चौथी पोस्ट से निराश हुआ। दरअसल यह किस लिहाज से पोस्ट बन गई,यही समझ से परे है।
जवाब देंहटाएंएक नारा जो शीर्षक है और एक फोटो..... ब्लॉग चयन का आपका अधिकार है पर गुणवत्ता गिराना खेदजनक है।
मेरा एतराज महज तकनीकी है, कृपया इसे अन्यथा न लें।
हटाएं@त्रिवेदी जी,
जवाब देंहटाएंआपका एतराज मैं सर माथे से लगता अगर उस एतराज के पीछे की मंशा सही होती ... ब्लॉग जगत मे मैं भी अब नया नहीं हूँ ... और आप भी स्थापित ब्लॉगर है ... ऐसे मे किसी निजी विरोध, पूर्वाग्रह या राजनीतिक सोच के आधीन हो कर यूँ आरोप लगाना आपको शोभा नहीं देता | अगर मैं गलत हूँ तो बताइएगा कि क्या आपने पूरी बुलेटिन को पढ़ा ... आप से फोन पर बात हुई थी ... और उस दौरान आपने साफ साफ कहा था कि आपने पूरी बुलेटिन नहीं पढ़ी थी ... यहाँ तक की बाकी लिंक्स पर भी आप का ध्यान नहीं गया था ... ऐसे मे आप का मेरे चयन या उन लेखिका पर यूँ आरोप लगाना केवल पूर्वाग्रह नहीं तो क्या है !?
सादर अनुरोध है कि आप का उन लेखिका से कोई विवाद अगर है तो उसको आप उन के ब्लॉग पर या अपने ब्लॉग पर निबटाए ... इस के लिए मैं आप को बुलेटिन का मंच उपयोग मे लाने नहीं दूंगा |
स्नेह बनाए रखिएगा ... सादर |
मेरा एतराज महज तकनीकी है। मैं किसी से व्यक्तिगत खुंदक नहीं निकालता।
हटाएंअफसोस है किआपने गलत समझा।
सादर।
आदरणीय त्रिवेदी जी के ऐतराज़ पर अपना ऐतराज़ व्यक्त करते हुये मैं ब्लॉग बुलेटिन के सदस्य की हैसियत से अपनी बात रख ने की अनुमति चाहता हूँ. उनका ऐतराज़ अगर इस बात पर होता कि पोस्ट का शीर्षक एक नारा है, या पार्टी विशेष का नारा है, या नेता विशेष के नारे की टैग लाइन है तो मैं चुप रह जाता कि उनकी व्यक्तिगत आस्थाओं का प्रश्न है जिसके आहत होने की स्थिति में उनका ऐतराज़ जायज़ है.
जवाब देंहटाएंलेकिन उन्होंने मसले को राजनैतिक से तकनीकी बताया है, तो मेरा टोकना बनता है. अगर वे पोस्ट में दी गई तस्वीर को पोस्ट मानने से इंकार करना चाहते हैं तो मेरा प्रश्न उनसे केवल इतना है कि काजल कुमार जी के कार्टूनों को कई बार बुलेटिन में सम्मिलित किया गया है, जिसमें सिर्फ कार्टून होता है, कोई पोस्ट/आलेख नहीं यहाँ तक कि कभी-कभी कार्टूनों में सम्वाद भी नहीं होते. तो इसका अर्थ यह हुआ कि उनके कार्टून भी सम्मिलित नहीं किये जाने चाहिये, क्योंकि उनमें दोनों दोष पाए जाते हैं. पहला कि उनमें कोई राजनैतिक सन्देश होता है और आलेख तो होता ही नहीं.
इसी प्रकार यदि हम किसी फोटो फीचर वाले ब्लॉग की लिंक शामिल करते हैं तो क्या उसे तकनीकी तौर पर दोषपूर्ण माना जाएगा?
माट्साब! हमारा ख़ानदान कॉंग्रेसियों का है और हमारे परम मित्र मोदी समर्थक हैं, जिनके साथ हमारा सोने के घण्टे निकालकर बाकी के सारे घण्टों का साथ है. लेकिन हमारा सहअस्तित्व कभी इस बात से विचलित नहीं हुआ कि वे मेरे समक्ष अपनी बात रखते हैं और मैं उनके विचारों का सम्मान करता हूँ!
ब्लॉग बुलेटिन पर ही हर्षवर्धन ने एक बार एक पोस्ट लिखी थी, जिसमें एक चुटकुला शेयर किया था उसने. वह चुटकुला एक मानवीय रिश्ते को गलत शेड्स में दिखा रहा था. मैंने खुले आम टिप्पणी में आलोचना की और उस पोस्ट को हटाने को कहा. मैं अगर चाहता कि आलोचना न हो, तो मैं किसी को भी फोन करके कह सकता था. मगर मेरी आपत्ति जायज़ थी और उसे प्रकाश में कहना आवश्यक था.
इसीलिये आलोचना से डर नहीं लगता है माट्साब, भड़ास से डर लगता है!!
सलिल जी, आप की समझाइश काम की है। मेरा कहा-लिखा अंतिम सत्य नहीं है पर कार्टून से व्यक्तिगत फोटो अलहदा होता है।
हटाएंएक बार फिर कहूँगा कि किसी राजनीतिक या व्यक्तिगत मंशा से नहीं लिखा था।
@त्रिवेदी जी ,
जवाब देंहटाएंयहाँ कोई 'रॉकेट साइंस' नहीं पढ़ाया जा रहा है जिस मे आप तकनीकी आधार पर एतराज़ उठा रहे है ... आप का एतराज़ कहाँ और किस आधार पर है ... सब समझ आ रहा है ... खेद है कि आप जैसा एक ब्लॉगर भी इन सब बातों से अछूता नहीं रहा |
सादर |
शिवम जी , सलिल जी, आप दोनों का आभार !
जवाब देंहटाएं