ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -
अवलोकन २०१३ ...
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
पिछले एक महीने से चल रहे इस अवलोकन को आप सब ने खूब सराहा और पसंद किया पर जैसे हर आयोजन का एक समापन भी होता है ठीक वैसे ही अवलोकन 2013 का भी आज समापन है ... अगले साल फिर यह आयोजन होगा ... एक बार फिर मिल कर चलेंगे यादों के सफर मे ... तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का समापन भाग ...
परिक्रमा तो मैंने बहुत सारी की
और जाना -
,..... हर रिश्तों की अपनी अपनी अग्नि होती है
अपने अपने मंत्र ....
पूरी परिक्रमा तो अभी शेष ही है
जो शेष रह ही जाती है
क्योंकि शेष में ही आगामी विस्तार है !
अनुभव प्रिय http://facebook.com/anub havpeev - एक उभरता सितारा, जिसकी आँखों में इंकलाब तो है,पर क़दमों में धैर्य ! धैर्य ही लक्ष्य निश्चित करता है,लक्ष्य को पाता है …
उसकी प्रखरता को देखते हुए इक़बाल की ये पंक्तियाँ ध्रुवतारे सी चमकती हैं -
"नहीं है नाउम्मीद इक़बाल अपनी किश्ते-वीरां से
ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बड़ी ज़रखेज़ है साक़ी"
ज़रखेज़ मिटटी का कमाल ये रहा आपके सामने -
एसिड-रेन' (Acid Rain)
'कलियुगी प्रदूषण' से
होती 'एसिड रेन' से,
आओ बचने के लिए
एक ऐसा उपाए लगाएं-
जो बस तन नहीं
मन भी बचाए|
ज्ञान के लौह के ढाँचे पर,
सद्विचार को तान कर,
आओ एक छतरी बनाएँ
जो बस तन नहीं
मन भी बचाए|
कलियुगी प्रदूषण से
होती 'एसिड रेन' से,
आओ बचने के लिए
एक ऐसा उपाए लगाएं...
सत्यजित राय एक भारतीय फ़िल्म निर्देशक थे, जिन्हें २०वीं शताब्दी के सर्वोत्तम फ़िल्म निर्देशकों में गिना जाता है।
विश्व के दस फिल्मकारों में शामिल बांग्ला फिल्मकार सत्यजीत रे ने अपनी किसी भी फिल्म को ऑस्कर की दौड़ में शामिल होने नहीं भेजा। उनकी फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ (1955) और अपू त्रयी को दुनिया भर के फिल्म फेस्टिवल्स में सैकड़ों अवॉर्ड मिले हैं।
इसके बावजूद राय मोशाय ने ऑस्कर के फेरे नहीं लगाए। स्वयं ऑस्कर अवॉर्ड 1992 में चल कर कोलकाता आया और विश्व सिनेमा में अभूतपूर्व योगदान के लिए सत्यजीत रे को मानद ऑस्कर अवॉर्ड से अलंकृत किया।
उनके पदचिन्हों पर यह नया कदम अनुभव नए आयामों के दरवाज़े खोलने को दृढ है … एक नज़र अनुभव के निर्देशन और अभिनय पर -
"टेलीफोन"-
कलाकार:
सलिल वर्मा, अनुभव प्रिय
छायांकन: प्रतीक्षा प्रिय
निर्देशन: अनुभव प्रिय —
शेष - जिसका होना बहुत अर्थ रखता है
उस शेष के साथ मिलेंगे हम
उम्मीद है - रहूँगी मैं ज़िंदा
इन प्रतिभाओं में
इन्हें आप तक लाने की राह के रूप में
………
अलविदा - कभी नहीं
मिलेंगे हम फिर से
कहिये -
' दसविदानिया '
दसविदानिया :)
जवाब देंहटाएंगजब का रहा यह प्रस्तुतीकरण..
जवाब देंहटाएंआपका बेमिसाल प्रस्तुतीकरण सदा संचित रहेगा... यहाँ पन्नो पर भी और सबकी स्मृतियों में भी...
जवाब देंहटाएं"दसविदानिया"
लाजवाब रहा ये सफर ...
जवाब देंहटाएंमिलते हैं एक ब्रेक के बाद
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें
"दसविदानिया"
~~
आज कुछ बुरा सा भी लग रहा है :(
जवाब देंहटाएंचलिये कोई नहीं !
फिर मिलेंगे !
मेरा तो कुछ भी लिखना अनुचित होगा.. लेकिन तहे दिल से शुक्रिया कहना एक रस्मअदाई नहीं, एक परम्परा निर्वाह होगा.. पूरे ब्लॉग बुलेटिन परिवार की ओर से सामान्य रूप से और अपनी ओर से व्यक्तिगत रूप से मैं रश्मि दी का आभार मानता हूँ कि उन्होंने न सिर्फ एक मैराथन बुलेटिन हमारे सामने रखी, साथ ही उन तमाम प्रतिभाओं से हमारा परिचय करवाया जिन्हें हमारी परख और प्र्शंसा के साथ-साथ प्रोत्साहन की भी आवश्यकता है. इस समापन कड़ी में अपने पुत्र/पुत्री को पाकर यह सुखद अनुभूति भी हुई वे दोनों 'प्रतिभावान' हैं.
जवाब देंहटाएंअंत में बस यही कहूँगा कि जिस प्रकार सूर्य के अस्त होने से एक दिन भले ही शेष हो जाता हो, सूर्य की रश्मियाँ शेष नहीं होतीं... अगले दिन फिर उसी प्रखर आलोक के साथ उपस्थित होता है सूर्य... विदाई मात्र विराम है... जब प्रतिभाओं के देदीप्यमान सूर्य हैं, उनकी रचनाओं की रश्मियाँ हैं, तब रश्मि प्रभा न हो ऐसा कैसे सम्भव है!!
पुन: आभार एवम प्रणाम!!
बहुत -लाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसमापन के दिन भविष्य की झलक ... जय हो दीदी ... :)
जवाब देंहटाएं' दसविदानिया '
तबियत बहुत अधिक खराब होने की वजह से मैं दो तीन दिन ऑनलाइन नहीं हुई .... सबकी सराहना मुझे सूर्य के साथ आने का मनोबल देती है . अवलोकन का विराम हुआ है, मेरी कलम आपसे मिलती रहेगी :)
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