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बुधवार, 2 जनवरी 2013

अभी इस राख में चिन्गारियाँ आराम करती हैं - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !

 यूं तो कहने को बहुत कुछ है पर न जाने क्यूँ शब्दों ने साथ देना छोड़ सा दिया है ... और ऐसी सूरत मे अक्सर ही कोई ना कोई शायर मददगार होता है ! आज भी जनाब मुनव्वर राना साहब का एक शे'र मेरा मददगार बना है ... आप सब को उसी के हवाले किए जाता हूँ !

"किसी दिन ऎ समुन्दर झांक मेरे दिल के सहरा में
न जाने कितनी ही तहदारियाँ आराम करती हैं

अभी तक दिल में रोशन हैं तुम्हारी याद के जुगनू
अभी इस राख में चिन्गारियाँ आराम करती हैं" 
सादर आपका 
शिवम मिश्रा 
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30 साल का हुआ इंटरनेट


-: वाईआरएन सर्विस :- न ई मेल होती, न फेसबुक होता और न होता यू ट्यूब, अगर इंटरनेट का जन्‍म न होता। आज इंटरनेट 30 साल का हो चुका है। सोचो जरा! भारतीय आईटी इंडस्‍ट्री इंटरनेट के बिना आख़िर कैसी होती? आज भारत में चार बड़ी आईटी सर्विसेस कंपनियों की श्रेणी में टीसीएस, विप्रो, इन्‍फोसिस एवं एचसीएल टेक्‍नोलॉजिज शामिल हैं, जिनमें लगभग छह लाख से ऊपर कर्मचारी कार्यरत हैं। दरअसल, आज से करीबन 30 साल पूर्व 1 जनवरी 1983 को पुरानी टेक्‍नॉलोजी को अलविदा कहते हुए नई प्रणाली को स्‍थापित किया, जिसे आज हम इंटरनेट के रूप में जानते हैं। उस दिन अमेरिका के रक्षा विभाग द्वारा संचालित अर्पानेट नेटवर्क.more »

परिकल्पना सम्मान (तृतीय) हेतु चयन....

रश्मि प्रभा... at परिकल्पना
[image: परिकल्पना ब्लॉगोत्सव और मैं] *एक व्यक्ति ने चाहा कि अंतर्जाल पर हिन्दी के माध्यम से नए समाज की परिकल्पना को मूर्तरूप दिया जाये ....प्रयास किया ब्लॉग विश्लेषण से, फिर अचानक उसके जेहन मे आकार लेने लगी एक मौलिक परिकल्पना यानि -* ब्लॉगोत्सव परिकल्पना के संचालक-समन्वयक और हिंदी के मुख्य ब्लॉग विश्लेषक लखनऊ निवासी रवीन्द्र प्रभात ने अपने छ: सहयोगियों क्रमश: अविनाश वाचस्‍पति, रश्मि प्रभा, ज़ाक़िर अली रजनीश, रणधीर सिंह सुमन,विनय प्रजापति और ललित शर्मा के साथ मिलकर वर्ष-2010 में अंतरजाल पर ब्लॉगोंत्सव मनाने का फैसला किया और इस उत्सव को नाम दिया “परिकल्पना ब्लॉग उत्सव″ इस उत्सव का ... more »

न जाने तुमने ऊपर वाले से क्या क्या कहा होगा ...

Padm Singh at ढिबरी
*[image: 64064_413779855358525_1779275525_n] * ** ** *न जाने क्या हुआ है हादसा गमगीन मंज़र है * *शहर मे खौफ़ का पसरा हुआ एक मौन बंजर है * *फिजाँ मे घुट रहा ये मोमबत्ती का धुआँ कैसा * *बड़ा बेबस बहुत कातर सिसकता कौन अन्दर है* *सहम कर छुप गयी है शाम की रौनक घरोंदों मे * *चहकती क्यूँ नहीं बुलबुल ये कैसा डर परिंदों मे * *कुहासा शाम ढलते ही शहर को घेर लेता है * *समय से कुछ अगर पूछो तो नज़रें फेर लेता है * *चिराग अपनी ही परछाई से डर कर चौंक जाता है * *न जाने जहर से भीगी हवाएँ कौन लाता है* *ये सन्नाटा अचानक भभक कर क्यूँ जल उठा ऐसे* *ये किसकी सिसकियों ने आग भर दी है मशालों मे * *सड़क पर चल रह... more »

