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सोमवार, 9 जनवरी 2012

कुछ लोग रूह को हथेलियों पर उठाकर लिखते हैं - एकल ब्लॉग चर्चा - ब्लॉग बुलेटिन

जैसा कि आप सब से हमारा वादा है ... हम आप के लिए कुछ न कुछ नया लाते रहेंगे ... उसी वादे को निभाते हुए हम एक नयी श्रृंखला शुरू कर रहे है जिस के अंतर्गत हर बार किसी एक ब्लॉग के बारे में आपको बताया जायेगा ... जिसे हम कहते है ... एकल ब्लॉग चर्चा ... उस ब्लॉग की शुरुआत से ले कर अब तक की पोस्टो के आधार पर आपसे उस ब्लॉग और उस ब्लॉगर का परिचय हम अपने ही अंदाज़ में करवाएँगे !

आशा है आपको यह प्रयास पसंद आएगा ! 

आज मिलिए ...  पूजा उपाध्याय जी से ...


कुछ लोग रूह को हथेलियों पर उठाकर लिखते हैं - कुछ ऐसे एहसास कि कितनों की रूह उस रूह के इर्द गिर्द खड़ी हो कहती है -
' यह तो मुझे कहना था ...' पूजा उपाध्याय के एहसास ऐसे ही सगे लगते हैं , यूँ कहें जुड़वाँ . पढ़ते पढ़ते कई बार ठिठकी हूँ , कभी आँखें शून्य में टंग गई हैं , कभी हथेलियाँ पसीज गईं ,..... सच पूछिए तो कई बार गुस्सा भी आया - ' मुझसे आगे तुम कैसे लिख गई ' फिर एक स्नेहिल मुस्कान चेहरे पर रूकती है - कुछ पल ब्लॉग के पन्ने पर मुस्कुराती पूजा को देखती हूँ - इश्क , अश्क , ओस , बारिश , हवाएँ .... ऐसे ही सहज चेहरों के पास मुकाम पाते हैं ! सच कह दो तो शरीर , दिल , दिमाग कमल की तरह खिल जाते हैं .... कहीं कोई काई नहीं , खुरदुरी बुनावट नहीं , न ही आँखों को मिचिआती तेज रौशनी , न कोई सीलन ............ एक मोमबत्ती , पिघलता मोम , हल्की रौशनी के घेरे - खुदा बहुत करीब होता है .
लिंक्स तो अपनी जगह हैं , मैंने सोचा मैं जब आऊं तो एक ब्लॉग से आपको मिलाऊं - आज की मुलाकात पूजा उपाध्याय के ब्लॉग से - http://laharein.blogspot.com/
2007 से पूजा ने लिखना शुरू किया , निःसंदेह ब्लॉग पर . ब्लॉग पर आने से पहले तितली बन कई कागजों पर उतरी ही होगी , ख़्वाबों के कितने इन्द्रधनुष बनाये होंगे . अपने ब्लॉग के शुरूआती पन्ने पर पूजा ने लिखा है -
"कितना कुछ है जो मेरे अन्दर उमड़ता घुमड़ता रहता है कितना कुछ कहना चाहती हूँ मैं कितना कुछ बताना चाहती हूँ मैं ये कौन सा कुआँ है ये कौन सा समंदर है कि जिसमें इतनी हलचलें होती रहती हैं " पढकर मैं भी सतर्कता के साथ अपने भीतर के कुँए और समंदर को ढूँढने लगती हूँ .... वह समंदर - जहाँ कई बार सुनामी आया और टचवुड मेरी कई बेवकूफियों को बहा ले गया . पर सोचती हूँ - बेवकूफियों में ही रिश्ते चलते हैं , पर सामने अगर समझदारी हो , स्वार्थ व्यवहारिकता हो तो इकतरफा बेवकूफ पागल हो जाता है . खैर ---- ये कहानी फिर सही ...

2008 की दहलीज़ पर भी कई एहसास कई मुद्राओं में बैठे मिले .... सबसे मिली , कुछ उनसे सुना , कुछ सुनाया और उठा लायी कुछ पंक्तियाँ , कवयित्री की सोच से परे मैं उन पंक्तियों में समा गई , जाने कितने ख्याल पलकों तले गुजर गए -
" आलसी चांद
आज बहुत दिनों बाद निकला
बादल की कुर्सी पे टेक लगा कर बैठ गया
बेशरम चाँद
पूरी शाम हमें घूरता रहा " .... अपने ख्यालों में डूबी कवयित्री ने सोचा नहीं होगा कि इस आलसी चाँद के आगे कितने शर्माए चेहरे खुद में सिमटते खड़े होंगे . बात तेरी जुबां से निकले हों या मेरी जुबां से - ख्वाब तो कितनों के होते हैं .

