- दिनकर जी का जीवन दर्पण और उनकी कुछ चुनी कविताएं प्रस्तुत की जाती हैं यहां। अगर रुचि हो तो ही पधारें। अनामिका जी का अच्छा प्रयास है।
- मृदुला जी की कविताओं में एक अलग छटा होती है। बिम्बों का सधा प्रयोग और शैली की जीवन्तता। सूर्यास्त कहते हैं हुआ में उन्होंने ढलती शाम को एक अलग रंग देने का प्रयास किया है।
धूप थाली मेंसजा ली,छितिज का आँचलपकड़करएक चक्का लाल सा,
3. रविकर फैजावादी जब सक्रिय होते हैं, तो हर जगह वे ही दिखते हैं। कविता की तो मानों वे टकसाल हैं। जहां गए दो-चार काव्यात्मक पंक्तियों का वृक्षारोपण कर आए।
हर नए-पुराने विषय पर लिखने की उनको बीमारी है,
कल तक शीतलता पर लिखा, आज गरमी की बारी है।
4. वैसे, अगर आप शांता को नहीं जानते...तो गलती आपकी नहीं,... भारत की हर दूसरी बहन यूं ही तमाम कुर्बानी देने के बावजूद गुमनाम बनी रहती है। शांता की किस्मत में भी ऐसी ही कुर्बानी थी। बावजूद इसके कि वो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की बहन थी और रामजन्म को संभव बनाने के लिए उसने बड़ा बलिदान दिया था। इस गुमनाम पात्र जो लेकर रविकर जी ने एक ब्लॉग ही बना दिया है। नाम है “श्रीराम की सहोहदरी : भगवती शांता”। अब इस विषय पर उन्हें जो “कुछ कहना है” आप यहां पढ़ें। इस काव्य रचना के बारे में रविकर जी का कहना है, “यह रचना अक्तूबर में पूरी हो चुकी है- परन्तु कई जगह कुछ लोच है- दुबारा यथा-संभव संशोधन कर पोस्ट कर रहा हूँ ।”
5. ज़िन्दगी ज़िन्दादिली का नाम है, कहने वाले तो कह गए। दीपक बाबा तो उनसे मिल आए हैं और सबको मिला रहे हैं। पढ़िए यहां इन ६० साल के जवान या बूढ़े के बारे में और देखिए एक बानगी यहां
“देखो मितर, तेरा प्रेम बिलकुल पवितर उन्दे विच कोई दो राय नई. पर जो ग्यारह सौ रूपए मेरी चादर वास्ते संभाल रखे हन, उन्दे विच पंच सौ रुपये मेनू हुने दे दे. कल किसने देखा है यार – मैंने मरुँ या न मरुँ. J
6. कुछ सीरियस कविताएं पढ़ने की ज़रूरत महसूस हो तो आपको रमाकांत सिंह से मिलना चाहिए। इनकी कविताओं में ज़माने का दर्द, समाज का चिंतन और मन की चिंता प्रकट रूप से दिखती हैं। आप भी देखिए।
नींद आती नहीं
सपने दिखते नहीं
सपने दिखते हैं वो
अपने होते ही नहीं
तुम ही बतलाओ भला
नींद कैसे आती है ?
7. कुछ गिरह ऐसी होती हैं जो सात जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ती और कुछ गांठें देकर छूट जाती हैं। साधना वैद जी इसी तरह की गिरह की चर्चा कर रही हैं।
सात जन्मों के लिये
जो गिरह बाँधी थी
वह चंद महीने भी
नहीं चल पाई !
