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रविवार, 24 नवंबर 2013

प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (16)

ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -

अवलोकन २०१३ ...

कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !

तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का १६ वाँ भाग ...


प्रभु को आगाह किया है
एक नहीं - कई बार,हर बार -
' जब तक शून्य का भय ख़त्म नहीं होता
तुम दिए की मानिंद अखंड जागते रहोगे
ठीक उसी तरह
जिस तरह ख़्वाबों को हकीकत बनाने में
तुम निरंतर जागते रहे हो ....
मुझे थकान न हो इस खातिर
अपनी हथेली का सिरहाना मुझे दिया है
.... तो आज हकीकत के लिए जागना होगा
अपनी हथेली पर
मेरी हकीकत को सुलाना होगा ' . … 

हकीकत की ठोस चट्टानें प्रश्नों के अमर बेल से भरी होती हैं, - उत्तर परिस्थितिजन्य,परिवेशीय होते हैं ! अपने उत्तर के बीज हम दूसरों की जमीं पर नहीं लगा सकते,सिंचन की कुछ बूंदें बना सकते हैं - 
प्रतिभायें एक सी नहीं होतीं,कहीं चूल्हे की आग,कहीं जंगल की,कहीं धुँआ,कहीं छोटी सी चिंगारी - समझना एक सा कहाँ !समझ एक सी कहाँ !!!


(वंदना गुप्ता)

एक गृहणी हूँ। मुझे पढ़ने-लिखने का शौक है तथा झूठ से मुझे सख्त नफरत है। मैं जो भी महसूस करती हूँ, निर्भयता से उसे लिखती हूँ। अपनी प्रशंसा करना मुझे आता नही इसलिए मुझे अपने बारे में सभी मित्रों की टिप्पणियों पर कोई एतराज भी नही होता है। मेरा ब्लॉग पढ़कर आप नि:संकोच मेरी त्रुटियों को अवश्य बताएँ। मैं विश्वास दिलाती हूँ कि हरेक ब्लॉगर मित्र के अच्छे स्रजन की अवश्य सराहना करूँगी। ज़ाल-जगतरूपी महासागर की मैं तो मात्र एक अकिंचन बून्द हूँ। 

आज  फिर अंतस में एक प्रश्न कुलबुलाया है 
आज फिर एक और प्रश्नचिन्ह ने आकार पाया है 
यूं तो ज़िन्दगी एक महाभारत ही है 
सबकी अपनी अपनी 
लड़ना भी है और जीना भी सभी को 
और उसके लिए तुमने एक आदर्श बनाया 
एक रास्ता दिखाया 
ताकि आने वाली  पीढियां दिग्भ्रमित न हों 
और हम सब तुम्हारी  दिखाई राह का 
अन्धानुकरण करते रहे 
बिना सोचे विचारे 
बिना तुम्हारे कहे पर शोध किये 
बस चल पड़े अंधे फ़क़ीर की तरह 
मगर आज तुम्हारे कहे ने ही भरमाया है 
तभी इस प्रश्न ने सिर उठाया है 

महाभारत में जब 
अश्वत्थामा द्वारा 
द्रौपदी के पांचो पुत्रों का वध किया जाता है 
और अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा को 
द्रौपदी के समक्ष लाया जाता है 
तब द्रौपदी द्वारा उसे छोड़ने को कहा जाता है 
और बड़े भाई भीम द्वारा उसे मारने को कहा जाता है 
ऐसे में अर्जुन पशोपेश में पड़ जाते हैं 
तब तुम्हारी और ही निहारते हैं 
सुना है जब कहीं समस्या का समाधान ना मिले 
तो तुम्हारे दरबार में दरख्वास्त लगानी  चाहिए 
समाधान मिल जायेगा 
वैसा ही तो अर्जुन ने किया 
और तुमने ये उत्तर दिया 
कि अर्जुन :
"आततायी को कभी छोड़ना नहीं चाहिए 
और ब्राह्मण को कभी मरना नहीं चाहिए 
ये दोनों वाक्य मैंने वेद में कहे हैं 
अब जो तू उचित समझे कर ले "
और अश्वत्थामा में ये दोनों ही थे 
वो आततायी भी था और ब्राह्मण भी 
उसका सही अर्थ अर्जुन ने लगा लिया था 
तुम्हारे कहे गूढ़ अर्थ को समझ लिया था 

