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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, गूगल और 'निराला' - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है ... अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस २१ फ़रवरी को मनाया जाता है। १७ नवंबर, १९९९ को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी।

इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवँ सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले। यूनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन १९५२ से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है।

२००८ को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर दोहराया था ।

यह मात्र एक संयोग ही था कि आज दिन मे नेट पर खबरें पढ़ते हुये इस समाचार पर ध्यान गया |

इस खबर के अनुसार अब गूगल ने भी भारत को महत्व देते हुए यहां की क्षेत्रीय भाषाओं में नए एंड्रायड एप्स बनाने की योजना की है। इस सिलसिले में बेंगलूर में दो दिवसीय वर्कशॉप आयोजित की जा रही है जिसकी मेजबानी का दायित्व गूगल ने लिया है। यह वर्कशॉप भारतीय भाषाओं में एंड्रायड एप्लीकेशन को बनाने व डिजाइन करने पर फोकस करेगा। 21 फरवरी व 22 फरवरी को होने वाले इस इवेंट में करीब 100 डेवलेपर्स हिस्सा लेंगे। 

एक और सुखद संयोग देखिये कि आज ही हम मे अधिकतर की मातृभाषा हिन्दी के महाकवि निराला जी की जयंती भी है |

हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक चर्चित साहित्यकारों मे से एक सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल की रियासत महिषादल (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल ११ संवत १९५३ तदनुसार ११ फरवरी सन १८९६ में हुआ था। उनकी कहानी संग्रह लिली में उनकी जन्मतिथि २१ फरवरी १८९९ अंकित की गई है। वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई। उनका जन्म रविवार को हुआ था इसलिए सुर्जकुमार कहलाए। उनके पिता पंण्डित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गढ़कोला नामक गाँव के निवासी थे।
निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में हिन्दी संस्कृत और बांग्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता। निराला के जीवन की सबसे विशेष बात यह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया, संघर्ष का साहस नहीं गंवाया। जीवन का उत्तरार्द्ध इलाहाबाद में बीता। वहीं दारागंज मुहल्ले में स्थित रायसाहब की विशाल कोठी के ठीक पीछे बने एक कमरे में १५ अक्तूबर १९६१ को उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त की।

 ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से मैं आप सब को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की हार्दिक बधाइयाँ देता हूँ और साथ साथ इसी मौके पर अपनी मातृभाषा हिन्दी के महाकवि निराला जी को शत शत नमन करता हूँ |

सादर आपका 
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इससे खूबसूरत पश्चाताप और कोई नहीं …

रश्मि प्रभा... at मेरी भावनायें...

नेटवा बैरी ……

निवेदिता श्रीवास्तव at झरोख़ा

बोलो बसंत

Dr.NISHA MAHARANA at My Expression

कुछ दोहे


''चल बबाल कटा !'' -लघु कथा


शिशु

कालीपद प्रसाद at अनुभूति

वोट दिया तो उंगली काट लेंगे की धमकी के बावजूद

रमेश शर्मा at यायावर

कहीं आप के पेस्ट मंजन में भी तंबाकू तो नहीं...

डा प्रवीण चोपड़ा at मीडिया डाक्टर

कोरे पन्‍नों पर !!!!!!!!!!!

सदा at SADA

राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमा शीलता की प्रंशसा


कैसे कहूँ मै तुमसे अपने हृदय की बतियाँ

Rekha Joshi at Ocean of Bliss

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

14 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय मिश्रा जी ,महाकवि निराला जी के बारे में जानकारी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद ,बहुत सुन्दर रचनाएं ,मेरी रचना को शामिल कर मान बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार

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  2. स्नेहिल आभार, उत्कृष्ट लिंक्स में मुझे शामिल किया भाई :)

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  3. बहुत सुन्दर लिंक्स......तुम्हारे याद दिलाने पर आज निराला जी की बहुत सी रचनाएं पढीं.....एक यहाँ साझा कर रही हूँ तुम्हारे लिए..
    शुक्रिया शिवम्.
    स्नेह-निर्झर बह गया है !
    रेत ज्यों तन रह गया है ।

    आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
    कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी
    नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
    नहीं जिसका अर्थ-
    जीवन दह गया है ।"

    "दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
    किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल;
    पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल--
    ठाट जीवन का वही
    जो ढह गया है ।"

    अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
    श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा ।
    बह रही है हृदय पर केवल अमा;
    मै अलक्षित हूँ; यही
    कवि कह गया है ।
    सस्नेह
    अनु

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  4. mahtvpoorn jankari v achchhe links sajane hetu hardik aabhar .

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  5. बहुत दिनों बात एक विस्तृत बुलेटिन दिखी है!! और परम्परागत रूप से दिन के विशेष महत्व को भी संजोया है!! लिंक्स ऐज़ यूज़ुअल बहुत अच्छे हैं!! कुछ देखे हैं - कुछ देखता हूँ!!

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  6. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की जयंती पर उनकी स्मृतियों को जगाता तथा अन्य कई सुंदर लिंक्स को समेटे बहुत खूबसूरत बुलेटिन ! अनुलता जी ने मेरी अत्यंत प्रिय निराला जी की इस विशिष्ट रचना को उपलब्ध करा मेरे हर्ष को कई गुना बढ़ा दिया ! शिवम जी आपका व अनुलता जी का बहुत बहुत आभार !

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  7. आदरणीय शिवम् भाई बहुत ही सुन्दर पठनीय लिंक आज की पोस्ट बहुत ही खास है और मेरी रचना को यहाँ स्थान देकर आपने मुझे जो मान दिया है इसके लिए मैं आपका दिल से आभारी हूँ. बहुत बहुत शुक्रिया आपका

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  8. सुन्दर जानकारी और बढिया कड़ियों से सजी बुलेटिन ||

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  9. अच्छे पठनीय सूत्र संजोये हैं आपने ,काफी कुछ पढ़ लिये ,शेष रह गये भी पढ़ती हूँ .... आभार !

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