ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -
अवलोकन २०१३ ...
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का २४ वाँ भाग ...
धरती प्रतिभाओं को जन्म देती है
अनेक चेहरे,अनेक भाषाएँ, अनेक क्षेत्र
प्रतिभाओं का अथाह समंदर है
लहरें भला गिन सकता है कोई !
बस आँखें मुग्ध भाव से देखती रहती हैं
छोटी-बड़ी लहरों का आवेग
और सौंदर्य
24वीं लहर का आनंद लीजिये -
(आशा सक्सेना)
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खोजा एक यंत्र अबोला
जो सच्चाई परखता
जिव्हा के तरकश से निकले
शब्द वाण पहचान लेता |
सोचा न था वह ऐसा होगा
मनोभाव तोलेगा
सच झूठ पहचान लेगा
मापक प्यार का होगा |
उसमें एक बिंदु सच का है
दूजा झूठ दर्शाता
मध्यम मार्ग कोई ना होता
सच सामने आता |
फिर भी एक कमी रह गयी
तीव्रता सच या झूठ की
यह दर्शा नहीं पाता
आकलन उसका कर नहीं पाता |
तब भी वास्तविकता नहीं छुपती
वह जान ही लेता है
दूध को दूध
पानी को पानी बताता |
एक आम व्यक्ति के लिए
मन की अभिव्यक्ति के लिए
सत्य या झूठ को
उजागर करने के लिए
इस अबोले यंत्र का
है महत्त्व कितना
आज जान पाया |
(मुकेश कुमार सिन्हा)
हर दिन सुबह नौ बजे के घंटे के साथ
जिस कमरे में दाखिल होते हैं हम
वो पुरानी सरकारी बिल्डिंग का एक कमरा
पता नहीं क्यों??
उसे है, झूठ बोलने की बुरी लत
बेशक हम खुद को नहीं समझा पाये
पर, उसे हर क्षण समझाने की कोशिश होती है
'झूठ बोलना पाप है'.. 'भ्रष्टाचार गुनाह है'!
ढेरों फाइलों व पुराने आलमारियों से
लदा फदा ये अजीब सा कमरा
करता रहता है करोड़ो के हिसाब किताब!
पर, ये कमरा कभी नहीं बता पाता कि
इस कमरे में बैठे अधिकतर लोग
पैसों की तंगी झेलने वाले
हैं, दर्द से भरे, चुप्पी साधे, साधारण से लोग !!
कईयों बार, फाइलों के साथ, टेबल के नीचे
सुविधा युक्त कमरे में जीने वाले, दिखाते हैं नोटों की झलक
ला देती है कई आँखों में अनायास एक चमक
ये लुभाते हैं, खास होती है इनकी महक
पर उस साधारण से इंसान के धड़कते दिल की आवाज
“गुनाह है” के साथ रोक लेता है बढ़ता हाथ
फिर भी, ये सीलन भरी दीवार वाला कमरा
ब्रेकिंग न्यूज़ में शक जताती तस्वीर के साथ
बनता है लिविंग-रूम बहस का महत्वपूर्ण मुद्दा !!
महंगाई भत्ते की 4-5% की उतरोत्तर वृद्धि
जिसका एक-एक रुपया होता है अहम
तभी तो इसी कमरे मे हम बनाते हैं बजट
पर आम लोगों में ये बनती है एक ऐसी खबर
“सरकारी कर्मचारी के कारण 100 करोड़ का बोझ”
मानों हर डीए के बाद, वे बन जाते हैं करोड़पति
पर, इसी झूठ को सच बनाता है ये कमरा
बिना किसी सुविधा के धनवान बनाता कमरा !!
सच पर, झूठ का लबादा पहना ही देता है,
ये अजीब सा कमरा
खैर! बना ले हर सच को झूठ
दिखा दे कैसी भी तस्वीर
पर है तो, पालनहार, तारनहार
ये सरकारी कार्यालय का कमरा
बदलती जिंदगी में वाचाल होता ये कमरा
है न.....................
(पवित्रा अग्रवाल)
मदन ने जब आँखें खोलीं तो सामने पिता, माँ व दादी खड़े थे। उसने इधर-उधर नजर दौड़ाई तो जगह अनजानी लगी।
"माँ मैं कहाँ हूँ ?'
"बेटे, तुम अस्पताल में हो। कल स्कूल जाते समय तुम्हारी कार का एक्सीडेंट हो गया था।'
"मेरी आँख पर यह पट्टी क्यों है ? हाथ पर भी प्लास्टर है। क्या हाथ की हड्डी टूट गई है ?'
"हाँ बेटे, तुम्हारे हाथ की हड्डी टूट गई है। एक आँख में भी चोट लगी है।'
आँख में चोट लगने की बात सुन कर मदन घबरा गया, "आँख में चोट ? माँ कहीं ऐसा तो नहीं कि इस एक आँख से अब मैं देख ही न पाऊँ ?'
