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मंगलवार, 26 नवंबर 2013

प्रतिभाओं की कमी नहीं (18)

ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -


अवलोकन २०१३ ...

कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !

तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का १८ वाँ भाग ...



पन्ने,प्रकृति,आकाश,  …… कलम के बगैर भी प्रतिभायें अपनी दिशा बना लेती हैं  . शब्द तो निश्चेष्ट आँखों से,सीले होठों से,घुटी घुटी आवाज़ों से,खो गई आवाज़ से भी निकलते हैं - एक स्पर्श महसूस कर लो,तो कई ग्रन्थ लिख जाते हैं - 
बस उन्हें ढूंढते जाओ,बहुत बड़ा है ये दुनिया का मेला  ....... कोई है,जो खींच लेता है अपनी तरफ !


किशोर कुमार खोरेन्द्र  
http://facebook.com/kishor.khorendra
"मन की किताब"

पुल से तुम्हारे घर तक
पहुंची ..सड़क पर मैं 
कभी नही चला हूँ 
पुल तक आकर ...
लौटते हुए मै ...
तुम्हें देखे बिना ....ही ...
यह मान लिया करता हूँ 
कि -
मैंने तुम्हें देख लिया है

मुझे लेकिन हर बार -
यही लगता है की -
बंद खिडकियों के पीछे ...
खड़ी हुई तुम -
हर प्रात:
हर शाम
उगते और डूबते हुए .....सूरज की तरह ..मुझे
जरूर देखती रही हो

सड़क के किनारे खड़े वृक्ष भी
अब
मुझे पहचानने लगे है
पत्तियाँ मेरे मन की किताब मे लिखी जा रही
कविताओ कों पढ़ ही लेती है

पुल पर बिछी सड़क कों
मेरी सादगी और भोलेपन से प्यार हो गया है
मेरे घर की मेज पर -जलता हुआ लैम्प
मुझसे पूछता है ..
क्या तुम्हारी कविता कभी समाप्त नही होगी ...?

मेरा चश्मा ...मेरी आँखों मे भर आये आंसूओ कों
छूना चाहता है
पर उसके पास भी हाथ नही है
काश तुम्हारी आँखों की रोशनी के हाथ लम्बे होते
और तुम मुझे छू पाती ......



अमरेन्द्र शुक्ला  

आज ,
बहुत दिनों के बाद ,
तुमसे बात करने को जी चाहा
तो सोचा पूछ लू तुमसे, की ,
तुम कैसे हो, 
कुछ याद भी है तुम्हे 
या सब भूल गए -----
वैसे, 
तुम्हारी बातें मुझे
भूलती नहीं, 
नहीं भूलते मुझे तुम्हारे वो अहसास 
जो कभी सिर्फ मेरे लिये थे 
नहीं भूलते तुम्हारे "वो शब्द" 
जो कभी तुमने मेरे लिए गढ़े थे ----

तुम्हे जानकार आश्चर्य होगा 
पर ये भी उतना ही सत्य है 
जितना की तुम्हारा प्रेम, 
की , 
"अब शब्द भी बूढ़े होने लगे है" 
उनमे भी अब अहम आ गया है 
तभी तो, 
इस सांझ की बेला में,
जब मुझे तुम्हारी रौशनी चाहिए 
वो भी निस्तेज से हो गए है 
मैं कितनी भी कोशिश करू
तुम्हारे साथ की वो चांदनी रातें, वो जुम्बिश, वो मुलाकातें 
जिनमे सिर्फ और सिर्फ हम तुम थे 
उन पलो को महसूस करने की 
पर इनमे अब वो बात नहो होती,

कही ये इन शब्दों की कोई चाल तो नहीं, 
या 
ये इन्हें ये अहसास हो चला है 
की इनके न होने से,हमारे बीच
एक मौन धारण हो जायेगा 
और हम रह जायेंगे एक भित्त मात्र,
क्यूंकि अक्सर खामोशियाँ मजबूत से मजबूत रिश्तों में भी, 
दरारे दाल देती है .....

तो मैं तुम्हे और तुम इन्हें (शब्दों को) बता दो 
मैं कभी भी तुम्हारी या तुम्हारे शब्दों की मोहताज न रही 
हमेशा से ही मेरी खामोशियाँ गुनगुनाती रही 
चाहे वो तुम्हारे साथ हो या तुम्हारे बगैर 
जानते हो क्यूँ , क्यूंकि , 
"शब्दहीन संवाद, शब्दीय संवाद से हमेशा ही मुखर रहा है"


विभा श्रीवास्तव  http://facebook.com/vrani.shrivastava

काश !
मैं एक विशाल वृक्ष और 
छोटे-छोटे पौधे ही होती ....

