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रविवार, 13 नवंबर 2011

आज की ताज़ा खबर , आज की ताज़ा खबर ...ब्लॉग बुलेटिन




पहले ये सवाल कि , ये ब्लॉग क्यों : देखिए भाई , हिंदी ब्लॉगिंग में फ़िलहाल उहापोह की स्थिति बनी हुई है वो न सिर्फ़ एग्रीगेटर्स द्वारा ब्लॉग पाठकों को दिया जा रहा झटका , उनकी टीम द्वारा तकीनीकी समस्याओं से उलझाव , कई एग्रीगेटर्स के प्रति ब्लॉग संचालकों व ब्लॉगरों का झुकाव न हो पाना , ब्लॉग पोस्टों को पाठकों और उससे भी बढकर टिप्पणियों की कमी के जाने कितने ही कारण दिमाग में उमड घुमड रहे हैं । इनसे अलग बहुत सारे नियमित ब्लॉग लेखक व पाठकों द्वारा फ़ेसबुक , गूगल प्लस , और इन जैसे अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना और वहीं रफ़्तार बढाना भी स्पष्ट महसूस किया जा रहा है । किंतु इन सबके बावजूद हिंदी ब्लॉग्स की संख्या बढ रही है और काफ़ी तेज़ी से बढ रही है


सबसे कमाल की बात ये हुई है कि कम से कम कुछ ब्लॉगर्स तो अपना एक उद्देश्य लेकर आए ही हैं । अब ये उद्देश्य नकारात्मक परिणाम वाले हैं या सकारात्मक ये तो आने वाला समय ही बताएगा । वर्तमान में मौजूद इन संकलकों , हमारीवाणी , ब्लॉगप्रहरी , इंडली , जागरण जंक्शन फ़ोरम , नवभारत टाइम्स ब्लॉग्स , ब्लॉग परिवार .ब्लॉगमंच , हिंदी ब्लॉग जगत , मेरे पसंद के हिंदी ब्लॉग्स , के अलावा खुद के डैशबोर्ड पर पढी जाने वाली पोस्टों का एक विशाल विकल्प तो मौजूद है । किंतु यहां मुझे याद आती है ब्लॉगवाणी की वो खूबी जिसमें मुख्य पृष्ठ पर ताज़ी टिप्पणियां दिखती थीं और कई बार उन टिप्पणियों का सिर्फ़ एक शब्द पाठकों को पोस्ट तक खींच लाता था । इन संचालकों की सहायता से हमारे साथी चर्चाकार आप सबके बीच कमाल कमाल की शैली , अंदाज़ वाली चर्चाएं , पोस्ट झलकियां आप तक पहुंचाते रहे हैं और ज़ाहिर है कि बेहद लोकप्रिय भी रही हैं ।

यहां इस बुलेटिन में हम प्रयास ये करेंगे कि आपको इन सबके बीच भी कुछ नया करने के प्रयास करते हुए आप तक ब्लॉगजगत की पोस्टों की , टिप्पणियों की , बहस और विमर्शों की सूचना और खबरें आप तक सभी योगदानकर्ता साथी अपने अपने अंदाज़ में पहुंचाएं । तो लीजीए आज से इस बुलेटिन का पहला अंक आपके सामने रख रहा हूं , उम्मीद है कि आपको प्रयास पसंद आएगा ।




कानून के ज्ञाता , ब्लॉगर श्री दिनेश राय द्विवेदी

















श्री दिनेश राय द्विवेदी , हिंदी ब्लॉगजगत में भारतीय कानून , उससे जुडी समस्याओं , अनुभवों व कानूनी सलाह तथा मार्गदर्शन पर लगातार अपनी कलम चलाते रहे हैं । हिंदी ब्लॉगजगत में किए जा रहे विशिष्ठ लेखन की श्रेणी में श्री दिनेश राय द्विवेदी जी का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है । अपने दो चिटठों तीसरा खंबा , व अनवरत पर वे नियमित रूप से संग्रहणीय सामग्री अंतरजाल के पाठकों को उपलब्ध करा रहे हैं ।

तीसरा खंबा पर आज है :-

दादा जी के मकान का बँटवारा कैसे होगा?

