ब्लॉग बुलेटिन की लोकप्रिय श्रृंखला "मेहमान रिपोर्टर" के अंतर्गत हर हफ्ते आप में से ही किसी एक को मौका दिया जाता रहा है बुलेटिन लगाने का ... तो अपनी अपनी तैयारी कर लीजिये ... हो सकता है ... अगला नंबर आपका ही हो !
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हिंदी ब्लॉगिंग अक्सर सार्थकता और गुणवत्ता के पैमाने पर जांचे जाने की लम्बी चौड़ी बहस से गुजरती रही है . एक प्रश्न है जो ना सिर्फ हम ब्लॉगर्स , अपितु संचार के माध्यमों के बीच विचरता रहता है कि आखिर ब्लॉगिंग की उपयोगिता क्या है , यह प्रत्येक ब्लॉगर की आत्मानुभूति को शब्द देने का प्रयास है भर है , सामाजिक मुद्दों पर विचार विमर्श करने का मंच अथवा साहित्य का अनमोल संसार . मुझे तो ग्लोबल होती हमारी रुचियों, स्वाद और सुविधाओं का कॉकटेल ही लगता है,. चाहे तो सामाजिक उत्थान को समर्पित गंभीर प्रयासों में अपना योगदान दें या फिर साहित्य की विभिन्न धाराओं के अजस्त्र स्त्रोतों में जी भर डुबकियाँ लगायें . लेखन पाठन के प्रति अगंभीर लोगों के लिए भी हलकी- फुलकी तफरी करने का इंतजाम भी है यहाँ तो एक समान विचारों का संगठित उबाल अथवा जोश, वही विभिन्न समूहों का मुकाबला, जो रुचता है पढ़ा जाए , मनचाहे किस्से गढ़े जाए या प्रचारित अथवा प्रसारित किये जाएँ , भौगोलिक , सामाजिक अथवा राजनैतिक सीमाओं को पार कर आक्षेप , आरोप -प्रत्यारोप , सराहना ,नफरत , प्रेम , सब कुछ है यहाँ ....
मेहमान बनने का बुलवा मिला ब्लॉग बुलेटिन पर तो अपने बहुत से पसंदीदा लेखों , कविताओं , कहानियों में से कुछेक चुनना सागर से मोती छाँट लाने से कम नहीं लगा ....
हमारे भारतीय समाज में नारी का स्थान पूज्यनीय रहा या दोयम , इस विषय पर खूब लिखा गया है. जागरूक नारियां समाज में अपनी पहचान और स्वतन्त्रता की मांग कर , मगर महत्वपूर्ण यह है कि आखिर किससे ... पितृसत्तात्मक/ पुरुषवादी समाज से ही तो ...तो जब तक पुरुष अपने आपको ना बदले सिर्फ नारी की स्वतंत्र सोच से सामाजिक बराबरी का हक़ मुश्किल ही है .
नारी ने अपने अंतर्मन , अपनी पीडाओं , खुशियों , क्रोध , रोष को अपनी रचनाओं में खूब अभिव्यक्त किया है , या स्वाभाविक रूप से उनका यथार्थ उनकी रचनाओं में भरपूर उतरा है. नारी के सौंदर्य ,प्रेम ,वफ़ादारी और बेवफाई पर पुरुषों द्वारा भी खूब लिखा गया है मगर जब पुरुष द्वारा नारी के सम्पूर्ण पृथक वजूद को स्वीकारते हुए उनकी अभिव्यक्तियों , इच्छाओं , अंतर्मन के गोपन भावों को अपनी भाषा में व्यक्त किया जाए तो उनसे सम्मोहित और प्रभावित होना लाज़िमी है कि उन्होंने जो जिया नहीं , उसे इतनी ख़ूबसूरती से जताया कैसे .. आप भी अवश्य होंगे ...
एक स्त्री जो हूँ-विजय कुमार
पवन करण स्त्री होना चाह्ते हैं क्यूंकि सिर्फ स्त्री की तरह सोच कर वह उसको जी नहीं सकते ... मैं स्त्री होना चाहता हूँ !
राजेश उत्साही जी अपनी कविताओं में स्त्री का खुद से अलग , मगर फिर भी जुड़ा होना स्वीकारते हैं ...स्त्री तुम जिस रूप में हो , मैं तुमसे प्यार करता हूँ !
