प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
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धुंडिराज गोविन्द फालके उपाख्य दादासाहब फालके (३० अप्रैल, १८७० - १६ फरवरी, १९४४) वह महापुरुष हैं जिन्हें भारतीय फिल्म उद्योग का 'पितामह' कहा जाता है।
दादा साहब फालके, सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से प्रशिक्षित सृजनशील
कलाकार थे। वह मंच के अनुभवी अभिनेता थे, शौकिया जादूगर थे। कला भवन बड़ौदा
से फोटोग्राफी का एक पाठ्यक्रम भी किया था। उन्होंने फोटो केमिकल
प्रिंटिंग की प्रक्रिया में भी प्रयोग किये थे। प्रिंटिंग के जिस कारोबार
में वह लगे हुए थे, 1910 में उनके एक साझेदार ने उससे अपना आर्थिक सहयोग
वापस ले लिया। उस समय इनकी उम्र 40 वर्ष की थी कारोबार में हुई हानि से
उनका स्वभाव चिड़िचड़ा हो गया था। उन्होंने क्रिसमस के अवसर पर ‘ईसामसीह’
पर बनी एक फिल्म देखी। फिल्म देखने के दौरान ही फालके ने निर्णय कर लिया कि
उनकी जिंदगी का मकसद फिल्मकार बनना है। उन्हें लगा कि रामायण और महाभारत
जैसे पौराणिक महाकाव्यों से फिल्मों के लिए अच्छी कहानियां मिलेंगी। उनके
पास सभी तरह का हुनर था। वह नए-नए प्रयोग करते थे। अतः प्रशिक्षण का लाभ
उठाकर और अपनी स्वभावगत प्रकृति के चलते प्रथम भारतीय चलचित्र बनाने का
असंभव कार्य करनेवाले वह पहले व्यक्ति बने।
आज दादासाहब की ७० वीं पुण्यतिथि है ... इस अवसर पर हम सब भारतीय फिल्म उद्योग के 'पितामह' को शत शत नमन करते है |
सादर आपका
हर रंग के सूत्र.... '' हमार माटी'' के लिए दिल से आभार .....
जवाब देंहटाएंदादा साहेब फाल्के जी को शत शत नमन।।
जवाब देंहटाएंबढ़िया और सार्थक कड़ियों से सजी बुलेटिन।
बहुत - बहुत धन्यवाद....
जवाब देंहटाएं:-)
सुन्दर व पठनीय सूत्र..
जवाब देंहटाएंआ. सुंदर लिन्क है , आभार हमे शामिल करने हेतु
जवाब देंहटाएंकाम के लिंक मिले हैं आभार शिवम् !
जवाब देंहटाएंसुंदर बुलेटिन !
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार |
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