8. स्वप्न मेरे हो या आपके, वह आते तो हैं नींद में आने के बाद। पर नींद में जाने के पहले कोई ख़त लग जाए हाथ, तो क्या होता है बता रहे हैं दिगम्बर नासवा।
और नींद की आगोश में जाने से पहले
न जाने रात के कौन से पहर
तेरे हाथों लिखे खत
खुदबखुद दराज से निकलने लगते हैं
9. मुकेश चन्द्र पांडेय के लक्ष्य पर इस बार है भारत के राष्ट्रपति :प्रमुख तथ्य जब सारे देश में अगले राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर बहस ज़ारी हो तो इस तरह के तथ्य बड़े काम के हैं।
10. बादल है-प्रकृति का नेह। उसकी कल्पना मात्र हर्षाती है। जिस पर बरस जाए,वह तो नाच ही उठेगा। कैसे,कोई मोर देख कर जाने। सुमन जी बता रही हैं -- छा गए बादल।
११. एक चिन्तन है - जान देना यह विकल्प कितना सही है? आप भी अपने विचार शेयर करें। रीना मौर्या का प्रश्न और एक कविता।
१२. पल्लवी सक्सेना हमेशा कोई न कोई सामाजिक मुद्दा उठाती हैं और उस पर विमर्श करती हैं। इस बार उन्होंने प्रश्न उठाया है कि विवाहित होते हुए भी अविवाहित दिखने की होड़
१३. कुंवर जी को मैं ब्लॉगजगत का ग़ज़ल सम्राट मानता हूं। इनकी ग़ज़लें जहां एक ओर चिंतन का नया आयाम सौंपती हैं वहीं इनमें सामाजिक सरोकार को भी स्वर दिया जाता है। चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा भी ऐसी ही ग़ज़ल है जो दिल के साथ दिमाग में भी जगह बनाती है।
लोग शक करने लगे हैं बाग़बाँ पर.
वक़्त ऐसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर.
चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा,
हम करें किस पर यकीं आख़िर यहाँ पर.
१४. उन्नयन पर उदयवीर सिंह ने कोई कविता पेश की और आपका दिलो-दिमाग सोचने पर मज़बूर न हुआ हो ऐसा न हुआ कभी।
ढूंढा,
चार्वाकों , सांख्य,बौद्ध, जैन ,
द्वैत ,अद्वैत दार्शनिकों ने ,
अंधकार के गह्वर में
तिरोहित ,
पैरों में छाले,
फटे वसन,अश्रु-भरे नेत्र
१५. जब देवेन्द्र जी के बताए कंक्रीट के जंगल से गुज़रेंगे तो ... आपको भी महसूस होगा कि
आकाश से
झर रही आग
घरों में
उबल रहे लोग।
१६. वीरू भाई जितनी मेहनत कर सामग्री लगाते हैं अपने ब्लॉग पर उतनी मेहनत शायद ही कोई करता होगा। किसी एक पोस्ट को रिकोमेंड करने से बेहतर है कि उनके ब्लॉग को ही मैं रिकोमेंड करूं। राम राम भाई कहते-कहते आप वहां पहुंचिए वीरू भाई स्वागत करते मिल जाएंगे।
१७. अगर आपने डॉ. जे.पी. तिवारी को अब तक नहीं पढ़ा, तो बस अभी से ही शुरू कर दीजिए। बहुत कम लोग हैं जो इतने ज्ञान की बातें करते होंगे। दिल से संत पर मन से किसी वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाले तिवारी जी के ब्लॉग्स हैं -- ज्ञान-विज्ञान, प्रज्ञान-विज्ञान, प्रज्ञान विज्ञान परिचर्चा,
पूछता हू समीक्षकों- परीक्षकों से, आज के प्रखर चिंतकों से एक छोटा प्रश्न.
यह बसंत क्यों हुआ असंत? और कैसा है सितारों के उस पार का संसार?
१८. चंद्रभूषण मिश्र जी गाफ़िल की ग़ज़लों में कुछ खास होता है जो हमेशा दिल और दिमाग के बीच रस्साकस्सी को निमंत्रण देता है। इस बार वो अमानत में लेकर आए हैं छुपा ख़ंजर नहीं देखा, तो देखिए न ..