शैलेन्द्र चौहान अपनी कविता में पूछते हैं या बताते हैं कि आखिर स्त्री क्या चाहती है
किसी स्त्री वादी उस पुरुष की तरह
जिसे स्त्री मुक्ति की आड़ में
नज़र आता है बस देह का भूगोल
नज़र आता है बस देह का भूगोल
कोई संपादक
अशोभन छेड़छाड़ करता स्त्रियों से
ढेरों लच्छेदार संपादकीय लिखकर
छूट पा लेता है स्त्री-शोषण
और अश्लीलता के विरुद्ध
अशोभन छेड़छाड़ करता स्त्रियों से
ढेरों लच्छेदार संपादकीय लिखकर
छूट पा लेता है स्त्री-शोषण
और अश्लीलता के विरुद्ध
स्त्री-शरीर के सुंदर होने की व्यवसायिक
नुमाइशों और प्रतियोगिताओं में
गरीब बच्चों और भूखों के लिए
सहृदय होती सुंदरियाँ
नुमाइशों और प्रतियोगिताओं में
गरीब बच्चों और भूखों के लिए
सहृदय होती सुंदरियाँ
मदर टेरेसा को आदर्श मानती हुई
हॉलीवुड से बॉलीवुड तक
पुरुषों की अपेक्षा आधे दामों में
अभिनीत करती हैं ख़ुशी से
पुरुष-दासता की अनंत भूमिकाएँ
नायक, खलनायक, जोकर,
नेता, अपराधी, अण्डरवर्ल्ड
और संपादक के दिशा निर्देशन में
मुक्ति के नाम पर
हॉलीवुड से बॉलीवुड तक
पुरुषों की अपेक्षा आधे दामों में
अभिनीत करती हैं ख़ुशी से
पुरुष-दासता की अनंत भूमिकाएँ
नायक, खलनायक, जोकर,
नेता, अपराधी, अण्डरवर्ल्ड
और संपादक के दिशा निर्देशन में
मुक्ति के नाम पर
क्या यही चाहती है कोई स्त्री
पुरुषों से! जो पुरुष चाहते हैं स्त्रियों से
पुरुषों से! जो पुरुष चाहते हैं स्त्रियों से
आख़िर क्यों नहीं चाहने देते पुरुष
एक स्त्री को, अन्य स्त्रियों से
जो चाहना चाहती हैं वे
सिमोन द बोउआ, प्रभा खेतान और
मैत्रेयी पुष्पा, की तरह
एक स्त्री को, अन्य स्त्रियों से
जो चाहना चाहती हैं वे
सिमोन द बोउआ, प्रभा खेतान और
मैत्रेयी पुष्पा, की तरह
डॉ रविन्द्र कुमार पाठक कहते हैं ---स्त्रियों को बचना चाहिए
स्त्री को बचना चाहिए
इसलिए नहीं कि
उसे तुम्हारी प्रेयसी बनना है,
उसे तुम्हारी पत्नी बनना है ।
इसलिए नहीं कि उसे तुम्हारी बहन बनना है।
इसलिए भी नहीं
कि
वह तुम्हारी जननी है और तुम जैसों को आगे भी पैदा करती रहे।
उसे बचना चाहिए,
बल्कि उसे बचने का पूरा हक़ है - राजनैतिक हक़,
इसलिए कि वह भी तुम्हारी तरह हाड़-माँस की इन्सान है।
तुम ने उसे देवमन्दिर कहा और बना दिया देवदासी।
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते..' और 'कार्येषु दासी शयनेषु रम्भा' को
एक साथ तुम्हारा ही पाखण्डी दर्शन साध सकता था !
देवी बनाना या उसे श्रद्धा बताना भी तो अपमान है
उस की इन्सानियत का -
उस की इच्छा, वासना, भोग-त्यागमय सहज स्पन्दनों का
या है उसे जड़ता प्रदान कर देना,
पत्थर में तब्दील कर के।
इसलिए नहीं कि
उसे तुम्हारी प्रेयसी बनना है,
उसे तुम्हारी पत्नी बनना है ।
इसलिए नहीं कि उसे तुम्हारी बहन बनना है।
इसलिए भी नहीं
कि
वह तुम्हारी जननी है और तुम जैसों को आगे भी पैदा करती रहे।
उसे बचना चाहिए,
बल्कि उसे बचने का पूरा हक़ है - राजनैतिक हक़,
इसलिए कि वह भी तुम्हारी तरह हाड़-माँस की इन्सान है।
तुम ने उसे देवमन्दिर कहा और बना दिया देवदासी।
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते..' और 'कार्येषु दासी शयनेषु रम्भा' को
एक साथ तुम्हारा ही पाखण्डी दर्शन साध सकता था !
देवी बनाना या उसे श्रद्धा बताना भी तो अपमान है
उस की इन्सानियत का -
उस की इच्छा, वासना, भोग-त्यागमय सहज स्पन्दनों का
या है उसे जड़ता प्रदान कर देना,
पत्थर में तब्दील कर के।
शरद कोकस जी प्रत्येक नवरात्र में अपने ब्लॉग को स्त्री शक्ति के हवाले कर देते हैं , इन नौ दिनों में उनके ब्लॉग पर जानी मानी कवयित्रियों की रचनाएँ स्त्रियों के विभिन्न भावो , अनुभवों के साथ हर दिन नए रंग रूप में होती है ... घरेलू जिम्मेदारियों से घिरी आम स्त्री को कविताओं लेखों में खूब स्थान मिला है , मगर शरद जी कामकाजी लड़की की विवशता /कर्मठता को भी अपने शब्दों में उकेरते हैं !
