ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -
अवलोकन २०१३ ...
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का २५ वाँ भाग ...
प्रतिभाएँ प्रतिभाओं को तराशती हैं, जिन तंग रास्तों से वे गुजरती हैं- उसकी रेखाएँ निर्धारित कर भविष्य के तंग रास्तों को थोड़ा सहज बनती हैं ! लक्ष्य पाने के लिए द्रोण का होना, द्रोण सा होना ज़रूरी होता है ....
(मुकेश पाण्डेय चन्दन)
अक्सर मुझसे नवयुवाओं का प्रश्न होता है , कि प्रतियोगी परीक्षाओं कि तैयारी की शुरुआत कैसे करें ...
मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूँ ...
या मेरी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नही है ...
या मुझे सही मार्गदशन कैसे और कहाँ से प्राप्त होगा ....
या मैं किस प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करूँ .....
मुझे तैयारी के लिए क्या करना चाहिए ...
मैं कौन सी किताबे या पत्रिकाएँ पढूं ...
इस तरह के बहुत से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी से सम्बंधित सवाल पूछे जाते है ....
मेरी इस पोस्ट पर भी इसी तरह से सवाल पूछे गये है ..आप इसी लाइन पर क्लिक करके इसे देख सकते है
तो इस तरह के सवालों ने ही मुझे इस पोस्ट को लिखने के लिए प्रेरित किया है . आज की ये पोस्ट इसी तरह के सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश है .
सबसे पहला और महत्वपूर्ण प्रश्न कि किस प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करें ?
तो अक्सर लोग दुसरे सफल प्रतियोगिओन को देख कर या किसी के कहने पर अपने लिए प्रतियोगी परीक्षाओं को चुन लेते है , कि मुझे इस क्षेत्र कि तैयारी करनी है . मेरे ख्याल से ये गलत तरीका है , चूँकि सफलता आपको प्राप्त करनी है , तो निर्णय भी आपका होना चाहिए . अब सवाल आता है , कि सही निर्णय कैसे लिया जाये ? तो मेरा सुझाव है कि इस के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातों पर गौर करना आवश्यक है . पहली बात आपका रुझान किस क्षेत्र कि ओर है ?
आप किस विषय या क्षेत्र में कठिन परिश्रम कर सकते हो ?
आपके लिए किस क्षेत्र में आसानी से मार्गदर्शन , सुविधाएं या व्यवस्थाएं मिल सकती है ?
आपका उद्देश्य क्या है ?
अब आप अगर इन बातों पर गौर करते है , तो आपको अपना लक्ष्य कुछ स्पष्ट सा होता नज़र आएगा . लक्ष्य का स्पष्ट होना अति महत्वपूर्ण है , क्योंकि अगर आपको ये ही नही पता कि जाना कहाँ है , तो आप कभी भी कहीं नही पहुच पाएंगे . हाँ एक और महत्वपूर्ण बात बताना चाहूँगा , कि बार -बार लक्ष्य न बदले या एक साथ बहुत से लक्ष्य न निर्धारित करें . अक्सर लोग जब जो प्रतियोगी परीक्षा आई , तो उसका फार्म डालकर उसकी तैयारी शुरू कर देते है , ये बहुत ही गलत तरीका है , इससे कभी सफलता नही पाई जा सकती है . आपका हमेशा एक लक्ष्य एक ध्येय बनाये और उसकी सही तरीके से व्यवस्थित तरीके से तैयारी करें . हाँ उसी क्षेत्र से मिलते हुए क्षेत्र कि तैयारी कर सकते है , जैसे संघ लोक सेवा आयोग कि तैयारी वाले लोग राज्य लोकसेवा आयोगों की परीक्षाएं आसानी से दे सकते है . इसी तरह रेलवे की तैयारी करने वाले रेलवे की वोभिन्न परीक्षाओं में शामिल हो सकते है , क्योंकि इन परीक्षाओं का पैटर्न लगभग एक सा होता है . अब आप सिविल सेवा , एस एस सी , रेलवे , बैंक आदि सभी परीक्षाएं दे तो ये गलत है .
