प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !
प्रणाम !
मेरी आवाज़ ही मेरी पहचान है, ग़र याद रहे...
कभी-कभी ज़िन्दगी में कुछ बुरा होना ब्लेसिंग इन डिसगाईज हो जाता है.. अब देखिये न पिछले दो महीने से लैपटॉप ख़राब पड़ा है इन दिनों कुछ भी नहीं लिख सका, कुछ लिखा भी तो डायरी के पन्नों तक ही रहा.. फिर एक दिन बैठा बैठा उन पन्नों को पढना शुरू किया और साथ ही साथ रिकॉर्ड करना भी, जानता हूँ मेरी आवाज़ के हिसाब से पॉडकास्ट एक कोई ख़ास अच्छा आईडिया तो नहीं ही है, फिर भी अपनी आवाज़ में अपना कुछ लिखा सुनना किसे अच्छा नहीं लगता... कुछ गलतियां हुईं, सुधारता रहा और आज सब कुछ सुना तो दो पन्ने अच्छे बन पड़े हैं, उन दो पन्नों को पॉडकास्टस के रूप में यहाँ रख रहा हूँ... अगर कोई गलती लगे तो ध्यान ज़रूर ... more »
बयार परिवर्तन की
बिहार की राजनीति में रैलियों का हमेशा से महत्व रहा है और अधिकांश रैलियों में सत्ता+पैसा का घिनौना नाच एवं गरीबी का मजाक भी होता रहा. इस बार आया "परिवर्तन रैली". आईये जानते हैं कि परिवर्तन किसे कहते हैं? *१. *लालू-नितीश ने साथ-साथ ही राजनीति कि शुरुवात की थी. जब जे.पी. इसी गांधी मैदान जन को संबोधित करते हुए में इंदिरा गांधी को तानाशाह कहते थे तब ये दोनों साथ-साथ तालियाँ भी बजाते थे. और अभी पिछले कई सालों से सत्ता के पीछे भागते हुए एक दूसरे के विरोध में राजनीति कर रहे हैं. यह है परिवर्तन! *२. *इंदिरा कि तानाशाही के खिलाफ जिन्होंने अपनी राजनीति शुरू की, वही तानाशाही इन्होने सत्ता में ... more »
अंधेरे की वजह
घाटशिला की यात्रा यूँ तो मैने बिटिया के समर इन्टर्नशिप के चक्कर में मजबूरी में की थी लेकिन इस यात्रा ने मुझे अग्निमित्र से मिला दिया। देश की भलाई सोचने वाली आग जो कुछ युवाओं के हृदय में प्रज्वलित होते दिखती है वही आग मैने एक सेवानिवृत्त हो चुके शिक्षक के ह्रदय में देखी। उनकी कविताओं की पुस्तक 'फरियाद नहीं' पढ़ते हुए लौटा और वे पूरी तरह मेरे मन मस्तिष्क में छा गये। प्रस्तुत है उनकी एक कविता जिसका शीर्षक है... अंधेरे की वजह प्रज्वलित होने को प्रस्तुत प्रदीप को प्रदीप्त करती है गुरूता की लौ। एक जलती दीपशिखा जलाती है, अनेक दीपशिखाएँ। खुद बुझा गुरू दीप्त, उद्दीप्त, प्रदीप्त नहीं कर सक... more »
छोर की दुनिया और चमक के द्वीप
(चित्र गूगल से साभार) जिस वो रहता था उस जगह के आगे कोई बस्ती नहीं थी. कई पीढीयों से इस आखरी बस्ती के छोर से आगे जाने की अघोषित मनाही थी..गाँव के लोग सरगोशियों में बात करते और बच्चों को इशारों इशारों में उस तरफ जाने से मना करते.किम्वदंतियां भी सच का अंश लेकर ही खड़ी की जातीं हैं और प्रचलित स्थानीय कथाएँ सुन सुन कर उसे पक्का विश्वास हो गया था कि दुनिया के गोल होने बातें महज़ बकवास थीं,और दुनिया का छोर इसी बस्ती से आगे ही कहीं है जहां धरती एकदम किसी तीक्ष्ण किनारे में समाप्त होकर एक बड़े ही भयावह और अंतहीन खड्ड में गिर जाती थी.चूँकि ये दुनिया का छोर था ... more »
साइंस ब्लॉगिंग की 03 कार्यशालाओं का आयोजन!
