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शनिवार, 19 जनवरी 2013

एक जगह - जहाँ दो चार पंक्तियों में सुबह होती ही होती है - १




अवन्ती सिंह updated the description.
कितनी ज़रूरतें बिखरी हैं ....... बूंद बूंद से घट भरें , किसी के काम आयें - आइये संकल्प करें
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"संकल्प" की सदस्यता राशी है 100 रूपये 
"संकल्प" आप से हर माह कुछ धन राशी की अपेक्षा रखता है 
उस के लिए कोई राशी निर्धारित नहीं की गयी है 
20, 50 ,100 रूपये कुछ भी हो सकते है आप अपनी सामर्थ्य अनुसार 
"संकल्प" में अपना मासिक योगदान दे सकते है
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संकल्प" अपने पहले चरण में कुछ गरीब बच्चो को शिक्षा के उचित अवसर देने की और उन के अच्छे शारीरिक विकास के लिए पौष्टिक भोजन प्रदान करने की कोशिश करेगा !

"संकल्प" में जमा की जाने वाली धन राशी कितनी है और उस का क्या और कहाँ खर्च किया गया इस की जानकारी हर माह समूह में सार्वजनिक रूप से दे दी जाएगी !
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दुनिया में आना, खाना, पीना,सोना और मर के चले जाना क्या यही जीवन है यदि हाँ, तो पशु और मनुष्य में कोई फर्क नहीं है.........एक चीज़ जो हमें पशुओं से अलग करती है.....वो हैं "भावनायें" या "जज़्बात".......जो कभी अपने प्रियजनों के लिए होते हैं, कभी देश के लिए कभी समाज के लिए तो कभी मानवता के लिए और अन्तत: सम्पूर्ण अस्तित्व के लिए......यही जीवन का लक्ष्य है कि एक दिन हम इस सम्पूर्ण अस्तित्व के साथ एक हो जाएँ........तो आइये हम सब मिलकर यहाँ कुछ प्रयास करें कि इन भावनाओं को जीवित रखते हुए हम लोगों के, समाज के और देश के कुछ काम आ सकें।

एक जगह - जहाँ दो चार पंक्तियों में सुबह होती ही होती है - जी हाँ फेसबुक पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक मित्रता,कुछ कर गुजरने का आलम उगते सूरज का आभास देता है . अयोध्या,मथुरा,हस्तिनापुर,आगरा,लखनऊ,बिहार,दिल्ली,कलकत्ता,मोमबत,बनारस,गुजरात,बैंगलोर,चेन्नई,..
गाँव-शहर,देश-विदेश,सिनेमा,संगीत,फोटोग्राफी,अपनी आर्मी,क्रान्ति सबसे मुलाकात होती है ........... कोई शहर,कोई क़स्बा,कोई विषय,कोई प्रयास यहाँ पूर्णतया सफल नहीं लगता तो यकीन मानिए - विफल भी नहीं होता . देवदास भी,पारो भी,चुन्नीलाल भी ........... मन को बचपन चाहिए तो कई खेल भी ................ सूरज यहाँ डूबता ही नहीं . 
एक एक दिन की कुछ मुलाकात -


Sudha Raje
3 hours ago via Mobile
एक बात तो तय है 
कि 
आप अगर ज़माने की गलती पर कुछ कहने टोकने वाले हैं 
तो 
घटिया सोच वालों का घटिया वाक् आक्रमण भी सुनने को तैयार रहें 
बुरा लगे पर कोई ज़िग़र के बिना चल पङे 
आँख में उँगली चुभोने तो कोई 
दो आदमी भी बदलने वाले नही 
और 
बहस 
ऊँहूँ ये ढीठ लोग बहस से जीते नहीं जा सकते 
क्योकि इनका दिमाग टाईप्ड है 
और 
टाईप्ड लोग बिना खुद थप्पङ खाये नहीं मानते 
सो 
देखिये कि कौन लायक है 
बहिनों 
तभी बात कीजिये


Imran Ansari
Yesterday near Delhi, India
न वो सुन पाए कभी न हम कह पाए कभी दिल की 
दो में से एक बात है या तो वो बहरे है या हम गूँगे हैं,


सलिल वर्मा
‎"पता है, छः से नौ!!" आज ऑफिस से आते ही श्रीमती जी ने कहा.
"नहीं! आज बहुत थका गया हूँ! इतवार को चलते हैं!"
"कहाँ चलना है?"
"तुम्हीं ने तो कहा सिनेमा चलने को!"
"मैंने कब कहा?"
"लो! अभी तो तुमने कहा छः से नौ!"
"आप भी ना! कभी सिनेमा दिखाने ले नहीं जाते और अभी सिनेमा सूझ रहा है! मैंने गैस सिलेंडर के बारे में कहा."