किसी राह से गुजरते हमारे ख्याल , हमारी परछाई मिले होंगे ... एक ही ट्रेन में सफ़र किया होगा , भागते दृश्यों से एक लम्हा तुमने तोड़ा तो मैंने भी तोड़ा - रहे अजनबी , पर एहसास ? कहा तो उसने , पर कैसे कहूँ ये मेरे नहीं ? -
" एक सोच को जिन्दा रखने के लिए बहुत मेहनत लगती है, बहुत दर्द सहना पड़ता है, फ़िर भी कई ख्याल हमेशा के लिए दफ़न करने पड़ते हैं...उनका खर्चा पानी उसके बस की बात नहीं। "

2009 की पोटली से एक रचना उठती हूँ - कोई कम नहीं किसी से , पर जहाँ आँखें ठहर गईं , उसे छू लिया और ले आई -
"एक लॉन्ग ड्राइव से लौट कर
-------------------------

जाने क्या है तुम्हारे हाथों में
कि जब थामते हो तो लगता है
जिंदगी संवर गई है...

बारिश का जलतरंग
कार की विन्ड्स्क्ररीन पर बजता है
हमारी खामोशी को खूबसूरती देता हुआ

कोहरा सा छाता है देर रात सड़कों पर
ठंढ उतर आती है मेरी नींदों में
पीते हैं किसी ढाबे पर गर्म चाय

जागने लगते हैं आसमान के बादल
ख्वाब में भीगे, रंगों में लिपटे हुए
उछल कर बाहर आता है सूरज

रात का बीता रास्ता पहचानने लगता है हमें
अंगड़ाईयों में उलझ जाता है नक्शा
लौट आते हैं हम बार बार खो कर भी

अजनबी नहीं लगते बंगलोर के रस्ते
घर भी मुस्कुराता है जब हम लौटते हैं
अपनी पहली लॉन्ग ड्राइव से

रात, हाईवे, बारिश चाय
तुम, मैं, एक कार और कुछ गाने
जिंदगी से यूँ मिलना अच्छा लगा..." ज़िन्दगी से यूँ मुलाकात आपने भी की होगी , रख दिया होगा हाथ बेतकल्लुफी से कानों पर , लम्बे रास्ते छोटे होते गए होंगे ... खुली आँखों इश्क को जीते गए होंगे .
पूजा के ब्लॉग से मेरी मुलाक़ात नई नहीं , पर जब भी इसके दरवाज़े खोले हैं - यूँ लगता है अभी अभी कोई ताज़ी हवा इधर से गुजरी है , सब नया नया ख़ास ख़ास लगता है . . . जैसे 2010 का यह कमरा -

कोई गुनगुना रहा है या मेरी धड्कनें गा रही हैं ..... मेरी जाँ मुझे जाँ न कहो .... नहीं यह है पूजा का कमरा , जहाँ उसकी धड्कनें कह रही हैं ,
"'जान'...तुम जब यूँ बुलाते हो तो जैसे जिस्म के आँगन में धूप दबे पाँव उतरती है और अंगड़ाइयां लेकर इश्क जागता है, धूप बस रौशनी और गर्मी नहीं रहती, खुशबू भी घुल जाती है जो पोर पोर को सुलगाती और महकाती है. तुम्हारी आवाज़ पल भर को ठहरती है, जैसे पहाड़ियों के किसी तीखे मोड़ पर किसी ने हलके ब्रेक मारे हों और फिर जैसे धक् से दिल में कुछ लगता है, धडकनें तेज़ हो जाती हैं साँसों की लय टूट जाती है. इतना सब कुछ बस तुम्हारे 'जान' बुलाने से हो जाता है...एक लम्हे भर में. तुम जानते भी हो क्या? "तो , मुझे यूँ जाँ ना कहो ...

ख़्वाबों के संग यूँ ही मेरा उठना बैठना रहता है , दिन हो या रात सुबह हो या शाम एक ख्वाब मेरे संग चलता ही है , उसपे करम ऐसे ब्लॉग के जो मुझे न देंगे जीने ...
2011 की शाख पर पूजा ने कई कंदील जलाये , एहसासों के आगे कोई अँधेरा न हो - इसका ध्यान रखा , या .... चलो , एक कंदील के उजाले में पढ़ें ,
आपने देखा है किसी लड़की में दो नदियाँ ? न देखा हो तो देखिये -
"मेरे अन्दर दो बारामासी नदियाँ बहती हैं. दोनों को एक दूसरे से मतलब नहीं...अपनी अपनी रफ़्तार, अपना रास्ता...आँखें इन दोनों पर बाँध बनाये रखती हैं पर हर कुछ दिन में इन दोनों में से किसी एक में बाढ़ आ जाती है और मुझे बहा लेती है." http://laharein.blogspot.com/2011/11/blog-post_6494.html
मुझे मालूम है इसे पढ़ने के बाद कईयों को अपने अन्दर की नदी का पता मिल जायेगा !

