प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !
जतिंद्र नाथ दास (27 अक्टूबर 1904 - 13 सितम्बर 1929), जिन्हें जतिन
दास के नाम से भी जाना जाता है, एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और
क्रांतिकारी थे | लाहौर जेल में भूख हड़ताल के 63 दिनों के बाद जतिन
दास की मौत के सदमे ने पूरे भारत को हिला दिया था | स्वतंत्रता से पहले
अनशन या भूख हड़ताल से शहीद होने वाले एकमात्र व्यक्ति जतिन दास हैं... जतिन
दास के देश प्रेम और अनशन की पीड़ा का कोई सानी नहीं है |
जतिंद्र नाथ दास का जन्म कोलकाता में हुआ था, वह बंगाल में एक क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में शामिल हो गए | जतिंद्र बाबू ने 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया था ! नवम्बर 1925 में कोलकाता में विद्यासागर कॉलेज में बी.ए. का अध्ययन कर रहे जतिन दास को राजनीतिक गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और मिमेनसिंह सेंट्रल जेल में कैद किया गया था ... वहाँ वो राजनीतिक कैदियों से दुर्व्यवहार के खिलाफ भूख हड़ताल पर चले गए, 20 दिनों के बाद जब जेल अधीक्षक ने माफी मांगी तो जतिन दास ने अनशन का त्याग किया था | जब उनसे भारत के अन्य भागों में क्रांतिकारियों द्वारा संपर्क किया गया तो पहले तो उन्होने मना कर दिया फिर वह सरदार भगत सिंह के समझाने पर उनके संगठन लिए बम बनाने और क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने पर सहमत हुए | 14 जून 1929 को उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और लाहौर षडयंत्र केस के तहत लाहौर जेल में कैद किया गया था |
लाहौर जेल में, जतिन दास ने अन्य क्रांतिकारी सेनानियों के साथ भूख हड़ताल शुरू कर दी, भारतीय कैदियों और विचाराधीन कैदियों के लिए समानता की मांग की, भारतीय कैदियों के लिए वहां सब दुखदायी था - जेल प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई वर्दियां कई कई दिनों तक नहीं धुलती थी, रसोई क्षेत्र और भोजन पर चूहे और तिलचट्टों का कब्जा रहता था, कोई भी पठनीय सामग्री जैसे अखबार या कोई कागज आदि नहीं प्रदान किया गया था, जबकि एक ही जेल में अंग्रेजी कैदियों की हालत विपरीत थी ... क़ैद मे होते हुये भी उनको सब सुख सुविधा दी गई थी !
जेल में जतिन दास और उनके साथियों की भूख हड़ताल अवैध नजरबंदियों के खिलाफ प्रतिरोध में एक महत्वपूर्ण कदम था ... यह यादगार भूख हड़ताल 13 जुलाई 1929 को शुरू हुई और 63 दिनों तक चली| जेल अधिकारीयों ने जबरन जतिन दास और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को खिलाने की कोशिश की, उन्हें मारा पीटा गया और उन्हें पीने के पानी के सिवाय कुछ भी नहीं दिया गया वो भी तब जब इस भूख हड़ताल को तोड़ने के उन के सारे प्रयास विफल हो गए, जतिन दास ने पिछले 63 दिनों से कुछ नहीं खाया था ऊपर से बार बार जबरन खिलाने पिलाने की अनेकों कोशिशों के कारण वो और कमज़ोर हो गए थे | इन सब का नतीजा यह हुआ कि भारत माँ के यह वीर सपूत 13 सितंबर 1929 को शहीद हो गए पर अँग्रेज़ो के खिलाफ उनकी 63 दिन लंबी भूख हड़ताल आखरी दम तक अटूट रही !
