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गुरुवार, 2 जनवरी 2014

ब्लॉग बुलेटिन: कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ


हर गुज़रता वक़्त अपने पीछे एक दास्तान छोड़ जाता है. वो दास्तान जिसे हम कभी फ़ुरसत में दोहरा लेते हैं या फिर कोई मुसाफ़िर लम्हों की सीढ़ियाँ तय करके उस वक़्त की दहलीज तक चला आता है और उन क़िस्सों कहानियों के चेहरों को छूकर महसूस करने की कोशिश करता है. वे बीते पल, गुज़रे लम्हे उसे एहसास दिलाते हैं कि ये महज कहानियाँ नहीं, कभी हक़ीक़त रह चुके हैं. कल तक ये सारे किरदार चलते फिरते थे, आज माज़ी का हिस्सा हो गये. और इन दिनों तरक़्क़ी की पहली निशानी यही है कि जो गुज़र गई उसको गोली मारो.

किस-किस की फ़िक्र कीजिये, किस-किस को रोइये,
आराम बड़ी चीज़ है, मुँह ढ़ँक के सोइये!

लेकिन मुँह ढँक के सोने और मुँह फेरकर सोने में बड़ा फ़र्क है. हमने ब्लॉग की तरफ से मुँह फेर लिया है. फेसबुक ने देश की सूरत बदलने में जो भी रोल निभाया हो, ब्लॉग की सूरत बिगाड़ने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी. अगर फेसबुक की पोस्टों और कमेण्ट्स का हिसाब करें तो पता चलेगा कि वे सारे लोग जो ब्लॉग से जुड़े थे, आज फेसबुक पर डटे हैं.

बहुत अच्छा लगता है कि तुरत कुछ कहा और फ़ौरन से पेशतर उसका जवाब आ गया. लेकिन नुक़सान यह भी हुआ कि कई मरतबा कोई ज़रूरी बात मज़ाक बन कर रह गयी और किसी मज़ाक को किसी ने बहुत सीरियसली ले लिया. किसी की कोई बहुत ज़रूरी बात का अप-डेट बेकार की अप-डेट्स के नीचे दबा सिसकियाँ भरता रह गया और किसी की ग़ैरज़रूरी बात पर बहस छिड़ गई.

हम तो देहाती आदमी ठहरे दिल से. आज भी गाँव में हमारे घर के भोज का न्यौता अगर आपको हमारे पड़ोसी से मिले तो आप हमारे घर नहीं आएँगे. ब्लॉग की ख़बर भी अब हम फेसबुक के मार्फ़त देने लगे हैं. ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को ख़बर मिले, इसलिये दोस्त लोग शेयर भी करने लगे हैं, ताकि ‘पान क्यों सड़ा – फेरा न था’ की तर्ज़ पर ब्लॉग की इत्तिला को फेरा जाए और वो लोगों की नज़रों के सामने रहे. वो दिन हवा हुए जब लोग फ़ॉलो करते थे और अपनी ब्लॉग-फीड देखते थे कि किसने क्या नया लिखा है.

पढ़ने वालों की तादाद, लिखने वालों के लिये ऑक्सीज़न का काम करती है. पढ़ने वाले न हों तो लिखने वाले लिखना कम करते हैं और फिर छोड़ देते हैं. कुछ लोग बिना इसकी परवाह किये मुसलसल लिखते जाते हैं, लेकिन एक बड़ा हिस्सा ऐसे लोगों का है, जिन्हें हौसलाअफ़ज़ाई की दरकार है. कुछ लोगों ने अपनी ज़ाती मसरूफ़ियात की वज़ह से किनारा कर लिया, कुछ की बीमारी ने उन्हें दूर कर दिया. और इंसानी फ़ितरत... भूलने या भुला देने में वक़्त ही कितना लगता है.

एक मिसाल देता हूँ. एक ग्लास आधा पानी से भरा है तो आप क्या कहेंगे? बहुत पुरानी बात है ना... आप कहेंगे आधा ख़ाली है या आधा भरा है.. ज़रा और आगे बढ़े, तो बोलेंगे आधा पानी से भरा है – आधा हवा से. चलिये पानी फेंक दिया... अब???

अब वो ग्लास एक सम्भावना से भरा है. आप इसमें जो भी डालें, ये समा लेगा खुद में. हमने इस ग्लास में फेसबुक के अपडेट डाल रक्खे हैं, भला ब्लॉग की पोस्ट्स कहाँ समाएगी. फ़ास्ट फ़ुड के इस ज़माने में “फ़ुड फ़ोर थॉट” कौन पसन्द करता है. रैप म्यूज़िक के आगे राग मालकौंस कौन सुने, मीका सिंह के शोर में लता जी का रूपक ताल में सजा गीत किसे सुनाई देता है.

साल की हमारी इस पहली बुलेटिन की सफलता इसी में है कि यह “ब्लॉग बुलेटिन” ही बनी रहे “फेसबुक बुलेटिन” न बने!! इसलिए आइये आज याद करें उनको, जिनका लेखन इतना प्रभावशाली था कि आज भी ख़ास तौर पर मेरे मन में बसा है. मगर ब्लॉग की गलियों में मैं आज इन्हें उन जालियों वाली खण्डहर हवेली की तरह देखता हूँ, जिससे गुज़रते हुये मेरी यादें भी छिल जाती हैं!!
                                                              