बांदा, उत्तर प्रदेश से मनीष शर्मा ने पूछा है -

मेरी पत्नी के दादा जी का स्वयं की आय से खरीदा हुआ एक मकान बांदा में स्थित है। दादा जी के तीन पुत्रियाँ और एक पुत्र था। पुत्र का देहान्त हो चुका है लेकिन उस की एक पुत्री जीवित है। तीन पुत्रियों में से दो की मृत्यु हो चुकी है वे अविवाहित थीं। शेष एक विवाहित पुत्री की भी मृत्यु हो चुकी है, लेकिन उस का एक पुत्र तथा एक पुत्री जीवित हैं। उक्त मकान का विभाजन किस प्रकार किया जा सकता है?


उत्तर उनके ब्लॉग पर मिलेगा ।

दूसरा महत्वपूर्ण ब्लॉग है अनवरत :- इन दिनों अनवरत पर द्विवेदी जी मनुष्य के विकास यात्रा को बांच रहे हैं । भविष्य में शोध के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बनता उनका ये चिट्ठा यदि कल को संदर्भ ग्रंथ का रूप ले ले तो आश्चर्य नहीं होगा ।आज की पोस्ट में




संयोग, अंधनियम और तूफान : बेहतर जीवन की ओर-14

म तौर पर राज्य को आज मनुष्य समाज के लिए आवश्यक माना जाता है और उस के बारे में यह समझ बनाई हुई है कि वह मनुष्य समाज में सदैव से विद्यमान था। लेकिन हम ने पिछली कुछ कड़ियों में जाना कि यह हमेशा से नहीं था। ऐसे समाज भी हुए जिन में राज्य नहीं था, उन्हों ने उस के बिना भी अपना काम चलाया। ऐसे समाजों को राज्य और राज्यसत्ता का कोई ज्ञान नहीं था। आर्थिक विकास और श्रम विभाजन की एक अवस्था में जब अतिरिक्त उत्पादन होने लगा और उस का विपणन होने लगा तो नगर विकसित हुए। इन नगरों में केवल एक गोत्र, बिरादरी या कबीले के लोग नहीं रह गए। वहाँ अनेक लोग ऐसे भी आ गए जो इन से अलग थे। वैसी अवस्था में उत्पन्न वर्गों और उन के बीच के संघर्ष को रोकने के लिए राज्य की अनिवार्य रूप से उत्पत्ति हुई। राज्य की उत्पत्ति से ही वर्तमान इतिहास सभ्यता के युग का आरंभ भी मानता है। इसे हम इस तरह भी समझ सकते हैं कि सभ्यता समाज के विकास की ऐसी अवस्था है जिस में श्रम विभाजन, उस के परिणाम स्वरूप होने वाला उत्पादों का विनिमय और इन दोनों चीजों को मिलाने वाला माल उत्पादन जब अपने चरम पर पहुँच जाते हैं तो वे पूरे समाज को क्रांतिकारी रुप से बदल डालते हैं।















चलिए अब आगे देखते हैं , आज धान के देश में जी के अवधिया जी कुछ तथ्यों को पाठकों तक पहुंचा रहे हैं , काफ़ी दिनों बाद ब्लॉग की साज सज्जा को गौर से देखा तो पाया कि बहुत सारे विज्ञापन साईन बोर्ड चमक रहे हैं , यानि कि खबरी लाल की खबर पक्की है , अबकि बार मिलने पर अवधिया जी से दावत ली जा सकती है , बेधडक , लेकिन तथ्यों को जानते जाइए :-


जानने योग्य कुछ रोचक बातें


  • जावा और सुमात्रा में करीब 3,500 प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी पाए जाते हैं।
  • जापान में करीब 3,000 प्रकार के फूल पाए जाते हैं हैं।
  • ‘टर्न’ नाम की चिड़िया हर साल लगभग 20,000 मील का सफर तय करती है।





ई हमारी खुशकिस्मती है कि जितने भी हमारे पांडे जी ब्लॉगर हैं , सबके सब अपने साथी हैं , छोटे पांडे , बडे पांडे , चुलबुल पांडे सबै अपने ही सखामंडल के निकले । आज मानसिक हलचल में ज्ञानदत्त पांडे जी , गुप्त उर्जा के ऐसे स्रोत से परिचय करा रहे हैं कि जीवन भर आप उससे उर्जावान रह सकते हैं :-