2012 ने तो अभी घूँघट उठाया ही है .... और गले में प्यास की तरह अटके थे (हैं)
सिर्फ तीन शब्द
I love you
I love you
I love you

यह ब्लॉग है या एक नशा है एहसासों का .... घूंट घूंट जी के देखिये , शब्द शब्द आँखों की हलक से उतार के देखिये - हिचकी हिचकी हिचक हिचकी हो न जाना , ख़्वाबों की गली में तू याद बनके खो न जाना ....

27 टिप्‍पणियां:

  1. एकदम सहमत हूँ आपसे...यह ब्लॉग को पढ़ना एक नशा है...एक ऐसा तगड़ा हैंगोवर जिससे निकलने में काफी वक्त लग जाता है...
    सच पूछिए तो बस तीन चार ही ऐसे ब्लॉग हैं जिनको पढते वक्त मैं किसी अलग दुनिया में ही पहुँच जाता हूँ..पूजा जी का ब्लॉग भी उन्ही में से एक है....
    और एकल ब्लॉग की पहली चर्चा के लिए भी आपने एकदम सही ब्लॉग चुना है...

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  2. वाह वाह वाह!!!
    रश्मि जी, ये प्यारी प्यारी बातें आपकी सहृदयता और आपकी संवेदनशील लेखनी ही कर सकती है...!
    पढ़ते हुए ऐसा लगा जैसे ये सारी बातें तो हम भी कहना चाहते थे पूजा जी के रचनासंसार के बारे में!
    पूजा जी को हार्दिक बधाई एवं सतत लेखन के लिए शुभकामनाएं और आपका हार्दिक आभार!

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  3. पूजाजी का लेखन मौलिक है और पाठक की कल्पनाओं को एक आयाम दे जाता है, बेहतरीन प्रस्तुति।

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  4. पूजा जी से मिलवाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ... आपका यह प्रयास भी जरुर पाठको को पसंद आएगा !

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  5. बहुत रोचक और गहन ब्लॉग विश्लेषण आपके अनोखे और संवेदनशील अंदाज में....बेहतरीन प्रस्तुति...

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  6. पूजा जी के लेखन से मैं भी कायल हूँ. सटीक और सार्थक विश्लेषणयुक्त आपके अंदाज़ क्या कहने ...

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  7. सच पूछिए तो कई बार गुस्सा भी आया.... मुझसे आगे तुम कैसे लिख गई....? फिर एक स्नेहिल मुस्कान चेहरे पर.... !!
    दिल के जज्बात , शब्दों के रूप में ढालने का कला , आप जैसा , शब्दों का कलाकार ही कर सकता है.... !!!!
    पूजा उपाध्याय जी से मिल अच्छा लगा.... :):)
    ब्लॉग को पढ़ना एक नशा है.... :):)यह तो मैं बहुत पहले ही कह चुकी हूँ....!!

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  8. कभी परिचय नहीं था पूजा से.. मगर आज आपने जो परिचय करवाया उसके बाद तो लगता है कि काफी नुक्सान झेल चुका हूँ मैं..!!

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  9. पूजा जी के ब्लाग को तो बहुत दिनों से पढ रहे थे.... गंभीर से गंभीर लेखन को कितनी सादगी से लिख जातीं है, बहुत अच्छा....

    एक अलग ही दुनियां का आभास दिलाता है इनका ब्लाग.....

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  10. बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ है दी... आपके इस अलहदा अंदाज में पूजा जी से मुलाक़ात बहुत अच्छी लगी...
    सादर.

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  11. पूजा जी का लेखन अद्भुत है ....बहुत प्रखर भाव हैं ...हमेशा पढ़ती हूँ |कई बार नयी-पुरानी हलचल पर भी मैंने इनका ब्लॉग लिंक लिया है|कायल हूँ इनकी लेखनी की|आज और रोचक बात यह है कि रश्मि दी आपने इनके ब्लॉग का विवरण बहुत सुन्दरता से किया है ...! पूजा जी के बारे में जानना बहुत अच्छा लगा ...!!शुभकामनायें पूजा जी को ...!!

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  12. रश्मी जी,आभार पूजा जी से परिचय कराने के लिए,पूजा जी ब्लॉग में जाकर उनकी कुछ रचनाए पढ़ी अच्छी लगी,एकल ब्लॉग चर्चा में पूजा जी का चयन बहुत अच्छा रहा,.....सुंदर प्रस्तुति,...

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  13. शुक्रिया रश्मि दी...
    आप तो जो भी लिखती हैं उस पर दिल आ जाता है...
    फिर आज तो आपने पूजा के बारे में लिखा ...
    तो प्यार तो होना ही था.....
    शुक्रिया फिर से ..
    सादर.

