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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन 

(22/12/1887 - 26/04/1920)

महज 32 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गए रामानुजन, लेकिन इस कम समय में भी वह गणित में ऐसा अध्याय छोड़ गए, जिसे भुला पाना मुश्किल है। अंकों के मित्र कहे जाने वाले इस जुनूनी गणितज्ञ की क्या है कहानी?
जुनून जब हद से गुजरता है, तो जन्म होता है रामानुजन जैसी शख्सियत का। स्कूली शिक्षा भी पूरी न कर पाने के बावजूद वे दुनिया के महानतम गणितज्ञों में शामिल हो गए, तो इसकी एक वजह थी गणित के प्रति उनका पैशन। सुपर-30 के संस्थापक और गणितज्ञ आनंद कुमार की मानें, तो रामानुजन ने गणित के ऐसे फार्मूले दिए, जिसे आज गणित के साथ-साथ टेक्नोलॉजी में भी प्रयोग किया जाता है। उनके फार्मूलों को समझना आसान नहीं है। यदि कोई पूरे स्पष्टीकरण के साथ उनके फार्मूलों को समझ ले, तो कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से उसे पीएचडी की उपाधि आसानी से मिल सकती है।
अंकों से दोस्ती
22 दिसंबर, 1887 को मद्रास [अब चेन्नई] के छोटे से गांव इरोड में जन्म हुआ था श्रीनिवास रामानुजन का। पिता श्रीनिवास आयंगर कपड़े की फैक्ट्री में क्लर्क थे। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए वे सपरिवार कुंभकोणम शहर आ गए। हाईस्कूल तक रामानुजन सभी विषयों में अच्छे थे। पर गणित उनके लिए एक स्पेशल प्रोजेक्ट की तरह था, जो धीरे-धीरे जुनून की शक्ल ले रहा था। सामान्य से दिखने वाले इस स्टूडेंट को दूसरे विषयों की क्लास बोरिंग लगती। वे जीव विज्ञान और सामाजिक विज्ञान की क्लास में भी गणित के सवाल हल करते रहते।
छिन गई स्कॉलरशिप
चमकती आंखों वाले छात्र रामानुजन को अटपटे सवाल पूछने की आदत थी। जैसे विश्व का पहला पुरुष कौन था? पृथ्वी और बादलों के बीच की दूरी कितनी होती है? बेसिर-पैर के लगने वाले सवाल पूछने वाले रामानुजन शरारती बिल्कुल भी नहीं थे। वह सबसे अच्छा व्यवहार करते थे, इसलिए स्कूल में काफी लोकप्रिय भी थे। दसवीं तक स्कूल में अच्छा परफॉर्म करने की वजह से उन्हें स्कॉलरशिप तो मिली, लेकिन अगले ही साल उसे वापस ले लिया गया। कारण यह था कि गणित के अलावा वे बाकी सभी विषयों की अनदेखी करने लगे थे। फेल होने के बाद स्कूल की पढ़ाई रुक गई।
कम नहीं हुआ हौसला
अब पढ़ाई जारी रखने का एक ही रास्ता था। वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे। इससे उन्हें पांच रुपये महीने में मिल जाते थे। पर गणित का जुनून मुश्किलें बढ़ा रहा था। कुछ समय बाद दोबारा बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी, लेकिन वे एक बार फिर फेल हो गए। देश भी गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा था और उनके जीवन में भी निराशा थी। ऐसे में दो चीजें हमेशा रहीं-पहला ईश्वर पर अटूट विश्वास और दूसरा गणित का जुनून।
नौकरी की जद्दोजहद
शादी के बाद परिवार का खर्च चलाने के लिए वे नौकरी की तलाश में जुट गए। पर बारहवीं फेल होने की वजह से उन्हें नौकरी नहीं मिली। उनका स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा था। बीमार हालात में जब भी किसी से मिलते थे, तो उसे अपना एक रजिस्टर दिखाते। इस रजिस्टर में उनके द्वारा गणित में किए गए सारे कार्य होते थे। किसी के कहने पर रामानुजन श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले। अय्यर गणित के बहुत बड़े विद्वान थे। यहां पर श्री अय्यर ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और उनके लिए 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध भी कर दिया। मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में भी क्लर्क की नौकरी भी मिल गई। यहां काम का बोझ ज्यादा न होने के कारण उन्हें गणित के लिए भी समय मिल जाता था।
बोलता था जुनून
रात भर जागकर वे गणित के नए-नए सूत्र तैयार करते थे। शोधों को स्लेट पर लिखते थे। रात को स्लेट पर चॉक घिसने की आवाज के कारण परिवार के अन्य सदस्यों की नींद चौपट हो जाती, पर आधी रात को सोते से जागकर स्लेट पर गणित के सूत्र लिखने का सिलसिला रुकने के बजाय और तेज होता गया। इसी दौरान वे इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी के गणितज्ञों संपर्क में आए और एक गणितज्ञ के रूप में उन्हें पहचान मिलने लगी।
सौ में से सौ अंक
ज्यादातर गणितज्ञ उनके सूत्रों से चकित तो थे, लेकिन वे उन्हें समझ नहीं पाते थे। पर तत्कालीन विश्वप्रसिद्ध गणितज्ञ जी. एच. हार्डी ने जैसे ही रामानुजन के कार्य को देखा, वे तुरंत उनकी प्रतिभा पहचान गए। यहां से रामानुजन के जीवन में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। हार्डी ने उस समय के विभिन्न प्रतिभाशाली व्यक्तियों को 100 के पैमाने पर आंका था। अधिकांश गणितज्ञों को उन्होने 100 में 35 अंक दिए और कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को 60 अंक दिए। लेकिन उन्होंने रामानुजन को 100 में पूरे 100 अंक दिए थे।
उन्होंने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया। प्रोफेसर हार्डी के प्रयासों से रामानुजन को कैंब्रिज जाने के लिए आर्थिक सहायता भी मिल गई। अपने एक विशेष शोध के कारण उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि भी मिली, लेकिन वहां की जलवायु और रहन-सहन में वे ढल नहीं पाए। उनका स्वास्थ्य और खराब हो गया।
अंतिम सांस तक गणित
उनकी प्रसिद्घि बढ़ने लगी थी। उन्हें रॉयल सोसायटी का फेलो नामित किया गया। ऐसे समय में जब भारत गुलामी में जी रहा था, तब एक अश्वेत व्यक्ति को रॉयल सोसायटी की सदस्यता मिलना बहुत बड़ी बात थी। और तो और, रॉयल सोसायटी के पूरे इतिहास में इनसे कम आयु का कोई सदस्य आज तक नहीं हुआ है। रॉयल सोसायटी की सदस्यता के बाद वह ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने।
करना बहुत कुछ था, लेकिन स्वास्थ्य ने साथ देने से इनकार कर दिया। डॉक्टरों की सलाह पर भारत लौटे। बीमार हालात में ही उच्चस्तरीय शोध-पत्र लिखा। मौत की घड़ी की टिकटिकी तेज होती गई। और वह घड़ी भी आ गई, जब 26 अप्रैल, 1920 की सुबह हमेशा के लिए सो गए और शामिल हो गए गौस, यूलर, जैकोबी जैसे सर्वकालीन महानतम गणितज्ञों की पंक्ति में। 
आज महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की ९३ वीं पुण्यतिथि के अवसर पर पूरे हिन्दी ब्लॉग जगत और पूरी बुलेटिन टीम की ओर से हम उन को शत शत नमन करते है ! 
सादर आपका 
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Caricature: Children Park - चिल्ड्रन पार्क


