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मंगलवार, 4 सितंबर 2012

भव्यता और शान का प्रतीक - एक पेंसिल - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो,
प्रणाम !!

करीने से लिखे हुए खूबसूरत अक्षर भला किसे नहीं भाते। अक्षरों को खूबसूरत अंदाज देने में पेंसिल का सबसे अहम योगदान है, लेकिन कम ही लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि लेखनी को खूबसूरत अंदाज देने वाली पेंसिल किसी समय में वैभव का प्रतीक भी मानी जाती थी।
अपने शुरुआती समय में सभी पेंसिल पीले रंग की बनाई जाती थीं। इसका कारण था इसके ग्रेफाइट का चीन से आना। चीन में इस रंग को भव्यता का रंग माना जाता था और चीन ने ग्रेफाइट देने से पहले यह शर्त रखी थी कि सभी पेंसिलों को पीले रंग से बनाया जाए। पीले रंग की यह पेंसिल उस समय इसे रखने वाले की भव्यता और शान का प्रतीक मानी जाती थी।
बच्चों के जीवन में पेंसिल की उपयोगिता के संबंध में नर्सरी की शिक्षिका राम्या ने कहा 'आजकल कई माता-पिता अपने बच्चों को पेन से लिखने के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन शुरु में बच्चों को पेंसिल से लिखने की ही प्रेरणा दी जानी चाहिए। पेंसिल के इस्तेमाल से सुधरी लेखनी जिंदगी भर खूबसूरत बनी रहती है। राम्या ने कहा कि बच्चों को पेंसिल से विशेष आकृतियां बनाने को कहा जाता है, जिसे पेंसिल आर्ट का नाम दिया गया है।
रोहिणी में आर्ट क्लासेज चलाने वालीं दिव्या खंडेलवाल ने बताया कि नर्सरी से कक्षा पांच तक के बच्चों को पेंसिल आर्ट सिखाने से जिंदगी भर उनकी लेखनी और कला में उत्कृष्टता बनी रहती है। दिव्या ने बताया कि पेंसिल आर्ट के तहत बच्चों को पेंसिल से शेडिंग और ड्राइंग सिखाई जाती है। अब कई प्रतियोगिताओं में भी पेंसिल आर्ट को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे बच्चे इसका उपयोग करने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
दुनिया के कई देशों में 19 नवंबर को पेंसिल दिवस मनाया जाता है। इसी दिन अमेरिकी वैज्ञानिक हॉफमेन लिनमेन को रबर लगी हुई पेंसिल बनाने का पेटेंट मिला था। कई यूरोपीय देशों में इसे फ्री पेंसिल डे भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन पेंसिल फ्री बांटी जाती हैं। यूरोप में वर्ष 1622 से पेंसिलों का उत्पादन हो रहा है। पुराने समय की पेंसिल आज की पेंसिलों से अलग हुआ करती थीं। पहली अमेरिकी पेंसिल का निर्माण 1812 में हुआ था।
पेंसिल के बारे में एक मजेदार तथ्य यह भी माना जाता है कि एक सामान्य पेंसिल लगभग 45,000 शब्द लिख सकती है। साथ ही एक पेंसिल से लगभग 35 मील लंबी लाइन खींची जा सकती है। पेंसिल से शून्य गुरुत्वाकर्षण में लिखना भी संभव है।

आप के पास कितनी पेंसिल है ??

सादर आपका 


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पहले तो फ़िल्में होती थी स्वस्थ मनोरंजन | सामाजिक हित सोच लगते थे निर्माता धन || गीत सभी उन फिल्मों के मनभावन होते थे | दृश्य सभी आकर्षक ,मोहक, पावन होते थे || कलाकार वे सभी आज भी उर में बैठे हैं | अभिन...

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posted by अनामिका की सदायें ...... at अनामिका की सदायें ... 
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!

12 टिप्‍पणियां:

  1. http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2012/09/15-2011-14-2012.html

    this link was not found here so added it in comments

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  2. बढ़िया है जी , इत्ते सारे अच्छे लिंक मिले पढने को .

