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शनिवार, 7 दिसंबर 2019

2019 का वार्षिक अवलोकन  (सातवां)



रोहिताश घोड़ेला का ब्लॉग 

कायाकल्प

जब 'यह' क्रूर या निर्दयी है
तब उन लोगों ने किनारा किया
जिन्होंने मेरे शानदार दिनों में
अपना भरण पोषण करवाया
छोटी छोटी चीजों के लिए
मोहताज़ रहे  इनको
जरा भी नहीं तरसाया।
तरस आये मुझ पर
ये चाहत भी नहीं मेरी
अलावा इस धुंधली नजर की नजर में तो रहे
ये चंद पोषित जिव,
ताकि बता सकूं कि जो दाढ़ी बढ़ आई है
शूलों की तरह चुभती है और झुंझ मचल रही है।

वो कमरा ना दे जिसमें कोई आता जाता ही ना हो
पर  वही कमरा भयानक
इसमें रोशनी करना भी मुनासिब ना समझा उन्होंने
यही अँधेरा मेरे लिए राहत की बात है।  

एक घड़ा खटिया से दूर
दवाइयां अंगीठी में ऊंचाई पर
चश्मा भी इधर ही कहीं होगा
ये सब मेरी पहुँच से दूर
लेकिन मेरे लिए छोड़े।
एक जर्जर देह
जिसमें कोई शक्ति शेष न रही
और झाग के माफ़िक सांसें,
मुझे ही मेरे लिए छोड़ दिया।

ऐसी हालात में भी एक काम
मुझ से बहुत बुरा हुआ कि
इन दिनों मैं मेरे पौत्र की नजर में रहा।   

छोड़ के जाने वाले मेरे अपने
तृप्त हैं , संतुष्ट हैं  और  हैं दृढ  
कि मेरा दुःख मैं अकेला उठाऊं
इस शांति से पहले की बैचैन सरसराहट को
सुने बगैर
देर किये बगैर
उन्होंने तो धरती भी खोद ली होगी
या सोचा होगा आसमान को काला करेंगे।
मुझे याद आता है
घर के दरवाजे तक साथ आकर उनसे विदा लेना
या उनको पाँव पर खड़ा करना
या उनकी जरूरतों को उनकी गिरफ़्त में करवाना
सहारा देना....हूं ... सहारा बनना....
ओ जीवनसाथी तू याद आया
अब तो मुस्कुरा लूँ जरा। 

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह रोहित जी की रचना ...रोहित जी का चिंतन और लेखन साहित्य के लिए कुछ अलग करने का प्रयास है। इनकी रचनाओं के विविधापूर्ण
    विषयोंं में आध्यात्मिक मनन के साथ सामाजिक विडंबनाओं के प्रति खासा आक्रोश पढने को मिलता है।
    बधाई रोहित जी शुभकामनाओं सहित।
    आभार रश्मि जी सुंदर अवलोकन।

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  2. प्रिय रोहितास, आपके ब्लॉग के नाम इस विशेष प्रस्तुति के लिए ब्लॉग बुलेटिन को हार्दिक आभार और आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनायें। आपका अपनी पहचान आप वाला लेखन ब्लॉग जगत में किसी परिचय का मोहताज नही। यूँ ही अपनी लेखनी के मध्यम से यश बटोरिये।मेरी दुआएं आपके लिए💐💐💐💐💐🥞💐

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  3. आपकी इस खास भावपूर्ण रचना के लिए कुछ शब्द , जो मैंने आपके ब्लॉग पर लिए थे उन्हे यहाँ डाल रही हूँ ____
    प्रिय रोहितास , बहुत ही मार्मिक कथा काव्य लिखा आपने | मैं इसे स्मृति चित्र कहना चाहूंगी जिसे आपने कविता में सम्पूर्णता से ढाला है | ये जीवन चित्र किसी का भी हो सकता है | अपनों के सताए किसी स्नेहिल पिता की असहायता बहुत मर्मान्तक है | अपनों के छल की वेदना और जीवन की अंतिम बेला में साथी की अनायास याद बहुत मर्मस्पर्शी है | निशब्द हूँ |

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