उनके पार्थिव शरीर को रेल द्वारा लाहौर से कोलकाता के लिए ले जाया गया... हजारों लोगों इस सच्चे शहीद को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए रास्ते के स्टेशनो की तरफ दौड़ पड़े ... बताते है कि उनके अंतिम संस्कार के समय कोलकाता में दो मील लंबा जुलूस अंतिम संस्कार स्थल तक उनके पार्थिव शरीर के साथ साथ ,'जतिन दास अमर रहे' ... 'इंकलाब ज़िंदाबाद' , के नारे लगते हुये चला !
जतिंद्र नाथ दास का जन्म कोलकाता में हुआ था, वह बंगाल में एक क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में शामिल हो गए | जतिंद्र बाबू ने 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया था ! नवम्बर 1925 में कोलकाता में विद्यासागर कॉलेज में बी.ए. का अध्ययन कर रहे जतिन दास को राजनीतिक गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और मिमेनसिंह सेंट्रल जेल में कैद किया गया था ... वहाँ वो राजनीतिक कैदियों से दुर्व्यवहार के खिलाफ भूख हड़ताल पर चले गए, 20 दिनों के बाद जब जेल अधीक्षक ने माफी मांगी तो जतिन दास ने अनशन का त्याग किया था | जब उनसे भारत के अन्य भागों में क्रांतिकारियों द्वारा संपर्क किया गया तो पहले तो उन्होने मना कर दिया फिर वह सरदार भगत सिंह के समझाने पर उनके संगठन लिए बम बनाने और क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने पर सहमत हुए | 14 जून 1929 को उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और लाहौर षडयंत्र केस के तहत लाहौर जेल में कैद किया गया था |
लाहौर जेल में, जतिन दास ने अन्य क्रांतिकारी सेनानियों के साथ भूख हड़ताल शुरू कर दी, भारतीय कैदियों और विचाराधीन कैदियों के लिए समानता की मांग की, भारतीय कैदियों के लिए वहां सब दुखदायी था - जेल प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई वर्दियां कई कई दिनों तक नहीं धुलती थी, रसोई क्षेत्र और भोजन पर चूहे और तिलचट्टों का कब्जा रहता था, कोई भी पठनीय सामग्री जैसे अखबार या कोई कागज आदि नहीं प्रदान किया गया था, जबकि एक ही जेल में अंग्रेजी कैदियों की हालत विपरीत थी ... क़ैद मे होते हुये भी उनको सब सुख सुविधा दी गई थी !
जेल में जतिन दास और उनके साथियों की भूख हड़ताल अवैध नजरबंदियों के खिलाफ प्रतिरोध में एक महत्वपूर्ण कदम था ... यह यादगार भूख हड़ताल 13 जुलाई 1929 को शुरू हुई और 63 दिनों तक चली| जेल अधिकारीयों ने जबरन जतिन दास और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को खिलाने की कोशिश की, उन्हें मारा पीटा गया और उन्हें पीने के पानी के सिवाय कुछ भी नहीं दिया गया वो भी तब जब इस भूख हड़ताल को तोड़ने के उन के सारे प्रयास विफल हो गए, जतिन दास ने पिछले 63 दिनों से कुछ नहीं खाया था ऊपर से बार बार जबरन खिलाने पिलाने की अनेकों कोशिशों के कारण वो और कमज़ोर हो गए थे | इन सब का नतीजा यह हुआ कि भारत माँ के यह वीर सपूत 13 सितंबर 1929 को शहीद हो गए पर अँग्रेज़ो के खिलाफ उनकी 63 दिन लंबी भूख हड़ताल आखरी दम तक अटूट रही !
उनके पार्थिव शरीर को रेल द्वारा लाहौर से कोलकाता के लिए ले जाया गया... हजारों लोगों इस सच्चे शहीद को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए रास्ते के स्टेशनो की तरफ दौड़ पड़े ... बताते है कि उनके अंतिम संस्कार के समय कोलकाता में दो मील लंबा जुलूस अंतिम संस्कार स्थल तक उनके पार्थिव शरीर के साथ साथ ,'जतिन दास अमर रहे' ... 'इंकलाब ज़िंदाबाद' , के नारे लगते हुये चला !
