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रविवार, 4 अगस्त 2013

खुद से खफ़ा ना हों



ऑरकुट,ब्लॉग,फेसबुक …. गूगल ने मित्रता के कई आयाम दिए  …. मित्रता हुई,दुश्मनी के अमरबेल पनपे - अनजाने रिश्तों में ठहराव आया तो खूनखराबा भी हुआ शब्दों के अस्त्र-शस्त्र से  …. देखते,सुनते,महसूस करते कृष्ण के बोल ह्रदय में शंखनाद करते गए -
"तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो"
और 
"कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर ऐ इंसान"
पर सारे ज्ञान अपना सर पीटते गये. खैर,आइये हम अपनी रूचि के बगीचे में जाएँ और फूलों की तरह ताजे हो जाएँ -


ज़मीं चल रही,आसमां चल रहा है - ये किसके इशारे जहाँ चल रहा है  …. इस जादू को धैर्य से देखिये,तूफ़ान के भी सकारात्मक कदम होते हैं 

15 टिप्‍पणियां:

  1. इस बगीचे में विभिन्न फूलों की सैर खुशबू से भर गयी ...

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  2. रश्मि जी, बिल्कुल सही फ़रमाया आपने। इन सोशल साइट्स के कारन हमें बहुत से दोस्त मिले। कईयों के साथ हमारी tuning काफी अच्छी रही तो कईयों के साथ हमारे रिश्ते इतने अच्छे से निभ नहीं सके।
    मगर जो भी हो दोस्ती के फूल तो काफी पनप चुके हैं जो जल्दी से मुरझा नहीं सकते।

    happy frndship day... :-)

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  3. बहुत ही सुन्दर सूत्र संजोये हैं।

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  4. अनजाने रिश्तों में ठहराव आया तो खूनखराबा भी हुआ शब्दों के अस्त्र-शस्त्र से ....
    बहुत ही सुन्दर ....

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  5. सुन्दर बुलेटिन | सभी ब्लॉग जगत के और बुलेटिन के साथियों को आज मेरे हृदयतल से 'मित्रता दिवस' की करोड़ों हार्दिक शुभकामनायें |

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  6. बेहद खूबसूरत लिंक्स |आभार |

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  7. जीवन की ही तरह यहाँ भी खट्टे मीठे अनुभव होते रहते है !

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  8. दी!बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति में मेरे ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
    सादर!

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