इस कविता के पीछे एक छोटी सी कहानी है | एक दिन जब मैं व्यायाम शाला से घर वापस लौट रहा था | अचानक मेरी नज़र एक ठेले वाले पर पड़ी | वो आम बेच रहा था | ऊँचे दाम और डंडी मार तोल | दोनों तरीकों से पैसे बटोर रहा था | फिर भी लोग मक्खी की तरह उसके ठेले पर भिनभिना रहे थे | वहीँ करीब में एक छोटा सा बच्चा फटे चिथड़ों में खड़ा बेबस और ललचाई आँखों से आमों को देख रहा था | सोच रहा था के शायद कोई उसे भी कुछ दे दे | पर कोई भी इंसान उसकी तरफ़ नज़र घुमाने तक को तयार नहीं था | उसकी उस हालत को देख और उसकी आँखों में उमड़ती भावनाओं को पढ़ मेरा मन विचलित हो उठा | मैंने आगे बढ़ कर दो आम खरीद कर उसे खाने को दे दिए | आमों को देख उसके चेहरे पर आई मुस्कान ने मेरा ह्रदय गद गद कर दिया | घर आकर मैंने इस कविता की कुछ पंक्तियाँ लिखने का प्रयत्न किया और जो प्रत्यक्ष देखा और महसूस किया वो शब्दों में पिरो दिया | आशा करता हूँ आपको मेरी यह कोशिश पसंद आएगी |
एक बाज़ार लगा देखा मैंने
जम कर हो रहा था व्यापार
बेच रहे थे बेबाक, बेधड़क
झूठ, सच, भूख, आइयाशी
साथ में थे
दिल, जान, जिस्म और इमान
ढेर लगा था चापलूसी का
भ्रष्टाचार पड़ा था सीना तान
भीड़ ऐसी लदी पड़ी थी
जैसे फ्री मिल रहा हो जजमान
जिसको देखो चीख चीख कर
कर रहा था गुणगान
इन चीजों के सौदे लेकर
हर एक बन फिर रहा था धनवान
एक बाज़ार लगा देखा मैंने
जम के हो रहा था व्यापार
बाजु वाले ठेले पर भी
कुछ बेच रहा था एक इंसान
सीधा साधा भोला भला
शायद, थे उसके भी कुछ अरमान
प्यार, वफ़ादारी, सपने थे
या कुछ उमीदें थी अनजान
कुछ बेजुबान अफसाने भी थे
और भी न जाने क्या क्या था सामान
शराफत से आवाज़ लगा के
कहता ले लो जी श्रीमान
पर कोई ग्राहक ना आया
और न बिकता उसका सामान
लगता था इमानदार है, बेचारा
जितना बोलता उतना तोलता
पर कोई चवन्नी भी न देता
अगर मिल भी जाती तो
यह ज़हर खा लेता
गला फाडेगा बस दिन भर खाली
और खायेगा लोगों की गाली
न बिकेगा कभी इसका सामान
एक बाज़ार लगा देखा मैंने
जम के हो रहा था व्यापार
मैं दूर से ताड़ रहा था
ज़िन्दगी का यह अजब तमाशा
बेईमानी, चोरी, चालाकी, भ्रष्टाचार
घूसखोरी, झूठ, सच, भूख, आइयाशी
और इन जैसे कई और आइटम भी
बिक रहे थे जिंदाबाद
भाव रहे थे छु आसमान
वहीँ पास में
हो रही थी किसी की ज़िन्दगी वीरान
दम तोड़ते पड़े थे ठेले पर
शराफत, सपने और अरमान
प्यार, मोहब्बत, ईमानदारी भी
आखरी सासें ले रहे थे
थे दाने दाने को मोहताज
एक बाज़ार लगा देखा मैंने
जम के हो रहा था व्यापार
आज की कड़ियाँ
परम्पराओं का संसार - राजेंद्र टेला
माँ तेरे जाने के बाद - ऋषभ शुक्ला
आपकी सुवास - राम किशोर उपाध्याय
कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे ?? - रविकर
कांग्रेस का हाथ - आम आदमी की जेब में - अजीत सिंह तैमुर
तन्हाई - नीरा जैन
राजस्थान के कैसे कैसे अनूठे मंदिर - रतन सिंह शेखावत
परछाइयां कभी हुईं अपनी - उपासना सियाग
क्या मिला चाची को ? - विभा रानी श्रीवास्तव
मनी प्लांट - पंखुरी गोएल
भूल गया रोने के लिए अलग एक कमरा रखना...निधि मल्होत्रा - यशोदा अग्रवाल
अब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज
एक बाज़ार लगा देखा मैंने
जम कर हो रहा था व्यापार
बेच रहे थे बेबाक, बेधड़क
झूठ, सच, भूख, आइयाशी
साथ में थे
दिल, जान, जिस्म और इमान
ढेर लगा था चापलूसी का
भ्रष्टाचार पड़ा था सीना तान
भीड़ ऐसी लदी पड़ी थी
जैसे फ्री मिल रहा हो जजमान
जिसको देखो चीख चीख कर
कर रहा था गुणगान
इन चीजों के सौदे लेकर
हर एक बन फिर रहा था धनवान
एक बाज़ार लगा देखा मैंने
जम के हो रहा था व्यापार
बाजु वाले ठेले पर भी
कुछ बेच रहा था एक इंसान
सीधा साधा भोला भला
शायद, थे उसके भी कुछ अरमान
प्यार, वफ़ादारी, सपने थे