आज अमर शहीद जतिन नाथ दास जी की जयंती के अवसर पर पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे ब्लॉग जगत की ओर से हम सब उनको शत शत नमन करते है !
इंकलाब ज़िंदाबाद !!!
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वे क्या मल्टीप्लाइड बाई टू थे
क्या मानव द्वारा ईश्वर पूजा, ध्यान, योग, या कहें आज की तारीख में धर्मग्रंथों में लिखे उपदेश निहायत ही आज के जीवन में अनुपयोगी हैं? विजयादशमी के दिन चर्चा चल रही थी; क्या सचमुच रावण के दस शीश थे? और हाथ कान आँख याने मानव के कंधे से जुड़े व कंधे के ऊपर के अंग जो 2-2 होते हैं, वे क्या मल्टीप्लाइड बाई टू थे? आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा था कि कैसे देवियों/देवताओं की कभी अष्ट भुजाएं कभी सहस्त्र भुजाएं हो सकती हैं? कहा जा रहा था सब काल्पनिक है। यह भी हास्य का विषय बना हुआ था कि कैसे किसी एक व्यक्ति के सैकड़ों/हजारों बच्चे हो सकते हैं। मेरे मन में भी ऐसे प्रश्नों का उत्तर सूझ नहीं... more »
क्लीनचिट ...
ये पुरूस्कार हैं मियाँ, कोई तोहफे नहीं हैं कुछ तो शर्म करो, ......... देने-लेने में ? ... ब्लेकमेलिंग तो उनके किरदार का एक छोटा-सा हुनर है बस, बदकिस्मती ने, उन्हें बे-नक़ाब कर दिया है आज ? ... किरदार उसका, कुछ ऐंसा था 'उदय' जाते-जाते ..... रुला गया है हमको ! ... क्लीनचिट मिल गई, अब वे बेक़सूर हैं गर अब किसी ने, इल्जाम लगाया तो ? ... आज मौक़ा हंसी है, गले लग जाओ हंसकर क्या रक्खा है यारा, दिलों की खुन्नसों में ?
आकाश से टकराती खिलखिलाहटें
मासूम खिलखिलाहटों के एक रेले ने जिस मजबूती से मुझे अचानक आ पकड़ा था कि व्यक्तित्व में समाई शाश्वत उदासियां भी भाग खड़ी हुईं. कैसा अजूबा था. उन चेहरों से, उन नामों से कोई पहचान नहीं थी सिवाय इसके कि वो बच्चे थे और मुझे बच्चों से बेहद प्रेम. बच्चे प्रेम को सूंघ लेते हैं. शुरूआती संकोच बमुश्किल दस मिनट में धराशायी हो चुका था. मैं ऊधमसिंह नगर से थोड़ी ही दूर स्थित प्राथमिक विद्यालय रामसजीवनपुर में एक छात्र बनकर गई थी. उनके बीच बैठी, उनकी किताबें पलटते हुए. उस स्कूल में बच्चे एक अखबार निकालते हैं. हर रोज वो गांव के कोने-कोने में फैल जाते हैं और खबरें लेकर आते हैं. फिर उन खबरों को लिखते... more »
थैंक्स टु अन्ना, अरविन्द केजरीवाल !
मेरे इस ब्लॉग के नियमित पाठकों को शायद याद होगा कि मैंने बहुत पहले अपने एक लेख में लिखा था कि दुनिया के सबसे श्रेष्ठ लोकतंत्र की दुहाई देने वाले वे लोग , वे ठग, वे बलात्कारी, वे भ्रष्ट और वे देश-द्रोही जिन्हें यह अच्छी तरह से मालूम है कि इस देश का आम-आदमी भेड़ों के किसी झुण्ड से ख़ास भिन्न नहीं है, और भेड़े स्वभाव से ही प्रतिकार नहीं करती, जिन्हें अंग्रेजों का यह मुहावरा अच्छी तरह से याद है कि "king is above law " उन्होंने स्वतंत्रता के बाद अपने गुरुओं से सबसे पहला गुर यह सीखा कि इस तथाकथित लोकतंत्र में राजा (king ) कैसे बना जा सकता है ताकि वे क़ानून से ऊपर रहकर अपने नापाक मंसूबों ... more »
निजी क्या है ?निजित्व क्या है ?