श्री देबीप्रसाद पोद्दार की लिखित और प्रकाशित पुस्तक
एक वैसी पुस्तक है श्री देबीप्रसाद पोद्दार जी की – यू आर द पॉवर हाउस। मैं श्री पोद्दार से ट्विटर पर मिला और उनकी पुस्तक के बारे में भी वहीं पता चला।
पोद्दार जी इस प्रिमाइस (premise) से प्रारम्भ करते हैं कि हम अपनी क्षमताओं का दस प्रतिशत से अधिक प्रयोग नहीं करते। बहुत समय से सुनता आया हूं यह और यह मुझे सही भी प्रतीत होता है। अगर आप अप्रतिम लोगों का जीवन देखें तो पता चलेगा कि मानव की क्षमताओं की सम्भावनायें अनंत हैं। पर हम कैसे बाकी की नब्बे प्रतिशत क्षमता को जागृत करें?!
पोद्दार जी कहते हैं कि अगर वे – अर्थात गांधी, मार्टिन लूथर किंग, आइंस्टीन, न्यूटन आदि वह कर सकते हैं तो हम भी कर सकते हैं। जीवन ईश्वर की बहुत बड़ी नियामत है और उसे व्यर्थ नहीं करना है!



इसी पोस्ट पर टीपते हुए


न जाने क्यूँ मैं बहुत भाग्यवादी हूँ. ये पक्का यकीन करता हूँ कि जितना किया है कभी पहले उतना ही मिलेगा. जीवन आसान प्रतीत होता है ऐसा सोच लेने पर.
आप के पोस्ट जैसे विचार पढ़ कर लगता है कि “नहीं! ऐसा बहुत कुछ है जो मैं स्वयं चाह कर के भी कर सकता हूँ”. उथल पुथल मचने के लिए आप को धन्यवाद!
आदि शंकर ने हिंदुत्व को पुनर्जीवित किया या फिर हिन्दू धर्म को? जहाँ तक मेरा ख्याल है, हिंदुत्व एक अपेक्षाकृत नयी अवधारणा है जो कि सावरकर जैसे विचारकों के दिमाग कि उपज है. और इसे हिन्दू धर्म का एक तरह का विश्लेषण मात्र कहा जा सकता है.

जो भी नाम दिया जाये – बौद्ध धर्म के स्थान पर हिन्दुत्व या सनातन धर्म या ब्रह्मवादिन/वेदांतवादी धर्म की पुनर्स्थापना की शंकर ने।
मैं दर्शन का छात्र नहीं हूं, अत: पारिभाषिक शब्दों के फेर में नहीं जा पाता! :)
बाकी, कॉज-इफेक्ट और फ्री-विल दोनो ही हिदुत्व के स्तम्भ हैं। जो अर्जित किया है, तदानुसार फल मिलेगा ही। साथ ही ईश्वर ने मानव को फ्री-विल प्रदान की है जिससे वह भविष्य की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है। अंतत: मोक्ष ही ध्येय है, जो सतत यत्न से मिलना है।


जागरण जंक्शन ने जब अपने पाठकों के लिए ब्लॉग लेखन की शुरूआत की थी तो काफ़ी दिनों तक ये बडा ही बेतरतीब सा और अव्यवस्थित सा , शायद अलग सा भी लगा दिखा था । आज वहां साथी लेखकों और पाठकों की एक बडी ज़मात तैयार हो चुकी है , फ़िलहाल जिस पोस्ट को सबसे ज्यादा पढा गया पिछले हफ़्ते वो शशांक जौहरी जी की एक पोस्ट है , जिसमें उन्होंने सिखाया है कि बोली बम कैसे बनाएं : - सामग्री कुछ इस प्रकार है


बोली बम बनाने में प्रयोग सामग्री
बोली बम बनाने के लिए आपको जो रसायन और सामग्री चाहिए वह इस प्रकार है:
१. डाई हैड्रोजन मोनो अक्साइड
२. कल्शियम
३. एथिल अल्कोहल
४. फटे पुराने जूते चप्पल
५. उल्लू के ठप्पे

बकिया विधिप पूर्वक जौहरी जी की पाकशाला में जाकर सीख सकते हैं आप



काजल भाई के कार्टून और उनकी धारदार टिप्पणियों का कौन नहीं कायल है , फ़िर हम तो पहिले से ही काफ़ी घायल थे ,,आज के कार्टून में तो ऊ कतल कर डाले हैं देखिए कैसे



कार्टून :- बॉस हमेशा गतल ही होता है






अब देखिए कतल कैसे हुआ


ali, November 10, 2011 11:43 AM
जिनके मुंह ज्यादा चलते हों उन्हें माइक की क्या ज़रूरत है :)

कार्टून के शीर्षक में अगर जानबूझ कर ना किया हो तो ग़तल को गलत कर दें !


ajay jha, November 10, 2011 5:54 PM
बॉस हमेशा गतल ही होता है
और आपका कार्टून कतल ही होता है ..