कम शब्दों में गहरी बात कहने वाली




बेतुकी शायरी और छोटी कविताओं का एक अनोखा ब्लॉग



एक बेहतरीन शायर



मुझे दादू कहने वाली प्यारी सी शायरा



एक बेमिसाल व्यंग्यकार – प्रो. एस. के. त्यागी



बुज़ुर्ग और बीमार होने के बावजूद लगातार लिखना



समाज पर पैनी नज़र, फेसबुक पर फुल टाइम सक्रिय



इनके अनुभव से हमने सीखा है बहुत



भारतवर्ष के फ़ौजी सपूत और कविताई  



कविता की पाठशाला – शब्दों के चमत्कार दिखाने वाला जादूगर



भाई चैतन्य आलोक और मेरा सामाजिक सरोकारों की टोह लेता



सुभाषित और प्रेरणा की सरिता



एक प्रोफेसर जिनसे सीखना एक तजुर्बा है



हमारी सम्वेदनाओं के साक्षी



 

15 टिप्‍पणियां:

  1. तुमने पुकारा और हम चले आये सारे ब्लोगस पर हो आये रे :)

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  2. सलिल जी पता नहीं पर जो मुझे महसूस हुआ है वो हो सकता है गलत हो पर फेसबुक में भी पाठक हैं और अगर आपको वो एक प्लेटफॉर्म प्रदान कर रहा है आपके विचारों को फैलाने में तो बुरा क्या है आप पर है आप किस तरह से किसी चीज का प्रयोग कर रहे हैं वैसे कोई बाँसुरी से खेत खोदने लगे तो भी क्या किया जा सकता है !

    बहुत सुंदर बुलेटिन !
    नव वर्ष शुभ हो मंगलमय हो !

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  3. sahi kah rahe hain blog par sakriyataa kam to hui hai .. par ham date rahenge :)

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  4. बारीकी से देखना,बारीकी से बताना,बारीक़ गहराई सौंपना सलिल भाई आपका प्रशंसनीय कदम है,जो हमेशा होता है .... सब नाम खलबली मचा गए . जीवन की राह में कब कौन कहाँ रुक जाए !!!- आवाज देते रहना जरुरी है

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  5. रश्मि दी से सहमत ... "आवाज़ देते रहना जरूरी है " ... आप की इस सार्थक पहल को नमन |

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  6. Blog ,Blog hai ...... aapka likha padhane ke lie ye behatar hai .......

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  7. आदरणीय सुशील जी,

    @फेसबुक में भी पाठक हैं और अगर आपको वो एक प्लेटफॉर्म प्रदान कर रहा है आपके विचारों को फैलाने में तो बुरा क्या है आप पर है आप किस तरह से किसी चीज का प्रयोग कर रहे हैं...

    /

    आपकी बात से सहमत, विशेष तौर पर "फेसबुक पर भी" से.. बस इसी 'भी' को रेखांकित करने का यह आह्वान है... एक की कीमत पर दूसरा नहीं.. अगर फेसबुक पर भी ट्विट्टर की बन्दिशें होतीं तो?? इसलिये जिस माध्यम को जैसा बनाया गया है वैसा ही उसका उपयोग होना चाहिये.. बाँसुरी से खेत खोदना मैं भी अनुचित मानता हूँ...
    अब आप ही बताइये कि चार अनुच्छेद के एक ब्लॉग पोस्ट को फेसबुक के चार अपडेट्स बना देना कहाँ तक उचित है?? न तो वह उस बेचारी पोस्ट के साथ न्याय है, न ब्लॉग के साथ और न फेसबुक के साथ!!
    आपकी निष्पक्ष प्रतिक्रिया का आभार!!

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  8. आभार सलिल भाई, याद करने के लिए

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  9. आप का अनुरोध तो कोई टाल ही नहीं सकता सलिल दादा ... देखिये आ गई सरिता दीदी की ताज़ा पोस्ट ... http://apanatva.blogspot.in/2014/01/blog-post.html

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  10. बड़े भैया के ढूँढे हुए लिंक्स ............. बेहतरीन चुने हुए :)
    वाह !!

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  11. आपकी सदा रंग दिखाने लगी है, सब सुनें तो आनंद और आ जायेगा।

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  12. आने को मन तो बहुत मचलता है पता नही कब लौट पाऊं अब :-(

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  13. मार खा खा कर सुधर ही जायेंगे दादा........
    फेसबुक पर हाज़िर ज़रूर हैं मगर ब्लॉग से गैर हाज़िर नहीं...आप खुद परख लीजिये.....
    कुछ कुछ कभी कभी छूट जाते हैं ब्लॉग मगर इरादतन कतई नहीं...
    ढेर सारी शुभकामनाएं आपको.....ब्लॉग बुलेटिन को और ब्लॉग्गिंग को <3
    सादर
    अनु

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  14. अर्से बाद आज ब्लॉगपेज खोला और सचमुच यह झिंझोड़ गया कि आखिर छूट ही गया यह। कलम जैसे अकड़ जकड गयी है।लेकिन आपने ऐसे और इतने स्नेह से पुकारा है, तो अब तो उठना ही पड़ेगा इसे।
    आती हूँ भैया, जल्दी ही आती हूँ।
    इस प्रेरणा के लिए आभार और सादर नमन स्वीकारें हमारा और हमें और हमारी कलम को हथवा उठाके तनिक आशीर्वाद देते ऊर्जावो दे दीजिये ताकि इसकी सिथिलता दूर हो।

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  15. सलिल भाई, हम ही कहाँ आपके लेखन को भूलें हैं!
    क्या करें कमबख्त हेडगीरी का....खैर, एक दिन फिर आपकी गलियों मे आएंगे और मशाल्लाह वो दिन इतना दूर भी नहीं!
    आपकी मेहरबानी जो हमे दिल से नहीं उतारा!!

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