अब अगर हम बात करे सफलता के लिए पृष्ठभूमि की ..तो पारिवारिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि कही न कही आपकी सफलता पर प्रभाव तो डालती है . लेकिन ऐसा बिलकुल नही है , कि निम्न पृष्ठभूमि वाले लोग सफल नही होते . हम आजकल अक्सर समाचार पत्रों में गरीब एवं विपरीत परिस्थितिओं वाले लोगो की सफलता के बारे में पढ़ते रहते है . इन परिस्थिति में तैयारी करना अपेक्षाकृत थोडा कठिन होता है , लेकिन असंभव नही होता . दुनिया में अधिकांश महापुरुष इन्ही परिस्थितिओं से आये है . अगर दिल में जज्बा -जूनून और साथ में कड़ी मेहनत हो तो सफल होने से कोई नही रोक सकता है . सिर्फ सपने ही न देखे बल्कि उनको पूरा करने के लिए दिन-रत मेहनत करे तो सफलता से कोई रोक नही सकता .
अब सही मार्गदर्शन कहाँ से और कैसे प्राप्त करें ....तो आज बाजार में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग संस्थानों की कतार लगी है ..सभी अपने आपको सर्वश्रेष्ठ घोषित करते है . ऐसे में हम क्या करें ?
सही कोचिंग संसथान के बारे में पता करने के लिए उनके वर्तमान एवं पूर्व छात्रो से मिले ...जरुरी नही कि आप किसी संस्थान से ही मार्गदर्शन प्राप्त करें ..अगर कोई योग्य शिक्षक या सफल प्रतियोगी से भी मार्गदर्शन मिलता है , तो भी हम अपनी तैयारी सही तरीके से जारी रख सकते है .और आज इन्टरनेट के ज़माने में मार्गदर्शन और पाठ्य सामग्रियों की कोई कमी नही है . सोशल मीडिया में भी लगभग सभी तरह की परीक्षाओं के लिए मार्गदर्शन उपलब्ध है . बस कमी है तो खुद मेहनत करने की .
अब बात करें कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की शुरुआत कैसे करें ?
सबसे पहले हम अपना लक्ष्य निर्धारित करते है ....ये बहुत महत्वपूर्ण है . लक्ष्य निर्धारण के बाद हम उस क्षेत्र से सम्बंधित सफल या अनुभवी व्यक्ति से सलाह -मशविरा कर सकते है . उस क्षेत्र की तैयारी की शुरुआत कैसे हो ...पाठ्य सामग्री कहाँ से और कैसे मिलेगी ? हमें तैयारी में कितना और कैसे समय देना होगा ?
(नित्यानंद गायेन)
अपने आवारा दिनों में
मैं भी नंगे पैर घास पर चलता रहा
महाकवि 'वॉल्ट व्हिटमॅन' की तरह
मैं सोचता रहा
अपने मन में पल रहे विद्रोह के बारे में
मैंने 'नजरुल' को पढ़ा
गौर से देखता रहा मेरे आसपास की हर घटना को
मैं सुनता रहा
तुम सबकी बातें
मेरे आस -पडोस में लोगों ने
जमकर मेरी आलोचना की
मैंने 'कबीर' को सोचा उस वक्त
तभी मुझे याद आई
'सुकरात' की कहानी
फिर अचानक
मेरे मस्तिक में उभरने लगा क्रांति में शहीद हुए
क्रांतिकारियों का रक्तिम चेहरे
शासन के हाथों घायल होते हुए भी
बंद मुट्ठी लिए
क्रांति के लिए
उठे हुए लाखों हाथ
मैंने अपने कांपते तन -मन को
संभालने की नाकाम कोशिश की
अचानक मैंने भी मुट्ठी बनाकर
इन्कलाब कहकर
आकाश की ओर उठा दिया अपना हाथ
क्रोध मन का एक अस्वस्थ आवेग है। जीवन में अप्रिय प्रसंग, वंचनाएं, भूलें, असावधानियां, मन-वचन-काया की त्रृटियों से, जाने अनजाने में विभिन्न दुष्करण होते रहते है। मनोकामनाएं असीम होती है, कुछेक की पूर्ति हो जाती है और अधिकांश शेष रहती है। पूर्ति न हो पाने और संतोषवृति के अभाव में क्रोधोदय की स्थितियां उत्पन्न होती है। क्रोध एक ऐसा आवेश है जो उठकर शीघ्र चला भी जाय, किन्तु अपने पिछे परेशानियों का अम्बार लगा जाता है। क्रोध आपके स्वभाव में घृणा भाव को स्थाई बना देता है।
क्रोध एक व्यापक रोग है। यह अपने उदय और निस्तारीकरण के मध्य क्षण मात्र का भी अवकाश नहीं देता। जबकि यही वह क्षण होता है जब विवेक को त्वरित जगाए रखना बेहद जरूरी होता है। यदपि क्षमा, सहनशीलता और सहिष्णुता ही क्रोध नियंत्रण के श्रेष्ठ उपाय है। तथापि क्रोध को मंद करने के लिए निम्न प्रथमोपचार कारगर हो सकते है, यथा…
1- किसी की भी गलती को कल पर टाल दो!
