यादों का झोंका जब आता है तो कभी मन अस्त व्यस्त हो जाता है तो कभी राहत में खो जाता है , कितनी खोयी हँसी चेहरे पर तैर जाती है , और एक नई रौनक से चेहरा भर उठता है ...
ख्वाब हाथ पकड़ लें .... ?
कुछ हम कहें: तो कितना कुछ छू जाता है हौले से , कौन है - गोलम्बर , ओसारा , पाये , झूले , गुड़ियों की
पिटारी , पुरानी चिट्ठियों का बण्डल .... और
" मेरी दिवारों में बड़ी बड़ी खिड़कियां है,
दिखती है उनसे आस पास फ़ैली,
बच्चों की किलकारियां,
अलसायी दुपहरिया की गप्पें,
सीती,पिरोती, पापड़ बेलती कलाइयों की खनकती चूड़ियां,
दिवारों के इस पार पसरा पड़ा है अजगरी सन्नाटा,
बड़ी बड़ी अलमारियां, किताबें ही किताबें,
दोस्त हैं मेरी, पक्की दोस्त,
सवाल पूछूं तो जवाब देती हैं
कभी कभी खुद भी पूछ लेती हैं,
कहानी, कविता सुनाती हैं ,
दुनिया की सैर कराती हैं,
मेरे संग मस्ती की तान छेड़तीं तो……।
नाक तक भरे रेल के डिब्बे,
गाती, बुनती मैथी धनिया साफ़ करती
ये अनजानी रोज की हमसफ़र मुसाफ़िरनें,
उनकी चुहलबाजी में शरीक होने को मचलता मेरा मन,
आस पास फ़ैले हजारों नाम गूंजते हैं
इन कानों में,
कोई मेरा भी नाम पुकारे तो………
दोस्ती की पहल करने को
बैठने की जगह देखड़ी हो जाती हूँ,
वो थैंक्यु कह बैठ जाती है
और खो जाती है अपनी रंग रलियों में
बिना नजर घुमाए
मैं बगल में दबी किताब को ,
किताब मुझको देखती है,
अगर किताब कुछ बोल पड़ी तो………"
"प्रेम ही सत्य है": कल और आज समय के साथ साथ कितनी भावनाएं करवट लेती हैं , कितने दृश्य बदल जाते हैं ... यह कल और आज का फर्क
शायद हमेशा होता है , हमेशा रहेगा -
" कल
माँ की सुन पुकार मैं उठ जाती
चूल्हा सुलगाती भात बनाती
ताप से मुख पर रक्तिम आभा छाती
मुस्कान से सबका मन मैं लुभाती !
माँ की मीठी टेर सुनाई देती
झट से गोद में वह भर लेती
जैसे चिड़िया अंडों को सेती !
लोरी से आँखों में निन्दिया भर देती !
नन्हे भाई का रुदन मुझे तड़पाता
मन मेरा ममता से भर जाता
नन्हीं गोद मेरी में भाई छिप जाता
स्नेह भरे आँचल में आश्रय वह पाता !
सोच सोच के नन्हीं बुद्धि थक जाती
क्यों पिता के मुख पर आक्रोश की लाली आती
क्रोध भरे नेत्रों में जब स्नेह नहीं मैं पाती
मेरे मन की पीड़ा गहरी होती जाती !
आज
मेरी सुन पुकार वह चिढ़ जाती
क्रोध से पैर पटकती आती
मेरी पीड़ा को वह समझ न पाती
माँ बेटी का नाता मधुर न पाती !
स्वप्न लोक की है वह राजकुमारी
नन्हीं कह मैं गोद में भरना चाहती
मेरा आँचल स्नेह से रीता रहता
उसका मन किसी ओर दिशा को जाता !
भाई की सुन पुकार वह झुँझलाती
तीखी कर्कश वाणी में चिल्लाती
पश्चिमी गीत की लय पर तन थिरकाती
करुण रुदन नन्हें का लेकिन सुन न पाती !
