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शनिवार, 18 मई 2013

संभालिए महा ज्ञान - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !

लीजिये संभालिए एक महा ज्ञान :-

महा ज्ञान:
 काम उतना ही करो कि सैलरी ज्यादा लगे।
सादर आपका 

शिवम मिश्रा 

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रात के ख्वाब

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति at अमृतरस
[image: Dreaming of Love] आ तेरी पलकों पर रख दूँ एक बोसा मेरे सकून कि तुझे मखमली नींद का अर्श दे दूँ | होना मत उदास मेरे चैन तू कभी मैंने छोड़ा अकेले तुझे तन्हा न यूं कहीं तुझे पलकों पर लिए फिरती हूँ सदा कि ख्वाब से रहे हो तुम कि मूर्त कर दूँ मैं तुम्हें कि मैं दौड़ते क़दमों को कभी रोक लूँ ज़रा कि फुर्सत के चंद पलों में तुझे उतार लूँ कांधो से झूल लूँ तेरी नरम बाहों में कि पत्ता पत्ता ओंस से नहा लूँ और रात की झील में हमारे प्यार की सरगोशियाँ लहरों पर न लौट कर जाने के लिए बस डूबती रहे उभरती रहें| ….. …. पर न कभी मिली फुर्सत और more »

हैंडल विथ केयर

मैंने पहुंचाया था प्रेम तुम तक, सम्हाल कर , एहतियात से पैक करके.. सभी आवश्यक निर्देशों के साथ कि - ये हिस्सा ऊपर (दिस साइड अप) हैंडल विथ केयर ब्रेकेबल डु नॉट रोल और फोल्ड!! मगर देखो न आज छिन्न भिन्न है हमारा प्रेम... बिखर गया कतरा कतरा तुम्हारी लापरवाही से. आज समझी कि प्रेम के दिए जाने में कोई गलती नहीं न ही प्रेम के किये जाने में है.... प्रेम को सही तरीके से स्वीकारा जाना, इसे स्नेह से सहेजना भी ज़रूरी है. रिश्तों के टूटने की जवाबदेही सिर्फ एक की नहीं... सिर्फ मेरी नहीं...कतई नहीं !!! ~अनु ~

सुधा की कहानी उसकी ज़ुबानी (4)

मीनाक्षी at "प्रेम ही सत्य है"
चित्र गूगल के सौजन्य से सुधा अपने आप को अपनों में भी अकेला महसूस करती है इसलिए अपने परिचय को बेनामी के अँधेरों में छिपा रहने देना चाहती है.... मुझे दीदी कहती है...अपने मन की बात हर मुझसे बाँट कर मन हल्का कर लेती है लेकिन कहाँ हल्का हो पाता है उसका मन.... बार बार अतीत से अलविदा कहने पर भी वह पीछे लौट जाती है...भटकती है अकेली अपने अतीत के जंगल में ....ज़ख़्म खाकर लौटती है हर बार... उसका आज तो खुशहाल है फिर भी कहीं दिल का एक कोना खालीपन से भरा है.... 'दीदी, क्या करूँ ...मेरे बस में नहीं... मैं अपना खोया वक्त वापिस चाहती हूँ ... more »

रीत

दरवाज़ा खोल कर जैसे ही अखबार उठाना चाहा शैलजा पर नज़र पड़ी जो सीडियां उतर रही थी , मैंने नज़रंदाज़ किया लेकिन उसने एक मुस्कान उछाल दी में अवाक थी क्या हुआ है उसे ? आज चार साल से मुह फेर कर निकल जाने वाली शैलजा उसे देख मुस्करा रही थी लेकिन मेरे पास समय नहीं था जल्दी से अखबार उठाया और चाय गर्म करने लगी उसे देर हो रही थी सोचने के लिए बिलकुल समय नहीं था पर विचार कहाँ साथ छोड़ते हैं !!! तैयार हो कर बस स्टेंड पर आई तो शैलजा फिर से मिल गयी . "दीदी आपने ज्वाइन कर लिया क्या ?" 'हाँ' 'कहाँ '? 'वहीँ पुराने स्कूल ' अरे बड़ा अच्छा किया आपने ,समय कट जाता है अच्छा आपके यहाँ कोइ  more »