विज्ञान संचार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 'तस्लीम' आगामी दिवसों में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद् (नेशनल काउंसिल फॉर साइंस एण्ड टेक्नालॉजी कम्युनिकेशन N.C.S.T.C., नई दिल्ली)के... Please read full story at blog...
चम्पक वन में ************दो सखियाँ
*संस्मरण कविता* चम्पक-वन में बैठ सखी संग , कहती सुनती कुछ मन की जीवन की कुछ अपनों की कुछ सपनों की कुछ टूटे सपनों की कुछ छूटे अपनों की मन के पन्ने खोल रही हैं एक-दूजे को तोल रही हैं कहती सुनती ,कुछ मन की जीवन की कुछ सासू की -कुछ ननदी की कुछ साजन की-कुछ लालन की भर आँचल में झर- झर झरते स्मृतियों के चम्पक-सुमन कहती -सुनती कुछ मन की जीवन की कुछ द्वंदों की -अवसादों की कुछ तीरों की तलवारों की कब लगी ह्रदय को ठेस ... more »
तुम्हारी परछाईं ....
सब आजमाते है जैसे मैं ही हूँ तुम्हारी परछाईं सच कहूँ नहीं बनना मुझे तुम्हारी परछाईं कभी कहीं आ गयी ज़िन्दगी में तपिश तुमसे दूर कभी जा भी न पाऊँगी अंधियारे पलों में हाथ कैसे छुडाउंगी ! हाँ ! बना सको तो बना लो मद्धिम सी साँसे अपनी दोनों साथ ही चल कर थमेंगे ! बसा सकते हो बसा लो बस रूह में अपनी क्यों ? अरे जानते नहीं रूहें साथ रहती हैं जन्मों तक ....... - निवेदिता
नपुंसक जातियां क्रांति नहीं किया करती
हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ते ही दिख रहे हैं, जनप्रतिनिधि हर पल निरंकुश नज़र आ रहे हैं, सत्ताधारी निर्लज्ज से समझ आते हैं, विपक्ष गुमसुम सा दिखाई देता है, जनता बदहाल-परेशान-विक्षिप्त लगती है.....ये किसी एक नगर के, किसी एक राज्य के हालात नहीं वरन समूचे देश के हैं. किसी एक क्षेत्र में नहीं, किसी एक व्यक्ति के द्वारा नहीं, किसी एक संस्था-संगठन के द्वारा नहीं बल्कि प्रत्येक जिम्मेवार पद के द्वारा ऐसा किया जा रहा है. देश के हालात का आज जो अव्यवस्थित रूप है, वर्तमान सरकार-विपक्ष का आज जो स्वरूप है, जनप्रतिनिधियों के जो रंग-ढंग हैं, सरकारी पदासीन लोगों का जो रवैया है वो सिर्फ और सिर्फ बदतर हा... more »
भावनाओं का बाजारीकरण इसी को तो कहते हैं !
