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बुधवार, 14 मार्च 2012

इधर रेल बजट आया और उधर मंत्री गया.... ब्लॉग बुलेटिन

लीजिए भाई.... आज आ गया रेल बजट....  इधर रेल बजट आया और उधर मंत्री गया....   दिन भर की आपाधापी के बाद घर आये और सोचा ज़रा रेल बजट पर नज़र डाली जाए.... कोई भी समाचार चैनल इस बज़ट दिखानें की जगह राजनीतिक नौटंकी दिखानें में ज्यादा रुचि ले रहे हैं।  इस नौटंकी को किनारे किया जाये और असल समस्या को देखा जाए..... बोले तो "किराया बढ गया".... वह भी अच्छा खासा....

एक नज़र:

उप-नगरीय एवं सामान्य दूसरे दर्जे के किराये में दो पैसे प्रति किलोमीटर की वृद्घि
मेल एक्सप्रेस सेकंड क्लास का किराया सिर्फ तीन पैसे प्रति किलोमीटर
स्लीपर क्लास के किराये में पांच पैसे प्रति किलोमीटर
वातानुकूलित चेयर कार, एसी3 टियर और फ़र्स्ट क्लास के किराये में केवल 10 पैसे प्रति किलोमीटर
एसी 2 टियर के किराये में 15 पैसे प्रति किलोमीटर
और एसी प्रथम श्रेणी का किराया 30 पैसे प्रति किलोमीटर 
प्लेटफ़ार्म टिकट: पांच रुपये

कहते हैं आर्थिक रूप से रेलवे को दीवालिए पन से निकालनें के लिए इस प्रकार का बहादुर बज़ट दिया गया। बहादुरी से भरे हुए रेल मंत्री शाम होते होते गठबंधन की राजनीति के सबसे तगडे शिकार हो गये.... अब चाहे ममता की दबंगई कहें या फ़िर मनमोहन की मजबूरी.... फ़िलहाल जो कुछ भी हो... जनता और सरकार दोनों के लिए कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा। 

वैसे उत्तर प्रदेश में चुनाव हो चुके हैं और उसके बाद एक घातक और खतरनाक बज़ट की उम्मीद तो थी, लेकिन इतना खतरनाक... इसकी उम्मीद कम थी। मेरी समझ में एक बात नहीं आती की आखिर ऐसा कौन सा व्यापार होगा जिसमें माल की डिलीवरी के १२० दिन पहले पूरा पैसा ज़ेब में आ जाये.... फ़िर भी घाटा... हमको तो नौटंकी लगती है....  सुबह आठ बजे आई-आर-सी-टी-सी की वेब साईट को देखिए, कैसे उसकी जान निकल जाती है, १२० दिन पहले सुबह आठ बजे ओपनिंग और आठ बजकर बाईस मिनट पर टिकट वेटिंग आ गई.... आखिर सारी टिकट कौन ले गया ? टिकट दलाली का बडा गोरखधंधा लगता है भाई.... 

वैसे इस खबर से इतर एक और बात पर ध्यान गया... अमेरिकी वेबसाइट इनसाइडर ने दावा किया है कि सोनिया गांधी के पास 2 से 19 अरब डॉ़लर (99अरब से 948 अरब रुपए) की संपत्ति है....  और सोनिया गांधी हिन्दुस्तान की सबसे अमीर राजनेता हैं....   

चलिए सोनिया जी को नोट गिनने दिया जाये.... ममता को गरजनें दिया जाये और मनमोहन जी को म्यूट मोड में ही छोड दिया जाये...... और अपनें बुलेटिन की ट्रेन को आगे बढाया जाये......