2- स्वयं को मामले में अनुपस्थित समझो!
3- मौन धारण करो!
4- वह स्थान कुछ समय के लिए छोड दो!
5- क्रोध क्यों आ रहा है, इस बात पर स्वयं से तर्क करो!
6- क्रोध के परिणामों पर विचार करो!
क्रोध के परिणाम -
संताप - क्रोध केवल और केवल संताप ही पैदा करता है।
अविनय - क्रोध, विनम्रता की लाश लांघ कर आता है। क्रोधावेश में व्यक्ति बद से बदतरता में भी, प्रतिपक्षी से कम नहीं उतरना चाहता।
अविवेक - क्रोध सर्वप्रथम विवेक को नष्ट करता है क्योंकि विवेक ही क्रोध की राह का प्रमुख रोडा है। यहाँ तक कि क्रोधी व्यक्ति स्वयं का हित-अहित भी नहीं सोच पाता।
असहिष्णुता - क्रोध परस्पर सौहार्द को समाप्त कर देता है। यह प्रीती को नष्ट करता है और द्वेष भाव को प्रबल बना देता है। क्रोध के लगातार सेवन से स्वभाव ही असहिष्णु बन जाता है। इस प्रकार क्रोध, वैर की अविरत परम्परा का सर्जन करता है।
उद्वेग - क्रोध उद्वेग का जनक है। आवेश, आक्रोश एवं क्रोध निस्तार से स्वयं की मानसिक शान्ति भंग होती है। जिसके परिणाम स्वरूप तनाव के संग संग, मानसिक विकृतियां भी पनपती है। इस तरह क्रोध जनित उद्वेग, अशांति और तनाव सहित, कईं शारीरिक समस्याओं को भी जन्म देता है।
पश्चाताप - क्रोध सदैव पश्चाताप पर समाप्त होता है। चाहे क्रोध के पक्ष में कितने भी सुविधाजनक तर्क रखे जाय, अन्ततः क्रोध घोर अविवेक ही साबित होता है। यह अप्रिय छवि का निर्माण करता है और अविश्वसनीय व्यक्तित्व बना देता है। अधिकांश, असंयत व्यक्ति अनभिज्ञ ही रहता है कि उसकी समस्त परेशानियों का कारण उसका अपना क्रोध है। जब मूल समझ में आता है सिवा पश्चाताप के कुछ भी शेष नहीं रहता।
सीखना की भावना हो तो सीख हर कदम पर ऊँगली थामने को खड़ी है ……
सच है, यदि निश्चय कर लिया है तो कर ही लेना है।
जवाब देंहटाएंअवलोकन २०१३ की इस श्रंखला ने काफी सारी उम्दा पोस्टों को दोबारा पढ़ने के साथ साथ काफी सारी छूटी हुई पोस्टों को भी पढ़ने का मौका दिया ... आभार दीदी आपका |
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स रश्मिजी ...हमेशा कि तरह ...
जवाब देंहटाएंप्यारे लिंक्स !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति ...आभार
जवाब देंहटाएंएक और उम्दा कड़ी जुड़ी आज !
जवाब देंहटाएंबहुत मजा आरहा हैं सब लिनक्स पढने में .......
जवाब देंहटाएंशानदार शृंखला चल रही है. मेरे आलेख को सम्मलित करने के लिए बहुत बहुत आभार!!
जवाब देंहटाएंविविध और सुन्दर बुलेटिन.
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