निजी क्या है ? घड़ी की टिक टिक की तरह यह प्रश्न मंथन संधान कर रहा ... उजाले से अन्धकार अन्धकार में जुगनू घुप्प अन्धकार सफ़ेद प्रकाश .... निजित्व क्या है ? प्रेम निजित्व है संबंध निजित्व है पर यदि वह है सरेआम तो गलत है अश्लील है निजी नहीं ! अहिंसा निजित्व है अहिंसा की लक्ष्मण रेखा बनाने के लिए हिंसा हिंसात्मक शब्द - अन्याय है. यातना का सूक्ष्म कण भी निजी नहीं होता सड़क पर जब चीखें उभरती हैं तो वह निजी नहीं रह जातीं ऐसे में हारे लम्हों की हारी साँसों को कोई कहे तो सुनो क्योंकि उन लम्हों में सरेआम सरेराह छीन लिए गए निजी एहसासों की थरथराती सिसकियाँ होती हैं उन पर ऊँगली उठ... more »
मौसम और मच्छरों की मार -- डेंगू बुखार ...
देश में , विशेषकर दिल्ली, एन सी आर और मुंबई में डेंगू बुखार के बढ़ते प्रकोप से और यश चौपड़ा की अकस्मात् मृत्यु से डेंगू बुखार से सावधान रहना समय की मांग है. इस वर्ष बरसात का मौसम देर तक चलने की वज़ह से डेंगू भी देर से फैला है. जनता को जागरूक करने के लिए सरकार ने काफी प्रयास किये हैं जिनमे रेडियो , टी वी आदि पर विज्ञापन के अलावा अस्पतालों में रोगियों को पर्चे बांटे जाते हैं जिनमे डेंगू से बचाव के तरीके बताये जाते हैं . आइये जानते हैं , डेंगू से कैसे बचाव किया जा सकता है : डेंगू बुखार एक वायरल बुखार है जो *एडीज इजिप्टाई *नाम के मच्छर के काटने से फैलता है. डेंगू का वायरस मच्छर की ला... more »
"फिदेल मरने वाला है"
*-फिदेल कास्त्रो* ( प्रस्तुत लेख में फिदेल कास्त्रो ने दुनियाभर के साम्राज्यवादी मिडिया द्वारा फैलाए गये इस झूठ का मखौल उड़ाया है की "फिदेल मरने वाला है". इसमें उन्होंने "रिफ्लेक्संस" (विचार प्रवाह) को बंद करने के अपने फैसले का कारण भी बताया है. इस विषय में उन्होंने यह विनम्र आकलन पेश किया की क्यूबा में उनके लेखों से कहीं ज्यादा तवज्जो देने लायक कई जरूरी मुद्दे हैं. वैश्विक घटनाओं पर हमारे समय के एक अगुआ राजनेता की बेबाक और ईमानदार टिप्पणियों का कोई जोड़ नहीं है.) विक्टोरिया दे गिरों मेडिकल साइंसेज इंस्टिट्यूट के स्नातक प्रथम वर्ष कक्षा द्वारा जारी किया गया बस एक सन्देश ही साम्र... more »
अमर शहीद जतिन नाथ दास जी की जयंती पर विशेष
** *जतिंद्र नाथ दास (27 अक्टूबर 1904 - 13 सितम्बर 1929), उन्हें जतिन दास के नाम से भी जाना जाता है, एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थे | लाहौर जेल में भूख हड़ताल के 63 दिनों के बाद जतिन दास की मौत के सदमे ने पूरे भारत को हिला दिया था | स्वतंत्रता से पहले अनशन या भूख हड़ताल से शहीद होने वाले एकमात्र व्यक्ति जतिन दास हैं... जतिन दास के देश प्रेम और अनशन की पीड़ा का कोई सानी नहीं है |** जतिंद्र नाथ दास का जन्म कोलकाता में हुआ था, वह बंगाल में एक क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में शामिल हो गए | जतिंद्र बाबू ने 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया था ! नवम्ब... more »
पक्का घड़ा
