जैसा कि आप सब से हमारा वादा है ... हम आप के लिए कुछ न कुछ नया लाते रहेंगे ... उसी वादे को निभाते हुए हम एक नयी श्रृंखला शुरू कर रहे है जिस के अंतर्गत हर बार किसी एक ब्लॉग के बारे में आपको बताया जायेगा ... जिसे हम कहते है ... एकल ब्लॉग चर्चा ... उस ब्लॉग की शुरुआत से ले कर अब तक की पोस्टो के आधार पर आपसे उस ब्लॉग और उस ब्लॉगर का परिचय हम अपने ही अंदाज़ में करवाएँगे !
आशा है आपको यह प्रयास पसंद आएगा !
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आज मिलिए अनंत जी से ...
अनंत के ब्लॉग अनंत के दर्द http://anantsabha.blogspot.
२०१० के अक्टूबर से इन्होंने ब्लॉग में अपने दर्द , अपने गुबार को साझा किया -
यादों का पानी यादों की हलचल है -
ज़िन्दगी में समतल रास्ते भी हैं , पगडंडियाँ भी , घुमावदार रास्ते भी , संकरी गलियाँ भी - कितना कुछ मिलता है , छूट जाता है ... पर मन यादों के कैनवस पर सबकुछ हुबहू सा उतार भी लेता है . यादों को जीना अपने हाथ में होता है , उस पानी को पीना अपना निर्णय ही होता है .
मुमकिन है इस निर्णय में दिल और दिमाग के धरातल पर कभी सन्नाटा सा हावी हो और कहना पड़े -
न कहो मुझे गाने के लिए
न कहो मुझे गाने के लिए ,
वो शाम अभी भी याद मुझे है ,
जिस शाम हम तुझे समझे है ,
थोडा वक़्त लगेगा साथी, वो रूप तेरा भुलाने के लिए ,
न कहो मुझे गाने के लिए ,
बहुत दूर मैं चला गया हूँ ,
मै अपनों से छला गया हूँ ,
अब कोई वजह बाकि ही नहीं है ,वापस मुड कर आने के लिए ,
न कहो मुझे गाने के लिए ,
जी भर गया मेरा आब जमीन से ,
ऊब चूका हूँ अब दुनिया और दीन से,
उडूँगा अब जब आश्मान में ,ये छोटा पड़ जायेगा उड़ने के लिए ,
न कहो मुझे गाने के लिए ,
''तुम्हारा --अनंत ''
जब कोलाहल से दूर ख़ामोशी में सारे बोल खो जाते हैं तो माँ ज़रूर याद आती है . माँ एक गोद , लोरी , सपना , विश्वास सबकुछ होती है ... माँ तो बस माँ होती जाती है . बच्चे की अबोली जुबां से पहले माँ निःसृत होती है - ईश्वर का चमत्कार कहो या पूरी कायनात कहो , बात एक ही है ...
तो पढ़िए लेखन के अगले पायदान पर -
मैंने माँ को देखा है ,
मैं क्या हूँ , क्या नहीं हूँ ... मंथन चलता जाता है ! इसी मंथन में कुछ ख्याल छनकर निकले हैं -
हम आप सब बड़ी बारीकी से विचारों के मंथन से अपनी सोच का सत्य पाते हैं .
पूरी प्रकृति , पूरा ब्रह्मांड , धरती आकाश पाताल सभी निरुत्तर खड़े होते हैं और विकल मन आकुलता से कहता है -
इस दर्द से रूबरू होने में जिस रचना ने मेरे हाथों में दस्तावेज रखे , उसका ज़िक्र करूँ - दर्द जब हद से गुजर जाता है तो भाव प्रलाप से दिखते हैं और प्रलाप अर्थभरे गहरे निशां छोड़ जाते हैं -
विदा लेने का वक़्त तो आ ही जाता है , ज़रूरी भी है - अन्यथा आप अनंत जी के दर्द से गुजरेंगे कैसे . चलने से पूर्व अनंत जी की पंक्तियाँ आपसबों के नाम करती हूँ -
'' उन्हें सुर्ख चेहरों से मिले फुर्सत''तो चेहरा जर्द देखें वो ,, ''अपने दर्द से जो छूटें,तो ''अनंत का दर्द ''देखें वो,,
उनके अन्य ब्लॉग -
- anant ki gazal
- anant ki katha
- anant ki yaatra
- anant aur cinema
- फिर मुलाकात होगी किसी और ख़ास मेहमान यानि ब्लौगर के साथ , तब तक के लिए आज्ञा दीजिये
अनंत जी से मिलना बड़ा सुखद रहा.. इस स्तंभ के द्वारा आपने कुछ ऐसे ब्लॉगर से परिचय करवाया है जिनकी प्रतिभा से हम सर्वथा अनजान थे!!
जवाब देंहटाएंआज इस स्तंभ के मार्फ़त अनंत जी से मिलना बड़ा सुखद रहा.. इस स्तंभ के बहाने कुछ नए/पुराने ब्लोग्स से परिचय हुआ है!!
जवाब देंहटाएंरश्मि दी...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा अनंत जी को जान कर.
मगर उनके सभी ब्लॉग अपडेटेड नहीं हैं...
२ में तो कोई पोस्ट ही नहीं...
आजकल क्या लिखते नहीं हैं ??
सादर.
अनन्त का दर्द ... मुझे भी आकर्षित करता है .. सार्थक बुलेटिन
जवाब देंहटाएंसार्थक बुलेटिन
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बेहतरीन प्रयास.....
जवाब देंहटाएंपरिचय के लिए आभार.....
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