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  3. रचना जी, आपका आभार पर कल की बुलेटिन देखी आपने ... रेखा जी ने इस की सूचना दी थी अपनी पोस्ट मे और उस पोस्ट का लिंक बुलेटिन मे था !
    अगर मैं गलत नहीं तो आपके ब्लॉग पर कुछ समय पहले तक आम लोगो के प्रवेश पर रोक थी ... ऐसे मे लिंक लगाने का क्या लाभ !
    अब आपने रोक हटा दी है तो आगे से ध्यान रखा जाएगा !

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  4. पावला जी की पोस्ट पसंद आई,,,,
    लखनऊ में आपको पहचान न सका,अफ़सोस है,,,

    जवाब देंहटाएं

  5. पेंसिल के बारे में एक मजेदार तथ्य यह भी माना जाता है कि एक सामान्य पेंसिल लगभग 45,000 शब्द लिख सकती है। साथ ही एक पेंसिल से लगभग 35 मील लंबी लाइन खींची जा सकती है। पेंसिल से शून्य गुरुत्वाकर्षण में लिखना भी संभव है।
    रोचक तथ्य उपयोगी प्रस्तुति घर बार के लिए बाल गोपाल के लिए .बधाई !

    मंगलवार, 4 सितम्बर 2012
    जीवन शैली रोग मधुमेह :बुनियादी बातें
    जीवन शैली रोग मधुमेह :बुनियादी बातें

    यह वही जीवन शैली रोग है जिससे दो करोड़ अठावन लाख अमरीकी ग्रस्त हैं और भारत जिसकी मान्यता प्राप्त राजधानी बना हुआ है और जिसमें आपके रक्तप्रवाह में ब्लड ग्लूकोस या ब्लड सुगर आम भाषा में कहें तो शक्कर बहुत बढ़ जाती है .इस रोगात्मक स्थिति में या तो आपका अग्नाशय पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन हारमोन ही नहीं बना पाता या उसका इस्तेमाल नहीं कर पाता है आपका शरीर .

    पैन्क्रिअस या अग्नाशय उदर के पास स्थित एक शरीर अंग है यह एक ऐसा तत्व (हारमोन )उत्पन्न करता है जो रक्त में शर्करा को नियंत्रित करता है और खाए हुए आहार के पाचन में सहायक होता है .मधुमेह एक मेटाबोलिक विकार है अपचयन सम्बन्धी गडबडी है ,ऑटोइम्यून डिजीज है .

    फिर दोहरा दें इंसुलिन एक हारमोन है जो शर्करा (शक्कर )और स्टार्च (आलू ,चावल ,डबल रोटी जैसे खाद्यों में पाया जाने वाला श्वेत पदार्थ )को ग्लूकोज़ में तबदील कर देता है .यही ग्लूकोज़ ईंधन हैं भोजन है हरेक कोशिका का जो संचरण के ज़रिये उस तक पहुंचता रहता है ..

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  6. बहुत अच्छी पोस्ट इस पोस्ट के लिए शिवम् मिश्रा जी को बधाई हो । मेरे ब्लॉग पर भी पधारे - http://gyaan-sansaar.blogspot.com/

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  7. बढ़िया बुलेटिन...
    आभार शिवम् जी.

    अनु

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  8. शर्मा जी ,
    नमस्कार !

    आप से अनुरोध है आगे से कृपया पोस्ट पर पोस्ट के संबंध मे ही कमेन्ट दें आप खुद ही देखिये आपने जितना कुछ यहाँ लिखा है क्या उस का इस पोस्ट से कोई मतलब है !?

    मैं समझ सकता हूँ बाकी जगहों पर आप शायद ऐसा ही करते आए हो पर हर जगह एक सा माहौल तो जाहिर है होता नहीं है !

    स्नेह बनाएँ रखें!

    सादर

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  9. वाह पेंसिल के विषय में इतनी सारी जानकारियां मेरे लिए बिल्कुल नई रहीं । बहुत ही कमाल की बात कही आपने । सहेजनीय संग्रहणीय पन्ना ।आभार शिवम भाई

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!