आज की ब्लॉग बुलेटिन श्री गिरिजेश राव जी के सहयोग से लगाई जा रही है | आज फेसबुक पर देखा गया कि वहाँ गिरिजेश जी अपने ही अंदाज़ मे एक ब्लॉग चर्चा सी कर रहे है ... सब को उनका अंदाज़ बेहद
पसंद आया और हम ने हाल इस बुलेटिन का आइडिया उनके सामने रखा जिस को उन्होने मंजूर कर लिया और अब उन से अनुमति ले कर हम उनके वो स्टेटस यहाँ कॉपी कर रहे है जिन
मे उन्होने अपने पसंदीदा ब्लोग्स का उल्लेख किया है !
इस बुलेटिन को भी हम अपनी लोकप्रिय श्रृंखला "मेहमान रिपोर्टर" के अंतर्गत ही शामिल कर रहे है !
तो साहब पेश ए खिदमत है ... एक फेसबुकिया ब्लॉग चर्चा ...
सब से पहले कुछ बातें साफ साफ बता दी जाएँ तो अच्छा रहे :-
हिन्दी
ब्लॉगरी के दस वर्ष पूरे होने वाले हैं। अपनी पसन्द के लेख शेयर करता
रहूँगा- दशकोत्सव की अपनी विधि! इसमें कोई 'राजनैतिक या गुटीय' मंतव्य न
ढूँढ़े जायँ, प्लीज! ;)
अब चर्चा शुरू करते है :-
एक
युग में हिन्दी ब्लॉगरी में तीन जन प्रथम प्लेट-फॉर्म पर होते थे (युग
माने वैदिक युग - 5 वर्ष)। ये थे - चचा यानि ज्ञानदत्त पांडेय, लाला यानि
समीर लाल और खुरपेंची फुरसतिया यानि अनूप शुक्ल। इन तीनों की समय समय पर
खिंचाई फिंचाई के सफल/असफल प्रयत्न मिसिर यानि डा. अरविन्द मिश्र 'बड़के
भइया चिरयुवा' किया करते थे।
एक सिंह नामधारी 'स्त्री सॉरी नारी' वाद का झंडा उठाये सबकी क्लास लेती थीं/पंगे लिया करती थीं। माहौल एकदम गोबर पट्टी(नाम सौजन्य - शायद चचा) यानि हिन्दी बेल्ट जैसा ही होता था। छुटभैये और शरीफ/लंठ टाइप के ब्लॉगर जब तब इन पाँचों की पॉलिटिक्स में फँस जाया करते थे। ये पाँचो आज भी सक्रिय हैं, बस सम्बन्धों में उस प्राचीन ऊष्मा का अभाव सा दिखता है। इनके ईश्वर फिस्वर इन्हें ऐसे ही सक्रिय रखें।
इनके ब्लॉग हैं (क्रम से श्रेष्ठता के अनुमान लगा मुझे कटघरे में न खड़ा करें, ये सब ऐसे वैसे ही हैं):
- लाला उड़न तश्तरी http://udantashtari.blogspot.in/
- चचा की मानसिक हलचल http://halchal.org/
- खुरपेंची की हिन्दिनी hindini.com/fursatiya/
- मिसिर का 'काम' क्वचिदन्यतोsपि http://mishraarvind.blogspot.in/
पाँचवी का लिंक नहीं दे रहा, कोर्ट कचहरी से डरता हूँ।
एक सिंह नामधारी 'स्त्री सॉरी नारी' वाद का झंडा उठाये सबकी क्लास लेती थीं/पंगे लिया करती थीं। माहौल एकदम गोबर पट्टी(नाम सौजन्य - शायद चचा) यानि हिन्दी बेल्ट जैसा ही होता था। छुटभैये और शरीफ/लंठ टाइप के ब्लॉगर जब तब इन पाँचों की पॉलिटिक्स में फँस जाया करते थे। ये पाँचो आज भी सक्रिय हैं, बस सम्बन्धों में उस प्राचीन ऊष्मा का अभाव सा दिखता है। इनके ईश्वर फिस्वर इन्हें ऐसे ही सक्रिय रखें।