Aina Sidd at Aina - ऐना

Children playing in the park. मेरा बनाया यह कैरिकेचर आपको कैसा लगा?  

शमशाद बेगम  1919-2013 : कैसा रहा हिंदी फिल्म संगीत में उनका सफ़र ?

शमशाद बेगम ये नाम आज का संगीत सुनने वालों के लिए अनजाना ही है। जाना हुआ हो भी तो कैसे ? आजकल पुराने गानों का मतलब साठ और सत्तर के दशक के गीतों से रह गया है। हद से हद पचास के दशक के गीत आप विविध भारती सरीखे सरकारी चैनलों पर सुन पाते हैं। पर जो गायिका चालिस और पचास के दशक में अपने कैरियर के सर्वोच्च शिखर पर हो उसके गीतों की झंकार आज कहाँ सुनाई देगी? अगर पिछले दशक में शमशाद बेगम का जिक़्र आया भी (अगर ये विषय आपकी पसंद का है तो पूरा लेख पढ़ने के लिए आप लेख के शीर्षक की लिंक पर क्लिक कर पूरा लेख पढ़ सकते हैं। लेख आपको कैसा लगा इस बारे में अपनी प्रतिक्रिया आप जवाबी ई मेल या वेब साइट पर जाक... more »

सपने में दिखी जगह पर पहुँच गए अचानक

बी एस पाबला at ज़िंदगी के मेले
दशकों से साथ रहे मेरे एक मित्र अक्सर कहते हैं कि दुनिया में जो अनोखा होता है तेरे साथ ही होता है. और कई बातों को उनहोंने सामने रख कर अपने कथन को सही साबित किया. ऐसा ही कुछ इस बार भी हुया. पिछले सप्ताह पुणे में रह रही बिटिया ने फोन पर संपर्क कर [...] The post सपने में दिखी जगह पर पहुँच गए अचानक appeared first on ज़िंदगी के मेले.

