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गुरुवार, 24 जनवरी 2013

एक जगह - जहाँ दो चार पंक्तियों में सुबह होती ही होती है - ३

:)


कुछ हटके ज़िन्दगी की पेशकश ना हो तो मन उचट जाता है और कई बार बड़े बड़े कलाकार भी बदरंग नज़र आते हैं ! यहाँ तो शब्दों के कलाकार उतरते हैं, हमने खुद की कलम में देखा है कि कई बार उसकी नोक से जो शब्द उतारते हैं,वे खोखले होते हैं . तो यह प्रयास है नयेपन की ......... तलाश है आम दिनों में आम बातों की -

Ranju Bhatia
16 hours ago
कविता लिखना और फिर उसको सुनाने के लिए कितनी कोशिश करनी पढ़ती है ,यह तो कोई कविता लिखने वाला ही बता सकता है :) हम भी दिन रात आपको अपनी लिखी कविताएं सुनाने में लगे ही रहते हैं .फेसबुक और .ब्लाग जगत में आने का सबसे बड़ा फायदा यही हुआ है कि जो दिल में आये लिखो और उसको वाल .ब्लॉग पर समप्रित कर दो ..वरना कविता कहने वालों के बारे में तो कहा जाता है कि यदि किसी लिखने वाले को कविता पाठ के लिए बुला लिया जाए तो वह माइक छोड़ने को तैयार ही नहीं होते .सोचते हैं कि लगे हाथ अब माइक हाथ में आया है तो दो चार कविताएं और ठेल ही देते हैं ..नहीं नहीं मैं आप पर यह जुल्म कतई नहीं करने वाली :) बस इसी से जुडा एक वाकया पढा तो लगा वो आप सब के साथ शेयर करती हूँ :)
सच्चा वाकया है यह किस्सा .सन १९६० के आस पास की बात है दिल्ली के जामा मस्जिद के पास उर्दू बाजार का .यहाँ एक दूकान थी मौलवी सामी उल्ला की ..जहाँ हर इतवार को एक कवि गोष्ठी आयोजित की जाती ..कुछ कवि लोग वहां पहुँच कर अपनी कविताएं सुनाया करते सुना करते और कुछ चर्चा भी कर लेते | सभी अधिकतर शायर होते कविता लिखने ,सुनाने के शौकीन ,सुनने वाला भी कौन होता वही स्वयं कवि एक दूजे की सुनते , वाह वाह करते और एक दूजे को दाद देते रहते |
इस अनौपचारिक गोष्टी का तब संचालन करते थे गुलजार कवि "जुत्शी देहलवी "| मंच संचालन का सबसे बड़ा फायदा उन्हें यह होता कि वह अनेक छोटी बड़ी कविताएं शेर फोकट में सुना लेते और इस प्रकार अपने लिखे को सुनाने की उनकी इच्छा पूर्ण हो जाती और दिल तृप्त | इस वजह से वह वहां पहुचे हुए कवियों में वह सबसे अधिक भाग्यशाली माने जाते |
एक दिन इतवार को इसी प्रकार गोष्टी चल रही थी तभी वहां सबकी नजर एक नए आये बुजुर्ग पर पढ़ी | उन्होंने उस बुजुर्ग को अपना परिचय दे कर कुछ लिखा सुनाने के लिए कहा | किन्तु वह बुजुर्गवार अपने स्थान पर बैठे रहे ,और बोले कि मैं कवि नहीं हूँ ,कविता या शेर कहना मुझे नहीं आता है बस पता चला कि यहाँ हर इतवार महफ़िल जमती है तो चला आया , बस सुनने का शौकीन हूँ | वहां बैठे लोगों ने कई बार उन्हें कहा की शायद संकोच वश कुछ सुना नहीं रहे हैं ,पर उनका जवाब हर बार यही रहा |
इसी महफिल में अति ख्यातिप्राप्त साहित्याकार देवेंदर सत्यार्थी भी बैठे थे वह यह देख कर सुन कर अपने स्थान से उठे और उस बुजुर्ग वार के पास गए ,उन्होंने उनको अच्छा तरह से अपने गले से लगाया और बोले --- मैं तो आप जैसे श्रोता को पा कर यहाँ धन्य हो गया | हम तो रिक्शा वाले को पैसे दे कर अपनी कविता सुनाते हैं ..अब क्या करें कोई सुनने वाला ही नहीं मिलता .यह सुनते ही सारी महफिल ठहाकों से गूंज उठी .सब ताजगी से भर गए और फिर से कविता पाठ की महफिल जम गयी | कितनी मज़बूरी है न रिक्शे वालों को पैसे दे कर अपनी शायरी सुनाने की और लगता नहीं कि आज कल रिक्शे वाले भी यह सुनना पसन्द करेंगे या नहीं :) पर फेसबुक पर कविता सुनना .सुनाना और संग्रह के लिए लिखना ...बहुत अच्छा लगता है ...लिखते रहिये "पगडण्डी पर रचना" और पढने 
के इन्तजार में रहिये "कुछ मेरी कलम से संग्रह" के लिए :)

Ashok Saluja
अपने हक़ के लिए लड़िये ......
चुप रह कर मैं समझा, मैनें
सब के शिकवे धो दिये,
चुप्पी बनी गुनाह, मेरा
सब रिश्ते मैने खो दिये॥
---अकेला

Pratibha Katiyar
बारिश...और बारिश... और और बारिश...