माँ

*हैलो माँ ... में रवि बोल रहा हूँ.... , कैसी हो माँ.... ?* ** *मैं.... मैं… ठीक हूँ बेटे..... , ये बताओ तुम और बहू दोनों कैसे हो ?* *हम दोनों ठीक है माँ...आपकी बहुत याद आती है…, ...अच्छा सुनो माँ , में अगले महीने इंडिया आ रहा हूँ..... तुम्हें लेने।* *क्या... ? * *हाँ माँ.... , अब हम सब साथ ही रहेंगे...., नीतू कह रही थी माज़ी को अमेरिका ले आओ वहाँ अकेली बहुत परेशान हो रही होंगी। हैलो ....सुन रही हो माँ...?* *“हाँ...हाँ बेटे...“, बूढ़ी आंखो से खुशी की अश्रुधारा बह निकली, बेटे और बहू का प्यार नस नस में दौड़ने लगा। जीवन के सत्तर साल गुजार चुकी सावित्री ने जल्दी से अपने पल्लू स... more »

मार्गदर्शन के खोखले आधार

यात्रा, समारोह की कार्यव्‍यस्‍तता के चलते दिनचर्या बदल गई। शारीरिक थकान यदि कष्‍ट ना भी देती पर नित नए प्रकार से विदूषित होते सामाजिक और पारिवारिक वातावरण ने मानसिक स्थिति को विक्षिप्‍त कर दिया है। स्‍वयं के अस्थिर व्‍यक्तित्‍व, क्षण में परिवर्तित होते मनोभावों से व्‍यावहारिक जीवन क्रम में बाधा उत्‍पन्‍न हो रही है। मन नहीं-नहीं कहता रह जाता है और मैं वे कार्य कर देता हूँ, जिनके अपराध-बोध से दिनों तक छुटकारा नहीं मिलता। मुझे पता है कि प्राइवेट स्‍कूल पढ़ाई के नाम पर व्‍याव‍सायिक उपक्रम हैं। ये भी जानता हूँ कि किसी बच्‍चे को आदर्श व्‍यक्ति, सज्‍जन नागरिक बनाना इनके वश में नहीं। बालपन ... more »

ओ री चिड़िया

ओ री चिड़िया सुन ले मेरे मन की बात चुग्गा तुझे खिलाऊँगी ले चल अपने साथ धरती पर बैठी बैठी हो गई मै तो तंग नील गगन की सैर करा दे ले चल अपने संग इतना सा अहसान कर दे पकड़ मेरा हाथ चुग्गा तुझे खिलाऊँगी ले चल अपने साथ काश मेरे भी पंख होते, मैं भी ऐसे उड़ पाती तेरे संग संग पूरे जहां के चक्कर रोज लगाती पंख मुझे भी ला कर दे दे सुन चिड़िया मेरी बात चुग्गा तुझे खिलाऊँगी ले चल अपने साथ

अलेक्सा रैंकिंग काम कैसे करती है

Manu Tyagi at onetourist
अगर आप ब्लागिंग को शौकिया तौर पर अपनाये हुए हैं तो ये आपके लिये नही है । अगर आप अपने ब्लाग लेखन के प्रति गंभीर और रेगुलर नही हैं तो ये आपके लिये भी नही है कृपया आप इसे तभी पढें अगर आप अपने ब्लाग या वेबसाइट से कमाना चाहते हों । अलेक्सा डाट काम को अमेजन द्धारा शुरू किया गया था और आज इसे विज्ञापन दाताओ द्धारा विश्वसनीय माना जाता है और इसकी रैंकिग के आधार पर ज्यादातर विज्ञापनदाता अपने विज्ञापन देना और उनका मूल्य चुकाना तय करते हैं । इसलिये जो ब्लागर अपने ब्लाग लेखन से कमाना भी चाहते हैं वो अलेक्सा रैंक की ओर ध्यान दें ये जरूरी है अलेक्सा काम किस तरह करती है अलेक्सा रैंक को पाने से प... more »