घुटन के गुब्बारे

venus****"ज़ोया" at चाँद की सहेली****
*कस के हाथ कानों पे रखे थे मैंने * *फिर भी यूँ लग रहा था मानो * *शोर दिमाग की नसें चीर डालेगा * *घुटन के गुब्बारे उफन उफन के * *छत से टकराते और लौट आते * *सारा कमरा भर गया गुब्बारो से * *दबाव तेज़ी से बढ़ रहा था उनमे * *और बढ़ता जा रहा था उनका आकार भी* *देखते ही देखते संख्या भी बढने लगी * *और बढ़ता जा रहा था उनके टकराने से * *उत्पन होता शोर भी !* * * *और फिर एक धमाका - "बुम्म्ब " * *जहाँ तहां बिखर गये गुब्बारों के चीथड़े * *इक गर्म सा टुकड़ा आँख पे आ गिरा* *आह ! और नींद से जाग उठी * * * *जाने मैं सपने में थी के * *सपने में वास्तविकता थी !* * * *दबाव इतना बढ़ गया गुब्बारों में की स... more »

आदम से आजम तक

शिवम् मिश्रा at पोलिटिकल जोक्स - Political Jokes
*"निकलना ख़ुल्द से 'आदम' का सुनते आये थे लेकिन ; * * * *बड़े बेआबरू हो कर अमरीकी हवाई अड्डे से 'आजम' निकले !!"*

मुझको भी तुम औरत कर दो...

मेरे कानों में बाँध दो झनकते सन्नाटे... मेरे होंठों पे सुर्ख लाल सी चीखें रख दो... मेरे माथे पे गोल चोट दो, कि खून रिसे... मेरे हाथों मे गोल खनखनाती हथकड़ियाँ... मेरे सूखे हुए अश्कों में अंधेरा घोलो... सज़ा दो उसको मेरी आँख पे काजल की तरह... गले में बाँध दो मजबूरियों का साँप कोई... मेरी चोटी में अपनी काली हसरतें भर दो... अपनी आँखों की पुतलियों को तुम बड़ा करके... उन्हे जोड़ो, मेरे सीने से बाँध दो उनको.... मेरी कमर पे अपनी आँख की हवस बांधो.... हो मेरी उंगलियों में आग का छल्ला कोई... मेरे पैरों में चमचमाती बेड़ियाँ बांधो... उनमें खामोशियों के सुन्न से घुंघरू भी हों... तुमने मर्दानगी... more »

अब बस बहुत हो चुका ....

अभी लोग दामिनी कांड को भूले भी नहीं थे कि एक और शर्मनाक वाक्या हो गया (गुड़िया)। ना जाने क्या हो गया है दिल्ली वालों को, बल्कि अकेली दिल्ली ही क्यूँ, हमारे समाज में ऐसे अपराधों की वृद्धि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही जा रही है। फिर क्या दिल्ली, क्या मुंबई और क्या बिहार, इस कदर संवेदन हीन हो गया है इंसान कि उसकी सोचने समझने शक्ति जैसे नष्ट ही हो गयी है। शर्म आनी चाहिए इस पुरुष प्रधान देश के पुरुषों को जो इस कदर गिर गए हैं कि एक पाँच साल की मासूम बच्ची तक को नहीं बख़्शा गया। हालांकी ऐसा पहली बार नहीं हुआ है पहले भी इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं। खास कर दामिनी कांड के  more »

मैं शर्मिंदा हूँ !

हाँ मैं शर्मिंदा हूँ ! क्योंकि मैं पुरुष हूँ, क्योंकि मैं भारतीय हूँ हाँ मैं शर्मिंदा हूँ ! क्योंकि मैं निवासी हूँ उस शहर का जहां महफूज नहीं है, "मासूम बच्ची" भी हाँ मैं शर्मिंदा हूँ ! क्योंकि पहले मैं शान से अपने बिहारी होने पर करता था गर्व क्योंकि ये भूमि सीता-बुद्ध-महावीर-गुरु गोविंद की भूमि थी बेशक लचर शासन व्यवस्था/ साक्षरता ने हमारे बिहार को बना दिया सबसे गरीब पर हम बिहारी कभी दिल से गरीब नहीं रहे पर, आज ये भूमि खूंखार बलात्कारियों की जन्मभूमि कहला रही है हाँ मैं शर्मिंदा हूँ ! (ये बात दिल को लगती है, और बुरी भी है... जो बिहार आज भी सबसे ज्यादा प्रशासनिक अधि... more »

door koi gaye.. shamshad begum- lata- mohmmad rafi -shakeel badayuni- na...