इनके ब्लॉग हैं (क्रम से श्रेष्ठता के अनुमान लगा मुझे कटघरे में न खड़ा करें, ये सब ऐसे वैसे ही हैं):
- लाला उड़न तश्तरी http://udantashtari.blogspot.in/
- चचा की मानसिक हलचल http://halchal.org/
- खुरपेंची की हिन्दिनी hindini.com/fursatiya/
- मिसिर का 'काम' क्वचिदन्यतोsपि http://mishraarvind.blogspot.in/
पाँचवी का लिंक नहीं दे रहा, कोर्ट कचहरी से डरता हूँ।
एकदम
सज्जन सुजान और थोड़े, जरा जरा से परेशान कोटि के अनासक्त हिन्दी ब्लॉगर
हैं अनुराग शर्मा। गणित और विज्ञान के अतिरिक्त सभी विषयों पर एकदम टंच
शुद्ध प्रमाणिक और जरा हट के लिखते हैं।
हम जैसों की बहक को हाँक कर सही रस्ते ले आते हैं। इनका पैना कभी कभी समझ में नहीं आता लेकिन चूँकि ये किसी का बुरा सोच भी नहीं सकते इसलिये आँखें मूँद चल देने में कोई नसकान नहीं!
इनका ब्लॉग है:
http://pittpat.blogspot.in/
हम जैसों की बहक को हाँक कर सही रस्ते ले आते हैं। इनका पैना कभी कभी समझ में नहीं आता लेकिन चूँकि ये किसी का बुरा सोच भी नहीं सकते इसलिये आँखें मूँद चल देने में कोई नसकान नहीं!
इनका ब्लॉग है:
http://pittpat.blogspot.in/
एक
ब्लॉगर हैं सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी। आजकल मन्द पड़ गये हैं लेकिन प्रयाग
की धरती पर हिन्दी ब्लॉगरों का महाकुम्भ इन्हीं के कारण सम्भव हुआ। भारी
जुटान हुई। फुरसतिया ने कमान सँभाली, इस कारण सहज प्राकृतिक ढंग से बड़के
भइया कोहनाये। विवेक कुमार, रवि रतलामी, अजित वडनेरकर आदि आदि सभी जुटे।
हमहूँ पहुँचे, हिमांशु पाँड़े भी।
सुनने में आया कि भेष बदल कर अब स्वर्गीय अमर कुमार जी भी गये रहेन। नामी गिरामी आलूचना वाले नामवर सिंह ने ओद्घाटन किया और आदत के मुताबिक ही शब्द उच्चाट�न किया। माहौल गरम हुआ।
आजकल फेसबुक पर अगिया बैताली पढ़ने वाली मनीषा पाँड़े को हिमांशु पाँड़े का 'रामचन्द्रशुक्लपन' रास नहीं आया। सबने अपने अपने तरीके से इंजॉय किया। अपनी विशिष्ट शैली में नारी सिंहिनी ने बिना आये ही कोश्चन और ऑबजेक्शन भी उठाये... कुल मिला कर सफल आयोजन रहा। हम उस समय ब्लॉगरी सीख रहे थे (अब लगता है कि हम ब्लॉगर नहीं, बस उस प्लेटफार्म को यूजते हैं)। तो हमने लिखा - इलाहाबाद से 'इ' ग़ायब। पढ़िये हमारी रपट:
http://girijeshrao.blogspot.in/2009/10/blog-post_27.html
सुनने में आया कि भेष बदल कर अब स्वर्गीय अमर कुमार जी भी गये रहेन। नामी गिरामी आलूचना वाले नामवर सिंह ने ओद्घाटन किया और आदत के मुताबिक ही शब्द उच्चाट�न किया। माहौल गरम हुआ।
