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गुरुवार, 29 अगस्त 2013

मित्र और दुश्मन एक ही खेमे में सम्भव नहीं .



कृष्ण ने संधि-प्रस्ताव सबके सामने रखा 
दुर्योधन के आगे निष्पक्ष चयन रखा  …
पर जब कुरुक्षेत्र तैयार हो गया तब दुर्योधन के साथ गप्प करते तो क्या कहा जाता ?

कैकेयी माँ थी 
उनके गलत क़दमों का भरत ने विरोध किया 
सरयू किनारे चले गए  ………… 
रोज रात में माँ की गोद में सर रखते तो - क्या कहा जाता ?

गलत का विरोध जब हम करते हैं तो पहले समझाते हैं,फिर सही के साथ होते हैं पूरी तरह   …. अगर-मगर यानि मध्यम मार्ग सही और गलत के बीच संशय उत्पन्न करता है,जिसे किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता  …। हम जितना सोचते हैं,शायद उससे अधिक यह स्थिति घातक होती  !!!
मित्र और दुश्मन एक ही खेमे में सम्भव नहीं  .… भगवान् नहीं रखते,फिर मनुष्य ???

चितन जारी रखिये और लिंक्स का आनंद लीजिये =



अब थोड़ा विश्राम लें काका हाथरसी के संग मुस्कुराते हुए -

झूठ बराबर तप नहीं, साँच बराबर पाप
जाके हिरदे साँच है, बैठा-बैठा टाप
बैठा-बैठा टाप, देख लो लाला झूठा
'सत्यमेव जयते' को दिखला रहा अँगूठा
कहँ ‘काका ' कवि, इसके सिवा उपाय न दूजा
जैसा पाओ पात्र, करो वैसी ही पूजा

8 टिप्‍पणियां:

  1. धरती में मनुष्य के साथ युद्ध का जन्म हुआ। कृष्ण जीवन भर युद्ध करते रहे। पर उनका युद्ध हमेशा उन पर लादा गया युद्ध था। सच के खेमे में रहे। अपने और अपने मित्रों पर हुए आक्रमण का मुँह तोड़ जवाब दिया।

    भरत ने राम का अंत तक साथ दिया। तुलसी दास जी ने ऐसा ही कुछ लिखा है-

    सत्ता पाई जाही मद नाहीं, को जन्मा नर अस जग माहीं।

    लेकिन आगे उन्होने अपनी इस चौपाई को उलट दिया है। भरत इसके अपवाद हैं। जिसे सत्ता पाकर भी मद का किंचित मात्र भी अहंकार न हो।

    मध्यम मार्ग ही व्यक्ति को किंकर्तव्यविमूढ़ करता है।

    आपके संदेश ने उलझा दिया। लिंक देखता हूँ।

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  2. सच को समझना औप समझ कर उसका पक्ष लेना ही पड़ता है। तटस्थ स्वयं से ही जूझता रहता है।

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  3. अब नहीं दो रंग , तू एक रंग हो जा
    या सरासर मोम हो जा , या सरासर संग हो जा

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  4. "मित्र और दुश्मन एक ही खेमे में सम्भव नहीं .… भगवान् नहीं रखते,फिर मनुष्य ???"

    मैं भी नहीं रखता ... आप तो जानती है सब ... ;)

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  5. सच है मित्र और दुश्मनी एक साथ नहीं निभाई जा सकती ।सुंदर पोस्ट लिंक्स सहेज कर इस पन्ने को समृद्ध करने के लिए शुक्रिया रश्मि दी

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  6. जो मित्र और दुश्मन एक
    खेमे में नहीं रख सकता
    दुनिया उसे किसी जगह पर
    यहाँ रहने नहीं दे सकती
    फिर ना कह देना मित्र का
    दुश्मन मित्र हो नहीं सकता
    जो हो नहीं सकता यहाँ
    कहना शुरु कर दे तो
    वो कहीं भी कहीं भी
    कैसे भी रह नहीं सकता !

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  7. जहाँ मित्र हैं वहां दुश्मनों का क्या काम ... भैया जी की शिक्षा अनुसार दुश्मनों को तो तुरंत चटका दिया जायेगा वहां से जहाँ दोस्त होंगे :) सब के सब मिलकर दुश्मनों के डैश डैश चटका देंगे, लाल कर देंगे | अगर दोनों को साथ एक खेमे में रखकर चलने लगे तो सबरे राजनेता नहीं न कहलाने लग जायेंगे फिर क्रन्तिकारी कौन कहलायेगा और हम तो ठहरे महा क्रन्तिकारी विचारधारा वाले सिर्फ दोस्त साथ रखते हैं और दुश्मन को....!!! :) | बढ़िया बुलेटिन | बढ़िया लेखन | जय हो दी की :)

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