बाजारीकरण के फ़ार्मुलों का उपयोग करते हुए किस तरह हमारी भावनाओं को उभारा जाता है और फिर उन भावनाओं का दोहन करके किस तरह से पैसा कमाया जाता है इसका उदाहरण देखना हो तो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के उदाहरण से समझा जा सकता है ! १९२८ से पहले कलकता क्रिकेट क्लब हुआ करता था जो बाद में भारतीय क्रिकेट बोर्ड बन गया ! उसके बाद हम भारतियों के दिलों में मीडिया के जरिये क्रिकेट के प्रति प्रेम पैदा किया ! जबकि हकीकत ये थी आजादी मिलने तक हमारे दिलों में किसी खेल के प्रति प्रेम था तो वो हॉकी के प्रति था ! और यही कारण था कि हॉकी को हमारे देश का राष्ट्रीय खेल घोषित किया गया था ! आजादी के बाद बीसीसी... more »
जन्नत कहीं है तो बस यहीं है , यहीं है -- मॉल कल्चर।
कॉलेज के दिनों में अक्सर शाम को दोस्तों के साथ मार्किट की ओर निकल जाते थे , मटरगश्ती करने। खरीदारी करने की न कोई वज़ह या ज़रुरत होती थी , न हैसियत। जेब में दस रूपये डालकर जाते थे और दस के दस सुरक्षित वापस लाकर रख देते थे। उस पर यह कह कर खुश हो लेते कि ऐसा करने से इच्छा शक्ति बढती है। लेकिन ऐसा करते करते ऐसा लगता है कि इच्छा शक्ति शायद इतनी दृढ हो गई कि अब चाह कर भी पैसे खर्च करने की चाहत नहीं होती। लगता है , जब काम चल ही रहा है तो खर्च कर के भी क्या हासिल कर लेंगे। इसलिए अब भी जब मार्किट जाते हैं तो जो एक पांच सौ का नोट जेब में होता है, वह दिनों दिन सलामत रहता है। *यह अलग बात है कि ... more »
धुंधलका
धुंधलका कई दिनों की बेजारी और बेकारी के बाद अब और टालना मुश्किल था .नुक्कड़ वाले बनिए ने आगे से उधार देने से मना कर दिया था .दोस्त कहे जा सकने वाले दोस्त तो कोई है ही नहीं और दोस्त के नाम पर जो हैं उनके पास भी इतना कहाँ रहता है कि उधार दे सकें .जो थोडा बहुत होता भी है वो उधार चुकाने या आगे के लिए बचा लेने की नीयत से छुपा लिया जाता है वैसे भी जो है उसे किसी को बताया तो नहीं जाता है . आज का पूरा दिन सुस्ती में और सोने में निकाल दिया उसने .शाम को भूख से कुलबुलाती आँतों ने उठने पर मजबूर कर दिया .बनिए से हील हुज्जत करते बड़ी मुश्कल से उसने खुद पर काबू पाया . किसी तरह एक ब्रेड का पैके... more »
कौन आदमी है कौन जानवर सच में समझ नहीं आता.
जवाब देंहटाएंगज़ब का बुलेटिन.
अच्छा बुलेटिन !!
जवाब देंहटाएंjai ho bahut khoob jald hee badiya bulletin. vyastta ke karan bulletin na laga pane ke liye khed hai. jald hee dobara se bulletin lagane ke prayas karunga. tab tak ke liye khsama prarthi hoon. jai shree ram.
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत कहानी से अच्छी सीख मिलती है। रोचक बुलेटिन के लिए हार्दिक धन्यवाद। :)
जवाब देंहटाएंनये लेख : राजस्थान के छ : किले विश्व विरासत सूची में शामिल और राष्ट्रीय जल संरक्षण वर्ष के रूप में मनाया जायेगा वर्ष 2013।
बुलेटिन का सुंदर संयोजन ......मुझे शामिल करने का बहुत बहुत
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ....आभार...
रोटी की कहानी के लेखक चाहे कोई भी हों मगर हैं भारत के ही।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा अपनी पोस्ट का लिंक देखना..आभार।
इस बुलेटिन की खासियत यह कि यहाँ एक रोटी की कहानी भी है और मॉल कल्चर भी।
जवाब देंहटाएंMan ko chhu gayi roti ki kahani. Link bhi upyogi hain, Aabhar.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रोटी की कहानी,बेहतरीन लिंक्स,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बुलेटिन
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंरोटी की आवाज पेट को ही पता लगती है।
जवाब देंहटाएंमुश्किल है फ़र्क करना, बहुत बढिया लिंक्स मिले, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कविता मार्मिक है...ये हमने भी कहीं पढ़ी है, कवि का नाम पता चलते ही आपको बताते हैं
जवाब देंहटाएंहमारी पोस्ट को शामिल करने का आभार