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मंगलवार, 7 मई 2013

' जन गण मन ' के रचयिता को नमन - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

साहित्य, संगीत, रंगमंच और चित्रकला सहित विभिन्न कलाओं में महारत रखने वाले गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर मूलत: प्रकृति प्रेमी थे। वह देश विदेश चाहे जहां कहीं रहे वर्षा के आगमन पर हमेशा शांतिनिकेतन में रहना पसंद करते थे। रविंद्रनाथ अपने जीवन के उत्तरा‌र्द्ध में लंदन और यूरोप की यात्रा पर गए थे। इसी दौरान वर्षाकाल आने पर उनका मन शांतिनिकेतन के लिए मचलने लगा। उन्होंने अपने एक नजदीकी से कहा था कि वह शांति निकेतन में ही पहली बारिश का स्वागत करना पसंद करते हैं।
गुरुदेव ने गीतांजलि सहित अपनी प्रमुख काव्य रचनाओं में प्रकृति का मोहक और जीवंत चित्रण किया है। समीक्षकों के अनुसार टैगोर ने अपनी कहानियों और उपन्यासों के जरिए शहरी मध्यम वर्ग के मुद्दों और समस्याओं का बारीकी से वर्णन किया है।
रविंद्रनाथ के कथा साहित्य में शहरी मध्यम वर्ग का एक नया संसार पाठकों के समक्ष आया। टैगोर के गोरा, चोखेर बाली, घरे बाहिरे जैसे कथानकों में शहरी मध्यम वर्ग के पात्र अपनी तमाम समस्याओं और मुद्दों के साथ प्रभावी रूप से सामने आते हैं। इन रचनाओं को सभी भारतीय भाषाओं के पाठकों ने काफी पसंद किया क्योंकि वे उनके पात्रों में अपने जीवन की छवियां देखते हैं।
टैगोर का जन्म सात मई 1861 को बंगाल के एक सभ्रांत परिवार में हुआ। बचपन में उन्हें स्कूली शिक्षा नहीं मिली और बचपन से ही उनके अंदर कविता की कोपलें फूटने लगीं। उन्होंने पहली कविता सिर्फ आठ साल की उम्र में लिखी थी और केवल 16 साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई।
बचपन में उन्हें अपने पिता देवेंद्रनाथ टैगोर के साथ हिमालय सहित विभिन्न क्षेत्रों में घूमने का मौका मिला। इन यात्राओं में रविंद्रनाथ टैगोर को कई तरह के अनुभवों से गुजरना पड़ा और इसी दौरान वह प्रकृति के नजदीक आए। रविंद्रनाथ चाहते थे कि विद्यार्थियों को प्रकृति के सानिध्य में अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने इसी सोच को मूर्त रूप देने के लिए शांतिनिकेतन की स्थापना की।
साहित्य की शायद ही कोई विधा हो जिनमें उनकी रचनाएं नहीं हों। उन्होंने कविता, गीत, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि सभी विधाओं में रचना की। उनकी कई कृतियों का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया गया है। अंग्रेजी अनुवाद के बाद पूरा विश्व उनकी प्रतिभा से परिचित हुआ।
रविंद्रनाथ के नाटक भी अनोखे हैं। वे नाटक सांकेतिक हैं। उनके नाटकों में डाकघर, राजा, विसर्जन आदि शामिल हैं। रविंद्रनाथ की प्रसिद्ध काव्य रचना गीतांजलि के लिए उन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। बांग्ला के इस महाकवि ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सरकार द्वारा निर्दोष लोगों को गोलियां चलाकर मारने की घटना के विरोध में अपना नोबेल पुरस्कार लौटा दिया था। उन्होंने दो हजार से अधिक गीतों की भी रचना की। रविंद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत से प्रभावित उनके गीत मानवीय भावनाओं के विभिन्न रंग पेश करते हैं। गुरुदेव बाद के दिनों में चित्र भी बनाने लगे थे। 
 
