सभी ब्लॉगर मित्रों को सादर नमस्कार।।
इस 26 जनवरी को हमारा राष्ट्र अपने गणतान्त्रिक देश होने के 64 वर्ष पूर्ण कर लेगा। इसी बीच हमने 20 जनवरी को सीमान्त गांधी की 26 वीं पुण्यतिथि मनाई और आने वाली 23 जनवरी को हम नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जी की 117 वीं जयन्ती मनाएँगे। इस मौके पर मैं आपके समक्ष सीमान्त गांधी जी के जीवन की एक मर्मस्पर्शी सच्ची घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ, आशा है कि यह आपको ज़रूर पसंद आएगी।। सादर।।
इस 26 जनवरी को हमारा राष्ट्र अपने गणतान्त्रिक देश होने के 64 वर्ष पूर्ण कर लेगा। इसी बीच हमने 20 जनवरी को सीमान्त गांधी की 26 वीं पुण्यतिथि मनाई और आने वाली 23 जनवरी को हम नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जी की 117 वीं जयन्ती मनाएँगे। इस मौके पर मैं आपके समक्ष सीमान्त गांधी जी के जीवन की एक मर्मस्पर्शी सच्ची घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ, आशा है कि यह आपको ज़रूर पसंद आएगी।। सादर।।
भारतीय पत्रकारों का एक समूह सन 1969 ई. में जब खान अब्दुल गफ्फार खान (सीमान्त गांधी (फ्रंटियर गांधी), बादशाह खान) से काबुल (अफगानिस्तान) मिला, तब उनसे पूछा गया - "आजादी किसे मिली ?"
बादशाह खान का क्या लाजवाब जवाब था - "आजादी!! आजादी किसे मिली? हिन्दुस्तान के लोगों को और पंजाब के मुसलमानों को, पठान और दूसरे लोगों को तो सिर्फ गुलामी ही मिली।"
खान अब्दुल गफ्फार खान को बराबर यह शिकायत रही कि भारत का विभाजन स्वीकार कर पंडित जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस के नेताओं ने पठानों और सीमान्त प्रदेश के अन्य बाशिन्दों को पंजाबी मुसलमानों के रहमोकरम पर छोड़ दिया।
विभाजन के काले अध्याय को याद करते हुए बादशाह खान ने कहा था कि - "कांग्रेस कार्य समिति की जिस बैठक में विभाजन स्वीकार किया गया, उसके पहले उन्हें यह अहसास हो गया था कि कांग्रेस विभाजन स्वीकार करेगी। बैठक से पहले उन्होंने जवाहर लाल जी से बात करनी चाही, तो "जवाहर लाल मुँह फेरकर चुपचाप बैठक में चले गए और मैं समझ गया कि हमारा तो बेड़ा गर्क हो गया" बैठक के बारे में बताते बादशाह खान कहते थे - "बैठक में विभाजन का विरोध करने वाले केवल दो ही शख्स थे - महात्मा गांधी और पुरुषोत्तम दास टण्डन। जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्ल्भ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद और अन्य सभी नेता बँटवारे के पक्ष में थे।" आगे यहाँ पढ़े ……
बादशाह खान का क्या लाजवाब जवाब था - "आजादी!! आजादी किसे मिली? हिन्दुस्तान के लोगों को और पंजाब के मुसलमानों को, पठान और दूसरे लोगों को तो सिर्फ गुलामी ही मिली।"
खान अब्दुल गफ्फार खान को बराबर यह शिकायत रही कि भारत का विभाजन स्वीकार कर पंडित जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस के नेताओं ने पठानों और सीमान्त प्रदेश के अन्य बाशिन्दों को पंजाबी मुसलमानों के रहमोकरम पर छोड़ दिया।
विभाजन के काले अध्याय को याद करते हुए बादशाह खान ने कहा था कि - "कांग्रेस कार्य समिति की जिस बैठक में विभाजन स्वीकार किया गया, उसके पहले उन्हें यह अहसास हो गया था कि कांग्रेस विभाजन स्वीकार करेगी। बैठक से पहले उन्होंने जवाहर लाल जी से बात करनी चाही, तो "जवाहर लाल मुँह फेरकर चुपचाप बैठक में चले गए और मैं समझ गया कि हमारा तो बेड़ा गर्क हो गया" बैठक के बारे में बताते बादशाह खान कहते थे - "बैठक में विभाजन का विरोध करने वाले केवल दो ही शख्स थे - महात्मा गांधी और पुरुषोत्तम दास टण्डन। जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्ल्भ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद और अन्य सभी नेता बँटवारे के पक्ष में थे।" आगे यहाँ पढ़े ……
सादर
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अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर ………
बड़े सारे लिंक्स :) वाह !!
जवाब देंहटाएंसीमांत गांधी और नेताजी सुभाष बोस को नमन !!
एक से बढ़िया एक लिंक, मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
सुंदर बुलेटिन । उल्लूक का पन्ना भी जुड़ा दिखा "होने होने तक ऐसा हुआ जैसा होता नहीं मौसम आम आदमी जैसा हो गया" को शामिल करने पर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया लिखा है हर्षवर्धन - लिंक्स बेहतरीन
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाओं का अद्वितीय संकलन
सादर....
बढ़िया बुलेटिन |विविधता लिए लिंक्स |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
सुन्दर, रोचक व पठनीय सूत्र, आभार।
जवाब देंहटाएंइस शानदार और ज्ञानप्रद बुलेटिन के लिए बहुत बहुत आभार हर्ष बाबू |
जवाब देंहटाएंसुंदर बुलेटिन ......मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार हर्षवर्धन
जवाब देंहटाएंसुंदर बुलेटिन
जवाब देंहटाएंइतिहास के पन्नों से एक कड़वा सच... बहुत सारे लिंक्स!! आज ही लौटा हूँ, तो बस धीरे धीरे देखता हूँ सब!!
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