प्रिये ब्लॉगर मित्रों
प्रस्तुत है आज की बुलेटिन ताज़ा लिखी एक हास्य कविता के साथ
दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में
लूटेरे हर जगह फिरते मुंडेरों पे, शाख़ो पे
बना कर भेस अपनों सा लपकते हैं लाखों पे
न लो रिस्क तुम बच के ही रहना दरिंदो से
दिखने में कबूतर हैं ये गिद्ध रुपी परिंदों से
भूलकर भी मत सुखाना अस्मत को तार पर
मंडराते फिरते है रक्तपिपासु वैम्पायर रातभर
इज़्ज़त तार कर देंगे तार पर देख अस्मत को
वापस फिर न आती लौट कर गई शुचिता जो
संभालो पवित्रता अपनी खुद अब दोनों हाथों से
खत्म कर दो हैवानो को जीवन की बारातों से
चलाओ बत्तीस बोर कर दो छेद इतने तुम इनमें
मरें जाके नाले में इंसानियत बची नहीं जिनमें
दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में
आज की कड़ियाँ
उम्मीद है आपको बुलेटिन पसंद आएगा | आभार |
तुषार राज रस्तोगी
जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू | जय श्री राम
बहुत ही सुन्दर सूत्र..
जवाब देंहटाएंkya bat hai waaah
जवाब देंहटाएंor shi likhkha
sundar links ..shamil karne ke liye abhar..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हास्य कविता आभार .
जवाब देंहटाएंसही है तुषार भैया ... डरना भी जरूरी है ... ;)
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन !
shukriya tushar ji...meri rachna ko shamil karne ke liye bahut bahut dhanywaad :)
जवाब देंहटाएंVery nicely written.
जवाब देंहटाएंVinnie
bahoot hi sundar links tushar ji, aur meri rachana ko sthan dene ke liye aapaka abhar.
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