जो हर सर को झुका दे ख़ुद पे ऐसा दर नहीं देखा।
जो झुकने से रहा हो यूँ भी तो इक सर नहीं देखा।।
पहुँच जाता कोई वाँ पे जहां ईसा का रुत्बा है,
कोई बिस्तर नहीं छोड़ा के वो बिस्तर नहीं देखा।
१९. जेन्नी शबनम की नज़्में पढने से ऐसा लगता है कि वह यह मानती हैं कि शायरी का मतलब कुछ कह देना नहीं होता है, यानी शायरी में वाचालता उन्हें मंज़ूर नहीं है। वह ख़ामोशी के कायल हैं। उनकी शायरी में खामोशी जो है वह कई अर्थ और रंग लिए हुए है। देखिए मैं कहीं नहीं
मन में बहुत रंजिश है
तुम्हारे लिए भी और वक्त के लिए भी
फिर भी चल रही हूँ वक्त के साथ
रोज रोज प्रतीक्षा की मियाद बढाते रहे तुम
मेरे संवाद और सन्देश फ़िज़ूल होते गए
२०. सरकारी काम सिर्फ़ नियमों से चले या इसमें कुछ संवेदना के भी तत्व होने चाहिए। देखिए एक पक्ष यह भी -- फ़ुरसत में ... ज़िन्दगी के दोराहे पर!
कभी-कभी हम ज़िन्दगी के ऐसे दोराहे पर खड़े होते हैं, जहां एक ओर हमें सामाजिक मर्यादाओं का ध्यान रखना पड़ता है, तो दूसरी ओर अपने कर्तव्यों का भी निर्वाह करना पड़ता है। दिल और दिमाग़ की रस्साकसी में भले ही ख़ुद हमारा दम घुट रहा हो, लेकिन ऐसे में भी हमें अपने विवेक का सहारा लेकर किसी उचित निष्कर्ष तक पहुंचना पड़ता है, जो अपने आप में एक तनी रस्सी पर चलने से कम नहीं होता जहाँ एक तरफ़ गहरी खाई होती है, तो दूसरी तरफ गहरा कुंआ।
२१. कौशलेन्द्र जी की
फेसबुकिया युग की चार क्षणिकायें
वे हिन्दी प्रेमी हैं
इसीलिये
रोमन में हिन्दी लिखते हैं
और अंग्रेजी
देवनागरी में।
२२. अनुपमा जी की कविताओं में संगीत सा लय होता है। प्रकृति का सजीव चित्रण समेटे पढ़िए इस कविता को -- कारे मतवारे घुघरवा बदरवा
धरा पर छाते हैं ...मन को लुभाते हैं ..
घूम घूम घिरते हैं ...मतवारे बदरवा ...
कैसे उड़ते है ......कारे बदरवा ....
कारे मतवारे घुँघरारे बदरवा .. ...... .....!!
२३.
२३ जब तक हम ही अपनी भाषा की कद्र नहीं करेंगे, जब तक खुद उसे उचित सम्मान नहीं देंगे, तब तक हमें बाहर वालों की आलोचना करने का भी हक नहीं बनता। कह रहे हैं गगन शर्मा कुछ अलग सा पर।
२४. प्रेम की परिभाषा कई रूपों में देखने को मिलती है लेकिन जब ब्लॉग हो उल्लूक टाईम्स तो परिभाषा भी उसी के अनुरूप होनी चाहिए। सुशील भाई ने बिल्कुल अलग हट के इसे परिभाषित किया है --
प्रेम की वही खिड़की
विन्डो आठ जैसी जवान होकर
आ गई है तैयार
२५. अपना पंचू पर लोकेन्द्र सिंह राजपुत पेश करते हैं -- उपनिषदगंगा : भारत में भारतीयता का प्रवाह -- इस आलेख में बता रहे हैं कि अगर किसी देश का परिचय पाना है तो उसका टेलीविजन देखना चाहिए। वह राष्ट्र का व्यक्तित्व होता है। स्पष्ट है कि दूरदर्शन पर भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधत्व करने वाले कार्यक्रम ही प्रसारित होना चाहिए।
२६. गिरिजेश राव हमेशा कुछ असाधारण ही रचते हैं। इस बार भी उनके आलसी चिट्ठे पर ऐसा ही कुछ है जिसे उन्होंने शीर्षक दिया है - तोरू और अविनाश के साथ - वनसरू की छाँव में। एक कविता का अविनाश द्वारा अनुवाद है। जिसके बारे में हिमांशु कहते हैं - “तोरू दत्त सी अनन्य प्रतिभा...उसकी कलम से निकली अद्भुत और अनोखी कविता--पहले ही विस्मित करने को पर्याप्त थीं! अब अविनाश भईया का अनुवाद-छन्द! ठगे-से रह गए! अप्रतिम! ” एक नमूना देखिए --
मुझको जो प्रिय प्राणों से थे, हा प्यारे!