Shanno Aggarwal
ये दुनिया है धोखा और धोखा है दुनिया 
फिर कैसे और किस पर करें हम ऐतबार 
तकदीर भी जब मुँह फेर लेती है किसी से 
कश्ती डगमगाती है बिना किसी पतवार l 

-शन्नो अग्रवाल


Aharnish Sagar
दोस्त कितने कमीने होते हैं... वैसे कभी १०० रु. उधार नहीं देंगे 
लेकिन दारु का कहो तो ५०० की पिला देंगे !
मौसम की मांग हैं ..चलता हूँ

Sunita Shanoo
वक्त के साथ-साथ बदल जाती हैं तकदीरें
चेहरे ही नही बदलते बदल जाती हैं तस्वीरें


Rashmi Prabha
7 January
 खुद से मिलने की कोशिशें मुझे विस्मृति की किनारे ले गयीं 
दुसरे किनारे को पकड़ने के लिए मैंने नदी होने की कोशिशें की 
पर नदी ने मना कर दिया यह कहकर 
कि - यह प्रयास एक थकान है 
कितना थकोगी ?

Saras Darbari
3 January
मौन से बढ़िया साथी आज तक नहीं मिला 
वह न रोकता है ...न टोकता है ..
बस मेरे मनकी सुनता है ....
न बहस करता हके ...न उलझता है ...
न अपनी बात मनवाने की जिद्द करता है ...
मौन सिर्फ साथ देता है ...जब तक चाहो ...
जहाँ तक चाहो ....!!!!

Mukesh Kumar Sinha
7 hours ago
कभी कभी खुद के किए किसी कार्य पर लगता है, ये मेरे से गलत हो गया .....
पर फिर खुद ही अभियुक्त, वकील और जज बनकर अपने को बा-इज्जत बरी कर देते हैं.....
ऐसा होता है न..............:))
शुभ दिन !!

सुनीता सनाढ्य पाण्डेय
8 hours ago
यदि आप टिपिकल राजस्थानी लोक संगीत सुनने के शौकीन हैं तो प्रभुदयाल जांगीड़ को सुनिए......मैं अभी उनका 'मेरे राम' नाम का एल्बम सुन रही हूँ सी डी पर ..बेहद बेहद खूबसूरत लग रहा है मुझे..एकदम वैसा जैसा देवरों (छोटे मंदिर को राजस्थानी में 'देवरा' कहते हैं) पर गाते हैं लोग......मुझे यू-ट्यूब पर उनका लिंक नहीं मिल पा रहा है और मैं उसे सी डी से अपलोड करने की कोशिश कर रही हूँ पर शायद मुझे तरीका नहीं आता सो हो नहीं पा रहा है...यदि किसी को सी डी से यू-ट्यूब पर सिर्फ गाना अपलोड करना आता हो तो बताएं प्लीज़...

Kailash Sharma
Yesterday
रात्रि या दिन 
क्या फ़र्क पड़ता है, 
सूना जीवन.

Alok Khare
2 hours ago
ये भी खूब रही

मैं पिछले हफ्ते इलाहबाद बैंक गया, हमारी पत्नी जी का सेविंग अकाउंट है इस बैंक में! अकाउंट काफी पुराना है लेकिन पत्नी जी अपना सिग्नेचर भूल गयी! यूँ तो पैसे हम उनके एटीएम से निकाल लेते हैं! लेकिन किसी कारन वश हमें चेक बुक की दरकार हुयी! लेकिन सिग्नेचर न मिलने के कारन हमें चेक बुक प्राप्त नही हो रही थी! हमने 2-3 चक्कर लगाये की कम बन जाये! लेकिन वो साहब अड़े हुए बिना सिग्नेचर के तो मैं चेक बुक दूंगा नही! फिर एक दिन हमें एक तरकीब सूझी बैंक जाने से पहले हमने अपने एक मित्र से सेटिंग की की यार ऐसे ऐसे में तुमको मिस काल मरूँगा तो तुम मुझे तुरंत कॉल करना! हम सेटिंग करने के बाद बैंक पहुंचे उसी साहब के पास, मित्र को मिस कॉल मरने के बाद! तुरंत ही मित्र का कॉल आया और हमने उसको कहा की यार वो जो 1.50 लाख का एल आई सी का चेक है न उसको तुम फलां फलां बैंक में जमा मत करना, वो चेक में इलाहबाद बैंक में जमा करूँगा ! हमने थोडा ऊँची आवाज में ये जानबूझकर कहा! ताकि वो साहब अच्छे से सुन सके, फिर हमें फ़ोन काटा और उन साहब से मुखातिब हुए, क्यूंकि हम 3-4 रोज से चक्कर काट रहे थे चेक बुक लिये, वो हमारे बोलने से पहले कहने लगे यार आप मानोगे नही, लाओ क्या काम है! और हमें फटाफट चेकबुक उन्होंने दे दी!
यानि के शराफत से काम चलता ही नही! क्या कीजियेगा!