पढ़ना छोड़ पिता के पीछे जाती
प्रेम-भरी आँखों में अपनापन पाती
पिता की वह प्रिय बेटी है
कंधा है , वह मनोबल है !
माँ की सुन पुकार मैं उठ जाती थी
मेरी सुन पुकार वह चिढ़ जाती है
कल की यादें थोड़ी खट्टी मीठी थी
आज की बातें थोड़ी मीठी कड़वी हैं !"
अब गड्ढों में सड़क ढूँढनी पड़ती है ....>>>> संजय कुमार पर्यावरण बचाओ , कन्या बचाओ, .... सबसे बड़ी बात संस्कार बचाओ .... कुछ तो अपनी
गिरेबान में झांको , कुछ तो बचाओ .... क्या क्या ढूंढते फिरें
" आज इंसानों और जानवरों के बीच अंतर ढूँढना पड़ता है !
संसद भवन में बैठी भीड़ में , सच्चा राजनेता ढूँढना पड़ता है !
अपनों के बीच रहते हुए , अपनापन ढूँढना पड़ता है !
हजारों दोस्तों के होते हुए एक दोस्त ढूँढना पड़ता है !
रोज-रोज होते झगड़ों में प्यार ढूँढना पड़ता है !
पति-पत्नी को एक-दुसरे में विश्वाश ढूँढना पड़ता है !
आज लोग " राखी का इंसाफ " में इंसाफ ढूँढ रहे हैं,
यहाँ तो देश की सर्वोच्च अदालतों में इंसाफ ढूँढना पड़ता है !
अरबों की आवादी में इंसान ढूँढने पड़ते हैं !
कलियुग में माँ-बाप को "श्रवण कुमार " ढूँढने पड़ते हैं !
बढ़ गए पाप और बुराई कि, अच्छाई ढूँढनी पड़ती है !
बेईमानों के बीच ईमानदारी ढूँढनी पड़ती है !
खुदा की खुदाई ढूँढनी पड़ती है !
तो कहीं बच्चों को माँ की ममता ढूँढनी पड़ती है !
पश्चिमी सभ्यता में ढले लोगों में, अपनी सभ्यता ढूँढनी पड़ती है !
करोड़ों इंसानों में इंसानियत ढूँढनी पड़ती है !
अब गड्ढों में सड़क ढूँढनी पड़ती है !
अब गड्ढों में सड़क ढूँढनी पड़ती है ! " .........
हो सके तो लौटा दो बचपन का सावन , वो कागज़ की कश्ती .....
बढ़िया .....
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंरश्मि जी मेरी कविता को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद्। आभार्।
जवाब देंहटाएंसोने से पहले माँ का ऑफ़लाइन मेसेज़ देखती हूँ लेकिन पहले आपकी मेल पर नज़र पड़ी... वहाँ से यहाँ आकर अचरज से देखती रह गई जैसे आप बार बार सोते ब्लॉग़र को जगा रही हों डूबते ब्लॉग़ को बचाने के लिए.....बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा यहाँ आकर.
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स व प्रस्तुतियां.
सर्थक लिंक्स ...बहुत बढ़िया बुलेटिन...
जवाब देंहटाएंवाह रश्मि दी , बेहतरीन चल रही है श्रंखला । आप जब अपने अंदाज़ में होती हैं तो अदभुत समां बांध देती हैं । पिछली भी सारी पोस्टें बांचता हूं अभी
जवाब देंहटाएंसोंधी खुरचन:)
जवाब देंहटाएंप्रेम और सत्य बहुत बढ़िया लगी ...शायद 'generation gap' इसी को कहते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत खूब दीदी !
जवाब देंहटाएंयादों की खुरचन ... भावनाओं की हथेली पर स्वाद तो निराला होगा ही :) लाजवाब
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स
जवाब देंहटाएंसुन्दर पठनीय सूत्र..
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