आजकल फेसबुक पर अगिया बैताली पढ़ने वाली मनीषा पाँड़े को हिमांशु पाँड़े का 'रामचन्द्रशुक्लपन' रास नहीं आया। सबने अपने अपने तरीके से इंजॉय किया। अपनी विशिष्ट शैली में नारी सिंहिनी ने बिना आये ही कोश्चन और ऑबजेक्शन भी उठाये... कुल मिला कर सफल आयोजन रहा। हम उस समय ब्लॉगरी सीख रहे थे (अब लगता है कि हम ब्लॉगर नहीं, बस उस प्लेटफार्म को यूजते हैं)। तो हमने लिखा - इलाहाबाद से 'इ' ग़ायब। पढ़िये हमारी रपट:
http://girijeshrao.blogspot.in/2009/10/blog-post_27.html
अपने
को शिल्पी घोषित कर के आये मूँछों वाले ब्लॉगर ललित शर्मा। 36 गढ़ के
हस्ताक्षर ब्लॉगर, वही 36 गढ़ जिसके बलॉगरों को देख 36 ग़ुण गढ़ने को मन करता
था (अब सब भूल गवा है)। गुणवत्ता इनकी USP है। अपने प्रांत के पुरातात्विक
स्थलों के बारे में चलते फिरते कोश कहे जा सकते हैं। कभी कभी बउरा भी जाते
हैं। इनका मेन ब्लॉग यह है (बकिया 35 यदि हों तो भी अपने को पता नहीं ;))
http://lalitdotcom.blogspot.in/
http://lalitdotcom.blogspot.in/
वामपंथी
विचारधारा के बिलागर हैं वकील साहब यानि दिनेशराय द्विवेदी। एक तो वकील और
दूजे वामपंथी, समझ सकते हैं आप सब! इनका उत्तम कोटि का विधि विषयक ब्लॉग
तीसरा खम्भा लोकप्रिय है।
http://www.teesarakhamba.com/
http://www.teesarakhamba.com/
हिन्दी
ब्लॉगरी का सबसे सार्थक उपयोग किया लखटकिया इनामी अजित वडनेरकर ने।
'शब्दों का सफर' ब्लॉग अंतत: पुस्तक रूप में आ कर अति प्रशंसित हुआ। इसमें
तमाम बिखरी मति वाले हिन्दी ब्लॉगरों का योगदान कम नहीं है। 1000+ फॉलोवर
की संख्या वाला इनका ब्लॉग उत्कृष्टता का पर्याय है। झुकान इनकी भी बाईं
बगल है लेकिन समझ में आ जाती है, इसलिये कोई बात नहीं ;) ये हम सबके भाऊ
हैं।
http://shabdavali.blogspot.in/
http://shabdavali.blogspot.in/
सांगीतिक
अभिरुचि वाले समझदार हिन्दुत्त्व वादी ब्लॉगर हैं - सुरेश चिपलूनकर।
राजवंश के पाड़ातंत्र की ऐसी तैसी इनके जैसी कोई और नहीं कर सकता। आप इनसे
चिढ़ सकते हैं, गरिया सकते हैं लेकिन बात को नकार नहीं सकते। कभी कभी
लाउडनेस तारसप्तकों के पार चली जाती है तो
मस्तिष्क अवश्य भन्नाता है। ऐसे में मैं सोचता हूँ कि अजित वडनेरकर, सुरेश
चिपलूनकर और अर्णब गोस्वामी(हिन्दी ब्लॉगर नहीं हैं, इसलिये निष्पक्ष
होंगे ;)) को एक साथ बैठा कर गोष्ठी की जाय तो कैसा हो? (पता नहीं, जो हो
सो हो)।
चिपलूनकर का रहना संतुलन और प्रतिरोध के लिये आवश्यक है वरना वैचारिक धूर्तता के साथ की गयी बारीक बकवासें और हरकतें ऐसे ही पास हो जायँ!
blog.sureshchiplunkar.com/
चिपलूनकर का रहना संतुलन और प्रतिरोध के लिये आवश्यक है वरना वैचारिक धूर्तता के साथ की गयी बारीक बकवासें और हरकतें ऐसे ही पास हो जायँ!