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देखें कब आस की पगडण्डी ख़त्म होती है ...............   वन्दना at ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र

सुनो ........ हाँ ........... क्यूँ इतनी उदास हो तुम आज? ....................... क्या आज फिर? ......................... कुछ तो कहो ना ........................ देखो तुम्हारा मौन मुझे झुलसाता है कुछ तो कहो ना क्या कहूं? कुछ नहीं है कहने को बस जीना है इसलिए जी रही हूँ किसके लिए ? ये भी पता नहीं फिर आज इतनी उदासी क्यूँ? आज फिर कौन सी शाख टूटी है सपनो की छोड़ो , क्या करोगे जानकर जब तक जान है इस लाश में इसे तो ढोना ही होगा ना लगता है आज कहीं फिर से आसमां रोया है कोई चक्रवात जरूर आया है तभी आशियाँ उजाड़ नज़र आता है ये बिखरे खामोश मंज़र अपनी कहानी खुद बयां कर रहे हैं अच्छा बताओ क्या मैं... more »
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मेरा कुत्ता  रवीन्द्र प्रभात at वटवृक्ष 

मेरा कुत्ता नेता हो गया है लोगों का चहेता हो गया है जहाँ भी जाये जुगत भिड़ा लेता है भाषण देने लगे तो जमा देता है कुत्ता मेरा है -- पर काम आपके भी आ सकता है मसलन मनचाही जगह आपकी ट्रांसफर करा सकता है या पड़ोसियों को झूठे मुकदमे में फँसा सकता है आप कहेंगे फाँक रहा है इसका कुत्ता है न इसीलिये हाँक रहा है मगर झूठी बात नहीं करता हूँ ऐसा इसीलिए कहता हूँ क्योंकि पहले मेरा कुत्ता खाना खाने के बाद पाँच घंटे के लिए गायब हो जाता था फिर वह पाँच पाँच हफ़्‍ते पर आने लगा और कुछ दिनों बाद तो पाँच महीने पर आकर खाने लगा और अब तो बिल्कुल गजब ढाता है खाना खाने के बाद पाँच साल के लिए गायब ह... more »
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डेरी मिल्क प्रोमिस माने सबसे पक्का प्रोमिस पूजा उपाध्याय at लहरें...

'डांस विथ मी?' 'क्यूँ' 'गाना बहुत अच्छा आ रहा है' 'और' 'धूप बड़ी खूबसूरत खिली है' 'तो' 'तुम्हारी आँखें बहुत सुन्दर लगेंगी' 'अच्छा' 'चलो, डेरी मिल्क पेपरमिंट वाला' 'प्रोमिस' 'हाँ...अब चलो भी...गाना ख़त्म हो जायेगा' 'तुम कहते हो मुझे डांस करना नहीं आता' 'अरे बाबा...आई विल लीड...तू बस ऐसे मेरे काँधे पर हाथ रख, नाउ होल्ड माय हैण्ड एंड मूव विद मी' 'ये गाना कितना पुराना है?' 'तब का है जब तुम पैदा भी नहीं हुयी थी' 'बस सोलह साल पुराना...लगता तो ऐसा है जैसे साठ साल पुराना हो...इसके साथ तो भूत भी घर के डांस करने लगे होंगे' 'वाल्त्ज़ कहते हैं इसे' 'ह्म्म्म' --- और लड़की हँसे जा रही थी...खुश थी बहुत.... more »



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"दे दे ख़ुदा के नाम पे प्यारे..." - बोलती फ़िल्मों के ८१ वर्ष पूर्ती पर आज एक बार फिर से 'आलम आरा' की यादों को ताज़ा किया जाए! 

