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शुक्रवार, 15 जून 2012

यादों की खुरचनें - 5




सुबह सुबह कौवे की कांव कांव ने बरसों बाद जगाया , पहले उसे भगाने के लिए उठते थे ... आज इस ललक से उठी हूँ - अरे , कौवा आया है ! सब लुप्त जो
हो गए हैं . जाने कब यह गीत बजता था -
भोर होते कागा पुकारे काहे राम
कौन परदेसी आएगा मेरे गाम ...
अब तो न कौवा न परदेसी ! फुर्सत नहीं , छुट्टी नहीं ..........

यादों की खुरचनें संभालो तो सही -

प्रवाह भी हूँ , अथाह भी हूँ , लुप्त भी हूँ , अंकित भी हूँ --- पढ़ सको तो शब्द शब्द उतर जाऊंगा मन के गहरे स्रोतों में ,

" मैं

नदी नहीं........
कि काट कर घायल कर दूं
अपने ही किनारों को,
और ......न बेबस तालाब हूँ .......
कि कीचड में तब्दील कर दूं
अपनी सारी सीमाएं /
मैं
हमेशा के लिए
न तो बह कर जा सकता हूँ .......
नदी की तरह,
न ठहर सकता हूँ .......
तालाब की तरह
............किन्तु
तुम मुझे इल्ज़ाम न देना,
मैं तो बारबार आऊँगा............
ज्वार की तरह
.................तुम्हें स्पर्श करने ...........
लौट जाऊंगा फिर
उछाल कर सीपियाँ ............
तुम्हारे सुनहले....रूपहले तट पर
और लिख कर .......
बालू पर एक इबारत .............
पढ़ सको तो पढ़ लेना
खारे पानी की
अनंत व्यथा-कथा. "


हृदय गवाक्ष: इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, यादों के जल जब प्लावित होते हैं , दृष्टि में हिलोरें लेते हैं चलचित्र की तरह तो कलम पतवार बन जाती है ...


"


२१ दिसंबर, २००७ को तेजी बच्चन ने दुनिया छोड़ दी..... तेजी बच्चन...वो तेजी बच्चन जो मुझे इसलिये नही पसंद थी क्योंकि वो महानायक अमिताभ की माँ थीं बल्कि इसलिये पसंद थी क्योंकि उन्होने न सिर्फ भारत को बल्कि विश्व को अमिताभ सा सपूत दिया था..!

वो तेजी बच्चन जो मुझे इसलिये नही पसंद थी क्योंकि वो मधुशाला के कवि डॉ० हरिवंशराय बच्चन की पत्नी थी, बल्कि इसलिये पसंद थीं क्योंकि मधुशाला के कवि की क़लम के निराश कवि ने जब उनसे पूँछा कि "क्या करूँ संवेदना ले कर तुम्हारी क्या करूँ मैं?" तो द्रवित होकर उन्होने उसे गले लगा लिया और जीवन साथी बन कर ऐसी प्रेरणा दी कि आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि पाकर उन्होने दशद्वार से सोपान तक का सफल सफर तय किया।

डॉक्टरेट की उपाधि पाकर लौटे बच्चन जी को जब पता चला कि तेजी ने क्या क्या न बता कर उनका शोध पूर्ण कराया तो वे अभिभूत हो गये ...और माना कि अगर उन्हे ये सब पता चल जाता तो वे शोध अधूरा छोड़ कर लौट आठे होते! यहाँ सरकार की मदद बंद हो गई थी और तेजी ने अपने जेवर बेंच कर उनकी फीस का इंतजाम किया था और कहा था कि

एक जुआँ के दाँव पर हम सब दीन्हि लगाय
दाँव बचे, इज्जत रहे जो राम देय जितवाय।


कितनी बार बच्चन जी ने कहा कि मेरे अंदर की स्त्री तेजी के पुरुषत्व से आकर्षित रहती है भारत कोकिला से लेकर इंदिरा गाँधी तक को तेजी ने ही मोह रखा था.....!
ऐसी पत्नी...ऐसी माँ...ऐसी स्त्री को मेरी श्रद्धांजली उन्ही के नायक के शब्दों में.....!


इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!
यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का,
लहरालहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का,
कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो,
बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का,
तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो,
उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,उस पार न जाने क्या होगा! "


मै और कुछ नही...: इच्छा - अब मैं मुक्त हूँ , तुम्हें भी मुक्ति का अंश देती हूँ ... पर न तुम बाध्य हो , न मैं -


" याचना नही है
बता रही हूँ।
कि अब जीना चाहती हूँ
बहूत हो गया
अब तलक तुम्हारे बताये रास्ते पर
जीती गयी,
जीती गयी या
यूँ कहूँ की
जीवन को ढो़ती गयी।
पर अब ऐसा नही होगा
हाँ
तुम्हे कोई दोष नही दे रही हूँ
ना ही अपनी स्थिती को
जायज या नाजायज
बताने के लिये लड़ रही हूँ।
मै बस इतना कह रही हूँ
कि
आगे से अब सब बदलेगा
मै अपने शर्तो पर
अपने आपको रखूँगी
और जीवन को ढो़ने के बजाय
जीऊँगी।
हाँ मेरे जीवन मे
अगर तुम चाहो तो
तुम भी शामिल रहोगे।
ना यह न्योता है
ना निहोरा है।
बतला रही हूँ।
तुम चाहो तो
मेरे हमकदम बनकर
साथ चल सकते हो।
एक आसमान जिसमे हम दोनो का
अपना अपना अस्तित्व हो
वो जमीं
जिसमे हम दोनो की अपनी अपनी
जड़े हों
वो मौसम
जिसमे हम दोनो की खुशबु हो
ऐसे वातावरण मे जहा
हम दोनो साँस ले सकें।
पर अगर तुम्हे ये मन्जूर ना हो
तो भी
मै बता रही हूँ।"

यादों की खिड़कियाँ खुलते जो हवाएँ गुजरती हैं , उसमें अनचाहा , मनचाहा - बहुत कुछ मिल जाता है ....

12 टिप्‍पणियां:

  1. bastar ji ki aur bhi abhivyaktiyan waqt-dar-waqt pesh kijiyega....bahut pasand aati hain.

    teji ji k tyag ko naman.

    aapki koshish k liye aabhaar.

    जवाब देंहटाएं
  2. कौशलेन्द्र जी की बहुत अच्छी कविता पढ़ाई आपने।..आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. लाजवाब लिंक्स। कविता तो अद्भुत है।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह ...बहुत बहुत धन्यवाद ..इतनी खूबसूरत पोस्ट्स पढवाने का .

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  5. तेजी बच्चन जी को शत शत नमन !


    बेहद उम्दा रफ्तार से चल रही है यह सीरीज ... सिलसिला बना रहे !

    जवाब देंहटाएं
  6. कागा नहीं,गौरैया नहीं,गिद्ध नहीं ...और भी न जाने क्या-क्या नहीं क्योंकि इनके न होने से पहले से ही इंसानियत जो नहीं
    डॉक्टरेट के लिये सहधर्मिणी की तपस्या ....अभिभूत करते हैं ऐसे तप। बच्चन जी की कविताओं के माधुर्य की जड़ों को सीचा है इस तप नें।
    "मैं और कुछ नहीं ...." मुक्ति के लिये अंतिम निर्णय....
    सभी टिप्पणीकारों/पाठकों को सादर नमन ! रचना आपको अच्छी लगी। अभिव्यक्ति सार्थक हुयी। रश्मि प्रभा नाम के जौहरी को सादर प्रणाम !

    जवाब देंहटाएं
  7. तेजी बच्चन जी को शत शत नमन !बहुत सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति .. आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. व्यक्तित्वों को निखारने में संगनियों की भूमिका गहरी रही है, पढ़ कर आनन्द आ गया।

    जवाब देंहटाएं
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    बेहतरीन रचना


    दंतैल हाथी से मुड़भेड़
    सरगुजा के वनों की रोमांचक कथा



    ♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥

    ♥ पढिए पेसल फ़ुरसती वार्ता,"ये तो बड़ा टोईंग है !!" ♥


    ♥सप्ताहांत की शुभकामनाएं♥

    ब्लॉ.ललित शर्मा
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