जा सोयें हैं उस निद्रा जिससे कोई नहीं उठा रे!
उनके हेतु जिनको तुमसे नेह रहा था,
आज तुम्हारे आगे मान से मेरा शीश झुका रे!
२७. सिर्फ बीमारियाँ ही नहीं लातें हैं जीवाणु ,बचाते भी हैं बीमारियों से आतताई जीवाणुओं के खिलाफ एक दीवार बनकर कहना है वीरू भाई का। अपनी पोस्ट अनोखा पारितंत्र है जीवाणुओं का के ज़रिए बता रहे हैं कि ऐसे हज़ारों जीवाणू हमारे शरीर में रहते हैं।
२८. अतुल श्रीवस्तव बहस नहीं करना चाहते, अपना ज्ञान बढाना चाहते हैं, इसलिए उनकी पोस्ट पर बहस न कर अपने हिसाब से शीर्षक सुझाने का कष्ट करें। एक रोचक आलेख है। पढिए।
२९. शास्त्री जी आगाह से कर रहे हैं -- मौत से सब बेखबर हैं, यह एक कड़वी सच्चाई है कि
जिन्दगी में स्वप्न सुन्दर हैं सजाये,
गगनचुम्बी भवन सुन्दर हैं बनाये,
साथ तन नही जायेगा, तन्हा सफर हैं।
३०. रचनाओं में जिसका शिल्प ही शाश्वत हो वह उम्र भर एक से एक बेहतरीन रचनाएं देता रहेगा। अजी मैं बात महेन्द्र वर्मा जी की कर रहा हूं -- जिनका कहना है कि
जख़्म सीने में पलेगा उम्र भर,
गीत बन-बन कर झरेगा उम्र भर।
मान गए आपको आपकी कलम आपके चयन को - इसे कहते हैं अनुभवी प्रवाह
जवाब देंहटाएं200 वें ब्लोग बुलेटिन के लिये हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छा बुलेटिन
जवाब देंहटाएंदेखिये किधर किधर जा पाता हूं
सभी पाठको को और पूरी बुलेटिन टीम को हार्दिक आभार सहित बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं इस सफर के लिए ... वैसे अभी तो यह शुरुआत भर है ... है कि नहीं मनोज दादा ... काफी उम्दा लिंक्स से सजाई है आपने यह 200 वी बुलेटिन ... आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक बुलेटिन...२००वीं पोस्ट की बधाई...
जवाब देंहटाएंदो सौ पोस्टों के अनथक सफ़र के लिए बुलेटिन टीम को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं । मनोज़ भाई का शुक्रिया इस पोस्ट को खास बनाने के लिए । पाठक मित्रों के लिए इस मंच से हम साथी ब्लॉगर्स की पोस्ट दोस्तों के लिए यूं ही सुलभ कराते रहेंगे ऐसा मेरा विश्वास है । सबको बधाई और ढेरों शुभकामनाएं । साथ स्नेह और विश्वास बनाए रखिएगा ।
जवाब देंहटाएंjawab nahi apke chune hue links ka
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत कड़ियाँ .....आज के लिये काफ़ी मसाला मिल गया है। आभार! इन कड़ियों को समुद्र में से निकाल कर लाने के लिये।बहुत परिश्रम करते हैं आप लोग यानी "बुलेटिन वाले भद्र मोषाय"
जवाब देंहटाएं200वीं कड़ी के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक बुलेटिन...२००वीं पोस्ट की बधाई... ख़ूबसूरत कड़ियाँ दो सौ पोस्टों के सफ़र के लिए बुलेटिन टीम को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं । शुक्रिया !
जवाब देंहटाएं200वीं पोस्ट की बधाई हो!
जवाब देंहटाएंआभार मनोज जी मेरी रचना के चयन के लिए ! इस ब्लॉग बुलेटिन की बानगी देखते ही बनती है ! अशेष शुभकामनाएं ! सधन्यवाद !
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