' जन गण मन ' के रचयिता , भारत माता के लाल , गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर को उनकी १५२ वीं जंयती पर शत शत नमन |
सादर आपका 
शिवम मिश्रा 
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नेताओं की हालत और गरीब

KrRahul at r a h u l 's
नेताओं की हालत पर एक जाने माने कवि मुकेश कुमार सिन्हा अपनी कविता "वोटों के भिखारी" में लिखते हैं: "कभी कुछ हजारों की संपत्ति वाले फटेहाल नेताजी अब बस कुछ अरबों में खेलते हैं लेकिन आज भी चुनाव आने पर वोटों के लिए भिखारी बन तरसते हैं।" देश में जो प्रगति हुई है, उसमें गरीब कहाँ खो गया उसपर मानो एक कटाक्ष के तौर पर अपनी कविता "लैंड क्रूजर का पहिया" में लिखते हैं: "दूर पड़ी थी सफ़ेद कपडे में ढकी लाश पर मीडिया की ब्रेकिंग न्यूज़ में नहीं थी मनसुख की मैय्या ... टी आर पी कहाँ बनती है भूखी बेसहारा माँ से इस लिए टीवी स्क्रीन पर चिल्ला रहे थे न्यूज़ रीडर ... और बार बार सिर्फ दिख रहा था स्क्रीन पर... more »

नियति

कुछ दोस्तों को हम घसीटते हुए शराबबाजी की किस्सागोई तक ले आएं अक्सर शराबी दोस्तों के सदन में उनका ही प्रश्नकाल चलता है जबकि हमारे ऐसे कामयाब दोस्त ठीक उसी वक्त बना रहे होते है योजनाएं जा रहे होतें है मन्दिर सपरिवार अपनी उपलब्धियों के आंतक से मजबूर कर रहे होते है असहमति के स्वरों को बलात सहमति में बदलनें के लिए मिलनें पर अजनबी लहज़े में बतियाना अब अचरज़ की बात नही हंसी आती है उन लोगो की सलाह पर जो कहते है दूनिया गोल है वक्त बदलेगा अहसास कचोटेगा कुछ खोने का न वक्त कभी बदलता है और न अहसास कचोटता है दूनिया की दुकानदारी में माहिर दोस्तों अब तुम्हारी कलाकारी को सलाम करता हूँ ... more »

प्रश्न-ज्योतिष...?

डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' at आह्वान
आप में से कई लोग ऐसे होंगे, जिन्हें ज्योतिष-विद्या पर पूर्ण विश्वास है और वो इसका लाभ भी उठाना चाहते हैं; पर एक ही चीज जो हर बार उन्हें मायूस कर देती है, वो है सही जन्म-समय का ‌ज्ञात ना होना। पुराने समय में तो सही जन्म-समय लिखने पर कोई ध्यान ही नहीं देता था और सही समय लिखना तो दूर, माह और वर्ष भी अनुमान पर आधारित होते थे; जरा एक बानगी देखिए..... उस साल बहुत बारिश हुई थी या सूखा पड़ा था, फ़सल पक चुकी थी, उजला पाक था, फ़लाना शाम को जानवर चरा के लौट रहा था, आदि-२। साथ ही, लड़कियों की कुण्डली तो कोई बनवाता ही नहीं था, क्योंकि मंगली दोष होने या कोई अन्य दोष होने पर उसकी शादी में होने वाल... more »
 

