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गुरुवार, 11 जुलाई 2013

जनसंख्या विस्फोट से लड़ता विश्व जनसंख्या दिवस - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !

आज विश्व जनसंख्या दिवस है ... हर साल 11 जुलाई को बढ़ती जनसंख्या के खतरों प्रति आगाह करते हुए लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। यह जागरूकता मानव समाज की नई पीढि़यों को बेहतर जीवन देने का संदेश देती है।

विश्व जनसंख्या दिवस का उद्देश्य आबादी की समस्याओं और समाज के आम विकास के कार्यक्रमों की ओर सरकारों और आम लोगों का ध्यान आकर्षित करना है।

विश्व की जनसंख्या, पांच अरब तक होने से प्रेरित होकर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की शासी परिषद ने इस खास दिन को मनाने की शुरुआत 1989 में की थी। इसका मुख्य उद्देश्य वैश्रि्वक आबादी के मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।

10 जुलाई, 2013 के आकड़ों के अनुसार फिलहाल पूरे विश्व की जनसंख्या है - 7,097,100,000 |

विश्व जनसंख्या दिवस का हर राष्ट्र में विशेष महत्व है, क्योंकि आज दुनिया के हर विकासशील और विकसित दोनों तरह के देश जनसंख्या विस्फोट से चिंतित हैं। विकासशील देश अपनी आबादी और जनसंख्या के बीच तालमेल बैठाने में माथापच्ची कर रहे हैं तो विकसित देश पलायन और रोजगार की चाह में बाहर से आकर रहने वाले शरणार्थियों की वजह से परेशान हैं।

विश्व की कुल आबादी का आधा या इससे ज्यादा हिस्सा एशियाई देशों में है। चीन, भारत और अन्य एशियाई देशों में शिक्षा और जागरूकता की वजह से जनसंख्या विस्फोट के गंभीर खतरे साफ दिखाई देने लगे हैं। आलम यह है कि अगर भारत ने अपनी जनसंख्या वृद्धि दर पर रोक नहीं लगाई तो वह 2030 तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा।

इस समय भारत की आबादी 1.21 अरब है। यहां हर एक मिनट में 25 बच्चे पैदा होते हैं। यह आंकड़ा वह है, जो बच्चे अस्पतालों में जन्म लेते हैं। अभी इसमें गांवों और कस्बों के घरों में पैदा होने वाले बच्चों की संख्या नहीं जुड़ी है। एक मिनट में 25 बच्चों का जन्म यह साफ करता है कि आज चाहे भारत कितना भी प्रगति कर रहा हो या शिक्षित होने का दावा करता हो पर जमीनी हकीकत में अब भी उसमें जागरूकता नाम मात्र की है।
जागरूकता के नाम पर भारत में कई कार्यक्रम चलाए गए, हम दो हमारे दो का नारा' लगाया गया लेकिन लोग 'हम दो हमारे दो' का बोर्ड तो दीवार पर लगा देख लेते हैं, लेकिन घर जाकर उसे बिल्कुल भूल जाते हैं और तीसरे की तैयारी में जुट जाते हैं।

भारत में गरीबी, शिक्षा की कमी और बेरोजगारी ऐसे अहम कारक हैं, जिनकी वजह से जनसंख्या का यह विस्फोट प्रतिदिन होता जा रहा है। आज जनसंख्या विस्फोट का आतंक इस कदर छा चुका है कि 'हम दो हमारे दो' का नारा भी अब बेमानी लगता है इसलिए भारत सरकार ने नया नारा दिया है 'छोटा परिवार, संपूर्ण परिवार' छोटे परिवार के कई फायदे हैं बच्चों को अच्छी परवरिश मिलती है, अच्छी शिक्षा से एक बच्चा दो बच्चों के बराबर कमा सकता है। बच्चे और मां का स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है, जिससे दवाइयों का अतिरिक्त खर्चा बचता है। यह तो मात्र दो ऐसे फायदे हैं, जो एक छोटे परिवार में होते हैं। ऐसे ही ना जानें कितने फायदे छोटे परिवारों के होते हैं। जागरूक बनिए और संपूर्ण परिवार को चुनिए। 

आइए संकल्प लें कि हम अपने और आसपास के लोगों में यह जागरूकता फैलाएंगे कि वह भी छोटा परिवार चुनें और देश के विकास में भागीदार बनें। सरकार तो जागरूकता फैलाने की कोशिश कर ही रही है पर उससे ज्यादा आपकी बात आपके आसपास के लोगों में जागरूकता फैलाएगी।

सादर आपका 
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ज़िन्दगी !!!

