Pages

रविवार, 7 जुलाई 2013

अमर शहीद कैप्टन विक्रम 'शेरशाह' बत्रा को सलाम - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !

अमर शहीद कैप्टन विक्रम 'शेरशाह' बत्रा

आज ७ जुलाई है ... आज ही के दिन सन १९९९ की कारगिल की जंग मे कैप्टन विक्रम बत्रा जी की शहादत हुई थी !
पालमपुर निवासी जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर 9 सितंबर, 1974 को दो बेटियों के बाद दो जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ। माता कमलकांता की श्रीरामचरितमानस में गहरी श्रद्धा थी तो उन्होंने दोनों का नाम लव-कुश रखा। लव यानी विक्रम और कुश यानी विशाल। पहले डीएवी स्कूल, फिर सेंट्रल स्कूल पालमपुर में दाखिल करवाया गया। सेना छावनी में स्कूल होने से सेना के अनुशासन को देख और पिता से देश प्रेम की कहानियां सुनने पर विक्रम में स्कूल के समय से ही देश प्रेम प्रबल हो उठा। स्कूल में विक्रम शिक्षा के क्षेत्र में ही अव्वल नहीं थे, बल्कि टेबल टेनिस में अव्वल दर्जे के खिलाड़ी होने के साथ उनमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेने का भी जज़्बा था। जमा दो तक की पढ़ाई करने के बाद विक्रम चंडीगढ़ चले गए और डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ में विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई शुरू कर दी। इस दौरान वह एनसीसी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट चुने गए और उन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया। उन्होंने सेना में जाने का पूरा मन बना लिया और सीडीएस (सम्मिलित रक्षा सेवा) की भी तैयारी शुरू कर दी। हालांकि विक्रम को इस दौरान हांगकांग में भारी वेतन में मर्चेन्ट नेवी में भी नौकरी मिल रही थी, लेकिन देश सेवा का सपना लिए विक्रम ने इस नौकरी को ठुकरा दिया।
सेना में चयन विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया। जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में शिक्षा समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसंबर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। 

कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल वाय.के.जोशी पॉइंट ५१४० की जीत के बाद कैप्टन की रैंक पर विक्रम का प्रमोशन करते हुये 
हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया।
शेरशाह के नाम से प्रसिद्ध विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। इसी दौरान विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ ही उन्हें ‘कारगिल का शेर’ की भी संज्ञा दे दी गई। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बत्रा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आया तो हर कोई उनका दीवाना हो उठा। इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया। इसकी भी बागडोर विक्रम को सौंपी गई। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैयर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा।
 
कैप्टन विक्रम के पिता जी.एल. बत्रा कहते हैं कि उनके बेटे के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल वाय.के.जोशी ने विक्रम को शेर शाह उपनाम से नवाजा था। अंतिम समय मिशन लगभग पूरा हो चुका था जब कैप्टन अपने कनिष्ठ अधिकारी लेफ्टीनेंट नवीन को बचाने के लिये लपके। लड़ाई के दौरान एक विस्फोट में लेफ्टीनेंट नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गये थे। जब कैप्टन बत्रा लेफ्टीनेंट को बचाने के लिए पीछे घसीट रहे थे तब उनकी  छाती में गोली लगी और वे “जय माता दी” कहते हुये वीरगति को प्राप्त हुये।
16 जून को कैप्टन ने अपने जुड़वां भाई विशाल को द्रास सेक्टर से चिट्ठी में लिखा –“प्रिय कुशु, मां और पिताजी का ख्याल रखना ... यहाँ कुछ भी हो सकता है।” 

अदम्य साहस और पराक्रम के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा को 15 अगस्त, 1999 को परमवीर चक्र के सम्मान से नवाजा गया जो उनके पिता जी.एल. बत्रा ने प्राप्त किया। विक्रम बत्रा ने 18 वर्ष की आयु में ही अपने नेत्र दान करने का निर्णय ले लिया था। वह नेत्र बैंक के कार्ड को हमेशा अपने पास रखते थे।

पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से अमर शहीद कैप्टन विक्रम 'शेरशाह' बत्रा जी को शत शत नमन !

सादर आपका 
=============================

जसपाल भट्टी जैसी मौत नहीं चाहता

ईश्वर का जनक कौन है?

आतंक से मिल जुल कर लड़ लेंगे ।

गुलेरी जयंती पर विशेष

आहें भरकर क्यों गुजरेगी , अब रात हमारे सावन की ( अजय की गठरी )

लघुकथा/ पिटा कनस्तर

दूर के ढोल

55. पहाड़ और पत्थर

फूल खिले है डाली - डाली

८०० वीं पोस्ट :- शिक्षा का व्यवसायीकरण = कक्षा एक किताबें दस

Land of canals - Terra dei canali - नहरों की भूमि

=============================
अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

15 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक प्रस्तुति
    कारगिल शहीद को सलाम

    जवाब देंहटाएं
  2. कैप्टन विक्रम बत्रा को नमन

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सार्थक प्रस्तुति . कैप्टन विक्रम बत्रा के ऊपर बहुत सुन्दर आलेख . काश! इनका बलिदान देश के रहनुमाओं में एक कतरा भी देश भक्ति का जज्बा भर सके । शामिल किये गए सारे लिंक काबिले तारीफ . मेरी रचना को स्थान देने का बहुत शुक्रिया .

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर और उपयोगी बुलेटिन! मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार!
    सादर!

    जवाब देंहटाएं
  5. जानता हूँ आजकल दूर हूँ मैं बुलेटिन और ब्लॉग जगत से | दिल भी दुःख रहा है | जल्दी ही वापस आऊंगा | मेरी श्रद्धांजलि भारत माँ के शहीद बेटों को | सुन्दर बुलेटिन सजाई | लिनक्स नहीं देख पाया हूँ समय मिलते ही देखूंगा | जय हो |

    जवाब देंहटाएं
  6. अमर शहीद को नमन, फ़क्र है हमें अपने देश के वीर जवानों पर..

    जवाब देंहटाएं
  7. शत शत नमन अमर शहीद को...
    कुँवर जी,

    जवाब देंहटाएं
  8. केप्टन विक्रम को नमन ...
    अच्छी पोस्ट ...

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर बुलेटिन शिवम भईया। कैप्टेन बत्रा को शत - शत।

    जवाब देंहटाएं
  10. भारत के वीरों की गाथा सुन सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  11. शत शत नमन अमर शहीद को...
    कुँवर जी,

    जवाब देंहटाएं

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!