नित्यानंद गायेन और उनका आनंद भवन उनके ब्लॉग्स -
मेरी संवेदना और
कुछ विचार ऐसे भी -----
मेरी संवेदना का आरम्भ 2009 और कुछ विचार ऐसे भी की शुरुआत 2010 में हुई . इनको जानने के लिए इनकी दोनों महत्वपूर्ण पांडुलिपियाँ
हमें आमंत्रित करती हैं . मेरी संवेदना के पन्नों को पलटते हैं -
मेरी संवेदना: सूखा रेत को मैंने भर लिया है अपनी कलम में - कवि की संवेदना कुछ यूँ उभरी है -
"तुम्हारे बाद
अब
मेरी भी सोच बदलने लगी है
अदालत में खड़ा
एक भाड़े की गवाह की तरह
पता नही, अब
मै कब क्या बोल जाऊँ
मै भी अब रुख बदलने लगा हूँ
मेरे शहर में चलती हवाओं की तरह।"
पहचान खोने लगा हूँ कुछ इस तरह -
"अपनी सफलताओं , उपलब्धियों को
गिनना चाहता हूँ
कुछ नहीं
केवल शून्य पाता हूँ ।
निराश नही मैं
किंतु
ख़ुद को पराजित पाता हूँ मैं ।
रोज़ ख़ुद को देखता हूँ
आईने में
अपना चेहरा
बदला - बदला पाता हूँ मैं ।
अपनी पहचान खोने लगा हूँ मैं ।"
कहते हैं नित्यानंद जी कि नास्तिक हूँ फिर भी
"नास्तिक हूँ
बावजूद इसके
भेजा था एक पत्र
उस काल्पनिक भगवान को
नहीं मालूम मुझे , कि
मैंने सही लिखा था उसका पता , या
ग़लत
मालूम नहीं उसे मिला कि नहीं अबतक
अपने लिए माँगा नहीं कुछ उस पत्र में मैंने
बस इतनी
गुजारिश की है मैंने , कि
अब कोई विस्फोट न हो
इस धरती पर...."
साल दर साल मानसरोवर से कौन से मोती चुनूँ कौन रहने दूँ , बड़ी दुविधा होती है , पर आपके लिए मानसरोवर तीरे बैठी हूँ -
हाँ यह सच है भोर की कविता मेरे आंगन में खाली कैनवास पर इस पानी को हल्का मत समझो गीदड़ कितना धूर्त है
घृणा गोबरधन असमय नही मरता मुझे माफ़ कर देना सम्राट अशोक
मानसरोवर के दूसरे तट पर हैं तथ्यपरक कुछ विचार , जिसकी गाँठ बांधनी है -
2010 की लहरों में मैंने खुद को बहने के लिए छोड़ दिया है .....................................
समन्दर की किस्म्मत अच्छी है जो उसमें नमक है
" सिंगुर हो
या नंदीग्रामया कहीं और
कहीं नही लड़ी गई
तुम्हारी - हमारी लड़ाई
हर जगह
उन्होंने लड़ी
सिर्फ अपनी साख की लड़ाई
वोट की लड़ाई
घायल हुए
हम और तुम
और जीत हुई उनकी
क्या तुम इसे
अपनी लड़ाई मानते हो
अपनी जीत मानते हो ?
चुनावों के बाद
दिखेगा इनका असली चेहरा
वे फिर पैंतरा बदलेंगे
हमें फिर लड़ना पड़ेगा
अपनी जमीन के लिए
हमारे नाम पर लड़ी गई
हर लड़ाई
कहीं नही लड़ी गई
तुम्हारी - हमारी लड़ाई
हर जगह
उन्होंने लड़ी
सिर्फ अपनी साख की लड़ाई
वोट की लड़ाई
घायल हुए
हम और तुम
और जीत हुई उनकी
क्या तुम इसे
अपनी लड़ाई मानते हो
अपनी जीत मानते हो ?
चुनावों के बाद
दिखेगा इनका असली चेहरा
वे फिर पैंतरा बदलेंगे
हमें फिर लड़ना पड़ेगा
अपनी जमीन के लिए
हमारे नाम पर लड़ी गई
हर लड़ाई
उनकी खुद की ज़मीन
बचाने की लड़ाई थी
और --
हर लड़ाई में
उनकी जमीन बनती गई
और हम ज़मीन हारते गए
हम वहीं रह गये
जहाँ से शुरू किया था हमने
यह जंग
बानर कब गिने गये
योद्धाओं में
लंका की लड़ाई में
जीत तो केवल राम की हुई //"
जानकारी के लिए बता दूँ कि मानसरोवर तो एक ही है , किनारों के दो नाम हैं .... मेरी संवेदना में आप विचारों से भी मिल लेंगे ,
बस यात्रा शुरू कीजिये ....