सपनों की दुनिया

sunil deepak at जो न कह सके
"मिलान में इतालवी वोग (Vogue) पत्रिका की नयी फोटो-प्रदर्शनी लगाने की तैयारी हो रही है" के समाचार के साथ अंग्रेज़ी फोटोग्राफर *किर्स्टी मिशेल* (Kirsty Mitchell) की एक तस्वीर देखी तो देखता रह गया. [image: Wonderland - images by Kirsty Mitchell] आजकल क्मप्यूटर की मदद से तस्वीरें बना कर कलाकार कई तरह की पूरी काल्पनिक दुनियाँ बना सकते हैं, जिन पर "अवतार" (Avatar) जैसी पूरी फ़िल्में बनती हैं. इन फ़िल्मों को देख कर यह कहना कठिन होता है कि उनमें कितना असली है और कितना क्मप्यूटर पर बना हुआ है. इसलिए जब किर्स्टी की तस्वीर देखीं तो यही सोचा कि उन्होंने भी इसे क्मप्यूटर की मदद से ही बनाया होग... more »

भ्रष्टाचार हमारे खून में -सतीश सक्सेना

सतीश सक्सेना at मेरे गीत !
*आजकल भारतीयों में भ्रष्टाचार पर बोलने का शौक चर्राया हुआ है , कुछ वर्ष पहले यह हवा में इतना नहीं फैला था, हां कुछ ईमानदार राजनीतिक पार्टियाँ, जो बेचारी बहुमत न पा सकीं थीं जरूर सत्ता पार्टी के भ्रष्टाचार पर चीख चीख कर देश वासियों को बताती रहती थीं कि देखो तुमने चोरों को वोट दिया है किसी तरह इन्हें सत्ता से हटाओ और हमें लेकर आओ और फिर आपकी दशा पलटने में देर नहीं लगेगी !उल्टा पेपर, गैर भाषा, पढ़ रहे विद्वान् हैं * * **और हम लोग फिर इंतज़ार करते रहते कि अब हमारे घर भी नोट बरसेंगे..* * **मानव जीवन में, पौराणिक काल से लेकर आजतक , कोई काल ऐसा नहीं हुआ जहाँ वे बुरे काम नहीं हुए जो इस सम... more »

फाख्ता का पलता-बढ़ता घर-परिवार

कविता रावत at KAVITA RAWAT
कभी जब घर आँगन, खेतिहर जमीनों में, धूल भरी राहों में, जंगल की पगडंडियों में भोली-भाली शांत दिखने वाली फाख्ता (पंडुकी) भोजन की जुगत में कहीं नजर आती तो उस पर नजर टिक जाती। उसकी भोलेपन से भरी प्यारी सूरत देखकर उसे पकड़कर अपने पास रखने को मन मचल उठता तो उसके पीछे-पीछे दबे पांव चल देते। वह भी हमें पास आता देख मुड़-मुड़ कर टुक-टुक-टुक कर दाना चुगते हुए तेजी से आगे बढ़ जाती। इससे पहले कि हम उसके करीब पहुंचकर झपट्टा मारकर उसे पकड़ने की नाकाम कोशिश करते, वह फर-फर कर उड़ान भरकर जैसे यह कहते हुए फुर्र हो जाती कि- *"फिर कभी संग चलूंगी तुम्हारे! जरा अभी दाना-पानी में व्यस्त हूँ।" * आज 30 बरस बा... more »

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

15 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा संकलन किया है ,काफी कुछ पढ़ चुके बाकी शेष रह गये को भी पढती हूँ .....

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  2. सबसे पहले तो हमारी रचना शामिल करने का शुक्रिया....
    :-)
    लिंक्स भी जितने देखे अच्छे हैं..बाकी भी देखते हैं.
    और महाज्ञान फ़िज़ूल है...सैलरी कभी ज्यादा नहीं लगती :-)
    सस्नेह
    अनु

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  3. नए ब्लॉग लिंक पढ़ने को मिले...कुछ पढ़ लिए कुछ पढ़ेंगे...लिंक शामिल करने का भी शुक्रिया...

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  4. सुंदर संकलन , मेरी पोस्ट को शामिल करने का आभार

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  5. बहुत खूबसूरत संकलन, आभार

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  6. बहुत खूबसूरत, मेरी पोस्ट को शामिल करने का आभार

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  7. सुन्दर संकलन मेरी पोस्ट को शामिल किया आभार .......
    कल से लाईट ने बहुत तंग किया आ ही नही पायी ...कुछ देर के लिए आई तो नेट धीमा था ..
    क्षमा चाहती हूँ देरी के लिए ..........

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  8. बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु बहुत आभार ..सादर

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!