भारतीय स्टेट बैंक में बचत खाता खोलना अब बिल्कुल आसान

Sawai Singh Rajpurohit at Active Life
भारतीय स्टेट बैंक में बचत खाता खोलना अब बिल्कुल आसान बचत खाता खोलिए ON-LINE भारतीय स्टेट बैंक में On-Line बचत खाता खोलने के लिए बैंक की वेब साईट* http://sbi.co.in *पर दी गई लिंक पर जाकर ऑनलाइन फार्म भरें, TCRN एवं TARN नंबर तुरंत SMS पर प्राप्त करें, पूरी तरह भरे हुए फार्म का प्रिंट भी निकालें, प्रिंटेड फ़ार्म में निर्दिष्ट स्थानों पर हस्ताक्षर करें, प्रिंट आउट के साथ अपने दस्तावेज 1.अभी हाल में खिंचवाए हुए २ पासपोर्ट आकार के फोटो में से एक फ़ार्म पर ठीक तरह से चिपकाएँ एवं दूसरा प्रिंट आउट के साथ पिन से संलग्न करें), 2. पहचान के प्रमाण की फोटो कॉपी पर स्वयं के हस्ताक्षर कर (स्व-प्रमा... more »

ग़ज़ल

इस्मत ज़ैदी at शेफ़ा कजगाँवी
*एक महीने के वक़फ़े के बाद एक ग़ज़ल के साथ फिर हाज़िर हूँ* *शायद पसंद आए* *ग़ज़ल* *********** * * *धड़कनें हों जिस में, वो ऐसी कहानी दे गया* *चंद किरदारों की कुछ यादें पुरानी दे गया* ******* *टूटे फूटे लफ़्ज़ मेरे शेर में ढलने लगे* *मेरा मोह्सिन मुझ को ये अपनी निशानी दे गया* ******* *रोज़ ओ शब की रौनक़ें, वो क़हक़हे, वो महफ़िलें* *साथ अपने ले गया और बेज़बानी दे गया* ******* *क्यों ख़ताएं उस की गिनवाते हो तुम शाम ओ सहर बीज ख़ुद बोए थे तुम ने , बस वो पानी दे गया* ******* *ज़िंदगी ख़ुद्दारियों के साए में ही कट गई* *बस विरासत में वो अपनी जाँ... more »

किम आश्चर्यम् ?

. . . आजकल खबरें आपको परेशान नहीं करतीं... वे अपनी शॉक-वैल्यू खो चुकी हैं... यह एक ऐसा दौर है जिसमें हमारे पतन की कोई सीमा नहीं है... कहीं भी, किसी के द्वारा भी, कैसा भी और कुछ भी संभव है... लगभग हर चीज बिकाऊ है और बिकाऊ दिख भी रही है... पवन बंसल जी यूपीए की सरकार में एक साफ और बेदाग छवि के भरोसेमंद और काबिल नेता के तौर पर जाने जाते रहे हैं... उनका भांजा रेल मंत्रालय से होने वाली नियुक्ति और प्रमोशन के बदले लंबी चौड़ी घूस लेते सीबीआई के हाथों पकड़ा गया है... पवन बंसल कसूरवार हो भी सकते हैं और यह भी हो सकता है कि जाँच के बाद यह पता चले कि पवन बंसल इस मामले में शामिल नहीं थे और उन... more »


अन्ना हज़ारे तो टीवी में ही बढ़िया लगते हैं!

नारदमुनि at नारदमुनि जी
श्रीगंगानगर-कुछ ऐसी चीजें होती हैं जो दूर से ही सुहानी लगती है। ठीक ऐसे,जैसे अन्ना हज़ारे टीवी पर ही सजते हैं। ऊंचे मंच पर तिरंगा फहराते अन्ना हर किसी को मोहित,सम्मोहित करते हैं। चेहरे पर आक्रोश ला जब वे वंदे मातरम का नारा लगाते हैं तो जन जन की उम्मीद दिखते हैं। वे अपने लगते हैं...जो इस उम्र में लाखों लोगों की आँखों में एक नए भारत की तस्वीर दिखाते हैं। अनशन के दौरान मंच पर निढाल लेटे अन्ना युवाओं के दिलों में चिंता पैदा करते हैं....हर ओर एक ही बात अन्ना का क्या हुआ? बड़े आंदोलन के कारण अन्ना आज के दौर के गांधी हो गए। उनमें अहिंसक गांधी की छवि दिखने लगी। पर जब अन्ना निकट आए तो सब ... more »