देवांशु निगम at तुम हाँ तुम ....
ज़िन्दगी!!! एक अनसुलझे सवालों की किताब है, है समंदर सी फैली , बादलों सी घिरी और न जाने क्या - क्या, कुछ अधुरी सी , पर क्या , पता नहीं, न जवाब मालूम, न जानने का सबब है, न जानने को बेताब है.. ज़िन्दगी एक अनसुलझे सवालों की किताब है| है दरिया भी मिल चुका साहिलों से अब , जानते हुए सब कुछ, न जाना है इसने कुछ भी, रहता है अश्क बनके खाबों का टूटा सफ़र आज भी, ज़िन्दगी समझ लो बस ऐसा ही एक एक खाब है, ये ज़िन्दगी ऐसे ही अनसुलझे सवालों की किताब है| ज़ब दिल की दस्तक पर सिहर नहीं उठती, उठता है तो सिर्फ दर्द, और दर्द का एक बहाना, ज़ब हर वक़्त लगता है की कल कितना खुशनुमा था, मांगती धड़कनों से भी उनके चलने... more »

पुत्रीरूपी रत्न की प्राप्ति

लावन्या गूँजी घर किलकारियाँ, सुबह शाम दिन रात । कन्यारूपी रत्न की, मिली हमें सौगात ।। उम्र लगा की बढ़ गई, होता है आभास । जबसे पापा हूँ बना, लगता हूँ कुछ खास ।। बिन मांगे ही फल मिला, पूरी हुई मुराद । पुत्री घर ले आ गई, ढेरों खुशियाँ साथ ।।

शंखनाद की पहली वर्षगाँठ पर सबका हार्दिक आभार !!

पूरण खण्डेलवाल at शंखनाद
आज से एक साल पहले ही मैनें अपने ब्लॉग "शंखनाद" पर पहला आलेख लिखा था और उस हिसाब से आज "शंखनाद" नें दूसरे वर्ष में प्रवेश कर लिया है ! आज जब "शंखनाद" नें अपना एक साल पूरा कर लिया है तो जिनका मुझे प्यार और सहयोग मिला उनका में हार्दिक आभारी हूँ ! पहले में यहाँ आया था तब ब्लॉग जगत से अनभिज्ञ था लेकिन पिछले एक साल में मैंने ब्लॉग जगत को कुछ जाना और समझा है ! आज में आपके सामनें पिछले एक साल के अपनें अनुभव बांटना चाहता हूँ ! में जब शुरुआत में यहाँ आया तो ब्लोगिंग का मुझे कोई अनुभव नहीं था और ना ही में ब्लॉग के बारे में जानता था ! में सबसे पहले फेसबुक पर साझा की गयी किसी ब्लॉग ( उस ब्लॉग क... more »

बधशाला -10

यह कुटुंब, धन, धाम कहाँ है , अरे साथ जाने वाला जिसके पीछे तूने पागल , क्या अनर्थ न कर डाला नित्य देखता है तू फिर भी , जान बूझकर फंसता है "जग जाने " पर ही यह जग है , सो जाने पर बधशाला. जितना ऊँचा उठना चाहे , उठ जाये उठने वाला नभ चुम्बी इन प्रासादों को , अंत गर्त में ही डाला जहाँ हिमालय आज खड़ा है , वहां सिधु लहराता था लेती है जब करवट धरती, खुल जाती है बधशाला खिसक हिमालय पड़े सिन्धु में , लग जाये भीषण ज्वाला गिरे ! टूट नक्षत्र भूमि नभ , टुकड़े टुकड़े कर डाला अरे कभी मरघट में जाकर , सुना नहीं प्रलयंकर गान ब्रम्ह सत्य है ! और सत्य है , विश्व नहीं, ये बधशाला

