प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !
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शिवराम हरि राजगुरु (मराठी: शिवराम हरी राजगुरू, जन्म:२४ अगस्त १९०८ - मृत्यु: २३ मार्च १९३१) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे । इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी पर लटका दिया गया था । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी ।
शिवराम हरि राजगुरु का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी सम्वत् १९६५ (विक्रमी) तदनुसार सन् १९०८ में पुणेजिला के खेडा गाँव में हुआ था । ६ वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे । इन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदो का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बडे प्रशंसक थे ।
वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ । चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये। आजाद की पार्टी के अन्दर इन्हें रघुनाथ के छद्म-नाम से जाना जाता था; राजगुरु के नाम से नहीं। पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद ने छाया की भाँति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी।
२३ मार्च १९३१ को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिन्दुस्तान के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया ।
शिवराम हरि राजगुरु का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी सम्वत् १९६५ (विक्रमी) तदनुसार सन् १९०८ में पुणेजिला के खेडा गाँव में हुआ था । ६ वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे । इन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदो का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बडे प्रशंसक थे ।
वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ । चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये। आजाद की पार्टी के अन्दर इन्हें रघुनाथ के छद्म-नाम से जाना जाता था; राजगुरु के नाम से नहीं। पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद ने छाया की भाँति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी।
२३ मार्च १९३१ को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिन्दुस्तान के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया ।
ब्लॉग बुलेटिन की टीम और पूरे ब्लॉग जगत की ओर से आज अमर शहीद राजगुरु जी की 104 वी जयंती के मौके पर हम सब उनको शत शत नमन करते है !
सादर आपका
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कुछ कारण तो बताइये
सब को समझ आती है
बधाइयाँ
आप भी आज़माएँ
ज़रा संभाल कर
जो जैसा उसके लिए वैसी
कहाँ से
हैप्पी बर्थड़े
कैसा है
परांठे इधर दीजिये बाकी आप संभालिए
किसे हो गई
कहाँ हुआ
कहीं ब्लॉग बुलेटिन तो इन मे नहीं है
बात मे दम है
सुनाइए
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अब आज्ञा दीजिये ...
इंकलाब ज़िंदाबाद !!
इंकलाब ज़िंदाबाद !!
शत शत नमन...इंकलाब ज़िंदाबाद
जवाब देंहटाएंबढिया बुलेटिन
जवाब देंहटाएंइंकलाब ज़िंदाबाद आपकी आस्था को नमन शिवम भाई...!!
जवाब देंहटाएंबहुत जानदार बुलेटिन है ...!!
और बहुत बहुत आभार ...मेरी रचना को यहाँ स्थान मिला ...!!
देश अनेक प्रकार की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से जूझ रहा है। यह सही वक्त है अपने शहीदों के स्मरण का।
जवाब देंहटाएंअमर शहीद राजगुरु जी को शत-शत नमन !
जवाब देंहटाएंअमर शहीद को सादर नमन...
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन टीम का तहे दिल से शुक्रिया ये एक ऐसा मंच है जहां से ब्लोगरों के अच्छे ब्लॉग तक पहुंचा जा सकता है
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया भाई
इंकलाब जिंदाबाद!
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन... आभार!!
हम उस देश के वासी हैं, दिस देश में राजगुरु जन्मे थे..... वन्दे मातरम् !
जवाब देंहटाएंकर लेने दीजिये इस डरपोक , भ्रष्ट सरकार को अपनी मनमानी। बंद कर लें जितनी भी sites चाहे तो। लेकिन राष्ट्रवादियों को कोई बाँध नहीं सका है आज तक। हम सब जारी रहेंगे। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीने जाने का हम घोर विरोध करते हैं। -- वन्दे मातरम् !
जवाब देंहटाएंदेश के लिए क़ुर्बान होने वाले वीरों को सलाम.
जवाब देंहटाएंशिवराम हरि राजगुरु मराठी थे . उन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदों का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसे क्लिष्ट ग्रन्थ को भी बहुत कम आयु में ही कण्ठस्थ कर लिया था। वह छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे.
इसके बावजूद वह क्षेत्रवाद और सांप्रदायिकता की भावना से ऊपर थे . अपने मन की संकीर्णता से मुक्ति पाना अंग्रेजों से मुक्ति पाने से भी ज़्यादा कठिन काम है. यह काम उन्होंने किया और हमारे लिए एक अच्छी मिसाल क़ायम की.
उनका जन्म 24 अगस्त 1908 को हुआ था. आज उनके जन्मदिन पर हम सब अपने मन को संकीर्णताओं से मुक्त करने का संकल्प लें.
उन्हें 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था ।
जिन्हें फाँसी पर नहीं लटकाया गया, उनके काल के दूसरे सब भी मर चुके हैं. उन्हें फांसी देने वाला जल्लाद, जज और अंग्रेज़ सब मर गए हैं.
मौत सबको आनी है. उन्हें आई है तो हमें भी आएगी.
हम अपने मन को निर्मल बनाकर जियें और बुराई से पवित्र हो कर मर जाएँ, तो हम सफल रहे.
यह एक लड़ाई हरेक आदमी अपने आप से लड़ ले तो हमारे देश की हर समस्या हल हो जायेगी.
वर्ना हिसाब लेने वाला एक प्रभु परमेश्वर तो हमारे सभी छिपे और खुले कामों का साक्षी है ही.
अपने शुभ अशुभ कर्मों को खुद हमें ही भोगना है.
Nice post.
कुछ सूत्र तो छूटे जा रहे थे..पढ़वाने का आभार..
जवाब देंहटाएंjay hind ...
जवाब देंहटाएंजै हिन्द... धन्य थे यह लोग जो देश के लिए शहीद हुए... आज ऊपर से देख रहे होंगे तो शायद सोचते होंगे क्या इन्ही लोगों के लिए जान दी थी !!!
जवाब देंहटाएंदेश आज़ाद हो गया और हम... गुलाम के गुलाम रह गये...
SHAT-SHAT NAMAN AMAR SHAHID RAJGURU JI KO.
जवाब देंहटाएं@कुछ कारण तो बताइये
जवाब देंहटाएंकई बार बिना कारण के भी मुस्कुरा देना चाहिए...
आभार.
आप सबका बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंशहीदों को नमन शहादत हो नमन बहुत सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति मिश्रा जी लिंक चयन भी उत्तम , डा. अनवर जमाल साहब के अनमोल कमेन्ट के लिए उन्हें अलग से शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंइस सार्थक बुलेटिन को पढकर अच्छा लगा। सकारात्मक भावनाओं के लिए बधाई और सर्प संसार की पोस्ट को बुलेटिन में शामिल करने का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं............
सभी ब्लॉगर्स का अदब और तहज़ीब की नगरी में स्वागत है...
शिवम भाई ,
जवाब देंहटाएंआप बुलेटिन में शहीदों की यादों को समेट कर एक अलग ही सार्थकता प्रदान कर रहे हैं ।
ऐसा हर पन्ना दुर्लभ और संग्रहणीय है । नमन नमन नमन हमारे इन शहीदों को ।
पोस्टें सारी चकाचक हैं , कुछ अनियमित से हैं , जल्दी ही गाडी को पटरी पर लाने की कोशिश करते हैं ।