मेरे प्रश्न ने यहीं से सिर उठाया है 
क्या ये बात प्रभु तुम पर लागू नहीं होती 
सुना  है तुम जब मानव रूप रखकर आये 
तो हर मर्यादा का पालन किया 
खास तौर से रामावतार में 
सभी आपके सम्मुख नतमस्तक हो जाते है 
मगर मेरा प्रश्न आपकी इसी मर्यादा से है 
क्या अपनी बारी में आप अपने वेद में कहे शब्द भूल गए थे 
जो आपने रावण का वध किया 
क्योंकि 
वो आततायी भी था और ब्राह्मण भी 
क्या उस वक्त ये नियम तुम पर लागू नहीं होता था 
या वेद  में जो कहा वो निरर्थक था 
या वेद में जो कहा गया है वो सिर्फ आम मानव के लिए ही कहा गया है 
और तुम भगवान् हो 
तुम पर कोई नियम लागू नही होता 
गर ऐसा है तो 
फिर क्यों भगवान् से पहले आम मानव बनने का स्वांग रचा 
और अपनी गर्भवती पत्नी सीता का त्याग किया 
गर तुम पर नियम लागू नहीं होते वेद के 
तो भगवान बनकर ही रहना था 
और ये नहीं कहना था 
राम का चरित्र अनुकरणीय होता है 
क्या वेदों की मर्यादा सिर्फ एक काल(द्वापर) के लिए ही थी 
जबकि मैंने तो सुना है 
वेद साक्षात् तुम्हारा ही स्वरुप हैं 
जो हर काल में शाश्वत हैं 
अब बताओ तुम्हारी किस बात का विश्वास करें 
जो तुमने वेद में कही या जो तुमने करके दिखाया उस पर 
तुम्हारे दिखाए शब्दों के जाल में ही उलझ गयी हूँ 
और इस प्रश्न पर अटक गयी हूँ 
आखिर हमारा मानव होना दोष है या तुम्हारे कहे पर विश्वास करना या तुम्हारी दिखाई राह पर चलना 
क्योंकि 
दोनों ही काल में तुम उपस्थित थे 
फिर चाहे त्रेता हो या द्वापर 
और शब्द भी तुम्हारे ही थे 
फिर उसके पालन में फ़र्क क्यों हुआ ? 
या समरथ को नही दोष गोसाईं कहकर छूट्ना चाहते हो 
तो वहाँ भी बात नहीं बनती 
क्योंकि 
अर्जुन भी समर्थ था और तुम भी 
गर तुम्हें दोष नहीं लगता तो अर्जुन को कैसे लग सकता था 
या उससे पहले ब्राह्मण का महाभारत में कत्ल नहीं हुआ था 
द्रोण भी तो ब्राह्मण ही थे ?
और अश्वत्थामा द्रोणपुत्र ही थे 
आज तुम्हारा रचाया महाभारत ही 
मेरे मन में महाभारत मचाये है 
और तुम पर ऊँगली उठाये है 
ये कैसा तुम्हारा न्याय है ?
ये कैसी तुम्हारी मर्यादा है ?
ये कैसी तुम्हारी दोगली नीतियाँ हैं ?

संशय का बाण प्रत्यंचा पर चढ़ तुम्हारी दिशा की तरफ ही संधान हेतु आतुर है 
अब हो कोई काट , कोई ब्रह्मास्त्र या कोई उत्तर तो देना जरूर 
मुझे इंतज़ार रहेगा 
ओ वक्त के साथ या कहूँ अपने लिए नियम बदलते प्रभु…………… एक जटिल प्रश्न उत्तर की चाह में तुम्हारी बाट जोहता है


उत्तम पुरुष: मैं उससे कह रहा था


(विमलेन्दु द्विवेदी)


मैं पृथ्वी की एक घनी बस्ती का
वीरान हूँ
जिसे ठीक ठीक देखने के लिए
आपको पर्यटक बनना पड़ेगा....)

मैं उससे कह रहा था
कि तुम्हें नींद न आती हो
तो मेंरी नींद में सो जाओ
और मैं
तुम्हारे सपने में जागता रहूँगा ।

असल में
यह एक ऐसा वक्त था
जब बहुत भावुक हुआ जा सकता था
उसके प्रेम में ।

और यही वक्त होता है
जब खो देना पड़ता है
किसी स्त्री को ।

यह बात तब समझ में आयी
जब मुझ तक
तुम्हारी गंध भी नहीं पहुँचती है
और भावुक होने का
समय भी बीत चुका है ।

एक दिन देखता हूँ
कि सपने
व्यतीत हो गये हैं
मेरी नींद से ।

सपने न देखना
जीवन के प्रति अपराध होता है
कि हर सच
पहले एक सपना होता है ।

यह सृष्टि
ब्रह्मा का सपना रही होगी
पहले पहल,
और उसी दिन
लिखा गया होगा
पहला शब्द- प्रेम !    

(कृष्ण कुमार यादव)
सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक. प्रशासन के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लागिंग के क्षेत्र में भी प्रवृत्त।

गाँधी जैसे इतिहास पुरूष
इतिहास में कब ढल पाते हैं 
बौनी पड़ जाती सभी उपमायें
शब्द भी कम पड़ जाते हैं ।

सत्य-अहिंसा की लाठी
जिस ओर मुड़ जाती थी
स्वातंत्र्य समर के ओज गीत
गली-गली सुनाई देती थी।

बैरिस्टरी का त्याग किया
लिया स्वतंत्रता का संकल्प
बन त्यागी, तपस्वी, सन्यासी
गाए भारत माता का जप।

चरखा चलाए, धोती पहने
अंग्रेजों को था ललकारा
देश की आजादी की खातिर
तन-मन-धन सब कुछ वारा।

हो दृढ़ प्रतिज्ञ, संग ले सबको
आगे कदम बढ़ाते जाते
गाँधी जी के दिखाये पथ पर
बलिदानी के रज चढ़ते जाते।

हाड़-माँस का वह मनस्वी
युग-दृष्टा का था अवतार
आलोक पुंज बनकर दिखाया
आजादी का तारणहार।

भारत को आजाद कराया
दुनिया में मिला सम्मान
हिंसा पर अहिंसा की विजय
स्वातंत्र्य प्रेम का गायें गान।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचनायें संजोयी हैं और मेरी ये रचना ली है देखकर सुखद आश्चर्य हुआ और खुशी भी ………आभार ।

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  2. जय हो ... चलता रहे यह सिलसिला ... अवलोकन का ... अब तो यही दुआ है |

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  3. बेहतरीन प्रयास है। इसी बहाने कई उत्तम रचनाएं एक जगह पढ़ने को मिल जाती हैं। मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार।

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  4. बेहतरीन लाजवाब बहुत खूब अवलोकन - जय हो मंगलमय हो |

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