डॉ टी एस दराल, November 11, 2011 1:16 PM
यस बॉस-- नो बॉस --नो नो , यस बॉस --आई मीन --ओह वाट !
सुधार कर अपडेट को कहाँ छिपा लिए हैं ?
हमें तो अभी भी गलत यानि गतल ही दिख रहा है . :)

Arvind Mishra, November 11, 2011 6:03 PM
गतल गतल गतल :)





आपको 3 idiots का ऊ सीन याद है जिसमें करीना कपूर सभी गुजराती व्यंजनों के नाम गिनाती हुई कहती है , थेपला , खाकडा , मांडवा , ढोकला ..जैसा नाम क्यों होता है इनका । कुछ वैसे ही अपने ई पंडित तलाश रहे हैं कि ये ससुरे लिनिक्स , युनिक्स , जैसा नाम कौन काहे रख डाला , इस पोस्ट पर है देखिए माजारा पूरा


यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम अमेरिका की बॅल लैब्स के वैज्ञानिकों केन थॉम्पसन तथा डैनिस रिची द्वारा विकसित किया गया था। बाद में इसी के आधार पर लिनुस टॉरवैल्ड ने लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम बनाया। यूनिक्स कमांड लाइन आधारित था जबकि लिनक्स ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (GUI) युक्त है। यूनिक्स में सारा काम जहाँ कमांडों के द्वारा ही होता था वहीं लिनक्स में विण्डोज़ की तरह ग्राफिकल इंटरफेस (बटन, डायलॉग बॉक्स, विंडो आदि) द्वारा। फिर भी लिनक्स के GUI होने के बावजूद कई बार आज भी इसमें टर्मिनल द्वारा कमांड के उपयोग की आवश्यकता पड़ जाती है।
UNIX




कोई फ़ेसबुकाया ,कोई गुगुलियाया ,कोई कहीं ट्विट्टराया ,
गिरिंद्र भाई से जानिए , यहां ट्विट्टर की माया
...



ट्विटर की माया


Vidya Vihar Institute of Technology
इंटरनेट, एक ऐसी दुनिया, जिसने आपके कथावाचक को लंबी दूरी पाटना सीखाया। इसके हर मोहल्ले में कथावाचक ने दस्तक दी और अपने लिए कुछ न कुछ बटोर लाया। इसी दरम्यान इसकी मुलाकात ट्विटर से हुई, जिसे वह माया कहता है। लेकिन इस माया ने उसे कई नायाब तोहफे दिए।

आज उसी तोहफे की कथा बांचने जा रहा है कथावाचक। कैसे ट्विटर के आंगन में मिला एक शख्स उसके अंचल का पड़ोसी निकल गया।
तो साहेबान, बात यह है कि यूं ही ट्विटर पर खिटिर-पीटिर करते हुए कथावाचक की आभासी मुलाकात राजेश सी. मिश्रा नाम के एक शख्स से होती है। बातों ही बातों में पता चलता है कि जनाब उसी के अंचल पूर्णिया से हैं।





रेल बाबू यानि हमारे छोटे पांडे इन दिनों हिंदी को अपने तमाम गजेट में फ़िट करने की जुगत में भिडे हुए हैं , न सिर्फ़ खुदे बल्कि हम जैसे घनघोर नन टेक्निकल समझ वाले पाठको को भी कोर्स पूरा करा रहे हैं , रेखाचित्र , फ़ोटो सब के साथ । मौजूदा पोस्ट में एक कमाल का मुद्दा उठाते हुए वे कहते हैं ,