ओ बारिश, सुनो बरसो उनके हिस्से का भी जो रह जाते हैं बरसे बिना। तरसते रहते हैं बरसने को. बरसो खूब, मगर ध्यान रहे तुम्हारे बरसने में प्यार की हो फुहार, नाराजगी नहीं. रोकना रास्ता महबूब का मत जाने देना उसे कहीं खुद से दूर, भिगो देना उनकी छत, खिड़कियाँ, दरवाजे, रास्ते, मन, आँगन. ध्यान रहे तुम्हारे जाने के बाद छूट जाये भीनी सी खुशबू और डूब जाये ये दुनिया प्यार की खुशबू में. कौन जाने सरहद पार भी पहुँच ही जाये ये खुशबू और बंदूकों से फूल बरसने लगें. ओ बारिश, तेरे आने से जागती हैं न जाने कितनी उम्मीदें...

Abhishek Prasad
३ जनवरी के बाद आज पहली बार अपनी बाईक के बिना ऑफिस आना पड़ा... देखा बता दिया न कि मैंने नयी बाईक ३ जनवरी को खरीदी है... चलो अब जल्दी से सब मिले के दुआ करो कि पेट्रोल के दाम पचास रुपये घट जाये.... सब मिल के दुआ करेंगे तो दुआ जल्द कबूल होगी...

Chandi Dutt Shukla
आज किसी दोस्त ने मस्ती करने के लिए एक गीत का लिंक सेंड किया -- तुम्हीं मेरे मंदिर...। इस गीत के कंटेंट पर कुछ नहीं लिखूंगा... क्योंकि सुबह-सुबह मर्द-औरत विमर्श शुरू हो जाएगा, जिसमें उलझने का मन नहीं कर रहा, लेकिन कथ्य से इतर, संगीत के स्तर पर मधुरतम इस गीत को कानों के ज़रिए दिल में उतारने की कवायद में दो मज़ेदार चीजें हुईं... इस गीत को सुनने की चाह उठी तो प्ले किया... पहले शुरू हुआ विज्ञापन -- किसी गैंगस्टर की लव स्टोरी पर बेस्ड... सत्यानाश... इस पर भी सवा सत्यानाश ये कि बगल से पड़ोसिन की आवाज़ आई -- का सुन रहे हो बाबू... आजकल देवता नहीं, राच्छस होते हैं... दूसरे किसी घर से एक और भाई साहब अखबार पढ़ते हुए मूक-बधिर की तरह वहां से गुज़र लिए... 
अब आप समझदारी बरतिए, गाना सुनिए और बोलिए -- नो कमेंट्स! :P :P

Mukesh Kumar Sinha
55 minutes ago
काश जिंदगी के किताब में भी रफ़ पेपर्स होते, जिन पर बेतरतीब ढंग से लिख-विख कर मिटा पाते या फिर फाड़ देते ....
और फिर finally एक खुबसूरत जिंदगी रच पाते,.....:) 
एक दम टीच व सब कुछ परफेक्ट टाइप वाली जिंदगी ...........सिर्फ अपने लिए :)
काश ऐसा होता ....:)

राजीव तनेजा
Wednesday
ज़रुरी तो नहीं ए राजीव कि बिना नागा..............रोजाना हमारी मुलाक़ात हो 
क्या अच्छा लगेगा सबको कि रोज़ हम मिलें और फिर हमारी..मुक्का लात हो

Rashmi Sharma
USA - "If you attack us, we will attack you".
ISRAEL- "If you attack us, we will demolish you".
INDIA - "If you attack us, we will not play Cricket with you"... Katti ! ;))))

Amit Anand Pandey
सबसे बड़ी कविता - 
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नारी !

Shikha Varshney
14 January
बर्फ बारिश के साथ ,गिरती तो है पर जमती नहीं .
जैसे खुशियाँ आती तो हैं, पर टिकती नहीं :):). —

Anulata Raj Nair
9 January
दुआओं की चाल 
बड़ी सुस्त है
जो सरहद तक पहुँचती नहीं...

की तो होगी न दुआ तुमने कभी ???

Amitabh Agnihotri
व्यंग सफल लोगों के खिलाफ , असफल लोगो का हथियार है ...... क्या आप सहमत हैं इस से ???

10 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे फेसबुक पर फौलो करने और मेरे बेतर्क संवाद को शामिल करने के लिए धन्यवाद... अगर मेरे उन संवादों को जगह मिले जो कुछ अर्थ रखते हो तो मैं आप सबका आभारी रहूँगा... सधन्यवाद

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  2. मजा आ गया पढ़कर...अलग-अलग लोग..अलग वि‍चार..बढ़ि‍या संयोजन

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  3. अरे वाह रश्मि दी.....

    आपके पास तो बड़े लाजवाब आइडियाज होते हैं :-)
    हमारी वाल पोस्ट को शामिल करने का शुक्रिया.

    सादर
    अनु

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  4. "कुछ हटके ज़िन्दगी की पेशकश ना हो तो मन उचट जाता है और कई बार बड़े बड़े कलाकार भी बदरंग नज़र आते हैं !"

    बिलकुल सही दीदी ... १००% सहमत हूँ आपसे ... :)

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  5. सूरज ने तो अपने वक्त पर निकलना ही है फिर सुबह कैसे दूर रह सकती है

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