प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
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इंटरनेशनल अवॉर्ड जीतने वाली पहली बंगाली अभिनेत्री थीं सुचित्रा
1955 की फिल्म देवदास में पारो का किरदार निभाकर हिंदी सिनेमा में भी अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली बंगाली अभिनेत्री सुचित्रा सेन
ने आखिकार लंबे समय तक मौत से लड़ने के बाद दम तोड़ ही दिया। आइए इस शानदार
अभिनेत्री से जुड़ी खास बातें आपको बताते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते
हैं।
1. सुचित्रा सेन पहली बंगाली अभिनेत्री थीं, जिन्होंने इंटरनेशल फिल्म
फेस्टिवल अवॉर्ड जीता। उन्होंने 1963 के मॉस्को फिल्म फेस्टिवल अपनी फिल्म
'सात पाके बांधा' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता था।
2. उनका जन्म बंगाल के पबना जिले में हुआ था, जो अब बांग्लादेश में है।
3. सुचित्रा के पिता करुणामॉय दासगुप्ता एक स्थानीय स्कूल में हेड मास्टर थे।
4. यह भी अजीब विडंबना रही कि सुचित्रा की पहली फिल्म 'शेष कथाय (बंगाली)' कभी रिलीज ही नहीं हुई।
5. 1955 की फिल्म देवदास सुचित्रा की पहली हिंदी फिल्म थी और इसके लिए
उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था। उन्होंने देवदास में
पारो का रोल किया था।
6. दिग्गज अभिनेता उत्तम कुमार और सुचित्रा सेन की जोड़ी को कोई नहीं
भुला सकता। दोनों ने 1953 से लेकर 1975 तक 30 फिल्मों में साथ काम किया।
7. 1959 की बंगाली फिल्म 'दीप जवेले जाई' को सुचित्रा की सर्वश्रेष्ठ
फिल्मों में गिना जाता है। दस साल बाद यह फिल्म हिंदी में बनी थी, जिसमें
सुचित्रा वाला रोल वहीदा रहमान ने किया था।
8. 1975 की फिल्म आंधी में सुचित्रा का रोल इंदिरा गांधी से प्रेरित
बताया गया था। सुचित्रा ने इतनी जबरदस्त एक्टिंग की थी कि उन्हें बेस्ट
एक्ट्रेस के लिए नॉमिनेट किया गया था। हालांकि सुचित्रा तो बेस्ट एक्ट्रेस
नहीं चुनी गई, लेकिन फिल्म के उनके साथी कलाकार संजीव कुमार सर्वश्रेष्ठ
अभिनेता जरूर बन गए।
9. उनकी बेटी मुनमुन सेन भी मां के नक्शे कदम पर चलते हुए बंगाली फिल्मों के साथ हिंदी फिल्मों में भी आई।
10. 1972 में इस अभिनेत्री को पद्मश्री पुरस्कार मिला।
11. लगभग पच्चीस साल के एक्टिंग करियर के बाद उन्होंने 1978 में बड़े
पर्दे से ऐसी दूरी बनाई कि उन्होंने लाइमलाइट से खुद को बिल्कुल अलग कर
लिया।
12. बताया जाता है कि उन्होंने 2005 में दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड के
लिए मना कर दिया था। हालांकि इस बात की सच्चाई की कभी पुष्टि नहीं हो पाई।
13. 2012 में उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार का सर्वोच्च पुरस्कार 'बंगो बिभूषण' दिया गया।
14.इस अभिनेत्री ने अपने शानदार अभिनय से हिंदी सिनेमा में भी एक अलग ही जगह बनाई
थी। बांग्ला सिनेमा को सफलता के मुकाम में पहुंचाने में सेन का बहुत बड़ा
योगदान है।
ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम और पूरे हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब सुचित्रा सेन जी को हार्दिक श्रद्धांजलि देते
हैं।
सादर आपका
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......ये भी जिंदगी ---