क्या सुनना है, क्या सुनते हैं
किसी ब्लॉग में पोस्ट ही मूल संदेश है, शेष कोलाहल। यदि संवाद व संचार स्पष्ट रखना है तो, संदेश को पूरा महत्व देना होगा। जब आधे से अधिक वेबसाइट तरह तरह की अन्य सूचनाओं से भरी हो तो मूल संदेश छिप जाता है। शुद्ध पठन का आनन्द पाने के लिये एकाग्रता आवश्यक है और वेबसाइट पर उपस्थित अन्य सामग्री उस एकाग्रता में विघ्न डालती है। अच्छा तो यही है कि वेबसाइट का डिजाइन सरलतम हो, जो अपेक्षित हो, केवल वही रहे, शेष सब अन्त में रहे, पर बहुधा लोग अपने बारे में अधिक सूचना देने का लोभ संवरण नहीं कर पाते हैं। आप यह मान कर चलिये कि आप की वेबसाइट पर आने वाला पाठक केवल आपका लिखा पढ़ने आता है, न कि आपके बारे में या आपकी पुरानी पोस्टों को। यदि आपका लिखा रुचिकर लगता है तो ही पाठक आपके बारे में अन्य सूचनायें भी जानना चाहेगा और तब वेबसाइट के अन्त में जाना उसे खलेगा नहीं। अधिक सामग्री व फ्लैश अवयवों से भरी वेबसाइटें न केवल खुलने में अधिक समय लेती हैं वरन अधिक बैटरी भी खाती हैं। अतः आपके ब्लॉग पर पाठक की एकाग्रता बनाये रखने की दृष्टि से यह अत्यन्त आवश्यक है कि वेबसाइट का लेआउट व रूपरेखा सरलतम रखी जाये।


जबकि इसी पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए पूजा उपाध्याय लिखती हैं



Puja Upadhyayने कहा…
ब्लॉग पढ़ने को सरल करने के लिए ब्लॉगर ने भी एक नया लेआउट बनाया है. किसी भी ब्लॉग के अड्रेस के अंत में आप अगर /view टाइप करते हैं तो आपको ब्लॉग सरल अवतार में मिलेगा.

व्यू के अलग ऑप्शंस आपको क्लास्सिक,फ्लिप्कार्ड, मैग्जीन लेआउट देते हैं. किसी ब्लॉग में अगर बहुत सारी सामग्री है तो मैं ऐसे ही पढ़ती हूँ. इसमें स्क्रीन पर सिर्फ पोस्ट आती है और पोस्ट के नीचे कमेन्ट की संख्या.


तकनीकी विशेषज्ञता वाले ब्लॉगर , श्री बी एस पाबला जी कहते हैं



बी एस पाबला BS Pablaने कहा…
जीवन कथ्य, स्वयं की दर्जनों फ़ोटो, पुस्तकों की सूची और समाचार पत्रों में छपी कतरनें जैसी बातें उन्ही स्थानों पर अधिक दिखती है जो स्वत सुखाय के गर्व के साथ लिखते हैं लेकिन अधिक से अधिक (टिप्पणी सहित) पाठक देखना चाहते हैं

आपके द्वारा वर्णित उपाय निश्चित ही सटीक हैं
किन्तु सोलह श्रृंगार की रसिकता फिर कहाँ जाएगी :-)



हालांकि ई पंडित इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखते



ePanditने कहा…
लीजिये मैं आपसे कहने वाला था कि आपके ब्लॉग की थीम बदल कर थोड़ी आकर्षक कीजिये (आकर्षक का मतलब ताम-झाम वाली नहीं) पर अब पता चला आपने जानबूझकर ऐसी रखी है।

वैसे ज्यादा तामझाम वाली न सही पर ब्लॉग बिलकुल खाली पेज जैसा भी अच्छा नहीं लगता, जिस तरह का लेखन आप करते हैं आपके ब्लॉग की थीम डायरी शैली की या ऑटोमन शैली की होनी चाहिये।

मुख्य बात यह है कि ब्लॉग की थीम ब्लॉग के विषय से मेल खाती हो।




डॉ.अजित गुप्ता अपनी पोस्टों में अक्सर विमर्श की भरपूर गुंजाईश रखती हैं , वो पाठकों को प्रेरित करती हैं कि आप उन्हें पढ कर बिना कुछ कहे सुने नहीं जा सकते , और मुझे लगता है कि ब्लॉग को सजीव ही होना चाहिए ताकि वो सीधे सीधे पाठक से संवाद कर सके , आज का सवाल है कौन है हमारा idol आदर्श व्यक्ति ?