ज़ाकिर जी पूछ लेते हैं क्या लड़कियों और मछलियों में कोई समानता होती है ?
वाणी गीत जी की लेखनी की मैं हमेशा प्रशंसक हूँ .... :)
जवाब देंहटाएंआज तो ब्लॉग-बुलेटिन की लाजबाब प्रस्तुति की हैं .... !!
लिंक्स को साथ लेकर वाणी ने पुख्ता आयाम दिए हैं स्त्री होने को ... कई स्वर एकत्रित हुए हैं - स्त्री के अधिकार की गुणवत्ता में
जवाब देंहटाएंइस बुलेटिन में गहरे रंग गहरे जोश गहरी विविधताएँ हैं
जवाब देंहटाएंशुक्रिया वाणी गीत जी..........................
जवाब देंहटाएंबढ़िया नारी प्रधान बुलेटिन......
सादर.
सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंप्रखर ...सारगर्भित सशक्त बुलेटिन ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रयास वाणी जी ....!!
बधाई एवं शुभकामनायें ...!!
विविधताओं के रंग लिए खुबशुरत लिंक्स,....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
चर्चा का महत्व तभी है जब पाठक एक एक लिंक को खंगाल कर पढ़ता चला जाय। मेहनत की है आपने कविताओं को छाटने में। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा बुलेटिन बना है आज, आपका स्वागत है.....
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन बना है.
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार जो आपने ब्लॉग बुलेटिन पर एक "मेहमान रिपोर्टर" के रूप में अपनी यह पोस्ट लगाई ! हमारी इस लोकप्रिय श्रृंखला को एक और बढ़िया परवाज़ देने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंमेहमान रिपोर्टर के रूप में जब आप जैसी कमाल की ब्लॉगर इस मंच पर चुनिंदा पोस्टों के साथ उपस्थित होती हैं तो न सिर्फ़ इस ब्लॉग की सार्थकता को नया आयाम मिलता बल्कि आप सबका भी एक नया ही रूप , नई धार और नई शैली देखने को मिलती है । देवेंद्र भाई की बातों से सहमत कि , इन लिंक्स को पकड के जब उन पोस्टों पर पहुंचा जाता है तब इसकी उपयोगिता नि:संदेह बहुत बढ जाती है ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार वाणी जी ...
बुलेटिन पर मेहमान बन कर अपने पसंद के लिंक्स देने का अवसर प्रदान करना और आप सबका उन्हें सराहने का बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक
जवाब देंहटाएंवाणी जी का स्वागत है। प्रश्न सामयिक है। समाज में अधिकांश आदर्श किसी न किसी कारणवश किताबों में ही धरे रह गये। इस स्थिति के लिये हम सबकी ज़िम्मेदारी बनती है और इसे बदलना भी हमें ही है। चर्चा के लिये बधाई!
जवाब देंहटाएंलिंक्स देखकर ही लग रहा है रोचक हैं बाद मे आकर पढती हूँ।
जवाब देंहटाएंबढि़या लिक्स बहुत सुन्दर प्रस्तुति |वाणी जी..बधाई..
जवाब देंहटाएंकल 18/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
लाजवाब
जवाब देंहटाएंlajabab!! mujhe bhi bas yahi kahna hoga:)
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति.. आपका आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ब्लॉग पोस्टिंग. वाणी गीत जी को बधाई और ब्लॉग के नियंत्रक को भी.
जवाब देंहटाएंएक बार फिर देखा इस बुलेटिन को... लिंक देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआपका यह ब्लॉग बहुत ही समीचीन है। आज जब स्त्रियों की अस्मिता इस व्यवस्था में पूरी तरह दांव पर हो तब यह और अधिक आवश्यक प्रतीत होता है।शैलेन्द्र चौहान की कविता स्त्री क्या चाहती है बहुत सार्थक और संप्रेष्य है। यह कविता अनेकों प्रभाव छोड़ती है भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में स्त्री के दोयम दर्जे को बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रस्तुत करती है। कवि एवं ब्लॉग प्रस्तुतकर्ता को इसके लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंअर्जुन प्रसाद सिंह
आपका यह ब्लॉग बहुत ही समीचीन है। आज जब स्त्रियों की अस्मिता इस व्यवस्था में पूरी तरह दांव पर हो तब यह और अधिक आवश्यक प्रतीत होता है।शैलेन्द्र चौहान की कविता स्त्री क्या चाहती है बहुत सार्थक और संप्रेष्य है। यह कविता अनेकों प्रभाव छोड़ती है भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में स्त्री के दोयम दर्जे को बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रस्तुत करती है। कवि एवं ब्लॉग प्रस्तुतकर्ता को इसके लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंअर्जुन प्रसाद सिंह