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शुक्रवार, 28 जून 2013

काँच की बरनी और दो कप चाय - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है । सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है । हमें लगने लगता है कि चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं । उस समय ये बोध कथा, "काँच की बरनी और दो कप चाय" याद आती है ।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ।

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी(जार)टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची। उन्होंने छात्रों से पूछा- क्या बरनी पूरी भर गई?

हाँ ..... आवाज आई...

फ़िर प्रोफ़ेसर साहबने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये । धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी समा गये । फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा क्या अब बरनी भर गई है? छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ कहा । अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया । वह रेतभी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई । अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे । फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना?

हाँ .. अब तो पूरी भर गई है । सभी ने एक स्वर में कहा ।

सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली । चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ।

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया–

इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो । टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान,परिवार,बच्चे,मित्र,स्वास्थ्य और शौक हैं । छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी,कार,बडा़ मकान आदि हैं  और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव,झगडे़ है ।

अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती,या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते,रेत जरूर आ सकती थी ।

ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है । यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा । मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो,बगीचे में पानी डालो,सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ,घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको,मेडिकल चेक-अप करवाओ,टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो । वही महत्वपूर्ण है । पहले तय करो कि क्या जरूरी है । बाकी सब तो रेत है ।

छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे । अचानक एक ने पूछा,सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि"चाय के दो कप"क्या हैं?

प्रोफ़ेसर मुस्कुराये,बोले मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ।

इसका उत्तर यह है कि,जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे,लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

तो कब बुला रहे है मुझे आप चाय पर ???

सादर आपका 

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किताबें- ज़ारा अकरम खान

यह ज़रूरी तो नही .... 

बैरागी मन - हाइगा में

किसका सत्कार?

सब यहीं छूट जाएगा

कड़वा सच ...

तुम्हें याद न करूँ तो बेहतर

आजकल के बच्चे न तो कहानी पढ़ रहे हैं न ही सुन रहे हैं

मुस्कुरा दो यार

च से बन्नच और छ से पिच्चकल्ली

एक था धोबी

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

16 टिप्‍पणियां:

  1. दो कप चाय वाकई बेहद जरूरी है:)
    बढ़िया बुलेटिन.

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  2. शिवम् भाई आपने तो मेरे मुँह का चाय कप छीन लिया, यह बोध कथा मेरे काम आती... :)
    जीवन ध्येय स्पष्ट होना चाहिए और महत्वपूर्ण विषय को पहले जगह मिलनी चाहिए..... और मधुर प्रेम के लिए जगह हमेशा बन ही जाती है.
    सार्थक बोध.....
    सार्थक लिँक भी.....
    किसका सत्कार को सम्मलित करने के लिए आभार!!!

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  3. इस कथा को पुनः याद करा दिया .. सुन्दर कथा ... और मेरी कविता के लिंक को भी जगह दी ... सादर धन्यवाद

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  4. बढ़िया बुलेटिन

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  5. वाह सुंदर कथा और सधा हुआ बुलेटिन ....!!
    शुभकामनायें ॰

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  6. बहुत सार्थक और सशक्त कहानी |कई लिंक्स |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
    आशा

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  7. सहमत हैं, इतना समय और इतनी ऊर्जा तो रहनी चाहिये।

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  8. आदरणीय शिवम जी मैने यह दो कप चाय बोध कथा को पहली बार ही पढ़ा है , पहले नही पढ़ सका इसका मुझे अफसोस हो रहा है आपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पहलू को इतनी आसानी से समझाया आपको धन्यवाद और जीवन मे मौका मिला तो साथ साथ चाय पीने का आमंत्रण।

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