एक विशाल वृक्ष ही होती जो मैं ....
मेरी शाखाओं-टहनियों पर 
पक्षियों का बैठना - फुदकना 
मेरे पत्तों में छिपकर
उनका आपस में चोंच लड़ाना ,
उनकी चह-चहाहट - कलरव को सुनना , 
उनका ,शाखाओं-टहनियों पर ,पत्तों में घर बनाना ,
गिलहरी का पूछ उठाकर दौड़ना-उछलना मटकना , 
मेरी छाया में थके मनुष्य ,
बड़े जीव जंतुओं का आकर बैठना 
उनको सुकून मिलना , 
सबको सुकून में और खुश देख कर 
मेरी खुशी को भी पंख लग जाते ....
मेरे शरीर से निकली आक्सीजन की 
स्वच्छ वायु जीवन को सुकून देते , 

छोटे-छोटे पौधे ही होती जो मैं ....
मेरे फूलो से निकले खुसबु , 
वातावरण को सुगन्धमय बनाती ....
मेरे पत्तों-बीजों से 
औषधि बनते
सबको नवजीवन मिलते 
कितनी खुश होती मैं ...........
मुझे बयाँ करना मुश्किल है ......

लेकिन एक नारी औरत स्त्री हूँ मैं
जुझारू और जीवट
जोश और संकल्पों से लैस मैं
सामाजिक-राजनीतिक चादर की गठरी में कैद मैं

सामाजिक ढाँचे में छटपटातीं-कसमसातीं मैं 
नए रिश्तों की जकड़न-उलझन में पड़ कर 
पर पुराने रिश्तों को भी निभाकर 
हरदम जीती-चलती-मरती हूँ मैं
रिश्तों में जीना और मरना काम है मेरा ....
ऐसे ही रहती आई हूँ मैं 
ऐसे ही रहना है मुझे ?

उलझी रहती हूँ उनसुलझे सवालों में मैं
जकड़ी रहती हूँ मर्यादा की बेड़ियों में मैं
जीतने हो सकते हैं बदनामी का ठिकरा 
हमेशा लगातार फोड़ा जाता है मुझ पर
उलझी रहती हूँ मैं
लेकिन 
हँसते-हँसते सब बुझते -सहते 
हो जाती हूँ कुर्बान मैं 

कब-कब , क्यूँ-क्यूँ , कहाँ-कहाँ , कैसे-कैसे
छली , कुचली , मसली और तली गई हूँ मैं 
मन की अथाह गहराइयों में 
दर्द के समुद्री शैवाल छुपाए मैं 
शोषित, पीड़ित और व्यथित मैं 
मन, कर्म और वचन से प्रताड़ित मैं

मानसिक-भावनात्मक और 
सामाजिक-असामाजिक 
कुरीतियों-विकृतियों की शिकार मैं
लड़ती हूँ पुराने रीति-रिवाजों से मैं 
करती हूँ अपने बच्चों को सुरक्षित मैं
अंधविश्वासों की आँधी से 
खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं
पर देती हूँ सबको अभयदान मैं 

अभाव ? शब्दों अमीरी,दुआओं की अमीरी - अभाव कैसा !!!

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  ५ साल पहले आज ही के दिन मुंबई घायल हुई थी ... वो घाव आज भी पूरी तरह नहीं भरे है ... 



केवल सैनिक ही नहीं ... हर एक इंसान जिस ने उस दिन ... 'शैतान' का सामना किया था ... नमन उन सब को !
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जाते जाते एक वीडियो आप सब की नज़र है ...

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जय हिन्द !! 

16 टिप्‍पणियां:

  1. देश की तस्वीर की आवाज़ इस विडियो में

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  2. 26/11 के सभी शहीदों को मेरा शत शत नमन |

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  3. सभी शहीदों को मेरा शत शत नमन |

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  4. एक बार फिर नतमस्तक निशब्द हूँ ....
    सभी शहीदों को शत शत नमन....

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  5. नमन ..__/|__
    साथ ही सुन्दर रचनाये पढने को मिली .. आभार

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  6. शहीदों को नमन !

    बाकी सब तो लुटेरों के लिये है :(

    बहुत उम्दा चयन !

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  7. बेहतरीन रचनावों का समूह .....जय हिन्द !!

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  8. बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति ...
    धन्यवाद!

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  9. २६/११ में हुए शहीद जवानों को मेरा नमन | बेहद करुणामय प्रस्तुति - जय हो मंगलमय हो | हर हर महादेव |

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