या कुछ उमीदें थी अनजान
कुछ बेजुबान अफसाने भी थे
और भी न जाने क्या क्या था सामान
शराफत से आवाज़ लगा के
कहता ले लो जी श्रीमान
पर कोई ग्राहक ना आया
और न बिकता उसका सामान
लगता था इमानदार है, बेचारा
जितना बोलता उतना तोलता
पर कोई चवन्नी भी न देता
अगर मिल भी जाती तो
यह ज़हर खा लेता
गला फाडेगा बस दिन भर खाली
और खायेगा लोगों की गाली
न बिकेगा कभी इसका सामान
एक बाज़ार लगा देखा मैंने
जम के हो रहा था व्यापार
मैं दूर से ताड़ रहा था
ज़िन्दगी का यह अजब तमाशा
बेईमानी, चोरी, चालाकी, भ्रष्टाचार
घूसखोरी, झूठ, सच, भूख, आइयाशी
और इन जैसे कई और आइटम भी
बिक रहे थे जिंदाबाद
भाव रहे थे छु आसमान
वहीँ पास में
हो रही थी किसी की ज़िन्दगी वीरान
दम तोड़ते पड़े थे ठेले पर
शराफत, सपने और अरमान
प्यार, मोहब्बत, ईमानदारी भी
आखरी सासें ले रहे थे
थे दाने दाने को मोहताज
एक बाज़ार लगा देखा मैंने
जम के हो रहा था व्यापार
आज की कड़ियाँ
परम्पराओं का संसार - राजेंद्र टेला
माँ तेरे जाने के बाद - ऋषभ शुक्ला
आपकी सुवास - राम किशोर उपाध्याय
कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे ?? - रविकर
कांग्रेस का हाथ - आम आदमी की जेब में - अजीत सिंह तैमुर
तन्हाई - नीरा जैन
राजस्थान के कैसे कैसे अनूठे मंदिर - रतन सिंह शेखावत
परछाइयां कभी हुईं अपनी - उपासना सियाग
क्या मिला चाची को ? - विभा रानी श्रीवास्तव
मनी प्लांट - पंखुरी गोएल
भूल गया रोने के लिए अलग एक कमरा रखना...निधि मल्होत्रा - यशोदा अग्रवाल
अब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज
बढ़िया बुलेटिन-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय तुषार जी-
प्रभाव शाली कथ्य -शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंAap ne sach kaha hai,
जवाब देंहटाएंVinnie,
रोचक और प्रभावशाली कथ्य, सुंदर लिंक्स.
जवाब देंहटाएंरामराम.
sundar prastuti ke liye badhayee
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली !!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें ....
बहुत ही अच्छी सटीक टिप्पणी
जवाब देंहटाएंसुन्दर कार्य, सुन्दर कविता और पठनीय सूत्र।
जवाब देंहटाएंरचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया .. सुन्दर लिंक्स से सजा बुलेटिन ..शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआभार भाई तुषार
जवाब देंहटाएंसादर
dam todte pade the thele par sharafat,spne or arman
जवाब देंहटाएंsahi bimbo ko ubharti ek achchee kavita hai
dhanyabad badhai
क्या देखा, क्या लिख दिया! ...वाह!!!
जवाब देंहटाएंढेर सारे लिंक पढ़े। यशोदा जी की ग़ज़ल सबसे अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंभईया,,, आपने एक अच्छा कार्य किया। आपकी नेकी से भगवान भी खुश होगा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव के साथ एक सुन्दर बुलेटिन पेश करने के लिए आपका सहर्ष धन्यवाद।
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ग्राहम बेल की आवाज़ और कुदरत के कानून से इंसाफ।
बेहद उम्दा रचना तुषार भाई ... और साथ साथ इन लिंक्स के मेल से बुलेटिन मे और जान आ गई ... लगे रहिए !
जवाब देंहटाएंbahut badhiya aabhar meri kavita pasand karne ke liye
जवाब देंहटाएंसभी मित्रों और सह ब्लॉगर साथियों का हार्दिक अभिनन्दन और शुक्रिया अदा करता हूँ | आपके सहयोग और साथ के साथ ही आज यहाँ तक पहुँच पाया हूँ उम्मीद है आगे भी आप सबका साथ ऐसे ही बना रहेगा | एक बार फिर से बहुत बहुत धन्यवाद् | जय हो मंगलमय हो |
जवाब देंहटाएंहकीकत से रूबरू कराती रचना |
जवाब देंहटाएंवाकई मन की संवेदना उभरी हैं |आभार |
“सफल होना कोई बडो का खेल नही बाबू मोशाय ! यह बच्चों का खेल हैं”!{सचित्र}