मेरे पास इस प्रश्‍न का उत्तर नहीं है कि मेरा आयडल कौन है? या मेरा गुरू कौन है? क्‍योंकि गुरू भी ऐसा ही व्‍यक्तित्‍व है जो कभी एक नहीं हो सकता। न जाने हम कितने लोगों से सीखते हैं। इसलिए इन लोगों को जिनसे मुझे प्रेरणा मिलती है उन्‍हें गुरु मानूं या आयडल समझ नहीं आता है। हो सकता है कि मेरे इन विचारों से आप सहमत नहीं हों और इससे इतर आपके अन्‍य विचार हों। इसलिए इस विषय की व्‍यापक चर्चा हो सके, मैंने इसे यहाँ लिखना उपयोगी लगा। आपकी क्‍या राय है? आपका आयडल कौन है?

अब उत्तर भी देखिए :-

डॉ टी एस दरालsaid...
यह सही है कि आदर्श विचार होते हैं न कि व्यक्ति विशेष ।
इसलिए सीखने को कहीं भी मिल सकता है । एक छोटे से बच्चे से भी सीख सकते हैं ।
एक चीटीं खाने का छोटा सा टुकड़ा लेकर बार बार आगे चलती है , गिरती है , फिर चलती है । उसे ध्यान से देखकर हमें भी मेहनत करने की सीख मिलती है ।

हर व्यक्ति में कोई न कोई कमी होती है । इसलिए किसी व्यक्ति को आदर्श बनाना मुश्किल होता है ।
Kajal Kumarsaid...
ए.राजा
मनोज कुमारsaid...
वाह! कमाल का आलेख है।
मैं तो आयडल ही मानता हूं। गुरु से तो गुरु मंत्र की ज़रूरत पड़ती है।

मेरे आयडल गांधी जी हैं।

@ विचारों और कार्यों का समूह मन में दस्‍तक देते हैं और वे ही हमारे आदर्श बनते हैं।

तभी तो हमने अपने विचार रखने के लिए “विचार”
ब्लॉग ही बना डाला। (विचार)


अब जरा राहुल डबास जी के ब्लॉग जिस पर वे लोग लोग के नाम से लिखते हैं , देखिए कि क्या धारदार सवाल उठाए हैं उन्होंने , वो भी उसके थ्री डी डायमेन्शन के साथ



आपके मन में सवाल उठता होगा की यह तीसरा आयाम आखिर है क्या और आयाम से आवाम का भला क्यों होगा? इसे समझने के दो रास्ते हैं, पहला अरस्तु और प्लेटों के सिद्धांत का चक्र कि वक्त खुद हो दोहराता है, और वाद ISM अमित नहीं होते। 1917 के रुसी क्रांति के 100 साल होने में महज पांच वर्ष बाकी है, USSR का किला ढल गया और पूंजीवाद के दुर्ग भी ढहने की कगार पर है। समझने के लिए दूसरा रास्ते ठेठ देसी है, कि जैसे आपका TV Black&White से रंगीन हो गया वैसे ही बाहरी दुनिया को देखने की सोच का चश्मा भी काला या सफेद नहीं रंगीन ही रखिए। जैसे जिस मुल्क में हम रहते हैं वह इंडिया और भारत का बेटा ज़रुर नज़र आता है पर अलग नहीं है। ठीक हिन्दी और उर्दू के बीच की हिन्दुस्तानी की तर्ज पर...।




प्रशांत उर्फ़ अपने पीडी अपनी छोटी सी दुनिया में गाहे बेगाहे आते जाते रहते हैं , फ़िलहाल तो फ़ेसबुक अपडेट को समेट के आपके सामने रख रहे हैं

लफ्ज़ों से छन कर आती आवाजें

१ -
वो काजल भी लगाती थी, और गर कभी उसका कजरा घुलने लगता तो उसकी कालिख उसके भीतर कहीं जमा होने लगती.. इस बदरा के मौसम में उस प्यारी की याद उसे बहुत सताने लगती है.. काश के मेघ कभी नीचे उतर कर किवाड़ से अंदर भी झांक जाता.. ये गीत लिखने वाले भी ना!!
(कहाँ से आये बदरा गीत के सन्दर्भ में)

२ -
समय बदल गया है, जमाना बदल गया है,
एक हमहीं हैं जो सदियों पुराने से लगते हैं..

३ -
तुम अब भी, यात्रारत मेरी प्यारी,
अब भी वही इन दस सालों बाद,
धंसी हुई हो मेरी बग़ल में, किसी भाले की तरह..
(मुझे याद नहीं, मेरी ही लिखी हुई या फिर कहीं का पढ़ा याद आ गया हो)

४ -
मैं उस असीम क्षण को पाना चाहता हूँ जब इस दुनिया का एक-एक इंसान यह भूल जाए की मेरा कोई अस्तित्व भी है.. और अवसाद के उस पराकाष्ठा को महसूस करना चाहता हूँ...



