बाल ठाकरे की न्यूज को साइड पर रख चुका होगा
मीडिया, न्यूज एंकर ब्रेड बटर खाकर घर से निकल चुके होंगे, जो ज्लद
पहुंचेगा, उसको मिलेगा एंकरिंग का अवसर ! कुछ एंकरों को तो आज का दिन ब्रेड बटर से काम चलाना पड़ेगा । कुछ चर्चा कार तो सुबह से ही तैयारी कर रहे होंगे चलो आज फिर टीवी स्क्रीन पर जाने का मौका मिला, भले की कसाब की फांसी से सरकार को कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन पूर्ण रूप से नहीं, क्यूंकि अफजल गुरू आजतक जिन्दा है, जिसको फांसी देना, एक फसाद को जन्म देना भी कुछ लोग मान रहे हैं, क्यूंकि वो कश्मीर से तालुक रखते हैं, और हमारी सरकार नहीं चाहती कि कश्मीर में पहले से हालात बने, देश में पथिक नेताओं की कमी नहीं।
सफर
कुछ लोग हैं जागे हुए
कुछ लोग हैं सोये सोये
कुछ की मंजिल पास है
कुछ दूर तलक जायेंगे निरंतरता के लिए
काबुल वाया नई दिल्ली
ओबामा जा चुके हैं। जाते-जाते वो हमारी कानों को वो बातें सुना गए जिसे सुनने के लिए हम कब से व्याकुल थे। लेकिन शोर-शराबा खत्म होने के बाद अब वक्त आ गया है जब हम गिफ्ट बॉक्स को खोलें और देखें कि दिया गया आश्वासन हमारे कितने काम का है। सबसे पहले बात सुरक्षा परिषद में भारत के स्थाई सदस्यता की, निरंतरता के लिए
इस शोक का कोई नाम नहीं
निजी शोक को बयान करना दुनिया में सबसे मुश्किल है...पंत जी का जाना सिर्फ मेरे लिए ही नहीं हर उस आदमी के लिए निजी से भी ज्यादा शोक की खबर है जिन्होंने उनके साथ कभी वक्त गुजारा..रविशंकर पंत लखनऊ से वाया मेरठ नोएडा आए और कब हम सबकी जिंदगी के अटूट हिस्सा बन गए पता ही नहीं चला...हम सब उन्हें प्यार से पंत जी कहते थे..सलीका और नफासत पंत निरंतरता के लिए
भेडियों का लोकतंत्र
डर सिर्फ भेड़ों को ही नहीं लगता है।
भेडिये को भी दर्द होता है।
डरते है वो भी खत्म होने से
उन्हें भी मालूम होते है मौत के मायने
इसी लिये वो भी इकट्ठा होते है निरंतरता के लिए
एक भी मगरमच्छ फंसे नहीं, एक भी छोटी मछली बचे नहीं
कानून किसको कहते है ये हमको मत बताओं बेटा, हम से ज्यादा तुम नहीं जानते होंगे, एक चैनल के रिपोर्टर होने के नाते तुम जो भरोसा मुझे दिला रहे हो उससे बेहतर है कि हम लोगों को उस राठौर की नजरों से दूर रहने दो। ......। हां शायद ये ही शब्द थे...रूचिका गिरोत्रा के पिता के। शिमला के एक मोहल्ले में बेहद अनाम तरीके से अपनी जिंदगी गुजार रहे गिरोत्रा के साथ उनका बेटा कमरे में मौजूद रिपोर्टर और कैमरामैन से निरंतरता के लिए
सफर
कुछ लोग हैं जागे हुए
कुछ लोग हैं सोये सोये
कुछ की मंजिल पास है
कुछ दूर तलक जायेंगे निरंतरता के लिए
काबुल वाया नई दिल्ली
ओबामा जा चुके हैं। जाते-जाते वो हमारी कानों को वो बातें सुना गए जिसे सुनने के लिए हम कब से व्याकुल थे। लेकिन शोर-शराबा खत्म होने के बाद अब वक्त आ गया है जब हम गिफ्ट बॉक्स को खोलें और देखें कि दिया गया आश्वासन हमारे कितने काम का है। सबसे पहले बात सुरक्षा परिषद में भारत के स्थाई सदस्यता की, निरंतरता के लिए
इस शोक का कोई नाम नहीं
निजी शोक को बयान करना दुनिया में सबसे मुश्किल है...पंत जी का जाना सिर्फ मेरे लिए ही नहीं हर उस आदमी के लिए निजी से भी ज्यादा शोक की खबर है जिन्होंने उनके साथ कभी वक्त गुजारा..रविशंकर पंत लखनऊ से वाया मेरठ नोएडा आए और कब हम सबकी जिंदगी के अटूट हिस्सा बन गए पता ही नहीं चला...हम सब उन्हें प्यार से पंत जी कहते थे..सलीका और नफासत पंत निरंतरता के लिए
भेडियों का लोकतंत्र
डर सिर्फ भेड़ों को ही नहीं लगता है।
भेडिये को भी दर्द होता है।
डरते है वो भी खत्म होने से
उन्हें भी मालूम होते है मौत के मायने
इसी लिये वो भी इकट्ठा होते है निरंतरता के लिए
एक भी मगरमच्छ फंसे नहीं, एक भी छोटी मछली बचे नहीं
कानून किसको कहते है ये हमको मत बताओं बेटा, हम से ज्यादा तुम नहीं जानते होंगे, एक चैनल के रिपोर्टर होने के नाते तुम जो भरोसा मुझे दिला रहे हो उससे बेहतर है कि हम लोगों को उस राठौर की नजरों से दूर रहने दो। ......। हां शायद ये ही शब्द थे...रूचिका गिरोत्रा के पिता के। शिमला के एक मोहल्ले में बेहद अनाम तरीके से अपनी जिंदगी गुजार रहे गिरोत्रा के साथ उनका बेटा कमरे में मौजूद रिपोर्टर और कैमरामैन से निरंतरता के लिए
चलो देर से सही ... यह दिन तो आया !
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन...सार्थक लिंक्स...
जवाब देंहटाएंआभार
अनु
और ये वही लोग है जो कल तक कहते थे कि मर्सी पेटीशन की प्रक्रिया एक निश्चित मापदंड से चलती है और अफजल गुरु पर इसीलिये कोई निर्णय अब तक नहीं हो पाया कि उसका नंबर तब आयेगा जब उससे पहले वालों की पेटीशन पर फैसला हो जाएगा,,,,,यदि ऐसा था तो कसब का नंबर अफजल से पहले कैसे आ गया ?
जवाब देंहटाएंबढिया है
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