Movie : Baiju Baawraa (1952), Singers : Lata M angeshkar, Shamshad Begam, Mohammad Rafi, Lyricist : Shakeel Badayuni, Music Director : Naushad, सदाबहार शमशाद बेगम हमें अलविदा कह जन्नतनसीब हो गयीं लेकिन उनके गाये बेहद खूबसूरत गीत हमेशा उनकी याद बन कर हमारी सुबह शामों को खुशनुमां बनाते रहेंगे ! उन्हीं के गाये इस मधुर गीत से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित है ! साधना वैद

पेंसिल से ऐसे खुद करें अपने रोगों का इलाज

पेंसिल से संभव है दर्द का इलाज जी हां हमारे हथेली में शरीर के हर अंग के लिए एक पाइंट होता है। हथेली के इन पाइन्ट्स में जो पाइन्ट जिस अंग के लिए होता है उसे दबाने पर वहां का दर्द खत्म हो जाता है। उदाहरण के लिए अगर किसी के सिर में दर्द है तो हथेली पर उपस्थित सिरदर्द के पाइंट को दबाने पर दर्द कम होने लगता है। पेंसिल थेरेपी शारीरिक दर्द और टेंशन को मिटाने की एक आसान पद्धति है। इस थेरेपी से एक्यूपे्रशर,एक्यूकपंचर, सु-जोक, रेफ़्लेक्सोलोजी, इत्यादि के लाभ मिलते हैं लेकिन इसे सीखना और करना बहुत सरल है। जिनके शरीर में दर्द या तनाव हो उन्हें यह थेरेपी करते समय अपनी उंगली पर दर्द का अनुभव हो... more »

गुड़िया भीतर गुड़ियाएं

varsha at likh dala
हम सब गुस्से में हैं। हमारीसंवेदनाओं को एक  बार फिरबिजली के नंगे तारों ने छू दिया है।हम खूब बोल रहे हैं, लिख रहे हैंलेकिन  कोई नहीं बोल रहा है तोवो सरका र और कानून व्यवस्था  के लिए  ज़िम्मेदार लोग। खूबबोल-लिख कर  भी लग रहा है किक्या यह काफी है ? कोई हल है हमारे पास कि  बच्चोंका  यौन शोषण न हो और बेटियोंके  साथ बलात्कार का  सिलसिलारुक जाए। ऐसी जादू की  छड़ी किसी कानून के पास नहीं लेकिन कानून
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

14 टिप्‍पणियां:

  1. thoda bahut to Ramanujan ko hamne bhi padha tha, aaj vistrit jaankari padh kar achchha laga..
    naman!!
    link to achchhe hote hi hain.. aur fir khud ka link dekh kar kisko na achchha lage :D

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  2. ये बिडम्बना है कि ज्यादातर भारतीय प्रतिभा को हम पहचानने में और उसे उसकी जगह देने में नाकाम रहे हैं. उसे पहचाना किसी विदेशी ने और फिर वहीँ वह पनपा भी.
    काश हमें अपने विद्द्वानो की इज्जत करनी आती.
    सार्थक बुलेटिन
    लिनक्स भी देखते हैं.

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  3. बहुत बढ़िया बुलेटिन शिवम् ...
    रामानुजम जी को नमन....हमारा विशेष नमन क्यूंकि गणित हमारी पहुँच के बाहर की चीज़ है.
    :-)
    लिंक्स भी अच्छे हैं
    अनु

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  4. श्रीनिवास रामानुजन जी को नमन एवँ श्रद्धांजलि ! उन्होंने गणित के क्षेत्र में विलक्षण ख्याति अर्जित की इसके लिये उनका अभिनन्दन ! तराने सुहाने से शमशाद बेगम के गीत का आपने चयन किया और अपने बुलेटिन में शामिल किया उसके लिये भी हृदय से आपका धन्यवाद एवँ आभार !

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  5. श्रीनिवास रामानुजन जी को नमन एवँ श्रद्धांजलि ..aur aapkaa bahut bahut dhanywaad.........गणित के जादूगर ko shraadhnjli dene ke liye....and agre ee wid Anu...ganit mere bhi pahunch ke baahr ki cheez he


    meri rchnaa ko...shaamil krne ke liye...bahut bahut aabhaar.....

    bahut bdhiyaa बुलेटिन ....achee links diye hain aapne.......

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  6. गणित के जादूगर
    श्रीनिवास रामानुजन को
    शत शत नमन
    उत्कृष्ट संग्रह

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  7. गणित के जादूगर को शत शत नमन ………बढिया बुलेटिन

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  8. बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने शिवम भाई... बेहतरीन बुलेटिन...

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  9. रामानुजन जी के बारे में आपके द्वारा संजोयी जानकारी अच्छी लगी।

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