blog.sureshchiplunkar.com/
हिन्दी
के व्यंग्यबाज हैं कृष्ण मोहन मिश्र। सुदर्शन नाम से व्यंग्य चक्र घुमाते
हैं। एकाध साल से ब्लॉग से लापता हैं लेकिन 'रामायण बैठी है', 'जोखू सिंह
का प्रेमपत्र', 'खूबसूरत कामवालियाँ', 'मुशर्रफ फरार', 'मान गया पाकिस्तान'
आदि विविध विषयों पर अलग ऐंगल से केवल
यही लिख सकते हैं। रूप से भी सुदर्शन हैं और राग दरबारी पर बनने वाले
हिन्दी सीरियल में जो कि कुछ� एपीसोडों के बाद बन्द हो गया, इनकी भी एक
भूमिका थी।
http://kmmishra.wordpress.com/
http://kmmishra.wordpress.com/
गँवई
पंचम सुर वाले सतीश यादो का ब्लॉग सफेद घर खास पसन्द वालों में मकबूल है।
गोबर पट्टी का सीधा साधा किंचित कंफ्यूज सा देहाती मनई बम्मई जैसे महानगर
में एक ओर तो मेट्रोपन में अपने को साधे हुये है तो दूसरी ओर मराठी मानुषों
की मित्रता को ;) प्रेक्षण की जहीनी और अभिव्यक्ति के नयेपन का संयोग देखना हो तो इस ब्लॉग पर जायें। हाँ, कभी कभी भदेसपन से साक्षात होना पड़ सकता है।
'लत्ताबीनवा' जैसी मानसिक व्याधि पर भी ये कलम घिस देते हैं। जीभ के धनी हैं, अपना परिचय यूँ देते हैं:
अच्छा लगता है मुझे,
कच्चे आम के टिकोरों से नमक लगाकर खाना,
ककडी-खीरे की नरम बतीया कचर-कचर चबाना।
इलाहाबादी खरबूजे की भीनी-भीनी खुशबू ,
उन पर पडे हरे फांक की ललचाती लकीरें।
अच्छा लगता है मुझे।
आम का पना,
बौराये आम के पेडो से आती अमराई खूशबू के झोंके,
मटर के खेतों से आती छीमीयाही महक ,
अभी-अभी उपलों की आग में से निकले,
चुचके भूने आलूओं को छीलकर
हरी मिर्च और नमक की बुकनी लगाकर खाना,
अच्छा लगता है मुझे
केले को लपेट कर रोटी संग खाना,
या फिर गुड से रोटी चबाना।
भुट्टे पर नमक- नींबू रगड कर,
राह चलते यूँ ही कूचते-चबाना।
अच्छा लगता है मुझे।
लोग तो कहते हैं कि किसी को जानना हो अगर
उसके खाने की आदतों को देखो,
पर अफसोस...
मायानगरी ने मेरी सारी आदतें
'शौक-ए-लज़्ज़त' में बदल डाली हैं।
http://safedghar.blogspot.in/
'लत्ताबीनवा' जैसी मानसिक व्याधि पर भी ये कलम घिस देते हैं। जीभ के धनी हैं, अपना परिचय यूँ देते हैं:
अच्छा लगता है मुझे,
कच्चे आम के टिकोरों से नमक लगाकर खाना,
ककडी-खीरे की नरम बतीया कचर-कचर चबाना।
इलाहाबादी खरबूजे की भीनी-भीनी खुशबू ,
उन पर पडे हरे फांक की ललचाती लकीरें।
अच्छा लगता है मुझे।
आम का पना,
बौराये आम के पेडो से आती अमराई खूशबू के झोंके,
मटर के खेतों से आती छीमीयाही महक ,
अभी-अभी उपलों की आग में से निकले,
चुचके भूने आलूओं को छीलकर
हरी मिर्च और नमक की बुकनी लगाकर खाना,
अच्छा लगता है मुझे
केले को लपेट कर रोटी संग खाना,
या फिर गुड से रोटी चबाना।
भुट्टे पर नमक- नींबू रगड कर,
राह चलते यूँ ही कूचते-चबाना।
अच्छा लगता है मुझे।
लोग तो कहते हैं कि किसी को जानना हो अगर
उसके खाने की आदतों को देखो,
पर अफसोस...
मायानगरी ने मेरी सारी आदतें
'शौक-ए-लज़्ज़त' में बदल डाली हैं।
http://safedghar.blogspot.in/
कोलकाता
की खुदाई में मिली थी दुरजोधन की डायरी। गुप चुप खजाने की खोज कर रहे थे
ब्लॉगर शिव बाबू (हैं तो ये भी मिसिर लेकिन बड़के वजनी मिसिर से इनकी तनी
रहती है) और पा गये डायरी!
चचा ने छुप के देख लिया तो यह एग्रीमेंट भया कि डायरी छापेंगे शिव बाबू लेकिन चचा का भी नाम जुड़ान रहेगा। चचा की इस हरकत से सभी मन ही मन खफा रहते हैं लेकिन महारथी से पंगा कोई क्यों ले!
ट्विटर पर खासे सक्रिय हैं। इनके ब्लॉग का यह पोता है:
http://shiv-gyan.blogspot.in/
चचा ने छुप के देख लिया तो यह एग्रीमेंट भया कि डायरी छापेंगे शिव बाबू लेकिन चचा का भी नाम जुड़ान रहेगा। चचा की इस हरकत से सभी मन ही मन खफा रहते हैं लेकिन महारथी से पंगा कोई क्यों ले!
ट्विटर पर खासे सक्रिय हैं। इनके ब्लॉग का यह पोता है:
http://shiv-gyan.blogspot.in/
प्रेमगली
में भटकती हैं हरकीरत 'हीर'। प्रेम ऐसा मामला है जिसके विशेषज्ञ फेसबुक पर
भरे पड़े हैं इसलिये इन्हें पढ़ना ही ठीक, कहना सुनना नहीं ठीक। प्रीतम और
गुलजारी एक लिमिट के बाद अपन से पार हो जाते हैं इसलिये भी मौन। हाँ, इस
ब्लॉग को पढ़िये अवश्य!
http://harkirathaqeer.blogspot.in/
http://harkirathaqeer.blogspot.in/
हिन्दी
में ब्लॉग लिख'वा'ते हैं अभिनेता मनोज बाजपेयी। पहली ही पोस्ट में आदत से
मजबूर हिन्दी ब्लॉगरों ने इनकी क्लास ले ली थी। देखिये!
http://manojbajpayee.itzmyblog.com/2008/08/blog-post_09.html
http://manojbajpayee.itzmyblog.com/2008/08/blog-post_09.html
हिन्दी
ब्लॉग जगत के सौहार्द्र की संविदा अभियंता सतीश सक्सेना के पास है। भावुक
कविहृदय हैं और नवगीतों/अगीतों के विपरीत गेय गीत रच देते हैं कभी कभी।
इनका ब्लॉग पठनीय है। मधुमेह के रोगी परहेज रखें।
http://satish-saxena.blogspot.in/
http://satish-saxena.blogspot.in/
उत्तम
स्वर के धनी रजनी ज़िन्दगी के पिछवाड़े पड़ी वस्तुओं में काव्य कांति की खोज
में रहते हैं। आजकल फेसबुक पर अधिक पाये जाते हैं। आचार्य रामपलटदास की
संगति जो न कराये!
इनकी कविताओं में शब्दों और लय के प्रवाह देखते बनते हैं! परिष्कृत अभिरुचि और गहरी समझ वाले जन के लिये ही इनकी कवितायें बनी हैं। फुरसत में पहली से लेकर अंत तक इनकी कवितायें पढ़ जाइये, अनुभूतियों का प्रसाद मिलेगा।
http://deehwara.blogspot.in/
इनकी कविताओं में शब्दों और लय के प्रवाह देखते बनते हैं! परिष्कृत अभिरुचि और गहरी समझ वाले जन के लिये ही इनकी कवितायें बनी हैं। फुरसत में पहली से लेकर अंत तक इनकी कवितायें पढ़ जाइये, अनुभूतियों का प्रसाद मिलेगा।
http://deehwara.blogspot.in/
हिमांशु
हिन्दी ब्लॉगरी के 'प्रसाद' हैं। पौराणिक विषयों पर नाटक, काव्य चर्चा,
भोजपुरी संस्कृति, गीतांजलि, देवी आराधना, सौन्दर्य लहरी आदि आदि विषयों पर
इनकी लेखनी क्या खूब चली है! कल भी शेयर किया था, आज भी कर रहा हूँ।
वृक्ष दोहद शृंखला को पढ़िये तो!