दोष नहीं दे सकता कल को

noreply@blogger.com (प्रवीण पाण्डेय) at न दैन्यं न पलायनम्
क्षुब्ध मनस का भार सहन है, दोष नहीं दे सकता कल को, गहरे जल के तल में बैठा, देख रहा हूँ बहते जल को। क्या आशायें, क्या इच्छायें, क्या जीवन की अभिलाषायें, अनुचित, उचित विचार निरन्तर, रच क्यों डाली परिभाषायें, सबने जकड़ जकड़ कर बाँधा, नहीं जिलाया व्यक्ति विकल को, दोष नहीं दे सकता कल को। यह सच है, जिसने जीवन को देखा, परखा, समझा है, आहुति बनकर स्वयं जलाया, यज्ञ उद्गमित रचना है, कैसे नहीं निर्णयों में वह लायेगा व्यक्तित्व सकल को, दोष नहीं दे सकता कल को। मैने जीवन की गति को अब स्थिर मन से देखा है, महाचित्र पर खिंचती जाती, कर्मक्षेत्र की रेखा है, ये रेखायें सतत बनातीं, योगदान फिर ... more »

वेब २.० तथा शिक्षक

जैसा कि इस पोस्ट के शीर्षक से स्पष्ट है, इस पोस्ट में मैं बात करूँगा कि कैसे एक शिक्षक वेब २.० का प्रयोग विद्यार्थियों को पढाने के लिए कर सकते हैं। सबसे पहले यह पता होना चाहिए कि वेब २.० क्या है?  वेब प्रौद्यौगिकी को आये हुए तो काफी समय हो चुका है पर अपनी शुरूआती अवस्था में जो वेबसाइट्स बनीं वो स्टेटिक थीं, स्टेटिक का हिन्दी में अर्थ होता है स्थिर, इस तरह की वेबसाइट में वेबसाइट बनाने वाला

द्वंद ...

noreply@blogger.com (दिगम्बर नासवा) at स्वप्न मेरे................
तमाम कोशिशों के बावजूद उस दीवार पे तेरी तस्वीर नहीं लगा पाया तूने तो देखा था चुपचाप खड़ी जो हो गई थीं मेरे साथ फोटो-फ्रेम से बाहर निकल के एक कील भी नहीं ठोक पाया था सूनी सपाट दीवार पे हालांकि हाथ चलने से मना नहीं कर रहे थे शायद दिमाग भी साथ दे रहा था पर मन ... वो तो उतारू था विद्रोह पे ओर मैं ... मैं भी समझ नहीं पाया कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं फ्रेम की चारदिवारी में तुम से बेहतर मन का द्वंद कौन समझ सकता है माँ ...

काश ! हम सभ्य न होते!!

मनुष्य को उन्नत सभ्यता पर गर्व है परन्तु यह सभ्यता ही उसका सर शर्म से झुक देती है। जब मनुष्य बर्बर ,असभ्य थे ,जंगल में रहते थे ,तब स्त्री पुरुष के रिश्ते आत्मीयता ,प्रेम ,सहमती से शुरू होता था , बलपूर्वक नहीं। आज तथा कथित सभ्य समाज में शायद आत्मीयता ,प्रेम ,सहमती का कोई स्थान नहीं। आज स्वार्थ ,पैसा, बाहुबल,छल ,हवस ,सामाजिक -राजनैतिक शक्ति ही सभी रिश्तों को निर्धारित करते है। आज घर से संसद तक विसंगतियां है और इसके पोषक है देश के ठेकेदार -पहरेदार। प्रस्तुत कविता में यही बात कही गई है। नोट : यहाँ "हम का अर्थ -हम भारतवासी- जनता" काश ! हम सभ्य न होते, असभ्य ... more »

इन्साफ का तराजू

चला बिहारी ब्लॉगर बनने at चला बिहारी ब्लॉगर बनने
अगर *गिरिजेश राव जी* का आह्वान नहीं होता त सायद हम ई पोस्ट नहीं लिख रहे होते. अभी साल २०१२ के जाते-जाते जउन घटना घटा है, उसके बाद नया साल का बधाई अऊर सुभकामना देने का मन नहीं किया. एही सुभकामना २०१२ के जनवरी में भी दिए होंगे अऊर ऊ बेचारी को भी दोस्त लोग बोला होगा – *हैप्पी न्यू ईयर!!* मगर उसके लिए नरक का तकलीफ से बढकर हो गया ई साल. का फायदा ई सुभकामना का. सब बिधाता का लिक्खा है त उसी के हाथ में छोड़ कर अपना काम करते हैं, जब ओही आकर सुभकामना देगा त मानेंगे कि सब सुभ होगा. खैर, २०१२ जाते जाते सरकार के सम्बेदनहीनता का नमूना देखा गया, नेता लोग के मुँह पर कोनो कंट्रोल नहीं है ई बता गया,... more »

