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गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

डर लगता है

प्रिये ब्लॉगर मित्रों 
प्रस्तुत है आज की बुलेटिन ताज़ा लिखी एक हास्य कविता के साथ 


दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में

लूटेरे हर जगह फिरते मुंडेरों पे, शाख़ो पे
बना कर भेस अपनों सा लपकते हैं लाखों पे

न लो रिस्क तुम बच के ही रहना दरिंदो से
दिखने में कबूतर हैं ये गिद्ध रुपी परिंदों से

भूलकर भी मत सुखाना अस्मत को तार पर
मंडराते फिरते है रक्तपिपासु वैम्पायर रातभर

इज़्ज़त तार कर देंगे तार पर देख अस्मत को
वापस फिर न आती लौट कर गई शुचिता जो

संभालो पवित्रता अपनी खुद अब दोनों हाथों से
खत्म कर दो हैवानो को जीवन की बारातों से

चलाओ बत्तीस बोर कर दो छेद इतने तुम इनमें
मरें जाके नाले में इंसानियत बची नहीं जिनमें

दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में

आज की कड़ियाँ












उम्मीद है आपको बुलेटिन पसंद आएगा | आभार |
तुषार राज रस्तोगी 

जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू  | जय श्री राम 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी हास्य कविता आभार .

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  2. सही है तुषार भैया ... डरना भी जरूरी है ... ;)

    बढ़िया बुलेटिन !

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  3. shukriya tushar ji...meri rachna ko shamil karne ke liye bahut bahut dhanywaad :)

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  4. bahoot hi sundar links tushar ji, aur meri rachana ko sthan dene ke liye aapaka abhar.

    जवाब देंहटाएं

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