"ऐसा कुछ नहीं होगा। तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे ।'
मदन आँखें बंद करके लेट गया। उसे बहुत सी बातें याद आ रही थीं। पिछले वर्ष कक्षा में सोनू के प्रथम आने पर उसने अपने मित्र अमित से कहा था, "यार, इस बार तो लँगड़े सोनू ने बाजी मार ली।'
अमित को उसकी बात पसंद नहीं आई थी। उसने कहा था, "मदन, क्या तू खाली सोनू नहीं कह सकता। नाम से पहले लँगड़ा या ऐसा कोई भी विशेषण लगाना जरूरी है ? शर्म की बात है हमारे लिए कि शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के बाद भी पढ़ाई में हम उससे पीछे हैं।'
"लँगड़ा है, इसीलिए तो प्रथम आ गया। न तो वह खेल सकता है और न कहीं ज्यादा आ जा सकता है। खाली बैठा क्या करे ... पढ़ता रहता होगा।...ज्यादा पढ़ेगा तो प्रथम तो आएगा ही।'
अमित ने कहा, "मदन, ये सब फालतू के तर्क हैं। पता नहीं दूसरों की कमियाँ ढूँढ़ने में तुझे क्या मजा आता है। हमें दूसरों की अच्छाई देखनी चाहिए। दिलीप के हाथ में छह उँगली हैं तो तू उसे छंगा कहता है। मोहन को हकला कहता है। सुरेश को मोटा होने की वजह से हाथी कहता है। यह अच्छी बात नहीं है। शारीरिक दोष तो किसी में कभी भी आ सकता है।एक दुर्घटना में सोनू की टाँग कट गई थी तो वह लँगड़ा कर चलता है। तू किसी की शारीरिक कमी का मजाक उड़ाना छोड़ दे।'
ये बातें याद करके मदन रोने लगा था । उसे लगा कि वह अब एक आँख से देख नहीं पाएगा।
माँ-पापा यहाँ तक कि डॉक्टर ने भी उसे विश्वास दिलाया था कि वह ठीक हो जाएगा।
लेकिन कुछ भी ठीक नहीं हुआ था। आँख में कार का शीशा चुभ गया था। डॉक्टर उसकी आँख नहीं बचा पाए। उसे एक कृत्रिम आँख लगा दी गई थी। वह अपने कमरे में बैठा रहता। सोचता रहता था कि नकली आँख देख कर बच्चे उसका मजाक उड़ाएँगे।
माता-पिता ने उसे बहुत समझाया लेकिन स्कूल भेजने में सफल नहीं हुए फिर अमित ने ही मदन को समझाया था और कहा था, "यह तुम्हारा भ्रम है। कोई मजाक नहीं उड़ाएगा। नवाब पटौदी की भी एक आँख दुर्घटना में खराब हो गई थी। उनकी भी कृत्रिम आँख लगी थी । उसके बाद भी वह विज्ञापनों में काम कर रहे और जहाँ तक मुझे याद पड़ता है बाद में भी वह क्रिकेट खेले हैं। उनकी योग्यता के सामने शारीरिक दोष छिप गया। तुम भी इस दुर्घटना को भूल जाओ और मेरे साथ स्कूल चलो। सब तुम्हें बहुत याद करते हैं।'
दुर्घटना के बहुत दिन बाद आज वह स्कूल गया था। शिक्षक व कक्षा के सभी छात्रों ने बड़े प्यार से उसका स्वागत किया था। सोनू भी हमेशा की तरह उससे बड़ी गर्मजोशी से मिला था लेकिन मदन सोनू से नजर नहीं मिला पा रहा था। वह स्वयं को शर्मिंदा महसूस कर रहा था। विकलांगता का दुख उसकी समझ में आ गया था। अब उसे दूसरे की तकलीफों का एहसास होने लगा था। बिना कुछ कहे उसने सोनू को गले से लगा लिया। दोनों की आँखों में आँसू थे।.
बड़ा अच्छा लग रहा है पढ़ने में..
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जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटीन का यह अंक भी बहुत अच्छा लगा |आपने मेरी रचना को यहाँ स्थान दिया इस हेतु बहुत बहुत धन्यवाद रश्मि जी I
बढिया बुलेटिन
जवाब देंहटाएंवाह फिर एक उम्दा कड़ी फिर मिली :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाओं का चयन...
जवाब देंहटाएंबबुआ का ब्लॉग पढ़ना सुखद लगता है
जवाब देंहटाएंसुंदर सार्थक रचनायें रश्मिप्रभा जी ! आभार आपका सबसे शेयर करने के लिये !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चयन...
जवाब देंहटाएंइस श्रंखला ने काफी सारी उम्दा पोस्टों को दोबारा पढ़ने के साथ साथ काफी सारी छूटी हुई पोस्टों को भी पढ़ने का मौका दिया ... आभार दीदी |
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स...आभार !
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचनाएँ...
जवाब देंहटाएंaaj ise dekh pai hoo .achchi rachanaye.dhanyvad rashmi ji meri baal kahani dalne ke liye.
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