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शनिवार, 30 जून 2012

यादों की खुरचनें - 11



हर बार कभी न कभी पहली बार होता है - पहला कदम , पहली पुकार , पहला त्योहार , पहली पूजा , पहला अनुभव - प्यार और दुःख का , पहली यात्रा ,
पहला गीत , पहली कविता -

Meri pahli kavita. 02/04/2002 at Srinagar Garhwal Uttarakhand

होती है अदभुत ख़ुशी , जब उसे हम बांटते हैं - यादों की खुरचन मैं सहेज लायी हूँ - यह पहली कविता . पहला अनुभव लेखन का कुछ

ऐसा ही ख़ास होता है ... (डायरी से [बी.एस सी प्रथम वर्ष ])

" मृत्यु की छाया निकट है
मोह की माया विकट है
मोह त्याग स्वीकार कर लो
मनुष्य जिसे कहता है मृत्यु ..

अथक चाल भरकर तुम
अडिग वेग लेकर तुम
ले चलो उस और
मनुष्य जिधर जाने से डरता..

आत्मा की चीत्कार सुन
स्वार्थ का ताना न बुन
तोड़ दे अवरोध सारे
बने है जो तुम्हें सोचकर...

निज तन, निज धन के लिए
निज ज्ञान,अपमान के लिए
न विलम्ब कर क्षण भर का
सोच कर उनका क्या होगा...

वे मुर्ख ऐसे न,जैसे तुम
वे ज्ञानी ऐसे,जैसे न तुम
करें सब कुछ समझ कर
जांचकर,और कुछ परखकर..

ये प्रण कर लो मन में
चल पड़े हम जिस ओर
न कोई बाधक बने
न जाने,न समझे...

वो ही है एक शांतिदायक
मनुष्य जिसे कहता है मृत्यु.....!!!!!

ज़िंदगी की क्विल्ट - प्रायः सबके पास होती है , बस रंगों की अपनी- अपनी पहचान है -


" मेरे हाथ में आस का धागा
तुम्हारे हाथ में दर्द की सुई
न तुम अपनी आन छोड़ना
न मै अपनी !
..
तुम ज़िंदगी की चादर में
दर्द के पलों से चुभते जाना
और मै तुम्हारे पीछे पीछे
सब कटा-फटा सीती जाउंगी
..
फ़िर एक दिन पलट कर
तुम देखना और हैरान होना
कि कैसे दर्द की तपिश में से
जब ख़ुशी की फुहार फूटती है…
तो पैबन्दों भरी जिदगी भी
सुंदर क्विल्ट नज़र आती है "

सुन्दर सी क्विल्ट के हाशिये पर एक कौर ममता का होता है और एक कौर बेबस उम्मीदों का ....

JHAROKHA: एक कौर


" माँ प्यार से बच्चे को

फुसला रही है

बस एक कौर और ये कह कर

खिला रही है.


पास ही हम उम्र बच्चा

झाडू लगाता जाता

मां बेटे के खेल को

अचम्भे से निहारता.


क्योंकि उसे तो याद नहीं आता

कभी उसकी मां ने भी उसे

खिलाया हो ऐसे खाना.


उसे तो याद रहता है हरदम

मां ने एक रोटी को

छः टुकडों में बांटा

और मांगने पर देती है एक चांटा.


और कहती है बस

पेट को ज्यादा न बढ़ा

लगी है पेट में इतनी ही आग

तो जा एक घर और काम पकड़..."


अब यही हाल मुकद्दर है तो शिकवा क्यूँ और किससे ... 

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा ....उसे तो याद रहता है हरदम
    मां ने एक रोटी को
    छः टुकडों में बांटा
    और मांगने पर देती है एक चांटा.
    आँखे नम ....चलचित्र की तरह जैसे घटित हो रहा हो आँखों के सामने .... पैबन्दों भरी जिदगी भी
    सुंदर क्विल्ट नज़र आती है " सकारात्मक सोच की और ले जाती पंक्तियाँ ....

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  2. वे मुर्ख ऐसे न,जैसे तुम
    वे ज्ञानी ऐसे,जैसे न तुम
    करें सब कुछ समझ कर
    जांचकर,और कुछ परखकर. कृपया 'मूर्ख '.लिखें ....पहली रचना हमेशा ही मार्ग दर्शक होती है ...श्रेष्ठता के सभी तत्व समोए रहती है क्विल्ट के अपने अंदाज़ हैं बड़े भले से अपने से आश्वस्त करते से आने वाले कल को .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhaia

    शनिवार, 30 जून 2012
    दीर्घायु के लिए खाद्य :
    http://veerubhai1947.blogspot.de/

    ज्यादा देर आन लाइन रहना बोले तो टेक्नो ब्रेन बर्न आउट

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

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  3. उसे तो याद रहता है हरदम
    मां ने एक रोटी को
    छः टुकडों में बांटा
    और मांगने पर देती है एक चांटा.
    उफ़ …………बेबसी का सटीक खाका खींचाहै।

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  4. इतनी उम्दा पोस्टो के बाद भी शिकवा ... कोई सवाल ही नहीं !!

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  5. बहुत भावपूर्ण रचना पढ़ कर बेहद अच्छा लगा |
    आशा

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