*शीत भयंकर आज पड रहा सोच रही एक अबला मेरे नन्हे के तन पर है नाम मात्र का झबला नील गगन के साए में वो कथरी में लिपटा है गर्मी पाने की चाहत में अपने में सिमटा है सजल नेत्र से देखा माँ ने ,बांहों में उठाया गोदी में ममता से लेकर ,सीने से लगाया * *भींच लिया माँ ने नन्हे को ,दो आंसू टपकाए* *छिपा लिया माँ ने आँचल में ,उष्मा कुछ मिल जाएबेरहमों की दुनिया में नन्हे ,क्या करने तुम आयेसो गया बेफिक्र हो नन्हा , सीनें में मुँह छिपाए*
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*नैन-पलकों से उतरकर, गालों पे लुडकता नीर रोया,* *वो जब जुदा हमसे हुए तो, यह ह्रदय तज धीर रोया।* *मालूम होता तो पूछ लेते, यूं रूठकर जाने का सबब,* *बेरुखी पर उस बेवफा की,दिल से टपकता पीर रोया।* *तिमिर संग घनों की सेज पर,ओढ़ ली चादर चाँद ने,* *चित पुलकितमय मनोहारी, मंद बहता समीर रोया। * *देखकर खामोश थे सब, कुसुम , तिनके, पात, डाली, * *खग वृक्ष मुंडेर, ढोर चौखट, चिखुर तोरण तीर रोया।* *अनुराग बुनते ही हो क्यों, 'परचेत' अपने इर्द-गिर्द,* *विप्रलंभ अन्त्य साँझ पर वो, देह लिपटा चीर रोया।*
सुनो ! पथिक -
*सुनो !पथिक-----------------------------इस अनंत यात्रा में कितना कुछकहा अनकहा रह जाता हैप्राणों की तलहटी में हिमनद सा जमा मौनदेह प्रस्तर खंड सीभटकता मन बावरा साकभी निरलस कभी प्राणवान ---डरती हूँ यदि पिघला एक भी टुकड़ा हिमखंडतो कितना कुछ बहा ले जायेगा ---चलो पिघल जाने दें उन सर्द अहसासों कोहिमखंड हो गये हैंन जाने कितने बरसों से जोदेह की देहरी पर अटकी प्राण वायुह्रदय के अतल मेंगंगा का गीलापनसालता रहा मन कोजिसकी टूटी घुन लगी चौखट परलगे द्वार पर बरसों से जड़े थेजंग लगे ताले --जो बहरे थेनही... more »
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ज़िद नहीं है मगर आज दीदार हो तूर से फिर मरासिम का इज़हार हो इश्क़ हो या महज़ आपकी दिल्लगी ये: सियासत मगर आख़िरी बार हो सात तालों में दिल की हिफ़ाज़त करें आपको ज़िंदगी से अगर प्यार हो ज़ख़्म हों दर्द हो अश्क हों आह हो दुश्मनों को न उल्फ़त का आज़ार हो लड़खड़ाते रहें हम क़दम-दर-क़दम वक़्त की तेज़ इतनी न रफ़्तार हो दीद को आपकी ज़िंदगी छोड़ दें कोई हम-सा जहां में परस्तार हो ज़रिय:-ए-दुश्मनी है हिजाबे-ख़ुदा क्यूं इबादत में पर्दों की दीवार हो ?! ( 2014 ) ... more »
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मुश्किल था एक दिन से दूसरे दिन तक का सफ़र | एक दिन जब तुमने कहा विदा ! और दूसरा दिन जब तुम चले गए.... फिर आसान था हर एक दिन से दूसरे दिन का सफ़र, कि तुम्हारे बिना तेज़ थी क़दमों की रफ़्तार, कि कोई मुझे पीछे अब खींचता न था.... ~अनुलता ~
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
बेहतरीन अभिनेत्री थीं सुचित्रा सेन ।। विनर्म श्रृद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंसुचित्रा सेन जी को हार्दिक श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंसुंदर बुलेटिन सुंदर सूत्रों के साथ !
सचमुच कमाल की अभिनेत्री थीं सुचित्रा सेन!
जवाब देंहटाएंबम्बई का बाबू ,ममता और आंधी में तो उन्होंने कमाल किया है...
उन्हें सादर नमन!!
बुलेटिन में हमारी रचना का link देने का शुक्रिया शिवम्.
अनु
बड़े ही पठनीय सूत्र..
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंसुंदरी सुचित्रा सेन को श्रधांजलि, we swaym bahut achchi abhinetri thi. unki aadhi film me abhinay wakai shandar tha.
जवाब देंहटाएंmera blog sammilit karne hetu dhanywaad.
आभार शिवम् जी !
जवाब देंहटाएंसुचित्रा सेन जी को विनम्र श्रद्धांजलि।।
जवाब देंहटाएं