* **सांस तो है चल रही,* *पर महसूस कुछ ना हो रहा,* *जिंदा हूँ या मृत हुई* *एहसास ना कुछ हो रहा|* * **शब्द औ भावनाएं गुम सी* *जड़,निर्मूल खुद को पा रही,* *अस्तित्व तो स्थावर हुई,* *पर स्वयं जंगम हुई जा रही|* * **सोचा खुद को मिट्टी का लोंदा* *पर निकली मैं पक्का घड़ा,* *कैसे बदलूं परिपक्वता ये* *पाऊं कैसे स्वीकृत रूप बड़ा|* * **बिखरे,लूटे सम्मान की* *समाधी एक बना डालूँ,* *या **चंद कतरों* * के वास्ते* *नीलामी उनकी कर डालूँ |* * **कालजयी,इस काल को तुम* *मौन सहमति दे रहे,* *क्या करूँ,हे ईश!अब मैं* *जो तुम भी निष्ठुर हो रहे|* * **स्वाति वल्लभा राज*
इसी तरह
(प्रख्यात बांग्ला लेखक सुनील गंगोपाध्याय, कविता जिनके लिए प्रथम प्रेम थी, जिन्होंने कविता के लिए अमरत्व को तुच्छ माना; यहां उनकी कविता के साथ उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि...) हमारे बड़े विस्मयकारी दुख हैं हमारे जीवन में हैं कई कड़वी ख़ुशियां माह में दो-एक बार है हमारी मौत हम लोग थोड़ा-सा मरकर फिर जी उठते हैं हम लोग अगोचर प्रेम के लिए कंगाल होकर प्रत्यक्ष प्रेम को अस्वीकार कर देते हैं हम सार्थकता के नाम पर एक व्यर्थता के पीछे-पीछे ख़रीद लेते हैं दुख भरे सुख हम लोग धरती को छोड़कर उठ जाते हैं दसवीं मंज़िल पर फिर धरती के लिए हाहाकार करते हैं हम लोग प्रतिवाद में दांत पीसकर अगल... more »
डिजिटल जीवनशैली
=================उपकरण का शाब्दिक अर्थ है, जिसके माध्यम से आपको कार्यों में सहायता मिले। जितनी अधिक सहायता करे, उतना अधिक उपयोगी है उपकरण। आपके डिजिटल जीवन ने आपके लिये एक नया विश्व निर्मित कर दिया है, उस जीवन से जुड़ने के लिये आपको डिजिटल उपकरणों की आवश्यकता होती है। यह एक अलग विषय है कि जीवन का कितना भाग डिजिटल जीवन हो, कई लोग इसे अपनी वर्तमान जीवनशैली और निजता पर एक अनावश्यक हस्तक्षेप मानते हैं, कई लोग इससे एक पल के लिये भी अलग नहीं होना चाहते हैं। यह हो सकता है कि घर आकर मोबाइल बन्द कर देना आपके पारिवारिक जीवन के लिये एक ऊर्जा देने वाला कार्य हो और यह भी संभव है आपके घर से बाहर होने पर वही मोबा... more »
ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से आप सब को ईद मुबारक !!
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
badhiya buletin hai
जवाब देंहटाएंस्तरीय सूत्र संकलन..
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन....
जवाब देंहटाएंकुछ अलग से लिंक्स....
आभार
अनु
श्रद्धांजली, बेहतरीन लिंक्स - ईद मुबारक
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआभार!