जीवन चलता रहता है, किसी भी दशा में और कैसी भी दशा में। जीवन अपनें पनपने और उभरनें की जद्दोजहद में हर ओर बढता है। वाकई विधाता की दी हुई कितनी सुन्दर चीज़ है यह। हम और आप आज कल विकसित हो चुकी मानव सभ्यता हैं जो कई करोडो वर्ष की विकास यात्रा का परिणाम हैं। लेकिन यह विकसित मानव समाज़ कितना वीभत्स है इसकी कल्पना मात्र से मन सिहर उठता है। आखिर इस वीभत्सता के कारण क्या हैं? कैसी मज़बूरी है जो मनुष्य को पाशविकता के घनघोर जंगल में धकेल रही है। आज ही अखबार में पढा की एक माँ ने कुछ घंटो के बच्चे को कूडे के ढेर में फ़ेंक दिया और स्वयं को एक कठिन संकट से बचा लिया। जब पुलिसिया पूछताछ से उस स्त्री ने सच उगला तो वह सच कितना घिनौना था। आखिर कैसे एक माँ अपनी ही संतान को कूडे में फ़ेक सकती है। आज कल देश भर में जागरूकता फ़ैल रही है, ऐसा नहीं है की आज कल वारदातें बढ गई हैं बल्कि आज कल लोगों तक सच सामनें आनें लगा है। यह घटनाएं पहले भी होती रहीं है और आज भी यह उसी हिसाब से हो रही हैं। हर कोई समाज सुधारनें की बात करनें में लगा है और बडी बडी बातें करके पब्लिसिटी बढानें में लगा हुआ है। मीडिया भी एक खबर को दिखा दिखा, ओ री चिरईया जैसे गीत बजा बजा कर हमारी संवेदनाएं भडकानें में लगा हुआ है। लेकिन यही मीडिया ब्रेक में सन्नी लियोन को दिखानें से गुरेज़ नहीं करता। हर ब्रेक में होते प्रचार में होती अश्लीलता पर उसका ध्यान नहीं जाता। आखिर यह अश्लीलता फ़ैलानें वाले प्रचार को बन्द क्यों नहीं करते। यदि विज्ञापन का कोई सेंसर बोर्ड नहीं है क्या? अगर है तो फ़िर वह करता क्या है। वैसे भी हम लोग तो पश्चिम की नकल करके अपनी तरक्की के पैमानें गढते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब हम इसका और भी घनघोर रूप देखें। हमारे युवाओं को रोल माडल के रूप में स्वामी विवेकानन्द, रानी लक्ष्मीबाई, शहीदे-आज़म भगत सिंह और नेताजी सुभाष होनें चाहिए लेकिन उनकी जगह हमारे रोल माडल यह बाज़ार तय करता है। ऐसे में फ़िर रामायण, गीता और महाभारत की शिक्षा तो फ़िर जानें ही दीजिए।
पिछले दिनों कुछ स्कूली बच्चों से मिला, कोई चौथी और पांचवी कक्षा के बच्चे होंगे और स्कूल के किनारे रुक कर बाते कर रहे थे। हमनें उनकी बाते सुनने की कोशिस की... वह यह बात कर रहे थे की फ़लां फ़लां हीरो कितना स्मार्ट है और उसकी गर्ल फ़्रेंड कितनी हाट है। अब साहब दस बारह साल के बच्चों की बात सुनकर हैरान थे। हमनें उनको रोका और उनसे थोडी बात की। केवल इतना पूछा की भारत देश का राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान क्या है। कोई सही जवाब न दे पाया। फ़िर हमनें पूछा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर कौन हैं। जवाब में वह फ़िर से मौन थे। मित्रों उन बच्चों नें इसके बाद हमको इग्नोर किया और अपने काम में व्यस्त हो गये। न जाने क्या बडबडाए जिसको हम समझ न पाए। वैसे इसमें इनका कोई दोष नहीं होगा, क्योंकी यह तो वही जानेंगे न जो समझेंगे और सीखेंगे। स्कूल में व्यापारी हैं जो पैसा लेते हैं और किताबों को उडेल देते हैं, होमवर्क पकडा कर अपनें कार्य की इति-श्री कर लेंगे। हर ओर ऐसा ही होता रहेगा।
मित्रों समाज को सुधारनें के लिए अपनें ही घर से शुरुआत होगी। एक बच्चा जब बोलना सीखता है तब वह अपनें बुज़ुर्गो ंसे न जानें कैसी कैसी शिक्षा लेता है। बचपन से ही उसके मन में नैतिकता का अंकुर बोना होगा। सही को सही और गलत को गलत कहनें की शिक्षा देनी होगी। स्कूल और कालेज़ उसे केवल एक मैकेनिकल रोबोट बना कर छोडेंगे और ऐसे में बाल अंकुर को घर से ही नैतिक शिक्षा देकर उसे सही आदर्श सिखानें होंगे। शिक्षण संस्थानों को भी नैतिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में लेकर बच्चो को सही शिक्षा देनी होगी। टेलीविजन चैनलों को भी अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए अपना काम करना होगा। आप भी सोचेंगे क्या ऐसा होगा? जी मुश्किल तो है लेकिन नामुमकिन नहीं। थोडी जागरूकता के साथ काम करना होगा तो ज़रूर होगा। कम से कम घर से शुरुआत तो कर ही सकते हैं... एक नया भारत बनेगा... इस सोच के साथ कम से कम अपने हिस्से का काम तो कर ही सकते हैं।
सोच कर देखिए...
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चलिए आज के बुलेटिन की ओर
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एक प्रेमकथा का किस्सा
कुछ दिन पहले "जूलियट की चिठ्ठियाँ" (Letters to Juliet, 2010) नाम की फ़िल्म देखी जिसमें एक वृद्ध अंग्रेज़ी महिला (वेनेसा रेडग्रेव) इटली के वेरोना शहर में अपनी जवानी के पुराने प्रेमी को खोजने आती है. इस फ़िल्म में रोमियो और जूलियट की प्रेम कहानी से प्रेरित हो कर दुनिया भर से उनके नाम से पत्र लिख कर भेजने वाले लोगों की बात बतायी गयी है. यह सारी चिठ्ठियाँ वेरोना शहर में जूलियट के घर पहुँचती हैं, जहाँ काम करने वाली युवतियाँ उन चिठ्ठियों को लिखने वालों को प्रेम में सफल कैसे हों, इसकी सलाह देती हैं. रोमियो और जूलियट (Romeo and Juliet) की कहानी को अधिकतर लोग अंग्रेज़ी नाटककार और लेखक विलिय... more »
व्यंग्य: रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ
कल शहर में रेवडियाँ बाँटी गयीं थीं. रेवडियाँ बाँटने के लिए एक भव्य समारोह का आयोजन किया था. समारोह के आयोजक ऐसा समारोह हर साल करते हैं और अपने चाहने वालों के लिए नियम से रेवडियाँ बाँटते हैं. रेवडियाँ प्राप्त करने की कोई विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती. बस आपको रेवड़ी बाँटू कार्यक्रम में उपस्थित होना आवश्यक है. हाँ यदि आप अधिक व्यस्त हैं और कार्यक्रम में आने का कष्ट नहीं उठाना चाहते, तो आपके निवेदन पर रेवडियाँ आपके घर पर भी पहुंचाईं जा सकती हैं. यदि आपकी जान-पहचान न भी हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता. आप रेवड़ियों के दाम चुकाने की हिम्मत रखें, तो रेवडियाँ रेवड़ी देने वाले के साथ ... more »
मर्यादा का उल्लंघन ....
सृष्टि की रचना करते समय ईश्वर ने समस्त जगत के लिए और जीव जगत के लिए एक धर्म और मर्यादा नियत की है और यदि कोई इनका उल्लंघन करता है तो उसे उसके दुष्परिणाम भोगने ही पड़ते हैं . ग्रह- नक्षत्र भी अपनी निर्धारित धुरी पर ही परिक्रमा करते हैं और यदि वे अपने निर्धारित मर्यादित पथ से भटक जाएँ तो समस्त सृष्टि में हाहाकार की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी और ग्रह नक्षत्र एक दूसरे से टकराकर समाप्त हो जायेंगें . मनुष्य के लिए भी मर्यादाएं नियत की गई हैं और अगर कोई मनुष्य इनका उल्लंघन करता है तो वे परिणाम स्वरुप त्रासदी और कष्ट पाते हैं . मर्यादा का उल्लंघन करने के संबंध में एक छोटी से लघु कथा प्रस्तुत ... more »
"प्रगतिपथ"
चलता जा प्रगति पथ पर तू, कंटक पथ के पुष्प बनेंगे।। धूप जो तुझको चुभ रही है आज, कल छाया स्वयं आकाश बनेगा।। कंठ जो तेरा सूख रहा आज, नदियाँ कल तू ले आएगा।। उठ अब प्रण कर ले तू शपथ, मार्ग न कोई अवरुद्ध कर पायेगा।। देख !! मनोबल न गिर पाए तेरा , तू स्वयं ही अपना संबल बनेगा ।।
हरामखोरी हमारा राष्ट्रीय चरित्र है
एक बड़ी पुरानी सीख है . हमारे पुरखे हमें देते आये हैं . अगर किसी की मदद करना चाहते हो तो उसे मछली मत दो , बल्कि मछली पकड़ना सिखाओ .दोनों के अपने अपने फायदे हैं . जिसे आप मछली देंगे वो आपका ज़बरदस्त fan हो जाएगा . उसे बैठे बिठाए मुफ्त का खाना जो मिल गया . अब वो अक्सर आपका दरबार लगाएगा . जी हुजूरी करेगा . रोज़ आपसे मछ्ले मांगेगा .अगर आप उसे मछली पकड़ना सिखा दें तो इसमें भी एक बहुत बड़ा रिस्क है . अगर वो मछली पकड़ना सीख गया तो शायद फिर आपकी जी हुजूरी करने , आपको तेल लगाने नहीं आयेगा ............... बहुत से राजनैतिक , सामाजिक और धार... more »
सिनेमा के शानदार 100 बरस को अमित, स्वानंद और अमिताभ का संगीतमय सलाम
प्लेबैक वाणी -44 - संगीत समीक्षा - बॉम्बे टा'कीस सिनेमा के १०० साल पूरे हुए, सभी सिने प्रेमियों के लिए ये हर्ष का समय है. फिल्म इंडस्ट्री भी इस बड़े मौके को अपने ही अंदाज़ में मना या भुना रही है. १०० सालों के इस अद्भुत सफर को एक अनूठी फिल्म के माध्यम से भी दर्शाया जा रहा है. बोम्बे टा'कीस नाम की इस फिल्म को एक नहीं दो नहीं, पूरे चार निर्देशक मिलकर संभाल रहे हैं, जाहिर है चारों निर्देशकों
आँखें नम होतीं हैं मेरी Ankhein Nam Hotin Hain Meri
आज चल पडा है रूठ कर एक कतरा आँख से, हो गया बलिदान फिर एक भाव ही विन्यास से। ये याद है उसकी या मेरे अश्रु की फरियाद है, झरी जैसे निचुड़ती अंतिम बूँद हो मधुमास से। रह गयी हो बस यही अस्थि पञ्जर युक्त कारा, चल पड़ी हो पुनः जगकर मृत्यु के परिहास से। स्वप्न के सन्दर्भ में भी जी रहा हूँ दर्द केवल, सत्य खुशियों की बिखरती ओस सी है घास से। थक गयी है देह चन्दा छोड़ दो ये आसमान, देही चल पड़ी है राह में मुक्ति की सन्यास से। अब तुम्हारी याद की जरुरत नहीं रहती मुझे, आँखें नम होतीं हैं मेरी दिल्ली में अक्सर शर्म से। -- नीरज द्विवेदी https://www.facebook.com/LifeIsJustALi... more »
रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 7 ........दिनकर
'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ? धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान? जाति-गोत्र के बल से ही आदर पाते हैं जहाँ सुजान? 'नहीं पूछता है कोई तुम व्रती , वीर या दानी हो? सभी पूछते मात्र यही, तुम किस कुल के अभिमानी हो? मगर, मनुज क्या करे? जन्म लेना तो उसके हाथ नहीं, चुनना जाति और कुल अपने बस की तो है बात नहीं। 'मैं कहता हूँ, अगर विधाता नर को मुठ्ठी में भरकर, कहीं छींट दें ब्रह्मलोक से ही नीचे भूमण्डल पर, तो भी विविध जातियों में ही मनुज यहाँ आ सकता है; नीचे हैं क्यारियाँ बनीं, तो बीज कहाँ जा सकता है? 'कौन जन्म लेता किस... more »