न स्त्री न ही पुरुष

poonam at anubuthi
छक्का ... हिजड़ा .... हा हा ...ही..... ही .... नहीं कोई पहचान , न ही कोई मान , बस हंसने - हँसाने का सामान॥ न स्त्री न ही पुरुष , दोनों का ही समावेश , इसलिए हँसी का पात्र॥ गाना - बजाना - नाचना , अपना दर्द छिपा --- हाय - हाय कहना , काम नहीं मजबूरी है मेरी , अब तुम्हें भी यही सुनने की आदत जो है मेरी ॥

प्यार

आशा बिष्ट at शब्द अनवरत...!!!
प्यार क्या है? मालूम नहीं कभी मिला? ....?!?!? हां... पर कभी कभी हथेली पर कटी सी रेखा दिखती हैं क्या वो प्यार है?? या फिर निकल आता

छलकी ममता - हाइगा में

ऋता शेखर मधु at हिन्दी-हाइगा
इंसान तो क्या देवता भी आँचल में पले तेरे तू है तो अँधेरे पथ में हमें सूरज की जरूरत क्या होगी http://www.youtube.com/watch?v=-YRa6t7lb0I *मदर्स डे स्पेशल* सारे चित्र गूगल से साभार

वो रात

kavita verma at कहानी Kahani
मैं पसीने पसीने हो गया हवा चलना अचानक बंद हो गयी थी चांदनी में ठंडक तो थी लेकिन अब लगा हवा ही इस ठंडक को पोस रही थी . मेरी नींद खुल गयी और मैं उठ बैठा .गर्मियों के दिन थे घर के अन्दर पंखे की गर्म हवा सोने नहीं देती इसलिए बाहर छत पर पलंग लगा लिए जाते थे .वह चांदनी रात थी गपशप करते करते कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला . मेरे बगल के पलंग पर पिताजी सोये थे कुछ दूर माँ और छोटे भाई का भी पलंग था . सब गहरी नींद में थे . किसी को गर्मी नहीं लग रही ये विचार मन में आया तो मैं चौंक गया सब आराम से सो रहे है फिर सिर्फ मुझे ही गर्मी क्यों लग रही थी . मैं पलंग से उठ गया पास ही राखी सुराही से पानी प... more »

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

15 टिप्‍पणियां:

  1. श्रद्धेय रवीन्द्र जी को शत शत नमन
    सुंदर और सार्थक प्रस्तुति
    साझा करने का आभार
    सुंदर लिंक्स
    शानदार संयोजन
    ब्लॉग बुलेटिन टीम को बधाई

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  2. गुरुदेव को नमन
    काफी नए से लिंक्स दिख रहे हैं. जाते हैं पढ़ने.

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  3. गुरुदेव को शत शत नमन...हिन्दी हाइगा शामिल करने के लिए आभार!!

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  4. सुन्दर सूत्रों से सजा बुलेटिन !!

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  5. जय हो रवीन्द्रनाथ जी की ...
    अच्छे लिंक्स ...

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  6. sivam ji kafi achhe links hain
    meri pravisthi ko sthan dene hetu aapka aabhaar..

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  7. मैने गुरुदेव की जो भी रचना पढ़ी हैं, उन्से बहुत प्रभावित हुआ हूँ. इस पोस्ट के लिए और मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद.

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  8. शिवम् मिश्रा जी Active Life को भी बुलेटिन में सम्मिलित करने के लिए आपका विनम्र आभार

    सुंदर और सार्थक प्रस्तुति

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  9. bahhot hi acchi article likhi hai apne aysi likhate rahiye jai hind or latest news ke liye hamare website Desi News me visit kar sakte ho

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