*आज १४ मार्च २०१२ है। ८१ वर्ष पहले आज ही के दिन बम्बई के 'मजेस्टिक सिनेमा' में रिलीज़ हुई थी पहली सवाक फ़िल्म 'आलम आरा'। आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' की ग्यारहवीं कड़ी में इसी फ़िल्म के गीतों की चर्चा, सुजॉय चटर्जी के साथ, और साथ में सुनिए प्रथम फ़िल्मी गीत "दे दे ख़ुदा के नाम पे प्यारे" का एक संस्करण गायक हरिहरण की आवाज़ में।* *एक गीत सौ कहानियाँ # 11* जैसा कि सर्वविदित है पहली भारतीय बोलती फ़िल्म ‘आलम-आरा’ के १४ मार्च १९३१ के दिन बम्बई में प्रदर्शित होने के साथ ही फ़िल्म-संगीत का युग भी शुरु हो गया था। इम्पीरियल फ़िल्म कंपनी के बैनर तले अरदशेर ईरानी और अब्दुल अली यूसुफ़ भाई ने मिलक... more » 
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* दोस्तोआपके दुःख को मैं समझ सकता हूँ. आपका कोई न कोई दोस्त आपको किसी ग्रुप में भर्तीकरवा देता है और आप उस ग्रुप में होने वाली प्रत्येक गतिविधि की खबर पाते रहते हैं औरआपका ई मेल खचाखच भर जाता है. नीचे उपाय बता रहा हूँ उसे अपनाइए और सभी ग्रुपोंमें मस्त होकर बैठे रहिए.*** * * *सबसे पहले दायीं ओर ऊपर स्थित नोटिफिकेशन पर क्लिक करे * * * *इसके बाद सेटिंग पर क्लिक करें * *अब आपको काले घेरे में कुछ दिख रहा है आपको? यदि नहीं दिख रहा है तो Ctrl के साथ + **की बटन **दबाएँ और तस्वीर को बड़ा करके देखें. दोबारा उसी स्थिति में आने के लिए **Ctrl के साथ - की बटन दबाएँ.* *इसी काले घेरे में... more »
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  * * *गीत गाते रहो-गुनगुनाते रहो,
*** *एक दिन प्रीत उपहार हो जाएगा।
*** *जगमगाते रहो-खिलखिलाते रहो,
*** *एक दिन मीत संसार हो जाएगा।।

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discrimination  कानपुर यूनिवर्सिटी टीचर्स ब्लॉग असोसिएसन(KANPUR UNIVERSITY TEACHERS BLOG ASSOCIATION)

हम भारत के लोग .........कहने को यह शब्द इतना सरल लगता है कि सभी आपको इस का मतलब समझा देंगे पर इतना सरल भी नही है क्यों कि सामान्य अर्थो में तो यह कहा जा सकता है कि जो भारत में रह रहे है पर जब इस शब्द के दर्शन में जायेंगे और भारत के संविधान के प्रस्तावना के आईने में इसे समझने की कोशिश करेंगे तब इस वाक्य के मतलब बदल जायेंगे क्योकि प्रस्तावना के साथ जब अनुच्छेद १५ , १६ और १७ को पढ़ा जायेगा तो तो स्वतः ही समझ में आ जायेगा कि भारत के लोगो की विविधता ने इस अर्थ को क्या रूप दिया है . .. more » 
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मोर्ट फोर्ट स्कुल में एडमिसन  माधव at माधव 

*माधव के साथ २२ फरवरी -१० मार्च तक आरा /बक्सर गया था . ११ मार्च को श्रमजीवी से दिल्ली लौटा . दिल्ली आते ही माधव के एडमिसन में लग गया . कुछ भले लोगो की कृपा से आज माधव का एडमिसन मोर्ट फोर्ट स्कुल में हो गया है . एडमिसन हो जाने से बहुत खुशी है .* *मोर्ट फोर्ट स्कुल बिल्डिंग * 
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बरसात का एक दिन   मनोज कुमार at विचार 

बरसात का एक दिन! कलकत्ता में वर्षा झट से आती है और जमके बरसती है। उस दिन भी ऐसा ही हुआ। इन दिनों डेली यात्री के बांए कंधे पर बैग और दाएं हाथ में छाता का होना एक आवश्‍यक सामग्री है। धर्मतल्ला पर बस से उतरा ही था कि ज़ोर की वर्षा शुरू हो गई। जब तक छाता खोलता थोड़ा-बहुत भींग ही गया। इतनी मूसलाधार बारिश थी कि खुद को बचते-बचाते फुटपाथ पर आश्रय लेना पड़ा। वहां बहुत सारे लोग थे। क़रीब-क़रीब एक दूसरे से चिपके पानी की बूंदो से खुद को बचाते। कुछेक महिलाएं भी थी, पानी की बूंदे तो उन्‍हें परेशान कर ही रही थी, लोगों की नजरों एवं  more »
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कुछ हट के--अग्रोहा धाम की यात्रा के कुछ पल ......संजय भास्कर संजय भास्कर at आदत...मुस्कुराने की