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  14. पूजा उपाध्‍याय
    उप अध्‍याय नहीं
    फुल अध्‍याय कहिए
    सहज विचारों का
    कर्म का
    कर्म जो पूजा है।

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  15. WOW!
    मेरे बारे में इतना सुंदर भी लिखा जा सकता है! हैरान हूँ...कि मैंने ऐसा तो कभी क्या लिख दिया...उफ़्फ़ इतना प्यार...आपके शब्दों को कैसे शुक्रिया कहूँ रश्मि जी...आपका स्नेह ही है कि सब खिला खिला सा लग रहा है। मन भर आया है...और उसपर टाइटल...जानलेवा एकदम।

    कल ही छुट्टियों से लौटी हूँ इसलिए पढ़ने में देर हुयी, इधर आने में भी देर हो गयी.

    आपकी दिल से आभारी हूँ...इस स्नेह...इस सम्मान के लिए...आपने इतना वक़्त मेरे ब्लॉग पर बिताया और इतने प्यार से सब कुछ सहेजा...मुझे लगता है कि आप जैसे होते हो दुनिया वैसी ही आपको दिखती है...आप खुद इतना खूबसूरत लिखती हैं इसलिए आपको मेरा लिखा भी अच्छा लगा...
    टिप्पणी लिखने में अभी भी कुछ समझ नहीं आता खास मुझे...

    उसपर सबके इतने प्यारे कमेन्ट...वाकई...दिन की इतनी सुंदर भी शुरुआत हो सकती थी! सब का दिल से बहुत बहुत बहुत धन्यवाद।

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  16. पूजा के लेखन में ख्यालों का एक बहाव है , भीग भीग कर बहते रहो ...एहसासों की एक नदी बहती है वहां ...पढ़ती हूँ हमेशा बस मुग्ध रह जाती हूँ !

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  17. आपकी प्रभावी प्रस्तुति ने पूजा जी के ब्लॉग का बहुत सुन्दर परिचय दिया ! आपने जो उद्धरण दिये हैं उनसे उनका लेखन निसंदेह रूप से मन को छूता है ! आप यह बहुत ही स्तुत्य कार्य कर रही हैं जो आपने यह श्रंखला आरम्भ की है ! उन ब्लॉग्स तक पहुँचना अब सुलभ हो जायेगा जहाँ पहुँचने की राह अभी तक मिली न थी ! आभार आपका ! अभी तो पूजा जी का द्वार खटखटाना है ! रास्ता बताने लिये धन्यवाद !

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  18. एकल ब्लॉग चर्चा में पूजा जी का चयन बहुत अच्छा है ! बेहतरीन प्रस्तुति।

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  19. आपकी कलम का जादू ही है ... पढ़ा तो पूजा जी को कई बार बहुत ही अच्‍छा लिखती हैं वे..लेकिन आपके शब्‍दों में पढ़ना ही उनके लेखन की खूबियों से इस क़दर वाकिफ़ करा गया कि किसी को पढ़ना हो, समझना हो और जानना हो गहराई से तो आपकी नज़र का होना जरूरी है ..इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिए आपका बहुत-बहुत आभार ... पूजा जी को शुभकामनाएं ...।

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  20. पूजा जी से मिलवाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार .........हमेशा पढती हूँ उनका ब्लोग्………एक ख्यालों की दुनिया का सफ़र सा लगता है।

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  21. आपका यह प्रयास भी जरुर पाठको को पसंद आएगा

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  22. एक अलग दुनिया है पूजा की, सबसे अलग, सबसे जुदा | ऐसा लगता है एक पोटली में प्यार भरने के बाद उसी पोटली से इन्हें गढ़ दिया है खुदा ने | और पोटली भी क्या है , गहरी खाई है | पढ़ते जाओ, खतम नहीं होगी!!!!

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  23. Puja jee aur unke blog ke baare me padh kar achchha laga...
    rashmi di ka ek aur behtareen prayas:)

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  24. पूजा बेहतरीन लिखती हैं, इसमें कोई शक नहीं.. आपने उनके बारे में विस्तृत जानकारी देकर पूरा परिचय करवाया !!

    आपको साधुवाद !

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  25. जौहरी की नज़र पारखी होती है और मजाल है जो कोहिनूर सरीखा हीरा उसकी नज़रों से बच जाए । पूजा जी के ब्लॉग पाठकों में मैं बहुत पुराना पाठक हूं , बेशक शायद नियमित नहीं । उनकी फ़ेसबुक मंडली में से बहुत से मेरे भी प्रिय हैं । उनके लेखन में एक अपनापन है एक महक जो अक्सर मुझे पटना के गांधी मैदान के गोल चक्कर पर मिलती थी । बहुत खूब परिचय करवाया आपने । बेहतरीन अंतर्जाल पन्ने के रूप में सहेज रहा हूं मैं भी अपने लिए

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