http://ramyantar.com/index.php/category/article-essays/vriksha-dohad/
http://ramyantar.com/index.php/category/article-essays/vriksha-dohad/
स्त्री
विमर्श में और अहम् की खोज में लगी हैं मुक्तिकामी डा. आराधना चतुर्वेदी।
प्रवाह में तड़प और छटपटाहट के छपाके दिख जाते हैं कभी कभी! शीत ऋतु के
कुहरे में बहती मैदान के पास की पहाड़ी नदी घनगर्जन पर छपकती है और बेपरवा
बहती जाती है।
इनका ब्लॉग है:
http://draradhana.wordpress.com/
इनका ब्लॉग है:
http://draradhana.wordpress.com/
एकदम
अलग हट के लिखते हैं संजय अनेजा। एकदम समर्पित नियमित फॉलोवर� हैं इनके।
भूत, वर्तमान और परिवेश की बातों को ज्वलंत सामयिक मुद्दों से जोड़ अद्भुत
सरल रोचल शैली में अंतर्दृष्टि के साथ प्रस्तुत करते हैं। पाठकों के साथ
टिप्पणियों में इनकी बातचीत हर पोस्ट में सोने में सुहागा जड़ देती है। ब्लॉग का नाम भी रखा है हट के - 'मो सम कौन कुटिल खल', बस 'कामी' से परहेज कर गये!
पढ़िए इन्हें। मेरा दावा है कि लत लग जायेगी - मुझे तो तेरी लत लग गई, लग गई!
http://mosamkaun.blogspot.in/
पढ़िए इन्हें। मेरा दावा है कि लत लग जायेगी - मुझे तो तेरी लत लग गई, लग गई!
http://mosamkaun.blogspot.in/
अभी फिलहाल यह यात्रा एक विराम पर है ... अरे भई आखिर इतनी लंबी यात्रा एक बार मे कैसे पूरी की जा सकती है और वैसे भी इन के ब्लॉग का नाम "एक आलसी का चिठ्ठा" ऐसे ही थोड़े न है ... ;-)
अगली पोस्ट तक इन के पास बैठो कि इनकी बकबक में नायाब बातें होती हैं, तफसील पूछोगे तो कह देंगे - "मुझे कुछ नहीं पता।"
सुन्दर बुलेटिन !!
जवाब देंहटाएंये काम अच्छा हो गया। वरना न्यूजफीड में लिंक ऊपर नीचे में छूट सकते हैं... यहां एक साथ होंगे तो सभी आराम से देख सकेंगे।
जवाब देंहटाएंफेसबुक की भागदौड़ की तुलना में यहां अधिक सहज है...
Aha ! kai yade taja ho gyi.....kai blogs ka shandar parichay hua
जवाब देंहटाएं.
sabhar
sunday buletin !
जवाब देंहटाएंmaza aa gya !
बढ़िया बुलेटिन..सहेजने योग्य ...रोचक अन्दाज में ...