**********जय बजरंग बली************* 
मेरी अग्रोहा धाम की सैर के कुछ पल ब्लॉग पर इस बार कुछ हट आप सभी मित्रो के लिए आप सभी ब्लॉगर साथियों को मेरा सादर नमस्कार काफी दिनों से ब्लॉगजगत को समय नहीं दे पा रहा हूँ पर अब आज अपने छोटे से यात्रा संस्मरण के साथ आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ घुमने तो अक्सर जाना हो ही जाता है पर पहले कभी इतना विशेष ध्यान नहीं दिया पर इस बार अग्रोहा धाम गया तो मंदिर को बारीकी से देखा व मंदिर के बारे में काफी जानकारी मिली जिसे आपके सामने चित्रों के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ ! ब्लॉग जगत दो घुमक्कड़ नीरज भाई ( *मुसाफिर हूँ यारों* )और संदीप भाई (* जाट देवता* )जी तस्... more »
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टॉमस ट्रांसट्रोमर : नीला मकान  मनोज पटेल at पढ़ते-पढ़ते

*आज पढ़ते हैं नोबेल पुरस्कार विजेता टॉमस ट्रांसट्रोमर को... * * * *नीला मकान : टॉमस ट्रांसट्रोमर * (अनुवाद : मनोज पटेल) * * चमकते सूरज वाली रात है. घने जंगलों में खड़ा मैं, दूर धुंधली-नीली दीवारों वाले अपने मकान की तरफ देखता हूँ. मानो अभी-अभी मेरी मृत्यु हुई हो और मैं एक नए कोण से अपने मकान को देख रहा होऊँ. इसने अस्सी से भी अधिक गर्मियां झेली हैं. इसकी लकड़ी चार बार सुख और तीन बार दुख से रची-बसी है. मकान में रहने वाले किसी व्यक्ति की मृत्यु पर इसकी फिर से पुताई होती है. मृत व्यक्ति स्वयं भी पुताई करता है, बिना ब्रश के और भीतर से. मकान से परे, खुला मैदान है. यहाँ कभी बगीचा हुआ ... more »
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आज का बुलेटिन यहीं तक... वैसे उम्मीद आम बजट से भी कोई खास नहीं है... फ़िर भी देखते जाईए क्या क्या नौटंकी होती है....  चाहे त्रिवेदी हों या फ़िर मुकुल राय.... क्या फ़र्क पडता है.... ये मुकुल राय वहीं हैं जो दुर्घटना स्थल पर इसलिए नहीं गये क्योंकि प्रधानमंत्री और ममता बनर्जी नें उनसे नहीं कहा..... भाई रिमोट से चलनें वाला प्रधानमंत्री है.... कुछ दिन के बाद रिमोट से चलनें वाला रेलमंत्री भी देख लीजिएगा.....  

जय हिन्द
देव बाबा

8 टिप्‍पणियां:

  1. यह सब केवल भारत मे ही संभव है ... जब जब सांसदों के वेतन और बाकी सुख सुविधाओ में वृद्धि की जाती है ... क्या तब आम आदमी पर बोझ नहीं पड़ता ?

    देश के ये 'ख़ास' नेता भले ही देश के लिए बलिदान करना भूल चुके हो ... 'आम आदमी' हमेशा तैयार है देश के लिए अपने हितो का बलिदान करने को !

    इस लिए यह नाटक बंद करो ... बहुत हुआ ... हम सब को मालुम है जिन को हमारे १ रुपये की चिंता है वो खुद १ रूपया भी नहीं देने वाले रेल में सफ़र करने के लिए !

    कोई इनसे यह पूछे क्या आपको सच में लगता है AC में चलने वाले 'आम आदमी' पर इस रेल बजट में हुयी रेल किराए में वृद्धि का कोई असर होगा !? मुझे तो नहीं लगता !


    प्रस्तावना बहुत ही सामयिक सार्थक और विचारोत्तेजक बन पडी है । आभार इस उम्दा बुलेटिन के लिए !

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  2. अच्छा "बजटीय" बुलेटिन..............

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  3. आयाराम गयाराम को एक नए सन्दर्भ में देखना बड़ा सुखद अनुभव है.. बुलेटिन भी शानदार है!!

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  4. देव बाबा भूमिका अच्छी बन पड़ी है और बुलेटिन के लिंक भी चलिए देखते हैं जाकर... शुक्रिया

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  5. बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स संयोजन लिए ...बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  6. अच्छे लिंक्स …………बढिया बुलेटिन्।

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