ऐसे ऐसे ब्लोगर्स से परिचय हो रहा है यहाँ पर कि क्या कहने.. कमाल की प्रतिभा, कमाल के कवि!! धन्यवाद!!
जवाब देंहटाएंइन के दोनों ब्लोगस फॉलो कर लिए है ... आपका आभार दीदी नित्यानंद जी से परिचय करवाने के लिए !
जवाब देंहटाएंइस सम्मान के लिए मैं कृतज्ञ हूँ
जवाब देंहटाएंभाई नित्यानंद को सबसे पहले मैं मुबारकबाद देना चाहूँगा. नित्यानंद भाई की कविताओं में आम आदमी का दर्द बखूबी देखा जा सकता है. एक आम इन्सान की ज़िन्दगी की मूलभूत जरूरतें क्या हैं और किस तरह से वो संघर्ष कर रहा है आज़ादी के ६५-६७ साल बाद भी, इन चीजों को उनकी कविताओं ने एक आवाज़ दी है.
जवाब देंहटाएंउनकी कविताओं में उस मजदूर की दास्ताँ भी है ,जो रोज चाहे धूप होकि बारिश काम करता है क्यूंकि उसे दो वक़्त की रोटी चाहिए.नित्यानंद भाई की कविताओं ने उनकी संवेदनाओं की कागज़ के कैनवस पर लफ़्ज़ों की कूची से अच्छी तस्वीर बनायीं है जिसमें हर इन्सान का दर्द बखूबी देखा जा सकता है.
भाई नित्यानंद को सबसे पहले मैं मुबारकबाद देना चाहूँगा. नित्यानंद भाई की कविताओं में आम आदमी का दर्द बखूबी देखा जा सकता है. एक आम इन्सान की ज़िन्दगी की मूलभूत जरूरतें क्या हैं और किस तरह से वो संघर्ष कर रहा है आज़ादी के ६५-६७ साल बाद भी, इन चीजों को उनकी कविताओं ने एक आवाज़ दी है.
जवाब देंहटाएंउनकी कविताओं में उस मजदूर की दास्ताँ भी है ,जो रोज चाहे धूप होकि बारिश काम करता है क्यूंकि उसे दो वक़्त की रोटी चाहिए.नित्यानंद भाई की कविताओं ने उनकी संवेदनाओं की कागज़ के कैनवस पर लफ़्ज़ों की कूची से अच्छी तस्वीर बनायीं है जिसमें हर इन्सान का दर्द बखूबी देखा जा सकता है.
प्रभावित करती रचनायें।
जवाब देंहटाएंQuite true depiction of common life (Who are just born to be exploited). After such a exploitation being much rebellious they have hope of jst equality but dts yet to b fulfilled n i thnk wil remain yet to b. but truth is dt these so called owners, winners, politicians r like dt fictional god who celebrate over these pathetic people. Here I wud like to say that poets sentiments r like Eugene O'Neill’s Hairy Ape
जवाब देंहटाएंकमाल रचना कमाल की प्रतिभा, कमाल के कवि....उनकी हर रचना
जवाब देंहटाएंमनको प्रभावित करती है ....
रश्मिजी जो आप कर रही हैं इसका सवाब आपको ज़रूर मिलेगा ...ऐसे ऐसे मोती चुन चुनकर आप लायीं हैं ...की सच लगता है ...इसे कहते हैं लेखन और ऐसी होती है रचना ....बहुत बहुत धन्यवाद रश्मिजी ...आप न होतीं तो हम इस आभा से महरूम रह जाते ...!!!
जवाब देंहटाएंekdam naya prayog .....achha laga.....nityanand bhayi ki kavitaon ko yahan padana or bhi achha laga q ki we mere priy kavi mitron main se ek hain. idhar apani kavitaon main sahaj abhivyakti se gahari sanvednaon ko swar dete huye sabhi ka dhyan kheench rahe hain. unamain bahut sabhavana dikhayi deti hai. unaki pratibaddhata unako bahut upar tak le jayegi.
जवाब देंहटाएंक्या कहने,
जवाब देंहटाएंआप जिस तरह साथियों से मुलाकात कराती हैं, पढने के बाद लगता है कि हम एक दूसरे को कब से जानते हैं। बहुत बढिया
Es ubharte kavi Nityanand Bhaiji ke sath mera kafi samay saath bita. I call him Bhaiji. aapki sari kavitayen es purane sansar me ek nayi rachan hai jo hardin aapke nayi bhavnayon ke stah paida hoti hai. Best of luck!!
जवाब देंहटाएंघायल हुये हम और तुम ...
जवाब देंहटाएंसमसामयिक विषयों पर पैनी दृष्टि के साथ नित्यानन्द जी की रचनायें प्रभावित करती हैं।