विक्रम और वेताल 13

Ramakant Singh at ज़रूरत
*आज भी कायनात का वजूद अच्छे लोगों से ही है?* एक लम्बे अंतराल बाद वेताल की सवारी विक्रम के कंधे पर जुगनुओं की रोशनी में बियावान रास्ता वेताल ने कहा राजन ज़रा गौर करें ये आपका विस्तृत साम्राज्य समृद्धि और खुशहाली लेकिन *शिकायत *प्रति पल क्यूं? जीवन के प्रत्येक पग पर? ***** हम मिलते हैं एक दिन में सौ नये लोगों से इनमे से 97लोग सही और 3 लोग गलत साबका पड़ता है इन्ही तीन गलत लोगों से 97 सही लोग छुट जाते हैं निभाने के लिये पुनः अगला दिन वही क्रम फिर मिले सौ लोग आज भी निर्वहन नये तीन गलत लोगों से ही छुट गये दुर्भाग्य से शेष 97 सही लोग क्रम से यही क्रम चल गया मृत्यु तक जाने अनजाने हमने मान लिय... more »

आपको ही नहीं, मुझे भी लुभाते हैं ये नकाबपोश

14 जून 2013 को नई दुनिया पत्रिका में प्रकाशित यह लेख आप लोगों के सामने जस का तस रख रख रहा हूँ.

बात खास भी नहीं तो आम भी नहीं है

Manohar Chamoli at अलविदा [alwidaa]
*बात कोई खास नहीं है तो मेरी नज़र में आम भी नहीं है। मेरे शहर का व्यस्तम बाजार और उसका एक तिराहा है। इस तिराहे पर समाचार पत्र-पत्रिकाओं और स्टेशनरी की एक दुकान है। अक्सर मैं इस दुकान पर कुछ देर ठहरता हूं। * ** *आज शाम हुआ यूं कि दुकान के बाहर से एक मां अपने बच्चे के साथ गुजरती है। अचानक मां की नज़र दुकान पर खड़े किसी सज्जन पर पड़ती है। वह उन्हें प्रणाम करती है और फिर पैर छूती है। फिर अपने नौ या दस साल के बच्चे से कहती है कि ये सज्जन वो हैं। प्रणाम करो। बच्चे के हाव-भाव बताते हैं कि वह असहज महसूस कर रहा है। मां अपने दांये हाथ से बच्चे के बांये कांधे के पीछे से जोर देकर  more »

अब बोरिया-बिस्तर समेटो माननीयो

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर at रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
देश में एक तरफ राजनीति के प्रति रुचि, सकारात्मक सोच रखने वालों द्वारा राजनैतिक सुधार पर जोर दिया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ राजनीति में सक्रिय लोगों द्वारा इसे अपनी थाती मानकर उसको प्रदूषित करने का काम किया जा रहा है. ऐसे में देश की अदालतों द्वारा राजनैतिक सुधार की दिशा में ऐतिहासिक फैसले सुनाये गए है. एक तरफ उच्चतम न्यायालय ने सजा पाने वाले (२ वर्ष) सांसदों-विधायकों के प्रतिनिधित्व को ख़ारिज करने वाला फैसला सुनाया वहीं उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने जातिगत रैलियां करने पर रोक लगाने सम्बन्धी फैसला सुनाया है. इसके पूर्व अभी हाल में मुफ्त बाँटे जा रहे सामानों पर और पार्टियों के घोषणा-पत... more »

यादें ......