मेरी डायरी

गुज़रते वक्त का ध्यान कौन रखता है, बस ये घड़ी, और मेरी ये डायरी, एक एक दिन गिनती है, और ३६५ दिन पूरे होते ही कह देती है कि मेरा समय पूरा हुआ, तुम्हारा भी होने को है, संभल जाओ, तुम अब मुझे बदलो, और स्वागत करो एक नयी डायरी का, साथ ही बदलो अपने शब्द, कुछ खुशी के रंग भरो इनमें, शब्दों का काम है हारे व्यक्ति में जोश भरना, ना कि केवल उसका हार का वर्णन करना, डूबते सूरज का चित्र जब बनाएँ सभी, तुम आने वाली सुबह के ख्वाब बुनो, सुबह की धुंध में कुछ ना दिखे तो कहीं छुपी किसी चिड़िया का शोर सुनो, आईना बनो, सच लिखो, पर कड़वा सच भी मीठे शब्दों से लिखो, गुलाब के नीचे छुपे कांटे तो सबको  more »

स्वागत नव वर्ष

Maheshwari kaneri at अभिव्यंजना
खुशियों का दीप जला कर, उम्मीदों की झोली फैला कर करते स्वागत नव वर्ष तुम्हारा हर्षदायिनी, मंगलमयी, शुभकारिणी हो हर चरण तुम्हारा स्वागत-स्वागत नव वर्ष तुम्हारा हिम्मत देना ,चाहत देना देना अथाह शक्ति दान निज स्वार्थ भूला कर, कर सकूँ जन कल्याण नव सृजन का बहे नित धारा स्वागत-स्वागत नव वर्ष तुम्हारा स्वप्न न रूठे ,उम्मीद न टूटे धरा में नित नव चेतन जागे प्रेरणा बन बहे हर शब्द मेरे नव रश्मि गीत बन रहे नित आगे अंधकार हरे राह बने उजियारा स्वागत-स्वागत नव वर्ष तुम्हारा ************ महेश्वरी कनेरी

दहशत, आक्रोश और एक जायज माँग

दिल्ली गैंग रेप केस- इस घटना ने बहुत अन्दर तक डर बैठा दिया है- हम जैसों के मन में ,जो लम्बे समय से अपने जीवन में संघर्ष ही करते आए हैं। एक हादसा या दुर्घटना पूरे परिवार को तोड़ देती है ,ये वही जान सकता है ,जिसने उस दर्द या पीड़ा को जिया है.... न्यायमूर्ति वर्मा जी की समिती से हमारा निवेदन है कि इस और ऐसे अपराध के अपराधी/अपराधियों को तुरन्त सजा देने के निर्णय लिए जाएं जबकि सब कुछ साफ़ है/हो ... मैंने बलात्कार की इस घटना को लेकर अपने आसपास के लोगों से अपने मन में उठे विचार लिखने को कहा था,आज वही यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ--- 1) अस्मिता बचाने की लाचारी ने अस्तित्व को संकट में डाल दिया,... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

7 टिप्‍पणियां:

  1. Sabhi link is buletin ko garima pradan karte huve ...
    Shukriya meri rachna ko shamil karne ka ...

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  2. शिवम बाबू!! ऐसी ही बुलेटिन की आवश्यकता थी!!

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  3. "किसी दिन ऎ समुन्दर झांक मेरे दिल के सहरा में
    न जाने कितनी ही तहदारियाँ आराम करती हैं
    अभी तक दिल में रोशन हैं तुम्हारी याद के जुगनू
    अभी इस राख में चिन्गारियाँ आराम करती हैं"

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  4. भाई आपकी बुलेटिन हम गूगल रीडर से पढ़ते रहते हैं.

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  5. हर्षदायिनी, मंगलमयी, शुभकारिणी हो ........
    हर चरण तुम्हारा स्वागत-स्वागत नव वर्ष तुम्हारा

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  6. बहुत ही सुन्दर सूत्रों से सजा बुलेटिन..

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!