'विज्ञान परिषद प्रयाग शताब्दी सम्मान' से कृष्ण कुमार यादव भी सम्मानित
राष्ट्रभाषा हिन्दी के माध्यम से विज्ञान लोकप्रियकरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये विज्ञान के प्रति समर्पित संस्था 'विज्ञान परिषद प्रयाग' ने अपने शताब्दी वर्ष में विभिन्न विभूतियों को 'विज्ञान परिषद प्रयाग शताब्दी सम्मान' से विभूषित किया। प्रशासन के साथ-साथ लेखन और ब्लागिंग में अनवरत सक्रिय एवं सम्प्रति इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवायें कृष्ण कुमार यादव को भी इस अवसर पर 'विज्ञान परिषद प्रयाग शताब्दी सम्मान' से सम्मानित किया गया। उक्त सम्मान 27 अप्रैल 2013 को इलाहाबाद में विज्ञान परिषद प्रयाग के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में छत्तीसगढ... more »
वाशिंगटन में २३ अप्रेल की सुबह
*आज तेईस अप्रेल की ये सुबह ** **ओढ़ कर जनवरी थरथराने लगी** **सर्द झोंकों की उंगली पकड़ आ गई** **याद इक अजनबी मुस्कुराने लगी * *बादलों****की** **रजाई****लपेटे** **हुये*** *रश्मियां****धूप** **की****कुनमुनाती** **रहीं*** *भाप****काफ़ी** **के****मग** **से****उमड़ती** **हुई*** *चित्र****सा** **इक****हवा** **में****बनाती** **रही*** *हाथ****की** **उंगलियां****एक** **दूजे****से** **जुड़*** *इक****मधुर** **स्पर्श****महसूस** **करती****रहीं** * *और****हल्की** **फ़ुहारें****बरसती** **हुईं*** *कँपकँपी****ला** **के****तन** **में****थी** **भरती*** * * *गाड़ियों****की** **चमकती****हुई** **रोशनी*** *कुमकुम... more »
मेरी कविता- नई इबारत!!!
[image: slnew] मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो तुमको मान्य न थी... मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो सबको मान्य न थी... मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो समाज को मान्य न थी... मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो मजहब को मान्य न थी... मेरी कविता बदल दी है मैंने उन सब बातों के लिए जो आलोचकों को मान्य न थी.. मेरी कविता- इन सब मान्यताओं की निबाह की इबारत बनी अब मेरी कहाँ रही वो बदल कर ढल गई है एक ऐसे नये रुप में जो काबिल है साहित्य के सर्वश्रेष्ठ प्रकाशन में प्रकाशित किए जा सकने के लिए मेरी कविता अब इस नये रु... more »
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अब आज्ञा दीजिये
आपका
देव
अब आज्ञा दीजिये
आपका
देव
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बढिया बुलेटिन
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा बुलेटिन, कोई भी परिवर्तन शिक्षा पर ही निर्भर होता है.
जवाब देंहटाएंअच्छा बुलेटिन !!
जवाब देंहटाएंसुगढ़ बुलेटिन..
जवाब देंहटाएंअपने बुलेटिन मेरे लेखन को सम्मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद देव कुमार जी
जवाब देंहटाएंwaaaaaaah
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा बुलेटिन.............
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब बुलेटिन लगाया | जय हो |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिनक्स लिए बुलेटिन......
जवाब देंहटाएंbahut badhiya charcha . samayachakr ki post ko sthaan dene ke liye dhanyawad ...
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तावना के साथ बेहद उम्दा पोस्ट लिंक्स ... आभार देव बाबू !
जवाब देंहटाएंअपनी ओर से हम तो इसी कोशिश मे है कि कार्तिक को एक आदर्श नागरिक बनाएँ ... अब देखते है कितनी सफलता मिलती है क्यों कि पूरे तरह से एक आदर्श नागरिक तो शायद हम भी नहीं है !
बेहतरीन लिंक्स संयोजन एवं प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार
एकदम सौलिड!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बुलेटिन.. मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद....
जवाब देंहटाएं