हरकीरत ' हीर' at हरकीरत ' हीर'
*आज पेश है यादों में उलझी-सुलझी इक नज़्म .....* *यादें ......* इक आग का दरिया है और इक कम्पन सी बदन में आज भूली बिसरी बातों की यादें साथ आई हैं .... धड़कती सी ज़िन्दगी की कुछ नज्में याद आई हैं .... वक़्त की छाती में दबा है इक रहस्य अंतर के पानी में कोई बीज ले रहा जन्म सुलगती सी रात ये नुक्ते पर सिमट आई है ... नामुराद ज़िन्दगी सावन की कटोरी में झूले की मेंहदी में सजी मुरादों की मिटटी में हवा दे रही है हिलोरे चनाब गदराई है ... बावरी सी कोई महक भीगती है संग संग ये कौन रख गया है यादों में इक खुशनुमा रंग देह में रौशनी की लकीर कुनमुनाई है ... वह सोहणी है सस्सी है या है ... more »

मेरी नज़्म

सिमट गए जब तुम्हारे कहे लफ्ज़ मेरे ज़ेहन में तब दर्द की एक नज़्म फूटी.. तेरी खुशबु से महकती इस नज़्म को धो डाला मैंने जुलाई की तेज़ बारिश में कि नज़्म अब तरोताज़ा है मिट्टी और घास की महक लिए... उसे निचोड़ा कस कर कि रह न जाए एक भी रिसता एहसास बाकी... हटाने को यादों की सीलन मिटाने को दर्द की सभी सिलवटें फेर दी बेरुखी की गर्म इस्त्री उस नज़्म पर पुरानी हर नज़्म की तरह इस नज़्म का सेहरा तुम्हारे सर नहीं.... इस पर और मुझ पर तुम्हारा कोई हक नहीं, कोई निशाँ नहीं.... ये नज़्म मेरी है और बाकी की ज़िन्दगी भी सिर्फ मेरी....... ~अनु ~

कैसे इंसान हो गए हैं हम...

आनन्द वर्धन ओझा at मुक्ताकाश....
अब अपने आप से परेशान हो गए हैं हम, आदमी थे अब तलक, शैतान हो गए हैं हम! उन्हें जम्हूरियत ने सिखा दी ये अदा भी-- दीदें फाड़कर बताते हैं, महान हो गए हैं हम! ख़ुशी हो, गम हो या खौफनाक मंज़र हो, सुर्खियाँ बटोरने को हैवान हो गए हैं हम! सियासत उनके पांवों की हाँ, बन है बेड़ी, कभी बा-ईमान थे, बे-ईमान हो गए हैं हम! रो पड़ी आँखें मेरी, उजड़े चमन को देखकर, और आँखें मूंदकर, भगवान् हो गए हैं हम! कोई हाल तो पूछे, जिनके घरवाले नहीं लौटे, सियासतदान क्या जाने, हलकान हो गए हैं हम! ऐसी मौतों पर अब तो पीढियां रोती रहेंगी, सैलाब से गिला कैसा, पहाड़ों पर मेहरबान हो गए हैं हम! गर समय से देश के रक्षक वहाँ नहीं आते... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!! 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लिंक्स हैं शिवम्...
    हमारी नज़्म को स्थान देने का शुक्रिया.

    सस्नेह
    अनु

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  2. जन संख्या तो बढ़ती ही रहने वाली है कम नहीं होगी | महंगाई की तरह यह भी ऊपर ही जाती जाएगी | बढ़िया बुलेटिन बेहतरीन लिनक्स | जय हो |

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  3. आनंद ओझा जी को आपके माध्यम से बहुत दिनों बाद पढ़ा ....आभार ...!!

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  4. आदरणीय शिवम् भाई जी एवं समस्त मित्रगणों को सुप्रभात, शिवम् भाई जी लाजवाब ब्लॉग बुलेटिन है इस हेतु हार्दिक बधाई आपको, पुत्री रत्न की प्राप्ति की पोस्ट आपने पढ़ी और साझा की इस हेतु हार्दिक आभार आपका. स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

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  5. यह पढने के बाद मुझे खुद पर आश्चर्य हो रहा है की मैं "रमाकांत" जी का ब्लॉग पहले कैसे नहीं देखा??
    शुक्रिया ऐसे लिंक के लिए.

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