विभा रानी श्रीवास्तव
13 January
बचपन से सुनती आई थी ......... मुसहर .......... लेकिन वास्तविक अर्थ आज जानी K .B .C से ,जिसे जान कर रूह काँप गए और आत्मग्लानि से भर उठी ........ :((

Rashmi Sharma
7 hours ago
वक्‍त हि‍रण की तरह कुलांचे मार रहा है.....कल बेहद बेहद ठंड थी...आज धूप खि‍ली है...कल..फि‍र कल......कि‍सी के रोके से कब रूका है वक्‍त.....फि‍तरत है.....ये जा..............वो जा। 

अलमीरे की गर्द झाड़ी तो लगा वक्‍त का आईना साफ हो गया्.....कई कि‍ताबें, अनखुली...बेपढ़ी..
मुस्‍कराती कथाओं ने मुंह चि‍ढ़ाया.....कहा

उलझी रहो..बतरस के मजे में मेरा सुख तो गवांयां न, खुली आंखों का ख्‍वाब..पूरा कौन करेगा

कि सनद रहे.......एक दि‍न के घंटे 24 ही होते हैं....दो जि‍से देना है...
अब मुंह बनाए सोच रही हूं...क्‍या करूं......क्‍या न करूं...तुम भी जरूरी.....वो भी जरूरी और बाकी...
दुनियादारी

Vani Sharma
11 hours ago
बालों की सफेदी बढती जा रही है , रिंकल्स भी डेरा डालने लगे हैं , मगर उस बच्ची का क्या करूँ जो कभी सफ़ेद फ्रिल की फ्रॉक में तो कभी सितारों जड़ी कुर्ती में मुंह चिढाती हर समय मेरा आँचल पकडे साथ चलती है :)

ऋता शेखर 'मधु'
12 January
नारी की उन्नति और अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति और अवनति निर्भर हे...अरस्तु

17 टिप्‍पणियां:

  1. बूँद बूँद से ही सागर बनता है ....आपने इस पोस्ट से सिद्ध कर दिया ...:)

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  2. निशब्द + मौन और श्रद्धामय कर देती है आपकी मेहनत और सोच !!

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  3. कभी कभी इन्हीं दो चार पंक्तियों मे पूरा जीवन दर्शन दिख जाता है !

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  4. आपकी खोजी नज़र और चयन को सलाम रश्मिप्रभा जी ! हीरे चुनने के लिए आप जैसी पारखी का होना ज़रूरी है ! बहुत मनभावन प्रस्तुति ! आभार !

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  5. संकल्प में सहयोगी होंगे हम भी !
    साधनाजी की भावना है मेरी भी !

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  6. अरे वाह...ऐसा संयोजन भी हो सकता है..ये आपके नायाब सोच का परि‍णाम है दी...बहुत खूब..

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  7. लाजवाब करती प्रस्‍तुति ...
    सादर

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  8. मैंने खुद सोचा था कि अगली बार जब बुलेटिन के लिए मेरा नंबर आएगा तो मैं यही करूँगा.. लेकिन आइडिया चोरी हो गया.. या फिर यकीन हो गया कि कोई भी सोच यूनिक नहीं.. इस दुनिया में कम से कम दो लोग एक जैसा सोचते हैं.. और अगर सोचने वाले दीदी और उनका छोटा भाई हो तब तो बात शत प्रतिशत सही हो जाती है!!

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  9. बड़ी बहन को चोर बोले ?") ............. कितनी अच्छी बात है कि छोटा भाई बड़ी बहन की तरह सोचता है

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  10. :-( मैने भी ऐसा ही सोचा था ...पर कोई नी! मैंने किया क्या और आपने किया क्या !आज दो-दो से चार हुए ...कल एक और एक ग्यारह भी होंगे... :-)

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  11. शुक्रिया.....एक बढ़िया वाली मुस्कान आ गयी चेहरे पर यह सब पढ़ कर....:)
    सुनीता

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  12. बातें छोटी छोटी पर बहुत महत्वपूर्ण... मैं भी इस बुलेटिन का हिस्सा बनी...आभारः)

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!