प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !
प्रणाम !
स्कूली रिक्शों व वाहनों में खचाखच भर कर स्कूल जाने वाले इन बच्चों को खतरों का खिलाड़ी कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। जिन्हें देख अनायास ही हर किसी के मुंह से उफ निकलता है कि इन नन्हे मुन्हें बच्चों के साथ कहीं कोई अनहोनी घटना न घट जाये। ऐसा नजारा हर रोज स्कूली बच्चों के स्कूल आते जाते समय देखा जा सकता है।
स्कूल की छुट्टी होते ही इन नन्हें-मुन्हें बच्चों को स्कूली रिक्शों में ठूंस ठूंस कर भर दिया जाता है। कुछ बच्चे तो रिक्शे पर आगे की ओर एक तख्ती पर बैठा दिये जाते हैं व सामने लगे एंगिल को पकड़ कर बैठे यह बच्चे अगर दचकी या ठोकर लगते ही नीचे सरक जाये व गिरकर घायल हो जाये तो कोई बड़ी बात नहीं है। वहीं स्कूली वाहनों पर भी जाने वाले बच्चों का यही हाल है। बच्चे वाहनों में लटक कर घर से स्कूल व स्कूल से घर का रास्ता तय करते हैं। इन्हें देख ऐसा ही लगता है जैसे यह स्कूली बच्चे नहीं बल्कि सर्कस के कलाकार हैं जो चलते वाहन से बाहर की ओर लटक कर करतब दिखा रहे हैं।
लेकिन इन बच्चों की जानमाल की सुरक्षा हेतु न तो स्कूल प्रशासन जिम्मेदारी पूर्ण रवैया अपना रहा है, न अभिभावकों को इस बात की चिंता है। हद तो देखिए इन स्कूली बच्चों पर अब तक प्रशासन की नजर भी नहीं पड़ी है... जो ऐसे स्कूल के विरूद्ध कार्रवाई करें। जिनके रिक्शे व वाहन क्षमता से अधिक बच्चे ढोने का काम करते हैं जैसे यह बच्चे नहीं बल्कि सब्जी तरकारी या कोई सामान हो जो गिर भी जाये तो कुछ नहीं बिगड़ेगा। यदि प्रशासन ने सख्त कदम नहीं उठाये तो किसी भी दिन इन स्कूली बच्चों के साथ कोई अनहोनी घटना घट सकती है।
आप सब से भी अनुरोध है कि अपने आस पास के ऐसे स्कूल वालों को समझाएँ और इन मासूमो को किसी भी अनहोनी का शिकार होने से बचाएं !
सादर आपका
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शर्म से मरती इंसानियत
माँ तुझे सलाम
कैसे बीते
जैसे एक युग बिता
कि हर ओर मुस्कुराहट हो
साथ मे चाय और अखबारजैसा आपने और हमने बनायासुनाइए
एक थे ... एक ही रहेंगे हम
जिस ने मचा रखा है हाहाकार
सबको
बहुत सारी
हमारी नींव
हमें क्या लेना जमाने भर की इदों से
किस के
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आज ईद, कल ईद, सुबह ईद, और शाम को ईद ;
खुदा करे कि आप के हर लम्हें का नाम हो ईद !
ईद मुबारक!
खुदा करे कि आप के हर लम्हें का नाम हो ईद !
ईद मुबारक!
पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को ईद मुबारक !
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!
बेहद गम्भीर मुद्दा। मगर बात वहीं अटकती है, हमें दो पैसे बचाने हैं, और उस गरीब को कमाने हैं। बीच में पीसता है बचपन।
जवाब देंहटाएंबढिया बुलेटिन
जवाब देंहटाएंउनके नाम .... जिनके साथ के बगैर किसी का अस्तित्व नहीं . जो शब्दों में प्राण फूकते हैं और फिर चेतना से भर उठते हैं
जवाब देंहटाएंखतरों के खिलाड़ी ही कहे जायेंगे।
जवाब देंहटाएंशिवम मिश्रा जी ,अभावों और अरबपतियों का सह अस्तित्व है इस देश में रिक्शा क्या यहाँ तो बस और गाडीरेल की छत पे लोग ....चल छैयां छैयां करते फिरतें हैं ,न मरते हैं न डरतें हैं ,इलेक्ट्रोक्युशन की भेंट कितने ही रोज़ चढ़तें हैं ,८० यात्रियों से खचाखच भरी बस नदी में जल समाधि लेती है ये मेरा इंडिया ...है प्यारे ...यहाँ सरकार भी रिमोट से चलती है किसी की कोई जिम्मेवारी नहीं जगह जगह लिखा होता है "बिका हुआ माल वापस न होगा ,यात्री अपने सामान की खुद हिफाज़त करें ....महिलायें जीभ लपलपाते स्वानों से बचें ,अंधेर नगरी ,चौपट राजा ,टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा .... ..कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंram ram bhai
सोमवार, 20 अगस्त 2012
सर्दी -जुकाम ,फ्ल्यू से बचाव के लिए भी काइरोप्रेक्टिक
यह दुर्दशा दिल्ली/नोएडा में रोज देखता था.. सचमुच एक विकराल समस्या है यह!! कमाल की दृष्टि है आपकी!!
जवाब देंहटाएंVAKAYI YE BACHCHO PAR EK BAHUT BADA KHATRA HAI.PLEASE AAP SAB MERA BLOG AVSHYA PADE:- GAUREYA.BLOGSPOT.COM KA NAYA LEKH "REDIESHAN KA ASAR".
जवाब देंहटाएंSaarthak Buletin.
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