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सोमवार, 16 दिसंबर 2019

2019 का वार्षिक अवलोकन  (सोलहवां)




दिगंबर नासवा जी के स्वप्न 


घर मेरा टूटा हुआ सन्दूक है ...

घर मेरा टूटा हुआ सन्दूक है

हर पुरानी चीज़ से अनुबन्ध है    
पर घड़ी से ख़ास ही सम्बन्ध है
रूई के तकिये, रज़ाई, चादरें  
खेस है जिसमें के माँ की गन्ध है
ताम्बे के बर्तन, कलेंडर, फोटुएँ
जंग लगी छर्रों की इक बन्दूक है
घर मेरा टूटा ...

"शैल्फ" पे  चुप सी कतारों में खड़ी  
अध्-पड़ी कुछ "बुक्स" कोनों से मुड़ी
पत्रिकाएँ और कुछ अख़बार भी
इन दराजों में करीने से जुड़ी
मेज़ पर है पैन, पुरानी डायरी
गीत उलझे, नज़्म, टूटी हूक है
घर मेरा टूटा ....

ढेर है कपड़ों का मैला इस तरफ
चाय के झूठे हैं "मग" कुछ उस तरफ
फर्श पर है धूल, क्लीनिंग माँगती
चप्पलों का ढेर रक्खूँ किस तरफ
जो भी है, कडुवा है, मीठा, क्या पता
ज़िन्दगी का सच यही दो-टूक है
घर मेरा टूटा ...

जो भी है जैसा भी है मेरा तो है
घर मेरा तो अब मेरी माशूक है
घर मेरा टूटा ...




22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी एक एक शब्द ,अपनी जमीन और अपने घरोंदे से दूर रहकर भी उससे आपके जुड़ाव को व्यक्त कर रही हैं। ढेरों शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार आपको

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  2. नासवा सर की रचनाओं मैं नवीनतम प्रयोग,भावप्रवणता और अनूठी शैली पाठक को बाँध लेती है।
    हर रचना दूसरे से भिन्न और बहुत सुंदर होती है।
    यह रचना भी बहुत अच्छी है हमेशा की तरह।
    बधाई सर और शुभकामनाएँ भी।

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  3. नासवा जी को पढ़ना हमेशा से एक अद्भुत अनुभव रहा है. हर पंक्ति पाठक को आगे की पंक्ति में बाँध लेती है."हर पुरानी चीज़ से अनुबन्ध है
    पर घड़ी से ख़ास ही सम्बन्ध है......" वाह!

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    1. मेरी भावनाओं को बख़ूबी समझने का बहुत आभार विश्वमोहन जी ...

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  4. नासवा जी बड़े सहज व सरलता से गंभीर लेखन करते हैं, जो दिल को छू लेने वाला होता है।

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    1. आप तो पुरानी ब्लॉग साथी हैं ... बहुत आभार आपका ...

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  5. नासवा जी की लेखन शैली , भावाभिव्यक्ति अनुपम और हृदयस्पर्शी होती है । ब्लॉग बुलेटिन के पटल की यह रचना पाठको को इनके लेखन कौशल से रूबरु करवाने की एक झलक भर है ।

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  6. हर पुरानी चीज़ से अनुबन्ध है
    पर घड़ी से ख़ास ही सम्बन्ध है
    रूई के तकिये, रज़ाई, चादरें
    खेस है जिसमें के माँ की गन्ध है बेहद हृदयस्पर्शी रचना आदरणीय 👌👌

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. हर पुरानी चीज़ से अनुबन्ध है
    यही एक पंक्ति इस भावों से भरी रचना की जान है दिगम्बर जी | पुरानी
    चीजें इंसान की खुशियों के अनगिन पलों की साक्षी होती हैं | इनसे जुड़कर यादों का गाँव भीतर सदा हरियाला रहता है |हार्दिक शुभकामनायें और बधाई इस उम्दा सृजन के लिए जो आज इस मंच की शान बना है | सादर

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    1. आपका स्नेह मेरी रचना को ताज़गी ले के आया है ... बहुत आभार आपका ...

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  9. ब्लॉग बुलेटिंन के वार्षिक अवलोकन में हिंदी के जाने पहचाने ग़ज़लकार आदरणीय दिगम्बर जी की रचना स्वागत योग्य है। दिगम्बर जी उन विरले रचनाकारों में से एक हैं, जो हिंदी ग़ज़ल को एक नये रूप में ढालकर प्रानवायु देने के साथ, हर उस शख्स के अनकहे भावों को अभिव्यक्ति भी दे रहे हैं जो जमींन से जूडाहै । एक सजग पाठक के तौर पर उनकी प्रेरक समीक्षाएं हर रचनाकार का मनोबल ऊँचा करती हैं। दिगम्बर जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ - स्टार रचनाकार बनने के लिए 🙏🙏🙏

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    1. ये आपका स्नेह है मेरी रचनाओं के प्रति ... आप सदा अपनी विशिष्ट शैली और विस्तृत अध्यन के बाद रचना के मर्म तक पहुँचती हैं ... बहुत आभार है आपका ...

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  10. रोजमर्रा के जीवन में बोले जाने वाले साधारण से साधारण शब्दों को अपनी रचनाशैली में गूँँथकर असाधारण सृजन करना कोई नासवा जी से सीखे ।
    ब्लॉग बुलेटिन के प्रतिष्ठित मंच पर आपकी रचना देखकर अपार हर्ष हुआ...
    हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई आपको।

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    1. इस मंच पर मेरी रचनाएँ मेरा सौभाग्य है ... आपका बहुत आभार है मेरे लेखन को सराहने के लिए ... 🙏🙏🙏

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  11. ब्लॉग बुलेटिन और आदरणीय रश्मि जी का ही बहुत आभार है मुझे इस मंच पर जगह देने के लिए ... आपक स्नेह और मार्ग-दर्शन सदा मिला है मुझे ... 🙏🙏🙏

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  12. सहज - सरल शब्दों से कितनी बातें अपनी सी लगती हैं ... बेहद शानदार सृजन

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