अभिषेक मेरे प्रिय अनुजों में से एक है , आजकल पटना प्रवास पर अपनों के बीच है , और इस बीच उसे कौन कौन अनोखे लोग मिल रहे हैं उनकी हमसे मुलाकात भी करवाते जा रहे हैं , आज मिलिए उनकी नई टीचर से




मेरी नयी टीचर..रीती





  • मेरी छोटकी बहिन और मेरी नयी टीचर
    कल मेरी सबसे छोटी बहन(मेरी मौसी की बेटी रीती) पटना आई.मेरे घर में उसका एक दोस्त(टेडी) रहता है और उसने अपने दोस्त का एक मजेदार नाम भी रखा है -'चटाई बाबू'. ये उसका पटना में बेस्ट-फ्रेंड है.कल आते ही वो घर में अपने 'चटाई बाबू' को खोजने लगी.थोड़ी मेहनत करनी पड़ी उसे लेकिन अंत में उसका चटाई बाबू उसे मिल ही गया.जब चटाई बाबू मिला तो वो मुझसे शिकायत करने लगी - 'तुम कैछे रखता है मेरा चटाई बाबू को...देखो तो कितना गन्दा हो गया..काला हो गया ये..इच्को काने(खाने) को नई देता है तुम..पतला भी हो गया ये'.

    रीती अपने टेडी को बड़ा प्यार से रखती है और इसके पास जितने भी टेडी हैं सब के मजेदार नाम भी हैं.वैसे ये बता दूँ की सब नाम रीती खुद ही रखती है और हर टेडी के नाम कुछ महीनो में बदलते रहते हैं.इसका एक पुराना दोस्त(टेडी) है जिसके साथ ये हमेशा खेलती है..करीब तीन साल से ये टेडी इसके पास है..और इन तीन सालों में इस टेडी का बहुत बार नामकरण भी हो चूका है...इस टेडी का सबसे पहला नाम था 'भौं-भौं' और अभी का लेटेस्ट नाम है 'पप्पी'.




    सब रिस रहे हैं चुप चुप…शमशेर बहादुर सिंह

    सब रिस रहे हैं चुप चुप – शमशेर बहादुर सिंह
    ( a kavita poster by ravi kumar, rawatbhata)


    ०००००
    रवि कुमार


    और अब चलते चलते कुछ वन लाइनर हो जाए :








    इडियट के बहाने : फ़िल्म ही नहीं ,पोस्ट भी सुपर हिट






    माई लाइफ़ स्टोरी पर मेरी नहीं : चौथा भाग आ गया , फ़ौरन पढें ,करें देरी नहीं






    उडान तो आसमा की तरफ़ ही होती है न : जी बिल्कुल , बस पायलट ठीक होना चाहिए हवाई जहाज का






    बस एक चिट्ठी आपके लिए : हाय हाय ,बिग बास की तरफ़ से तो नहीं आ गई






    बेचैनी : कम हुई या ज्यादा , पोस्ट पढो न दादा




    हम तुम्हारे थे : और अब






    भारत विभाजन की नई विभीषिका : उफ़्फ़ , यहां भी सीक्वेल








    कवि सम्मेलन और ब्लॉगर्स मित्र मिलन : आप भी सादर आमंत्रित हैं जी








    आज के बुलेटिन आप बांचिए , कल फ़िर मिलते हैं ..चकाचक लिए हुए






    26 टिप्‍पणियां:

    1. बहुत मेहनत की है भाई!
      वास्तव में इस प्रयास की आवश्यकता है। एक ब्लाग एग्रीगेटर के लिए जो सुझाव आप ने दिए हैं, उस पर हमारीवाणी सलाहकार मंडल में शीघ्र ही विचार किया जाएगा।

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    2. वाह झा जी वाह ... खूब सैर करवाई आपने ब्लॉग नगरिया की ... बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं पूरी टीम को इस नयी शुरुआत के लिए ... ख़ास कर आपको !

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    3. वाकई बहुत मेहनत की है अजय जी.बधाई!