जवाब देंहटाएंक्या बात है :-) नाम आलसी और ऊर्जा यह :-) मगर पहले कोई और बात! ब्लॉग बुलेटिन का नीला रंग देख कर अचानक यह क्यों कौंधा कि अमेरिकन उपभोक्ता सामग्रियों पर नीला रंग क्यों चढ़ा हुआ है -फेसबुक पर भी -क्या यह उस करामाती गोली का असर तो नहीं है जो बूढों में भी ऊर्जा भरने का दम रखती है :-)
जवाब देंहटाएंअब बात सनातन काल यात्री की -क्या बातें करूं -बड़ा बवाल मच जाएगा -इनसे मेरी बोलचाल कई महीनों,अगर साल नहीं तो बंद है -मुझसे छोटे हैं उम्र में-विद्वता में बीस है -मगर ब्राह्मण की विद्वता उम्र से आंकी जाती है और ये महराज हैं ठाकुर जी . तो हमसे उम्र के नाते विद्वता में भी कम हैं- मगर काम बड़ों बड़ों का करने की आदत है जिससे हम चिढ़े और इनको सावधान भी किया मगर इन्हें तो विश्वामित्र बनने की सनक चढी है -अब इनका पंगा तो देखिये इन्होने मुझे ..मुझे ब्लॉग जगत के कथित वशिष्ट या भृगु को फेसबुक से ब्लोक कर दिया -और मैंने भी छोड़ दिया -और तब से मान्यवर ब्राह्मण पद पाने को भटक रहे हैं -हाँ छोटे भाई तुल्य हैं तो मगर न तो खुद विश्वामित्र बनें और न ही मुझे प्रकारांतर से वशिष्ठ बनने दें-इन्होने कुछ ब्लागों को इतना आसमान पर चढ़ा दिया जो उसके योग्य आज भी नहीं हैं -और यह भी एक बड़ा कारण है इनसे संवादहीनता का ........इस पोस्ट पर कमेन्ट नहीं कर रहा -बेमतलब फिर से बवाला होगा :-)
और हाँ आपने इस पोस्ट से गुलाबी फागुनी रंग तो बिखेर ही दिया है :-)
जवाब देंहटाएंप्रेमगली में भटकती हैं हरकीरत 'हीर'। प्रेम ऐसा मामला है जिसके विशेषज्ञ फेसबुक पर भरे पड़े हैं इसलिये इन्हें पढ़ना ही ठीक, कहना सुनना नहीं ठीक। प्रीतम और गुलजारी एक लिमिट के बाद अपन से पार हो जाते हैं इसलिये भी मौन।
जवाब देंहटाएंऐसा तो इसमें कुछ नहीं है जो कहा सुना न जा सके .....?
बहुत सही, मजे ला दिये
जवाब देंहटाएंआज की बुलेटिन बहुत खास लगी, ऐसे ही बुलेटिन लाते रहिये। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइस जानकारी को भी पढ़े :- इंटरनेट सर्फ़िंग के कुछ टिप्स।
तीसरा खंबा का उल्लेख करने के लिए आभार। पर ये वामपंथी शब्द बहुत नालायक है। इस में बहुत विपथगामी लोग भी शामिल हो जाते हैं। इस से तो अच्छा मुझे मार्क्सवादी-साम्यवादी कहलाना पसंद है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिवम! पोस्ट और टिप्पणियाँ दोनों ही इंटरेसटिंग हैं
जवाब देंहटाएंवृक्ष दोहद पर लिखने की कीमत अब समझ में आयी है। एकाध अच्छे काम मैंने भी किए हैं।
जवाब देंहटाएंइकट्ठा यह टिप्पणियाँ बेहतरीन हैं। आभार।
बधाई ... सारे छांटे/छंटे हुए ब्लॉग ढेरिया दिये हैं... हालाँकि अभी अजदक जैसे कुछ उल्लेखनीय छूटे भी हैं...
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन के मंच पर एक "मेहमान रिपोर्टर" के रूप मे आपका स्वागत है गिरिजेश जी !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार जो आपने ब्लॉग बुलेटिन पर एक "मेहमान रिपोर्टर" के रूप में अपनी यह फेसबुकिया ब्लॉग चर्चा रूपी पोस्ट लगाई ! हमारी इस श्रृंखला को एक और बढ़िया परवाज़ देने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद !
मुझे आज लगा कि ब्लॉगिंग के वो दिन फ़िर लौट सकते हैं, अगर ऐसी ही सक्रियता बनी रहे तो………… :)
जवाब देंहटाएं18
जवाब देंहटाएंabhar blog-bulletin aur shivam dada ko........
जवाब देंहटाएंpranam.