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बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

शतप्रतिशत सच


शतप्रतिशत सच बोलने से क्या ! .... लोग उसे झूठ के छिलके सा उतार देते हैं 
चुप रहकर सोचता है आदमी - सच को सफाई की ज़रूरत नहीं 
छिलके उतारनेवाले कहते हैं - देखा ... बोलती बंद हो गई 
:) आप साबित नहीं कर सकते और दूसरा कारण,निष्कर्ष देता है .... मानने का तो सवाल ही नहीं होता !
फिर भी कुछ लोग सच से बाज नहीं आते .... लिखते हैं सच,झूठ को करते हैं रेखांकित - उठाते हैं कुछ प्रश्न,कुछ दिल में ही रख उसे सी लेते हैं तो कुछ उधड़े बखिये सी ज़िन्दगी को यूँ हीं थामे बैठे रहते हैं -
खुद से बेज़ार !



Shabd Setuमैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच



.............
सच क्या था , क्या है , क्या होगा
वह -
जो तुमने
उसने
मैंने -
कल कहा
या आज सोच रहे
या फिर कल जो निष्कर्ष निकला
या निकाला जायेगा !
सच का दृश्य
सच का कथन
...... पूरा का पूरा लिबास ही बदल जाता है !

सच भी समय के साथ चलता है
और समय .... कभी इस ठौर
कभी उस ठौर
जाने कितने नाज नखरे दिखाता है ...
आँखें दिखाने पर
शैतान बच्चा भी कुछ देर मुंह फुलाए
चुपचाप बैठ जाता है
हवा थम जाती है
पर यह समय .....
सच के पन्ने फाड़ता रहता है
हर बार नाव नहीं बनाता
यूँ हीं चिंदियों की शक्ल में उन्हें उड़ा देता है !

11 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति

    यहाँ भी पधारे
    फेसबूक पर गुंडे मवालियों का राज
    http://eksacchai.blogspot.com/2012/10/blog-post_30.html

    जवाब देंहटाएं
  2. समय सच के पन्ने फाड़ता रहता है।
    ...और सच है कि ढीठ की तरह अपने अस्तित्व का झण्डा फहराने से बाज नहीं आता।
    रश्मि जी का प्रस्तुतिकरण बहुत ही सशक्त लगा।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर लिनक्स .....और हाँ रश्मिजी ...मेरी रचना चुनी ...ख़ुशी हुई ...बहुत बहुत आभार !!!

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  4. सत प्रतिसत सत्य सुन्दर व सटीक प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  5. शतप्रतिशत सच बोलने से क्या ! .... लोग उसे झूठ के छिलके सा उतार देते हैं
    चुप रहकर सोचता है आदमी - सच को सफाई की ज़रूरत नहीं
    छिलके उतारनेवाले कहते हैं - देखा ... बोलती बंद हो गई
    बेहद सशक्‍त पंक्तियों के साथ लिंक्‍स का चयन भी उत्‍कृष्‍ट
    आभार

    जवाब देंहटाएं

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