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    4. "यानि कि खबरी लाल की खबर पक्की है, अबकि बार मिलने पर अवधिया जी से दावत ली जा सकती है"

      पता नहीं खबरी लाल ने आपको क्या खबर दी है जो आप इतने खुश हो रहे हैं। हमारे ब्लोग में विज्ञापनों के बैनर तो अब तक सिर्फ "हाथी के दिखाने वाले दाँत" ही साबित हुए हैं। पर हम इन्हें निकालते इसलिए नहीं हैं कि इससे ब्लोग आकर्षक लगता है और भविष्य के लिए उम्मीद भी बँधी हुई है।

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    5. यह एक बहुत अच्छी पहल है।
      शुभकमनाएं।
      यह प्रयास ब्लॉगजगत में मील का पत्थर साबित होगा।
      झा जी ने बहुत अच्छी शुरुआत की है।

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    6. अच्छा प्रयास है | टेक्स्ट के साईज को थोड़ा सा बढाने का प्रयास करें | उम्मीद करता हूँ कि आपका ये प्रयास निरंतरता के पथ पर चलायमान रहेगा |

      टिप्स हिंदी में

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    7. बहुत अच्छी पहल

      बधाई व शुभकामनाएँ

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    8. इस बुलेटिन प्रसारण का कोई समय भी निश्चित है क्या??

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    9. आपका नया ब्लॉग बहुत बढ़िया लगा! मुझे बेहद पसंद आय१ में फोलोवेर बन गई हूँ और आती रहूंगी!

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    10. @ अर्चना जी ... बिलकुल वाजिब सवाल है आपका ... पर क्यों कि अभी अभी शुरुआत हुयी है और हमारी पूरी टीम ने अभी कार्यभार संभाला भी नहीं है इस लिए अभी एक हफ्ते तक मामला थोडा गड़बड़ा सकता है इस कारण आपको सटीक समय बता पाने में असमर्थ हूँ ... उसके बाद आप इसको एक निर्धारित समय पर ही पायेंगे ! बस ऐसे ही सहयोग और स्नेह बनायें रखें ! सादर !

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    11. आपके मेहनत को देख अभिभूत हैं... बिना मुद्रा के इतनी मेहनत का मोटिवेशन कैसे बना रहेगा यही हिंदी ब्लॉग्गिंग की कमी है.... शुभकामनाएं...

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    12. @शिवम जी,शुरुआत अच्छी हुई है ,और टीम कार्यभार भी सम्भाल ही लेगी ......जब समय निर्धारित हो जाए तब इसका नाम कुछ ऐसा हो सकता है --"ब्लॉग बुलेटिन रात आठ बजे"....:-)

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    13. @ अर्चना जी आपके सुझाव पर जरुर गौर किया जायेगा ... धन्यवाद !

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    14. ब्लाग बुलेटिन के प्रसारण पर शु्भकामनाएं एवं बधाई

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    15. सार्थक सहयोगी प्रयास!! अभिनन्दन और बधाई!!

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    16. बहुत खूब!! आज इसके अलावा कोई शब्द नहीं मेरे पास!!

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    17. सार्थक और उपयोगी प्रयास है... कहीं से पोस्ट चस्पा करते समय फोर्मेट बिगड़ जाता है... कई बार थोड़ी सी अतिरिक्त मेहनत अपेक्षित होगी... फिर भी बहुत बहुत बधाई और अभिनन्दन

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    18. यह तो बढि़या फेसवाणी हो गई। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की बेहतर भविष्‍यवाणी हो गई। पुरानी हुई थी पर वापिस नई कहानी हो गई। कहानी नई है तो पाठक नए भी आएंगे। ब्‍लॉग नए बनायेंगे। लिखकर विचार अपने नए नए बरसाएंगे।

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    19. इस श्रमसाध्य पोस्ट के लिए बधाई !

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    20. एक बहुत ही बेहतरीन शुरआत है... क्योंकि टिप्पणियों का भी अपना ही मज़ा है.

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    21. शिवम जी,शुरुआत अच्छी हुई है,बहुत सार्थक सहयोगी प्रयास है। अपने आप में अनूठा,अद्वितीय और अतुलनीय है यह प्रस्तुति, वाकई अजय जी ने खूब मेहनत की है,बहुत बहुत बधाई और अभिनन्दन!

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    22. waah jii jha ji ! ek jagah itne links mil gaye ha ha ha is achchhe kaam ke liye bdhai sweekaro bhaaiji !

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    बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!